Wednesday 27 December 2017

पुत्रदा एकादशी के दिन निःसंतान दंपत्ति करें ये अचूक उपाय


क्या आपकी कुंडली में "संतान योग " नहीं है या संतान को कष्ट है तो “पुत्रदा एकादशी” के दिन पुत्र की प्राप्ति हेतु करें ये अचूक उपाय :-
एकादशी व्रत हिन्दू कैलेंडर के अनुसार बहुत ही शुभ व्रत माना जाता है। एकादशी शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है ग्यारह’ । प्रत्येक महीने में दो एकादशी होती हैं जो कि शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष के दौरान आती हैं। मांह दिसंबर -२०१७ में २९ दिसंबर -२०१७ दिन मंगलवारशुक्ल पक्ष को पौष पुत्रदा एकादशीमनाई जाएगी . , पुत्रदा एकादशी व्रत:-

व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्य होकर सबसे पहले स्नान कर लेना चाहिए। यदि आपके पास गंगाजल है तो पानी में गंगाजल डालकर नहाना चाहिए। स्नान करने के लिए कुश और तिल के लेप का प्रयोग करना श्रेष्ठ माना गया है। स्नान करने के बाद शुद्ध व साफ कपड़ा पहनकर विधिवत भगवान श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
भगवान् विष्णु देव की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं तथा पुनः व्रत का संकल्प लेकर कलश की स्थापना करना चाहिए। कलश को लाल वस्त्र से बांध कर उसकी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद उसके ऊपर भगवान की प्रतिमा रखेंप्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहना देना चाहिए। उसके बाद पुनः धूपदीप से आरती करनी चाहिए और नैवेध तथा फलों का भोग लगाना चाहिए। उसके बाद प्रसाद का वितरण करे तथा ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। रात में भगवान का भजन कीर्तन करना चाहिए। दूसरे दिन ब्राह्मण भोजन तथा दान के बाद ही खाना खाना चाहिए।
भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। संतान की ईच्छा रखने वाले निःसंतान व्यक्ति को इस व्रत को करने से शीघ्र ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। अतः संतान प्राप्ति की ईच्छा रखने वालों को इस व्रत को श्रद्धापूर्वक अवश्य ही करना चाहिए।
संतान प्राप्ति हेतु अज के दिन अचूक उपाय :-
          पुत्रदा एकादशी के दिन सपत्निक विष्णु सहस्त्रनाम का १०८ पाठ एवं एकादशी व्रत पाठ करें तथा विष्णु प्रतिमा या अपने घर के मंदिर के समीप ही शयन करें . ब्राह्मणों को भोजन एवं यथा शक्ति दान दक्षिणा देकर उनक आशीर्वाद प्राप्त करें तो योग्य संतान की प्राप्ति अवश्य होगी .
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा :-

पुत्रदा एकादशी कथा के सम्बन्ध में कहा गया है कि प्राचीन काल में महिष्मति नामक नगरी में महीजित’ नामक एक धर्मात्मा राजा सुखपूर्वक राज्य करता था। वह बहुत ही शांतिप्रियज्ञानी और दानी था। सभी प्रकार का सुख-वैभव से सम्पन्न था परन्तु राजा संतान कोई भी संतान नहीं था इस कारण वह राजा बहुत ही दुखी रहता था।
एक दिन राजा ने अपने राज्य के सभी ॠषि-मुनियोंसन्यासियों और विद्वानों को बुलाकर संतान प्राप्ति के लिए उपाय पूछा। उन ऋषियों में दिव्यज्ञानी लोमेश ऋषि ने कहा- राजन ! आपने पूर्व जन्म में सावन / श्रावण मास की एकादशी के दिन आपके तालाब एक गाय जल पी रही थी आपने अपने तालाब से जल पीती हुई गाय को हटा दिया था। उस प्यासी गाय के शाप देने के कारण तुम संतान सुख से वंचित हो। यदि आप अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी को भगवान जनार्दन का भक्तिपूर्वक पूजन-अर्चन और व्रत करो तो तुम्हारा शाप दूर हो जाएगा। शाप मुक्ति के बाद अवश्य ही पुत्र रत्न प्राप्त होगा।
लोमेश ऋषि की आज्ञानुसार राजा ने ऐसा ही किया। उसने अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से रानी ने एक सुंदर शिशु को जन्म दिया। पुत्र लाभ से राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ और पुनः वह हमेशा ही इस व्रत को करने लगा। उसी समय से यह व्रत लोक में प्रचलित हो गया। अतः जो भी व्यक्ति निःसन्तान है और संतान की इच्छा रखता हो वह व्यक्ति यदि इस व्रत को शुद्ध मन से करता है तो अवश्य ही उसकी इच्छा की पूर्ति है कहा जाता है की भगवान् के घर में देर है पर अंधेर नहीं।
आचार्य राजेश कुमार
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Saturday 23 December 2017

क्या आप जानते हैं की भारतवर्ष का प्राचीन नाम “अजनाभवर्ष” था


(१)
वास्तविक अखंड  भारतवर्ष का इतिहास
क्या आप जानते हैं की भारतवर्ष का प्राचीन नाम “अजनाभवर्ष” था
प्रिय मित्रों किसी भी व्यक्ति या देश के  ज्योतिषीय विश्लेषण हेतु उसका जन्म कालीन विवरण नितांत आवश्यक है I  वैसे तो हमारे देश के ज्योतिर्विद  अंग्रेजों के चंगुल से भारतवर्ष की  आज़ादी के दिन १५ अगस्त १९४७ रात्रि १२.०० को ही भारत का वास्तविक जनम विवरण मानकर भविष्यकथन करते हैं जबकि १५ अगस्त १९४७ को भारत का चौबीसवां विभाजन हुआ था I
  इतिहासकारों ने भारत वर्ष को प्रमुखता से तीन भाग में विभाजित किया है  I
१-प्राचीन भारत                                                 २-मध्यकालीन भारत                   ३- आधुनिक भारत
१००० ई पू के पश्चात १६ महाजनपद उत्तर भारत में मिलते हैं। ५०० ईसवी पूर्व के बाद, कई स्वतंत्र राज्य बन गए। उत्तर में मौर्य वंश, जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक सम्मिलित थे, ने भारत के सांस्कृतिक पटल पर उल्लेखनीय छाप छोड़ी १८० ईसवी के आरम्भ सेमध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में इंडो-ग्रीकइंडो-स्किथिअनइंडो-पार्थियन और अंततः कुषाण राजवंश स्थापित हुए तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का "स्वर्णिम काल" कहलाया। दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश चालुक्यचेरचोलकदम्बपल्लव तथा पांड्यचले विज्ञानकलासाहित्यगणितखगोल शास्त्रप्राचीन प्रौद्योगिकीधर्म, तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फ़ले-फ़ूले |
मध्यकालीन भारत:-
12वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत पर इस्लामी आक्रमणों के पश्चात, उत्तरी व केन्द्रीय भारत का अधिकांश भाग दिल्ली सल्तनत के शासनाधीन हो गया; और बाद में, अधिकांश उपमहाद्वीप मुगल वंश के अधीन। दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य शक्तिशाली निकला। हालांकि, विशेषतः तुलनात्मक रूप से, संरक्षित दक्षिण में, अनेक राज्य शेष रहे अथवा अस्तित्व में आये।
17वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगालडचफ्रांसब्रिटेन सहित अनेकों युरोपीय देशों, जो कि भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होनें देश में स्थापित शासित प्रदेश, जो कि आपस में युद्ध करने में व्यस्त थे, का लाभ प्राप्त किया। अंग्रेज दुसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० ई तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ ई में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो कि भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया।



(२)

आधुनिक भारत:-

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये संघर्ष चला। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप 15 अगस्त1947  को सफल हुआ जब भारत ने अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, मगर देश को विभाजन कर दिया गया। तदुपरान्त 26 जनवरी1950  को भारत एक गणराज्य बना।

१८५७ से १९४७ तक अंगेजों ने  हिंदुस्तान के कई टुकड़े कर कुल ७ नए देश बना दिए थे I सन १९४७ में हिंदुस्तान का चौबीसवां विभाजन कर पाकिस्तान बनाया गया I
1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किमी है।
 पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है।अखंड भारत की स्थिति कैसी थी
आज तक किसी भी इतिहास की पुस्तक में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता की बीते 2500 सालों में हिंदुस्तान पर जो आक्रमण हुए उनमें किसी भी आक्रमणकारी ने अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया हो। अब यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह देश कैसे गुलाम और आजाद हुए। पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। बाकी देशों के इतिहास की चर्चा नहीं होती। हकीकत में अंखड भारत की सीमाएं विश्व के बहुत बड़े भू-भाग तक फैली हुई थींI

सन 1800 से पहले विश्व के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर जो आज अन्य देश माने जाते हैं उस समय ये देश थे ही नहीं। यहां राजाओं का शासन था। इन सभी राज्यों की भाषा अधिकांश शब्द संस्कृत के ही हैं। मान्यताएं व परंपराएं बाकी भारत जैसी ही हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, पंथ के तरीके सब एकसे थे। जैसे-जैसे इनमें से कुछ राज्यों में भारत के इतर यानि विदेशी मजहब आए तब यहां की संस्कृति बदलने लगी।





(३)
ये थीं अखंड भारत की सीमाएं

इतिहास के पन्नों  में पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रमण हुए (यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज) इन सभी ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया ऐसा इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में कहा है। किसी ने भी अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण का उल्लेख नहीं किया है।
एशिया द्वीप( जम्बूद्वीप )से हिन्द महासागर (इन्दू सरोवरम् )तक के भाग को भारत वर्ष कहते थे :-
जब हम  पृथ्वी का जल और थल में वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं। हम इसमें से प्राचीन नाम जम्बूद्वीप जिसे आज एशिया द्वीप कहते हैं तथा इन्दू सरोवरम् जिसे आज हिन्दू महासागर कहते हैं, के निवासी हैं। इस जम्बूद्वीप (एशिया) के लगभग मध्य में हिमालय पर्वत स्थित है। हिमालय पर्वत में विश्व की सर्वाधिक ऊंची चोटी सागरमाथा, गौरीशंकर हैं, जिसे 1835 में अंग्रेज शासकों ने एवरेस्ट नाम देकर इसकी प्राचीनता व पहचान को बदल दिया।
अखंड भारत के इतिहास के पन्नों में हिंदुस्तान की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिंद महासागर का वर्णन है, परंतु पूर्व व पश्चिम का वर्णन नहीं है। जबकि  कैलाश मानसरोवरसे पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इंडोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश या आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर पर हैं।
 
एटलस के अनुसार जब हम श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर देखेंगे तो हिंद महासागर इंडोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिंदुओं के बाद ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है। इस प्रकार से हिमालय, हिंद महासागर, आर्यान (ईरान) व इंडोनेशिया के बीच का पूरे भू-भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष या हिंदुस्तान कहा जाता है।
भारत का अब तक 24 विभाजन

सन 1947 में भारतवर्ष का पिछले ढाई हज़ार वर्षों में 24वां विभाजन है। अंग्रेज का 350 वर्ष पूर्व के लगभग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर भारत आना, फिर धीरे-धीरे शासक बनना और उसके बाद 1857 से 1947 तक उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है। 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किमी है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है।
आचार्य राजेश कुमार
मेल ई डी-RAJPRA.INFOCOM@GMAIL.COM