यम द्वितीया, भैया दूज, चित्रगुप्त पूजन और विश्वकर्मा पूजन 21 ऑक्टूबर-2017 को:- चित्रगुप्त जी यमराज के बहनोई कैसे हुए....
जानिए पौराणिक कथा--
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दीपावली की घोर अमावस्या के बाद जिस दिन चंद्रमा के दर्शन होते हैं, उसी दिन भारत में सर्वत्र यम द्वितीया यानी भैया दूज या भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि 21 अक्टूबर 2017 अपरान्ह 01:37 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 22 अक्टूबर 2017 प्रातः 03:00 बजे समाप्त होगी।
इस दिन बहन अपने घर में आए हुए भाई को विशेष प्रकार के व्यंजन परोसती है और उसका आशीर्वाद लेती है।
यम द्वितीया के दिन भाई द्वारा बहन के घर जाना भी एक पौराणिक कथा से संबंधित है।
पौराणिक कथा:--
सूर्य के दो जुड़वां संतान यम और यमी का जन्म हुआ था। यम अपने जीवन में इतना व्यस्त हुए कि उसे कभी भी अपनी बहन की सुध लेने की फुर्सत नहीं होती है।
यमी का विवाह देवताओं के लेखपाल चित्रगुप्त के साथ हुआ था। जिस कारण चित्रगुप्त और यमराज में बहनोई का रिश्ता हुआ। चित्रगुप्त को भी यमराज के अधीन ही कार्य करना पड़ता है। बाद में यमी का अवतरण धरती पर यमुना नदी के रूप में हुआ।
एक दिन यमी ने यमराज से अपने घर आकर उसका आतिथ्य स्वीकार करने की प्रार्थना की। अंततः कार्तिक मास की द्वितीया के दिन यमराज को अपनी बहन यमी के घर जाने की फुर्सत मिली। यमी ने माथे पर तिलक लगा कर यमराज से वचन लिया कि हर वर्ष कार्तिक मास की द्वितीया के दिन चाहे कुछ भी हो, भाई को बहन के घर अवश्य जाना होगा। यमराज ने प्रसन्न होकर यमी को यह वरदान दिया कि मैं अवश्य तेरे घर आऊं और इस दिन पृथ्वी लोक में रहने वाला जो भी नर यमुना नदी के स्नान के बाद अपनी बहन के घर जाएगा, उसे नरक की यातना नहीं भोगनी पड़ेगी।
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भैयादूज के दिन यदि आसमान में चील दिखाई दे तो मनोरथ पूर्ण होता है----
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संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस संदर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं, उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा।
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चित्रगुप्त जी की पूजा का विशेष महत्व:-
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इसके साथ ही कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं।
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विश्वकर्मा पूजन का महत्व-
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पुराणों में वर्णित लेखों के अनुसार इस "सृष्टि"की रचयिता आदिदेव ब्रह्मा जी को माना जाता है । ब्रह्मा जी,विश्वकर्मा जी की सहायता से इस सृष्टि का निर्माण किये, इसी कारण विश्वकर्मा जी को इंजीनियर भी कहा जाता है
धर्म शास्त्रो के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र "धर्म" के सातवी संतान जिनका नाम "वास्तु" था, विश्वकर्मा जी वास्तु के पुत्र थे जो अपने माता पिता की भाती महान शिल्पकार हुए जिन्होंने इस सृष्टि में अनेको प्रकार के निर्माण इन्ही के द्वारा हुआ। देवताओ का स्वर्ग हो या लंका के रावण की सोने की लंका हो या भगवान कृष्ण की द्वारिका और पांडवो की राजधानी हस्तिनापुर इन सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा द्वारा की गयी है जो की वास्तु कला की अद्भुत मिशाल है।
विश्वकर्मा जी को औजारों का देवता भी कहा जाता है महृषि दधीचि द्वारा दी गयी उनकी हड्डियों से ही "बज्र" का निर्माण इन्होंने ही किया है, जो की देवताओ के राजा इंद्र का प्रमुख हथियार है।
आचार्य राजेश कुमार
Divyansh jyotish Kendra
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