चंद्र ग्रहण दोष क्या होता ? क्यों होता हैं ग्रहण दोष ?? कैसे करें निवारण ???
चंद्र ग्रहण दोष क्या होता है –
ज्योतिषाचार्य आचार्य राजेश कुमार ने बताया कि जब राहु या केतू की युति चंद्र के साथ हो जाती है तो चंद्र ग्रहण दोष हो जाता है। दूसरे शब्दों में, चंद्र के साथ राहु और केतू का नकारात्मक गठन, चंद्र ग्रहण दोष कहलाता है। ग्रहण दोष का प्रभाव, विभिन्न राशियों पर विभिन्न प्रकार से पड़ता है जिसके लिए जन्मकुंडली, ग्रहों की स्थिति भी मायने रखती है|
चंद्र ग्रहण दोष के विभिन्न कारण –
चंद्र ग्रहण दोष के कई कारण होते हैं और हर व्यक्ति के जीवन पर उसका प्रभाव भी अलग तरीके से पड़ता है। चंद्र ग्रहण दोष का सबसे अधिक प्रभाव, उत्तरा भादपत्र नक्षत्र में पड़ता है। जो जातक, मीन राशि का होता है और उसकी कुंडली में चंद्र की युति राहु या केतू के साथ स्थित हो जाएं, ग्रहण दोष के कारण स्वत: बन जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों पर इसके प्रभाव अधिक गंभीर होते हैं।
चंद्र ग्रहण दोष के अन्य कारण –
राहु, राशि के किसी भी हिस्से में चंद्र के साथ पाया जाता है- जबकि केतू समान राशि में चंद्र के साथ पाया जाता है
– राहु, चंद्र महादशा के दौरान ग्रहण लगाते हैं
– चंद्र ग्रहण के दिन बच्चे को स्नान अवश्य कराएं।
चंद्र ग्रहण दोष का पता किस प्रकार लगाया जा सकता है –
ज्योतिषाचार्य आचार्य राजेश कुमार ने बताया की चंद्र ग्रहण दोष का पता लगाने के सबसे पहले जन्मकुंडली का होना आवश्यक होता है, इस जन्मकुंडली में राहु और केतू की दशा को पंडित के द्वारा पता लगाया जा सकता है। या फिर, नवमासा या द्वादसमास चार्ट को देखकर भी दोष को जाना जा सकता है। बेहतर होगा कि किसी विद्वान पंडित से सलाह लें। ऐसा माना जाता है कि पिछले जन्म के कर्मों के कारण वर्तमान जन्म में चंद्र ग्रहण दोष लगता है।
चंद्र ग्रहण दोष के परिणाम(प्रभाव) –
ज्योतिषाचार्य आचार्य राजेश कुमार ने बताया की व्यक्ति दिक्कत में रहता है, दूसरों पर दोष लगाता रहता है, उसके मां के सुख में भारी कमी आ जाती है। उसमें सम्मान में कमी अाती है। हर प्रकार से उस व्यक्ति पर भारी समस्याएं आ जाती है जिनके पीछे सिर्फ वही दोषी होता है। साथ ही स्वास्थ्य सम्बंधी दिक्कतें भी आती हैं। सूर्य और चंद्र में से सूर्य के कारण दोष व्यक्तिगत सफलता, शोहरत नाम ,समग्र विकास में पड़ाव परिणाम प्राप्त करने में बाधाओं का सामना। एक औरत बार-बार गर्भपात, बच्चे और दोषपूर्ण पुत्रयोग की अवधारणा में समस्या की तरह बच्चे से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ता। स्वास्थ्य समस्याओं को भी सूर्य दोष के कारण प्रमुख हैं। चंद्र दोष अपने स्वयं के बुरे प्रभावों के रूप में यह व्यक्ति अनावश्यक तनाव देता है।
इस दोष के कारण अविश्वास, भावनात्मक अपरिपक्वता, लापरवाही, याददाश्त में कमी, असंवेदनशीलता अस्वास्थ्य छाती, फेफड़े, सांस लेने और मानसिक अवसाद से संबंधित समस्याऐं उत्पन्न होती हैं। आत्म विनाशकारी प्रकृति भी हो जाता है व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने की इक्षा जागृत होती है।यदि आप हमेशा कश्मकश में रहते हैं, इधर-उधर की सोचते रहते हैं, निर्णय लेने में कमजोर हैं, भावुक एवं संवेदनशील हैं, अन्तर्मुखी हैं, शेखी बघारने वाले व्यक्ति हैं, नींद पूरी नही आती है, सीधे आप सो नहीं सकते हैं अर्थात हमेशा करवट बदलकर सोएंगे अथवा उल्टे सोते हैं, भयभीत रहते हैं तो निश्चित रुप से आपकी कुंडती में चन्द्रमा कमजोर होगा | समय पर इस कमजोर चंद्रमा अर्थात प्रतिकूल प्रभाव को कम करने का उपाय करना चाहिए अन्यथा जीवन भर आप आत्म विश्वास की कमी से ग्रस्त रहेंगे.
जिन व्यक्तियों का चन्द्रमा क्षीण होकर अष्टम भाव में और चतुर्थ तथा चंद्र पर राहु का प्रभाव हो, अन्य शुभ प्रभाव न हो तो वे मिरगी रोग का शिकार होते हैं.
जिन लोगों का चन्द्रमा छठे आठवें आदि भावों में राहु दृष्ट न हो, वैसे पाप दृष्ट हो तो उनको रक्त चाप आदि होता है.
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ज्योतिषाचार्य ने बताया की चंद्रमा को सोम भी कहा जाता है. सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है और इस दिन भगवान शिव के पूजन से मनुष्य को विशेष लाभ प्राप्त होता है. चन्द्रमा के अधिदेवता भी शिव हैं और इसके प्रत्याधिदेवता जल है. महादेव के पूजन से चंद्रमा के दोष का निवारण होता है. महादेव ने चंद्र को अपनी जटाओं पर धारण किया हुआ है. इस प्रकार भगवान शिव की पूजा से चंद्रमा के उलटे प्रभाव से तत्काल मुक्ति मिलती है. भगवान शिव के कई प्रचलित नामों में एक नाम सोमसुंदर भी है. सोम का अर्थ चंद्र होता है |
चन्द्रमा ज्योतिष शास्त्र में बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके संबंध में ज्योतिष शास्त्र कहता है कि चन्द्रमा का आकर्षण पृथ्वी पर भूकंप, समुद्री आंधियां, ज्वार भाटा, तूफानी हवाएं, अति वर्षा, भूस्खलन आदि लाता हैं। रात को चमकता पूरा चांद मानव सहित जीव-जंतुओं पर भी गहरा असर डालता है। चन्द्रमा से ही मनुष्य का मन और समुद्र से उठने वाली लहरे दोनों का निर्धारण होता है। माता और चंद्र का संबंध भी गहरा होता है। कुंडली में माता की स्थिति को भी चन्द्रमा देवता से देखा जाता है और चन्द्रमा को माता भी कहा जाता है।हमारी कुंडली में जिस भी राशि में चन्द्रमा हो वही हमारी जन्म राशि कहलाती है और जब भी शुभ कार्य करने के लिए महूर्त देखा जाता है वह हमारी जन्मराशि के अनुसार देखा जाता है जैसे की हमारी जन्म राशि के अनुसार चन्द्रमा कहाँ और किस नक्षत्र में गोचर कर रहा है।
चन्द्रमा ही हमारे जीवन की जीवन शक्ति है। किसी कुंडली में अगर चन्द्रमा की स्थिति अगर क्षीण होती है अथवा चन्द्रमा पाप प्रभाव लिए हो तो उस व्यक्ति की मानसिक स्थिति को कोई भी अच्छा ज्योतिषी देख कर बता सकता है कि जातक के मन में क्या विचार चलते है तथा जातक की मनोस्थिति किस प्रकार है । निश्चित ही ऐसे जातक का मन उतावला होगा, अत्यंत चंचल होगा। मन को एकाग्र करने में कठनाईयाँ होंगी और जब मन ही एकाग्र नही होगा तो जातक पढ़ने तो बैठेगा लेकिन कुछ ही मिनट बाद उठ जायेगा, जातक सोचेगा की पहले फलां कार्य कर लूँ , पढ़ तो कुछ देर बाद भी लूँगा।चन्द्रमा देवता हमारे मन और मस्तिक्ष के करक है। किसी भी जन्मकुंडली में चन्द्र की महत्वपूर्ण भूमिका को देखे बिना कुंडली का विश्लेषण केवल कुंडली के शव के परिक्षण जैसा होता है।
ज्योतिषी इन ग्रहो युतियों को प्रकारों से सम्बोधित करते है। कई ज्योतिष इन्हे दोष कह कर सम्बोधित करते है तो कई योग कह कर बुलाते है . मेरे विचार से जबतक किन्ही ग्रहों कि युतियां अच्छा फल देने में समर्थ न हो तब तक उसे योग नही कहा जा सकता है। वह दुषयोग ही कहलाएगी।
आज के इस लेख में हम चन्द्र पूजा की विधि के बारे में चर्चा करेंगे तथा इस पूजा में प्रयोग होने वाली महत्वपूर्ण क्रियाओं के बारे में भी विचार करेंगे।
वैदिक ज्योतिष चन्द्र पूजा का सुझाव मुख्य रूप से किसी कुंडली में अशुभ रूप से कार्य कर रहे चन्द्र की अशुभता को कम करने के लिए, अशुभ चन्द्र द्वारा कुंडली में बनाए जाने वाले किसी दोष के निवारण के लिए अथवा किसी कुंडली में शुभ रूप से कार्य कर रहे चन्द्र की शक्ति तथा शुभ फल बढ़ाने के लिए देता है। चन्द्र पूजा का आरंभ सामान्यतया सोमवार वाले दिन शिव वास या चंद्रमा के नक्षत्र के दिन किया जाता है तथा उससे अगले सोमवार को इस पूजा का समापन कर दिया जाता है जिसके चलते इस पूजा को पूरा करने के लिए सामान्यता 7 दिन लगते हैं किन्तु कुछ स्थितियों में यह पूजा 7 से 10 दिन तक भी ले सकती है जिसके चलते सामान्यतया इस पूजा के आरंभ के दिन को बदल दिया जाता है तथा इसके समापन का दिन सामान्यतया सोमवार ही रखा जाता है।
किसी भी प्रकार की पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है एक निश्चित संख्या में जाप।
चन्द्र पूजा में भी चन्द्र वेद मंत्र का 125,000 बार जाप करना अनिवार्य होता है। पूजा के आरंभ वाले दिन पांच या सात पंडित पूजा करवाने वाले यजमान अर्थात जातक के साथ भगवान शिव के शिवलिंग के समक्ष बैठते हैं तथा शिव परिवार की विधिवत पूजा करने के पश्चात मुख्य पंडित यह संकल्प लेता है कि वह और उसके सहायक पंडित उपस्थित यजमान के लिए चन्द्र वेद मंत्र का 125,000 बार जाप एक निश्चित अवधि में करेंगे तथा इस जाप के पूरा हो जाने पर पूजन, हवन तथा कुछ विशेष प्रकार के दान आदि करेंगे। जाप के लिए निश्चित की गई अवधि सामान्यतया 7 से 10 दिन होती है। संकल्प के समय मंत्र का जाप करने वाली सभी पंडितों का नाम तथा उनका गोत्र बोला जाता है तथा इसी के साथ पूजा करवाने वाले यजमान का नाम, उसके पिता का नाम तथा उसका गोत्र भी बोला जाता है तथा इसके अतिरिक्त जातक द्वारा करवाये जाने वाले चन्द्र वेद मंत्र के इस जाप के फलस्वरूप मांगा जाने वाला फल भी बोला जाता है जो साधारणतया जातक की कुंडली में अशुभ चन्द्र द्वारा बनाये जाने वाले किसी दोष का निवारण होता है अथवा चन्द्र ग्रह से शुभ फलों की प्राप्ति करना होता है।
इस संकल्प के पश्चात सभी पंडित अपने यजमान अर्थात जातक के लिए चन्द्र वेद मंत्र का जाप करना शुरू कर देते हैं तथा प्रत्येक पंडित इस मंत्र के जाप को प्रतिदिन लगभग 8 से 10 घंटे तक करता है जिससे वे इस मंत्र की 125,000 संख्या के जाप को संकल्प के दिन निश्चित की गई अवधि में पूर्ण कर सकें। निश्चित किए गए दिन पर जाप पूरा हो जाने पर इस जाप तथा पूजा के समापन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जो लगभग 2 से 3 घंटे तक चलता है। सबसे पूर्व भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश तथा शिव परिवार के अन्य सदस्यों की पूजा फल, फूल, दूध, दहीं, घी, शहद, शक्कर, धूप, दीप, मिठाई, हलवे के प्रसाद तथा अन्य कई वस्तुओं के साथ की जाती है तथा इसके पश्चात मुख्य पंडित के द्वारा चन्द्र वेद मंत्र का जाप पूरा हो जाने का संकल्प किया जाता है जिसमे यह कहा जाता है कि मुख्य पंडित ने अपने सहायक अमुक अमुक पंडितों की सहायता से इस मंत्र की 125,000 संख्या का जाप निर्धारित विधि तथा निर्धारित समय सीमा में सभी नियमों का पालन करते हुए किया है तथा यह सब उन्होंने अपने यजमान अर्थात जातक के लिए किया है जिसने जाप के शुरू होने से लेकर अब तक पूर्ण निष्ठा से पूजा के प्रत्येक नियम की पालना की है तथा इसलिए अब इस पूजा से विधिवत प्राप्त होने वाला सारा शुभ फल उनके यजमान को प्राप्त होना चाहिए।
“ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:” अथवा “ॐ सों सोमाय नम:” का जाप करना अच्छे परिणाम देता है। ये वैदिक मंत्र हैं, इस मंत्र का जाप जितनी श्रद्धा से किया जाएगा यह उतना ही फलदायक होगा।
इस समापन पूजा के चलते नवग्रहों से संबंधित अथवा नवग्रहों में से कुछ विशेष ग्रहों से संबंधित कुछ विशेष वस्तुओं का दान किया जाता है जो विभिन्न जातकों के लिए भिन्न भिन्न हो सकता है तथा इन वस्तुओं में सामान्यतया चावल, गुड़, चीनी, नमक, गेहूं, दाल, खाद्य तेल, सफेद तिल, काले तिल, जौं तथा कंबल इत्यादि का दान किया जाता है। इस पूजा के समापन के पश्चात उपस्थित सभी देवी देवताओं का आशिर्वाद लिया जाता है तथा तत्पश्चात हवन की प्रक्रिया शुरू की जाती है जो जातक तथा पूजा का फल प्रदान करने वाले देवी देवताओं अथवा ग्रहों के मध्य एक सीधा तथा शक्तिशाली संबंध स्थापित करती है। औपचारिक विधियों के साथ हवन अग्नि प्रज्जवल्लित करने के पश्चात तथा हवन शुरू करने के पश्चात चन्द्र वेद मंत्र का जाप पुन: प्रारंभ किया जाता है तथा प्रत्येक बार इस मंत्र का जाप पूरा होने पर स्वाहा: का स्वर उच्चारण किया जाता है जिसके साथ ही हवन कुंड की अग्नि में एक विशेष विधि से हवन सामग्री डाली जाती है तथा यह हवन सामग्री विभिन्न पूजाओं तथा विभिन्न जातकों के लिए भिन्न भिन्न हो सकती है। चन्द्र वेद मंत्र की हवन के लिए निश्चित की गई जाप संख्या के पूरे होने पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण मंत्रों का उच्चारण किया जाता है तथा प्रत्येक बार मंत्र का उच्चारण पूरा होने पर स्वाहा की ध्वनि के साथ पुन: हवन कुंड की अग्नि में हवन सामग्री डाली जाती है।
अंत में एक सूखे नारियल को उपर से काटकर उसके अंदर कुछ विशेष सामग्री भरी जाती है तथा इस नारियल को विशेष मंत्रों के उच्चारण के साथ हवन कुंड की अग्नि में पूर्ण आहुति के रूप में अर्पित किया जाता है तथा इसके साथ ही इस पूजा के इच्छित फल एक बार फिर मांगे जाते हैं।
तत्पश्चात यजमान अर्थात जातक को हवन कुंड की 3, 5 या 7 परिक्रमाएं करने के लिए कहा जाता है तथा यजमान के इन परिक्रमाओं को पूरा करने के पश्चात तथा पूजा करने वाले पंडितों का आशिर्वाद प्राप्त करने के पश्चात यह पूजा संपूर्ण मानी जाती है। हालांकि किसी भी अन्य पूजा की भांति चन्द्र पूजा में भी उपरोक्त विधियों तथा औपचारिकताओं के अतिरिक्त अन्य बहुत सी विधियां तथा औपचारिकताएं पूरी की जातीं हैं किन्तु उपर बताईं गईं विधियां तथा औपचारिकताएं इस पूजा के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं तथा इसीलिए इन विधियों का पालन उचित प्रकार से तथा अपने कार्य में निपुण पंडितों के द्वारा ही किया जाना चाहिए। इन विधियों तथा औपचारिकताओं में से किसी विधि अथवा औपचारिकता को पूरा न करने पर अथवा इन्हें ठीक प्रकार से न करने पर जातक को इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल में कमी आ सकती है तथा जितनी कम विधियों का पूर्णतया पालन किया गया होगा, उतना ही इस पूजा का फल कम होता जाएगा।
चन्द्र पूजा के आरंभ होने से लेकर समाप्त होने तक पूजा करवाने वाले जातक को भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इस अवधि के भीतर जातक के लिए प्रत्येक प्रकार के मांस, अंडे, मदिरा, धूम्रपान तथा अन्य किसी भी प्रकार के नशे का सेवन निषेध होता है अर्थात जातक को इन सभी वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में अपनी पत्नि अथवा किसी भी अन्य स्त्री के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिएं तथा अविवाहित जातकों को किसी भी कन्या अथवा स्त्री के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिएं। इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में किसी भी प्रकार का अनैतिक, अवैध, हिंसात्मक तथा घृणात्मक कार्य आदि भी नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को प्रतिदिन मानसिक संकल्प के माध्यम से चन्द्र पूजा के साथ अपने आप को जोड़ना चाहिए तथा प्रतिदिन स्नान करने के पश्चात जातक को इस पूजा का समरण करके यह संकल्प करना चाहिए कि चन्द्र पूजा उसके लिए अमुक स्थान पर अमुक संख्या के पंडितों द्वारा चन्द्र वेद मंत्र के 125,000 संख्या के जाप से की जा रही है तथा इस पूजा का विधिवत और अधिकाधिक शुभ फल उसे प्राप्त होना चाहिए। ऐसा करने से जातक मानसिक रूप से चन्द्र पूजा के साथ जुड़ जाता है तथा जिससे इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल और भी अधिक शुभ हो जाते हैं।
यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि चन्द्र पूजा जातक की अनुपस्थिति में भी की जा सकती है तथा जातक के व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की स्थिति में इस पूजा में जातक की तस्वीर अर्थात फोटो का प्रयोग किया जाता है जिसके साथ साथ जातक के नाम, उसके पिता के नाम तथा उसके गोत्र आदि का प्रयोग करके जातक के लिए इस पूजा का संकल्प किया जाता है। इस संकल्प में यह कहा जाता है कि जातक किसी कारणवश इस पूजा के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में सक्षम नहीं है जिसके चलते पूजा करने वाले पंडितों में से ही एक पंड़ित जातक के लिए जातक के द्वारा की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं पूरा करने का संकल्प लेता है तथा उसके पश्चात पूजा के समाप्त होने तक वह पंडित ही जातक की ओर से की जाने वाली सारी क्रियाएं करता है जिसका पूरा फल संकल्प के माध्यम से जातक को प्रदान किया जाता है। प्रत्येक प्रकार की क्रिया को करते समय जातक की तस्वीर अर्थात फोटो को उपस्थित रखा जाता है तथा उसे सांकेतिक रूप से जातक ही मान कर क्रियाएं की जातीं हैं। उदाहरण के लिए यदि जातक के स्थान पर पूजा करने वाले पंडित को भगवान शिव को पुष्प अर्थात फूल अर्पित करने हैं तो वह पंडित पहले पुष्प धारण करने वाले अपने हाथ को जातक के चित्र से स्पर्श करता है तथा तत्पश्चात उस हाथ से पुष्पों को भगवान शिव को अर्पित करता है तथा इसी प्रकार सभी क्रियाएं पूरी की जातीं हैं। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि व्यक्तिगत रूप से अनुपस्थित रहने की स्थिति में भी जातक को चन्द्र पूजा के आरंभ से लेकर समाप्त होने की अवधि तक पूजा के लिए निश्चित किये गए नियमों का पालन करना होता है भले ही जातक संसार के किसी भी भाग में उपस्थित हो। इसके अतिरिक्त जातक को उपर बताई गई विधि के अनुसार अपने आप को इस पूजा के साथ मानसिक रूप से संकल्प के माध्यम से जोड़ना भी होता है जिससे इस चन्द्र पूजा के अधिक से अधिक शुभ फल जातक को प्राप्त हो सकें।
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चंद्र दोष निवारण —-
चंद्र दोष के उपाय जो शास्त्रों में उल्लेखित हैं उनमें सोमवार का व्रत करना, माता की सेवा करना, शिव की आराधना करना, मोती धारण करना, दो मोती या दो चांदी का टुकड़ा लेकर एक टुकड़ा पानी में बहा देना तथा दूसरे को अपने पास रखना है.
कुंडली के छठवें भाव में चंद्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है. यदि चंद्र बारहवां हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएं और ना ही दूध पिलाएं. सोमवार को सफेद वास्तु जैसे दही, चीनी, चावल, सफेद वस्त्र, 1 जोड़ा जनेऊ, दक्षिणा के साथ दान करना और ॐ सोम सोमाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है.
जाप मंत्र —
ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:.
चंद्र नमस्कार के लिए मंत्र —
दधि शंख तुषारामं क्षीरोदार्णव सम्भवम्. नमामि शशिनं भक्तया शम्भोर्मकुट भूषणम्..
शिव का महामृत्युंजय मंत्र—
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्ष्रिय मामृतात्.
इसे मृत संजीवनी मंत्र भी कहा गया है. यह मंत्र दैत्य गुरु शुक्राचार्य द्वारा दधीचि ऋषि को प्रदान किया गया था. चन्द्र दोष निवारण के लिये शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक करवाएं. यदि आपके आसपास कोई शिव मंदिर हो तो वहां जाकर विशेष पूजा -अर्चना करनी चाहिए. उस रात्रि को संभव हो तो शिव मंदिर में जाकर जागरण करें.
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प्रकांड पंडित रावण द्वारा चंद्र दोष निवारण के लिये तांत्रिक टोटका —-
महापंडित रावण जैसे ज्ञानी चार वेदों के ज्ञान के आधार पर और अपने ज्योतिष ज्ञान के आधार पर चंद्र दोष निवारण के कुछ उपाय बताएं हैं. रावण के महान विद्या के आधार पर ‘लाल किताब’ की रचना की गयी है. यहां वैदिक ज्योतिष में चंद्र दोष निवारण के लिए बड़े बड़े हवन आदि करने पड़ते है वहीं रावण के तांत्रिक टोटके उस समस्या को कुछ ही दिनों में नष्ट कर देते है. हमारे ज्योतिष शास्त्रों ने चंद्रमा को चौथे घर का कारक माना है. यह कर्क राशी का स्वामी है. चन्द्र ग्रह से वाहन का सुख सम्पति का सुख विशेष रूप से माता और दादी का सुख और घर का रूपया पैसा और मकान आदि सुख देखा जाता है.
उपाय –
1 किलो जौ दूध में धोकर और एक सुखा नारियल चलते पानी में बहायें और 1 किलो चावल मंदिर में चढ़ा दे।
अगर चन्द्र राहू के साथ है और यदि चन्द्र केतु के साथ है तो चूना पत्थर ले उसे एक भूरे कपडे में बांध कर पानी में बहा दे और एक लाल तिकोना झंडा किसी मंदिर में चढ़ा दें।
आचार्य राजेश कुमार
चंद्र ग्रहण दोष क्या होता है –
ज्योतिषाचार्य आचार्य राजेश कुमार ने बताया कि जब राहु या केतू की युति चंद्र के साथ हो जाती है तो चंद्र ग्रहण दोष हो जाता है। दूसरे शब्दों में, चंद्र के साथ राहु और केतू का नकारात्मक गठन, चंद्र ग्रहण दोष कहलाता है। ग्रहण दोष का प्रभाव, विभिन्न राशियों पर विभिन्न प्रकार से पड़ता है जिसके लिए जन्मकुंडली, ग्रहों की स्थिति भी मायने रखती है|
चंद्र ग्रहण दोष के विभिन्न कारण –
चंद्र ग्रहण दोष के कई कारण होते हैं और हर व्यक्ति के जीवन पर उसका प्रभाव भी अलग तरीके से पड़ता है। चंद्र ग्रहण दोष का सबसे अधिक प्रभाव, उत्तरा भादपत्र नक्षत्र में पड़ता है। जो जातक, मीन राशि का होता है और उसकी कुंडली में चंद्र की युति राहु या केतू के साथ स्थित हो जाएं, ग्रहण दोष के कारण स्वत: बन जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों पर इसके प्रभाव अधिक गंभीर होते हैं।
चंद्र ग्रहण दोष के अन्य कारण –
राहु, राशि के किसी भी हिस्से में चंद्र के साथ पाया जाता है- जबकि केतू समान राशि में चंद्र के साथ पाया जाता है
– राहु, चंद्र महादशा के दौरान ग्रहण लगाते हैं
– चंद्र ग्रहण के दिन बच्चे को स्नान अवश्य कराएं।
चंद्र ग्रहण दोष का पता किस प्रकार लगाया जा सकता है –
ज्योतिषाचार्य आचार्य राजेश कुमार ने बताया की चंद्र ग्रहण दोष का पता लगाने के सबसे पहले जन्मकुंडली का होना आवश्यक होता है, इस जन्मकुंडली में राहु और केतू की दशा को पंडित के द्वारा पता लगाया जा सकता है। या फिर, नवमासा या द्वादसमास चार्ट को देखकर भी दोष को जाना जा सकता है। बेहतर होगा कि किसी विद्वान पंडित से सलाह लें। ऐसा माना जाता है कि पिछले जन्म के कर्मों के कारण वर्तमान जन्म में चंद्र ग्रहण दोष लगता है।
चंद्र ग्रहण दोष के परिणाम(प्रभाव) –
ज्योतिषाचार्य आचार्य राजेश कुमार ने बताया की व्यक्ति दिक्कत में रहता है, दूसरों पर दोष लगाता रहता है, उसके मां के सुख में भारी कमी आ जाती है। उसमें सम्मान में कमी अाती है। हर प्रकार से उस व्यक्ति पर भारी समस्याएं आ जाती है जिनके पीछे सिर्फ वही दोषी होता है। साथ ही स्वास्थ्य सम्बंधी दिक्कतें भी आती हैं। सूर्य और चंद्र में से सूर्य के कारण दोष व्यक्तिगत सफलता, शोहरत नाम ,समग्र विकास में पड़ाव परिणाम प्राप्त करने में बाधाओं का सामना। एक औरत बार-बार गर्भपात, बच्चे और दोषपूर्ण पुत्रयोग की अवधारणा में समस्या की तरह बच्चे से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ता। स्वास्थ्य समस्याओं को भी सूर्य दोष के कारण प्रमुख हैं। चंद्र दोष अपने स्वयं के बुरे प्रभावों के रूप में यह व्यक्ति अनावश्यक तनाव देता है।
इस दोष के कारण अविश्वास, भावनात्मक अपरिपक्वता, लापरवाही, याददाश्त में कमी, असंवेदनशीलता अस्वास्थ्य छाती, फेफड़े, सांस लेने और मानसिक अवसाद से संबंधित समस्याऐं उत्पन्न होती हैं। आत्म विनाशकारी प्रकृति भी हो जाता है व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने की इक्षा जागृत होती है।यदि आप हमेशा कश्मकश में रहते हैं, इधर-उधर की सोचते रहते हैं, निर्णय लेने में कमजोर हैं, भावुक एवं संवेदनशील हैं, अन्तर्मुखी हैं, शेखी बघारने वाले व्यक्ति हैं, नींद पूरी नही आती है, सीधे आप सो नहीं सकते हैं अर्थात हमेशा करवट बदलकर सोएंगे अथवा उल्टे सोते हैं, भयभीत रहते हैं तो निश्चित रुप से आपकी कुंडती में चन्द्रमा कमजोर होगा | समय पर इस कमजोर चंद्रमा अर्थात प्रतिकूल प्रभाव को कम करने का उपाय करना चाहिए अन्यथा जीवन भर आप आत्म विश्वास की कमी से ग्रस्त रहेंगे.
जिन व्यक्तियों का चन्द्रमा क्षीण होकर अष्टम भाव में और चतुर्थ तथा चंद्र पर राहु का प्रभाव हो, अन्य शुभ प्रभाव न हो तो वे मिरगी रोग का शिकार होते हैं.
जिन लोगों का चन्द्रमा छठे आठवें आदि भावों में राहु दृष्ट न हो, वैसे पाप दृष्ट हो तो उनको रक्त चाप आदि होता है.
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ज्योतिषाचार्य ने बताया की चंद्रमा को सोम भी कहा जाता है. सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है और इस दिन भगवान शिव के पूजन से मनुष्य को विशेष लाभ प्राप्त होता है. चन्द्रमा के अधिदेवता भी शिव हैं और इसके प्रत्याधिदेवता जल है. महादेव के पूजन से चंद्रमा के दोष का निवारण होता है. महादेव ने चंद्र को अपनी जटाओं पर धारण किया हुआ है. इस प्रकार भगवान शिव की पूजा से चंद्रमा के उलटे प्रभाव से तत्काल मुक्ति मिलती है. भगवान शिव के कई प्रचलित नामों में एक नाम सोमसुंदर भी है. सोम का अर्थ चंद्र होता है |
चन्द्रमा ज्योतिष शास्त्र में बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके संबंध में ज्योतिष शास्त्र कहता है कि चन्द्रमा का आकर्षण पृथ्वी पर भूकंप, समुद्री आंधियां, ज्वार भाटा, तूफानी हवाएं, अति वर्षा, भूस्खलन आदि लाता हैं। रात को चमकता पूरा चांद मानव सहित जीव-जंतुओं पर भी गहरा असर डालता है। चन्द्रमा से ही मनुष्य का मन और समुद्र से उठने वाली लहरे दोनों का निर्धारण होता है। माता और चंद्र का संबंध भी गहरा होता है। कुंडली में माता की स्थिति को भी चन्द्रमा देवता से देखा जाता है और चन्द्रमा को माता भी कहा जाता है।हमारी कुंडली में जिस भी राशि में चन्द्रमा हो वही हमारी जन्म राशि कहलाती है और जब भी शुभ कार्य करने के लिए महूर्त देखा जाता है वह हमारी जन्मराशि के अनुसार देखा जाता है जैसे की हमारी जन्म राशि के अनुसार चन्द्रमा कहाँ और किस नक्षत्र में गोचर कर रहा है।
चन्द्रमा ही हमारे जीवन की जीवन शक्ति है। किसी कुंडली में अगर चन्द्रमा की स्थिति अगर क्षीण होती है अथवा चन्द्रमा पाप प्रभाव लिए हो तो उस व्यक्ति की मानसिक स्थिति को कोई भी अच्छा ज्योतिषी देख कर बता सकता है कि जातक के मन में क्या विचार चलते है तथा जातक की मनोस्थिति किस प्रकार है । निश्चित ही ऐसे जातक का मन उतावला होगा, अत्यंत चंचल होगा। मन को एकाग्र करने में कठनाईयाँ होंगी और जब मन ही एकाग्र नही होगा तो जातक पढ़ने तो बैठेगा लेकिन कुछ ही मिनट बाद उठ जायेगा, जातक सोचेगा की पहले फलां कार्य कर लूँ , पढ़ तो कुछ देर बाद भी लूँगा।चन्द्रमा देवता हमारे मन और मस्तिक्ष के करक है। किसी भी जन्मकुंडली में चन्द्र की महत्वपूर्ण भूमिका को देखे बिना कुंडली का विश्लेषण केवल कुंडली के शव के परिक्षण जैसा होता है।
ज्योतिषी इन ग्रहो युतियों को प्रकारों से सम्बोधित करते है। कई ज्योतिष इन्हे दोष कह कर सम्बोधित करते है तो कई योग कह कर बुलाते है . मेरे विचार से जबतक किन्ही ग्रहों कि युतियां अच्छा फल देने में समर्थ न हो तब तक उसे योग नही कहा जा सकता है। वह दुषयोग ही कहलाएगी।
आज के इस लेख में हम चन्द्र पूजा की विधि के बारे में चर्चा करेंगे तथा इस पूजा में प्रयोग होने वाली महत्वपूर्ण क्रियाओं के बारे में भी विचार करेंगे।
वैदिक ज्योतिष चन्द्र पूजा का सुझाव मुख्य रूप से किसी कुंडली में अशुभ रूप से कार्य कर रहे चन्द्र की अशुभता को कम करने के लिए, अशुभ चन्द्र द्वारा कुंडली में बनाए जाने वाले किसी दोष के निवारण के लिए अथवा किसी कुंडली में शुभ रूप से कार्य कर रहे चन्द्र की शक्ति तथा शुभ फल बढ़ाने के लिए देता है। चन्द्र पूजा का आरंभ सामान्यतया सोमवार वाले दिन शिव वास या चंद्रमा के नक्षत्र के दिन किया जाता है तथा उससे अगले सोमवार को इस पूजा का समापन कर दिया जाता है जिसके चलते इस पूजा को पूरा करने के लिए सामान्यता 7 दिन लगते हैं किन्तु कुछ स्थितियों में यह पूजा 7 से 10 दिन तक भी ले सकती है जिसके चलते सामान्यतया इस पूजा के आरंभ के दिन को बदल दिया जाता है तथा इसके समापन का दिन सामान्यतया सोमवार ही रखा जाता है।
किसी भी प्रकार की पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है एक निश्चित संख्या में जाप।
चन्द्र पूजा में भी चन्द्र वेद मंत्र का 125,000 बार जाप करना अनिवार्य होता है। पूजा के आरंभ वाले दिन पांच या सात पंडित पूजा करवाने वाले यजमान अर्थात जातक के साथ भगवान शिव के शिवलिंग के समक्ष बैठते हैं तथा शिव परिवार की विधिवत पूजा करने के पश्चात मुख्य पंडित यह संकल्प लेता है कि वह और उसके सहायक पंडित उपस्थित यजमान के लिए चन्द्र वेद मंत्र का 125,000 बार जाप एक निश्चित अवधि में करेंगे तथा इस जाप के पूरा हो जाने पर पूजन, हवन तथा कुछ विशेष प्रकार के दान आदि करेंगे। जाप के लिए निश्चित की गई अवधि सामान्यतया 7 से 10 दिन होती है। संकल्प के समय मंत्र का जाप करने वाली सभी पंडितों का नाम तथा उनका गोत्र बोला जाता है तथा इसी के साथ पूजा करवाने वाले यजमान का नाम, उसके पिता का नाम तथा उसका गोत्र भी बोला जाता है तथा इसके अतिरिक्त जातक द्वारा करवाये जाने वाले चन्द्र वेद मंत्र के इस जाप के फलस्वरूप मांगा जाने वाला फल भी बोला जाता है जो साधारणतया जातक की कुंडली में अशुभ चन्द्र द्वारा बनाये जाने वाले किसी दोष का निवारण होता है अथवा चन्द्र ग्रह से शुभ फलों की प्राप्ति करना होता है।
इस संकल्प के पश्चात सभी पंडित अपने यजमान अर्थात जातक के लिए चन्द्र वेद मंत्र का जाप करना शुरू कर देते हैं तथा प्रत्येक पंडित इस मंत्र के जाप को प्रतिदिन लगभग 8 से 10 घंटे तक करता है जिससे वे इस मंत्र की 125,000 संख्या के जाप को संकल्प के दिन निश्चित की गई अवधि में पूर्ण कर सकें। निश्चित किए गए दिन पर जाप पूरा हो जाने पर इस जाप तथा पूजा के समापन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जो लगभग 2 से 3 घंटे तक चलता है। सबसे पूर्व भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश तथा शिव परिवार के अन्य सदस्यों की पूजा फल, फूल, दूध, दहीं, घी, शहद, शक्कर, धूप, दीप, मिठाई, हलवे के प्रसाद तथा अन्य कई वस्तुओं के साथ की जाती है तथा इसके पश्चात मुख्य पंडित के द्वारा चन्द्र वेद मंत्र का जाप पूरा हो जाने का संकल्प किया जाता है जिसमे यह कहा जाता है कि मुख्य पंडित ने अपने सहायक अमुक अमुक पंडितों की सहायता से इस मंत्र की 125,000 संख्या का जाप निर्धारित विधि तथा निर्धारित समय सीमा में सभी नियमों का पालन करते हुए किया है तथा यह सब उन्होंने अपने यजमान अर्थात जातक के लिए किया है जिसने जाप के शुरू होने से लेकर अब तक पूर्ण निष्ठा से पूजा के प्रत्येक नियम की पालना की है तथा इसलिए अब इस पूजा से विधिवत प्राप्त होने वाला सारा शुभ फल उनके यजमान को प्राप्त होना चाहिए।
“ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:” अथवा “ॐ सों सोमाय नम:” का जाप करना अच्छे परिणाम देता है। ये वैदिक मंत्र हैं, इस मंत्र का जाप जितनी श्रद्धा से किया जाएगा यह उतना ही फलदायक होगा।
इस समापन पूजा के चलते नवग्रहों से संबंधित अथवा नवग्रहों में से कुछ विशेष ग्रहों से संबंधित कुछ विशेष वस्तुओं का दान किया जाता है जो विभिन्न जातकों के लिए भिन्न भिन्न हो सकता है तथा इन वस्तुओं में सामान्यतया चावल, गुड़, चीनी, नमक, गेहूं, दाल, खाद्य तेल, सफेद तिल, काले तिल, जौं तथा कंबल इत्यादि का दान किया जाता है। इस पूजा के समापन के पश्चात उपस्थित सभी देवी देवताओं का आशिर्वाद लिया जाता है तथा तत्पश्चात हवन की प्रक्रिया शुरू की जाती है जो जातक तथा पूजा का फल प्रदान करने वाले देवी देवताओं अथवा ग्रहों के मध्य एक सीधा तथा शक्तिशाली संबंध स्थापित करती है। औपचारिक विधियों के साथ हवन अग्नि प्रज्जवल्लित करने के पश्चात तथा हवन शुरू करने के पश्चात चन्द्र वेद मंत्र का जाप पुन: प्रारंभ किया जाता है तथा प्रत्येक बार इस मंत्र का जाप पूरा होने पर स्वाहा: का स्वर उच्चारण किया जाता है जिसके साथ ही हवन कुंड की अग्नि में एक विशेष विधि से हवन सामग्री डाली जाती है तथा यह हवन सामग्री विभिन्न पूजाओं तथा विभिन्न जातकों के लिए भिन्न भिन्न हो सकती है। चन्द्र वेद मंत्र की हवन के लिए निश्चित की गई जाप संख्या के पूरे होने पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण मंत्रों का उच्चारण किया जाता है तथा प्रत्येक बार मंत्र का उच्चारण पूरा होने पर स्वाहा की ध्वनि के साथ पुन: हवन कुंड की अग्नि में हवन सामग्री डाली जाती है।
अंत में एक सूखे नारियल को उपर से काटकर उसके अंदर कुछ विशेष सामग्री भरी जाती है तथा इस नारियल को विशेष मंत्रों के उच्चारण के साथ हवन कुंड की अग्नि में पूर्ण आहुति के रूप में अर्पित किया जाता है तथा इसके साथ ही इस पूजा के इच्छित फल एक बार फिर मांगे जाते हैं।
तत्पश्चात यजमान अर्थात जातक को हवन कुंड की 3, 5 या 7 परिक्रमाएं करने के लिए कहा जाता है तथा यजमान के इन परिक्रमाओं को पूरा करने के पश्चात तथा पूजा करने वाले पंडितों का आशिर्वाद प्राप्त करने के पश्चात यह पूजा संपूर्ण मानी जाती है। हालांकि किसी भी अन्य पूजा की भांति चन्द्र पूजा में भी उपरोक्त विधियों तथा औपचारिकताओं के अतिरिक्त अन्य बहुत सी विधियां तथा औपचारिकताएं पूरी की जातीं हैं किन्तु उपर बताईं गईं विधियां तथा औपचारिकताएं इस पूजा के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं तथा इसीलिए इन विधियों का पालन उचित प्रकार से तथा अपने कार्य में निपुण पंडितों के द्वारा ही किया जाना चाहिए। इन विधियों तथा औपचारिकताओं में से किसी विधि अथवा औपचारिकता को पूरा न करने पर अथवा इन्हें ठीक प्रकार से न करने पर जातक को इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल में कमी आ सकती है तथा जितनी कम विधियों का पूर्णतया पालन किया गया होगा, उतना ही इस पूजा का फल कम होता जाएगा।
चन्द्र पूजा के आरंभ होने से लेकर समाप्त होने तक पूजा करवाने वाले जातक को भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इस अवधि के भीतर जातक के लिए प्रत्येक प्रकार के मांस, अंडे, मदिरा, धूम्रपान तथा अन्य किसी भी प्रकार के नशे का सेवन निषेध होता है अर्थात जातक को इन सभी वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में अपनी पत्नि अथवा किसी भी अन्य स्त्री के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिएं तथा अविवाहित जातकों को किसी भी कन्या अथवा स्त्री के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिएं। इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में किसी भी प्रकार का अनैतिक, अवैध, हिंसात्मक तथा घृणात्मक कार्य आदि भी नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को प्रतिदिन मानसिक संकल्प के माध्यम से चन्द्र पूजा के साथ अपने आप को जोड़ना चाहिए तथा प्रतिदिन स्नान करने के पश्चात जातक को इस पूजा का समरण करके यह संकल्प करना चाहिए कि चन्द्र पूजा उसके लिए अमुक स्थान पर अमुक संख्या के पंडितों द्वारा चन्द्र वेद मंत्र के 125,000 संख्या के जाप से की जा रही है तथा इस पूजा का विधिवत और अधिकाधिक शुभ फल उसे प्राप्त होना चाहिए। ऐसा करने से जातक मानसिक रूप से चन्द्र पूजा के साथ जुड़ जाता है तथा जिससे इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल और भी अधिक शुभ हो जाते हैं।
यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि चन्द्र पूजा जातक की अनुपस्थिति में भी की जा सकती है तथा जातक के व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की स्थिति में इस पूजा में जातक की तस्वीर अर्थात फोटो का प्रयोग किया जाता है जिसके साथ साथ जातक के नाम, उसके पिता के नाम तथा उसके गोत्र आदि का प्रयोग करके जातक के लिए इस पूजा का संकल्प किया जाता है। इस संकल्प में यह कहा जाता है कि जातक किसी कारणवश इस पूजा के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में सक्षम नहीं है जिसके चलते पूजा करने वाले पंडितों में से ही एक पंड़ित जातक के लिए जातक के द्वारा की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं पूरा करने का संकल्प लेता है तथा उसके पश्चात पूजा के समाप्त होने तक वह पंडित ही जातक की ओर से की जाने वाली सारी क्रियाएं करता है जिसका पूरा फल संकल्प के माध्यम से जातक को प्रदान किया जाता है। प्रत्येक प्रकार की क्रिया को करते समय जातक की तस्वीर अर्थात फोटो को उपस्थित रखा जाता है तथा उसे सांकेतिक रूप से जातक ही मान कर क्रियाएं की जातीं हैं। उदाहरण के लिए यदि जातक के स्थान पर पूजा करने वाले पंडित को भगवान शिव को पुष्प अर्थात फूल अर्पित करने हैं तो वह पंडित पहले पुष्प धारण करने वाले अपने हाथ को जातक के चित्र से स्पर्श करता है तथा तत्पश्चात उस हाथ से पुष्पों को भगवान शिव को अर्पित करता है तथा इसी प्रकार सभी क्रियाएं पूरी की जातीं हैं। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि व्यक्तिगत रूप से अनुपस्थित रहने की स्थिति में भी जातक को चन्द्र पूजा के आरंभ से लेकर समाप्त होने की अवधि तक पूजा के लिए निश्चित किये गए नियमों का पालन करना होता है भले ही जातक संसार के किसी भी भाग में उपस्थित हो। इसके अतिरिक्त जातक को उपर बताई गई विधि के अनुसार अपने आप को इस पूजा के साथ मानसिक रूप से संकल्प के माध्यम से जोड़ना भी होता है जिससे इस चन्द्र पूजा के अधिक से अधिक शुभ फल जातक को प्राप्त हो सकें।
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चंद्र दोष निवारण —-
चंद्र दोष के उपाय जो शास्त्रों में उल्लेखित हैं उनमें सोमवार का व्रत करना, माता की सेवा करना, शिव की आराधना करना, मोती धारण करना, दो मोती या दो चांदी का टुकड़ा लेकर एक टुकड़ा पानी में बहा देना तथा दूसरे को अपने पास रखना है.
कुंडली के छठवें भाव में चंद्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है. यदि चंद्र बारहवां हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएं और ना ही दूध पिलाएं. सोमवार को सफेद वास्तु जैसे दही, चीनी, चावल, सफेद वस्त्र, 1 जोड़ा जनेऊ, दक्षिणा के साथ दान करना और ॐ सोम सोमाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है.
जाप मंत्र —
ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:.
चंद्र नमस्कार के लिए मंत्र —
दधि शंख तुषारामं क्षीरोदार्णव सम्भवम्. नमामि शशिनं भक्तया शम्भोर्मकुट भूषणम्..
शिव का महामृत्युंजय मंत्र—
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्ष्रिय मामृतात्.
इसे मृत संजीवनी मंत्र भी कहा गया है. यह मंत्र दैत्य गुरु शुक्राचार्य द्वारा दधीचि ऋषि को प्रदान किया गया था. चन्द्र दोष निवारण के लिये शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक करवाएं. यदि आपके आसपास कोई शिव मंदिर हो तो वहां जाकर विशेष पूजा -अर्चना करनी चाहिए. उस रात्रि को संभव हो तो शिव मंदिर में जाकर जागरण करें.
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प्रकांड पंडित रावण द्वारा चंद्र दोष निवारण के लिये तांत्रिक टोटका —-
महापंडित रावण जैसे ज्ञानी चार वेदों के ज्ञान के आधार पर और अपने ज्योतिष ज्ञान के आधार पर चंद्र दोष निवारण के कुछ उपाय बताएं हैं. रावण के महान विद्या के आधार पर ‘लाल किताब’ की रचना की गयी है. यहां वैदिक ज्योतिष में चंद्र दोष निवारण के लिए बड़े बड़े हवन आदि करने पड़ते है वहीं रावण के तांत्रिक टोटके उस समस्या को कुछ ही दिनों में नष्ट कर देते है. हमारे ज्योतिष शास्त्रों ने चंद्रमा को चौथे घर का कारक माना है. यह कर्क राशी का स्वामी है. चन्द्र ग्रह से वाहन का सुख सम्पति का सुख विशेष रूप से माता और दादी का सुख और घर का रूपया पैसा और मकान आदि सुख देखा जाता है.
उपाय –
1 किलो जौ दूध में धोकर और एक सुखा नारियल चलते पानी में बहायें और 1 किलो चावल मंदिर में चढ़ा दे।
अगर चन्द्र राहू के साथ है और यदि चन्द्र केतु के साथ है तो चूना पत्थर ले उसे एक भूरे कपडे में बांध कर पानी में बहा दे और एक लाल तिकोना झंडा किसी मंदिर में चढ़ा दें।
आचार्य राजेश कुमार
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