Thursday 14 December 2017

16 दिसम्बर 2017 से धनु राशि में सूर्य-शनि की युति का जनमानस एवं देश विदेश की कार्यप्रणाली,अर्थव्यवस्ता तथा प्राकृतिक संतुलन पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ने वाला है:- खरमांस प्रारम्भ

16 दिसम्बर 2017 से  धनु राशि में सूर्य-शनि की युति का जनमानस एवं देश विदेश की कार्यप्रणाली,अर्थव्यवस्ता तथा प्राकृतिक संतुलन पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ने वाला है:- खरमांस प्रारम्भ
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प्रत्येक वर्ष की भांति सूर्य के  वृश्चिक राशि से धनु राशि में दिनांक 16 दिसम्बर -2017 को दोपहर 12.04 पर  प्रवेश करते ही "खरमांस " प्रारम्भ होगा। जिस कारण शादी -विवाह,गृह- प्रवेश, नया व्यापार, मुंडन संस्कार जनेऊ संस्कार इत्यादि नही होंगे किन्तु धार्मिक कार्य,अनुष्ठान यथावत चलते रहेंगे।
जब सूर्य  बृहस्पति की राशि धनु या मीन में प्रवेश करता है तो खरमास प्रारंभ हो जाता है। यह 16 दिसंबर को 12.04 मिनट पर सूर्यदेव के धनु राशि में प्रवेश करते ही खरमास प्रारंभ हो जाएगा ।  14 जनवरी -2018 तक सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने तक यह खरमांस जारी रहेगा। 

  धनु राशि मे पूर्व से ही शनि का गोचर हो  रहा है तथा  दिनांक 16 दिसम्बर-2018 को दोपहर 12.04 पर सूर्य के भी  धनु राशि मे पहुचने से सूर्य-शनि की  युति प्रारम्भ हो रही है। इस युति पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि भी नही पड़ रही है ।
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  ‎ सूर्य-शनि की युति से भारत का राजनीतिक समीकरण, अर्थव्यवस्ता, विदेश नीति, महंगाई, पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।किसी प्रकरण पर  न्याय पालिका का शख्त रुख  हो सकता है। विदेशों में युद्ध के भी आसार हैं। प्राकृतिक आपदा के भी आसार हैं। पहाड़ी इलाको में भयंकर हिमपात, मैदानी इलाकों में ओलावृष्टि, भारीबारिश , बर्फीली हवाएं चल सकती हैं। जानमाल का नुकसान हो सकता है। किसी मशहूर शख्स का अंत भी होने के संकेत मिल रहे हैं।
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   अग्रिम एक माह की  संक्रांति में  दान-पुण्य,पूजा-पाठ पित्र की पूजा अवश्य करनी चाहिए। दान-पुण्य पूजा-पाठ से पितृलोक में पितर भी प्रसन्न होकर शुभाशीष प्रदान करते हैं बिगड़े कार्य बनाते हैं। इसके साथ ही साथ सूर्य भी प्रसन्न होकर निरोगता प्रदान करते हैं। 

                          आचार्य राजेश कुमार
                          ‎दिव्यांश ज्योतिष केंद्र

भारत वर्ष के वर्त्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र कुमार दामोदर दास मोदी जी के जन्मविवरण को लेकर भ्रम एवं भ्रांतियां :-

भारत वर्ष के वर्त्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र कुमार दामोदर दास मोदी जी के जन्मविवरण को लेकर भ्रम एवं भ्रांतियां :-
ज्योतिष विज्ञान के आधार पर ज्योतिषीय सटीक विश्लेषण :-

विगत वर्षों  में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक योग्यता को लेकर चल रहे विवादों में कांग्रेस ने उनकी जन्म तिथि में गड़बड़ी होने का आरोप लगाया.था


पार्टी ने गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा मोदी की पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्री की जानकारी साझा करने के समय पर भी सवाल उठाया. विश्वविद्यालय ने पहले जानकारी साझा करने से इंकार कर दिया था.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शक्तिसिंह गोहिल ने कहा, ‘एमएन कॉलेज के छात्र रजिस्टर (जिसमें मोदी ने प्री-साइंस यानी 12वीं में दाखिला लिया था) में श्री नरेंद्र मोदी की जन्म तिथि 29 अगस्त, 1949 है. उनके चुनावी हलफनामे में उन्होंने अपनी जन्म तिथि नहीं बताई है बल्कि अपनी उम्र लिखी है. सार्वजनिक रूप से उपलब्ध उनकी औपचारिक जन्म तिथि 17 सितंबर, 1950 है.उन्होंने स्कूल रजिस्टर की प्रति दिखाई, जिसमें प्रधानमंत्री का नाम नरेंद्रकुमार दामोदरदास मोदी और उनकी उक्त जन्म तिथि लिखी है.
     जबकि,मोदी जी के  वाह्य एवं आतंरिक व्यक्तित्व,क्रियाकलापों  ,उनके भाषण ,पारिवारिक परिस्थितियों एवं विगत  लगभग  दो  दशकों से प्रदेश एवं देश की सत्ता में रहकर किये गए कार्यो के आधार  पर गहन अध्ययन एवं ज्योतिषीय विश्लेशन के पश्चात् प्राप्त वास्तविक जनम तिथि १७ सितम्बर १९४९   ,जन्म समय सुबह १० .५५ जन्म स्थान वड नगर ,गुजरात होनी चाहिए I
इस जन्मतिथि के आधार पर प्राप्त विवरण से पूर्व मोदी जी के बहु चर्चित जन्म तिथि सितम्बर 17, 1950, जन्म समय ११ बजे से प्राप्त विवरण को समझना जरुरी है I

जानिए क्या कहती है नरेन्द्र मोदी की बहुचर्चित जन्म की तारीख सितम्बर 17, 1950, जन्म समय ११ बजे:--

सितम्बर 17, 1950, जन्म समय ११ बजे, मेहसाणा-गुजरात, जिसके अनुसार उनका जन्म लग्न वृश्चिक है और जन्म कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को विष्कुम्भ योग में हुआ है। विष्कुम्भ में जन्मा हुआ जातक कभी इतना उत्थान नहीं कर सकता इसके अलावा जो पहले की कुंडली में संदेह जनक पक्ष है वे हैं - 



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१. वृश्चिक लग्न में मंगल तो है परन्तु शुन्य अंश का है साथ में नीच का चन्द्रमा है, जिसके चलते रूचक और विष्णु लक्ष्मी योग तो बनते हैं परन्तु बहुत ही कमजोर , कम से कम इतने शक्तिशाली तो नहीं जितने मोदी हैं। 

२. वृश्चिक लग्न में दसम भाव का मालिक सूर्य है जो स्वयं एकादश भाव में केतु के साथ ग्रहण योग में बैठा है और दसम भाव में शत्रु के स्थान पर शनि विराजमान है जो कभी भी इतना तगड़ा राजयोग नहीं दे सकता बल्कि हमेशा अवरोध उत्पन्न करेगा। जबकि मोदी का पिछला जीवन देखा जाये तो मोदी निरंतर आगे बढे हैं और कभी भी उनके लिए कोई बड़ी समस्या नहीं खड़ा कर पाया। साथ ही यह भी इतना प्रबल राजयोग नहीं बना सकता जितना मोदी का है। 
३. गुरु भी केंद्र में है परन्तु शत्रु स्थान पर है और वक्री भी है, अतः यहाँ गुरु से भी किसी प्रकार का राजयोग नहीं बन पा रहा है।
४. बुध एकादश भाव में कन्या राशि में है परन्तु वक्री है, अतः बुधादित्य योग उतना प्रभावकारी नहीं हो सकता। 

५. पंचम में राहु विद्या में बाधक है और उस पर सूर्य - बुध - केतु की दृष्टि से व्यक्ति बहुत नकारात्मक बुद्धि वाला या विध्वंसक विचार का हो जायेगा, अतः यहाँ यह योग भी समझ से परे है। 

६. सन १९८५ से लेकर २००५ तक मोदी की शुक्र की महादशा रही है और जब अक्टूबर २००१ में मोदी मुख्यमंत्री बने तो शुक्र में शनि का अंतर था, वृश्चिक लग्न में शुक्र मारकेश है और बुध एवं शनि सहायक, तो उस समय मुख्यमंत्री कैसे बन सकते हैं मोदी

इन सभी कारणों को देखते हुए    हमने ,मोदी जी के  वाह्य एवं आतंरिक व्यक्तित्व,उनके क्रियाकलापों  ,उनके भाषण ,पारिवारिक परिस्थितियों एवं विगत  लगभग  दो  दशकों से प्रदेश एवं देश की सत्ता में रहकर किये गए कार्यो के आधार  पर गहन अध्ययन एवं ज्योतिषीय विश्लेशन के पश्चात् प्राप्त वास्तविक जनम तिथि १७ सितम्बर १९४९   ,जन्म समय सुबह १० .५५ जन्म स्थान वड नगर ,गुजरात के आधार पर विश्लेषण किया तो चौकाने वाले नतीजे प्राप्त  हुए जो निम्नवत हैं  I
अब जानिए क्या कहती है नरेन्द्र मोदी की वास्तविक जन्म की तारीख १७ सितम्बर १९४९   ,जन्म समय सुबह १० .५५ जन्म स्थान वड नगर ,गुजरात :--


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१. लग्न तुला है और तुला में ही शुक्र बैठा है - यह अपने आपमें जबरदस्त रोजयोग कारक है और व्यक्ति को कीचड में पैदा होने के बावजूद राजसिंहासन तक पहुँचाने की क्षमता रखता है और शायद यह बात जो भी ज्योतिष जानते हैं उन्हें बताने की आवश्यकता नहीं कि लग्न में तुला के शुक्र का क्या मतलब होता है।

२. दशम भाव में नीच का मंगल - जिसके कारण पिता के सुख में कमी परन्तु उच्च दृष्टि माँ के स्थान पर अतः माँ की आयु लम्बी और भरपूर आशीर्वाद, साथ ही शत्रुओं को परास्त करने की अद्भुत क्षमता। 

३. पराक्रम भाव अर्थात तृतीय भाव में अपनी ही राशि पर बैठा वक्री गुरु - यह भाई - बहनों के सुख को कमजोर करता है परन्तु अदभुत पराक्रम देता है, मोदी के बारे में ये दोनों ही बाते सर्वविदित हैं। 

४. राज्येश चन्द्रमा का भाग्य स्थान अर्थात नवम भाव में बैठना - यह एक अद्भुत राजयोग है। साथ ही गुरु और चन्द्रमा का दृष्टि योग जबरदस्त पराक्रम, राज क्षमता, सृजनात्मक विचार इन सबसे व्यक्ति को ओतप्रोत बनता है, और ये सभी गन मोदी में विद्यमान हैं। 

५. एकादश भाव में शनि - यहाँ बैठकर शनि लग्न, पंचम, और अष्टम भाव को सीधे देख रहे हैं, अतः देर से विद्या की प्राप्ति, लग्न पर उच्च दृष्टि के कारण निरोगी एवं आध्यात्मिक विचारधारा, दुखी लोगो के प्रति सेवा का भाव ये सभी गुण प्रदान कर रहा है, साथ ही जीवन में अत्यधिक यात्रा और यात्रा के और सेवा के द्वारा लाभ को दर्शाता है, और इन सभी बातों को मोदी के सन्दर्भ में बताने की आवश्यकता नहीं। 

६. छठवें भाव में राहु - कम से कम किसी ज्योतिष के विद्वान को इसका अर्थ बताने की आवश्यकता नहीं, शत्रुओं पर जबरदस्त प्रभाव, जिसने भी शत्रुता की वो गया और यही मैंने पहले भी लिखा था की संजय जोशी, केशुभाई पटेल, और शंकर सिंह बाघेला आज नेपथ्य में चले गए हैं और पूरी तरह से मोदी पर आश्रित हैं। वर्तमान में आडवाणी और सुषमा स्वराज को झुकना पड़ा और नितीश, मायावती, मुलायम, अरविन्द केजरीवाल, मणिशंकर अय्यर, सलमान खुर्शीद जैसे न जाने कितने लोग मोदी का विरोध करने की वजह से मोदी जी से परास्त   हुए । 
७. द्वादश भाव में केतु, सूर्य, और बुध - जो स्वयं कन्या यानी कि बुध की अपनी राशि में हैं एक साथ युति कर रहे हैं। ऐसा किसी भी व्यक्ति को जबरदस्त योजनाकार, भ्रमणशील, प्रखर वक्ता, धर्म रक्षक, तथा परोपकारी बनाता है। साथ ही यह योग पुनः किसी भी शत्रु के लिए अत्यंत घातक है। सूर्य शुन्य अंश का और पिता का कारक और ग्रहण योग में होने के कारण पिता के सुख में कमी और पैतृक सम्पत्ति तथा पैतृक स्थान के सुख में भारी कमी को दर्शाता है। 



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अब करते हैं दशाओं की बात :
मोदी का जन्म इस वर्ष के अनुसार गुरु की महादशा में हुआ, तुला लग्न में गुरु तीसरे और छठे भाव का स्वामी है , मोदी को जन्म से कितना दुःख झेलना पड़ा यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है।

1965
से - 1984 तक: यह शनि की दशा का समय था, शनि तुला लग्न में योगकारक तो हैं परन्तु राजयोगकारक नहीं। साथ ही सुख भाव(चतुर्थ ) से छठे भाव में बैठे हैं, अतः अत्यंत दुःख, खूब भ्रमण, आध्यात्मिक और नैतिक ज्ञान के साथ जीवन जीने को बाध्य किये, इस दौरान जैसा शनि का गुण है मोदी साधु संतों की सेवा में रहे और लगभग सन्यासी का जीवन यापन किये।

1984
से जुलाई 2001 तक: यह समय जहाँ से मोदी के राजनैतिक जीवन और अच्छे दिन की शुरुवात होती है, बुध इनकी कुंडली में भाग्येश है और अपनी उच्च राशि कन्या में द्वादश में बैठकर राजयोग भी बना रहा है और यही से मोदी के राजयोग की शरुवात हो जाती है। 

नरेन्द्र मोदी जी स्वतन्त्र भारत में जन्म लेने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो सन २००१ से २०१४ तक लगभग १३ साल गुजरात के १४वें मुख्यमन्त्री रहे और हिन्दुस्तान के १५वें प्रधानमन्त्री बने। यद्यपि वर्ष २००८ से २०२८ तक लग्नेश शुक्र की महादशा समयांतराल में अधिकतर समय मोदी जी के लिए अच्छा  ही रहेगा किन्तु वर्त्तमान में शुक्र में राहू की अन्तर्दशा में गुजरात चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलना मुश्किल है  जबकि अन्य पार्टिओं को भी पूर्ण बहुमत मिलना आसान  नहीं है I उक्त के बावजूद इस देश की बहुमुखीय विकास के लिए मोदी जैसे शख्शियत की नितांत आवश्यकता है I
विशेष :
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मेरे दिए हुए जन्म तारीख अर्थात सितम्बर 17,1949, सुबह 10.50 के अनुसार मोदी का जन्म दिन शनिवार, वरियन योग, कृष्ण पक्ष, दशमी तिथि, पुनर्वसु नक्षत्र है, दशमी तिथि जाया तिथि होती है और इन सारे योग में पैदा हुआ व्यक्ति राजा नहीं बनेगा तो कौन बनेगा?

 सबसे ध्यान देने योग्य बात ये है कि मोदी ने गुजरात और वाराणसी दो जगह से अपना नामांकन दसमी तिथि को ही किया था। १७ और २६ दोनों का हे योग ८ है जो शनि का अंक है, मोदी १७ को शनिवार के दिन ही पैदा हुए हैं। 

यह मेरा प्रयास था तथ्यों का, पाठकों और ज्योतिषविदों से निवेदन  है कि अपना विचार रखें तो बेहतर होगा I

आचार्य राजेश कुमार( दिव्यांश ज्योतिष केंद्र )

Friday 24 November 2017

माह दिसम्बर-2017 के तीज- त्योहार

माह दिसम्बर-2017 में पड़ने वाले तीज त्योहार:-
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    वर्ष पर्यन्त चलने वाले उत्सवों और धार्मिक अनुष्ठानो को हिन्दू धर्म का प्राण माना जाता है और हिन्दू समाज के लोग इन व्रत और त्योहारों को बेहद श्रधा और विश्वाश के साथ मनाते हैं इसलिए ज़रूरी है कि ये व्रत और अनुष्ठान का सही समय दिन तारिख और मुहूर्त आपको पता हो :-

1 दिसंबर शुक्रवारप्रदोष व्रत, भरणी दीपम
2 दिसंबर शनिवार पिशाचमोचन श्राद्ध, शिव चतुर्दशी व्रत
3 दिसंबर रविवार मार्गशीर्ष पूर्णिमा, श्रीदत्तात्रेय जयन्ती, त्रिपुरभैरव जयन्ती, श्रीसत्यनारायण व्रत
6 दिसंबर बुधवार श्रीगणेश चतुर्थी व्रत
10 दिसंबर रविवार रूक्मिणी अष्टमी, अष्टका श्राद्ध
12 दिसंबर मंगलवार पार्श्वनाथ जयन्ती-जैन
13 दिसंबर बुधवार सफला एकादशी व्रत
14 दिसंबर बृहस्पतिवार बोधनाचार्य जयन्ती
15 दिसंबर शुक्रवार पौष संक्रांति, पुण्यकाल अगले दिन सुबह 09:24 तक
16 दिसंबर शनिवारमास शिवरात्रि व्रत
17 दिसंबर रविवारअमावस्या-पितृ कार्येषु
18 दिसंबर सोमवार पौष अमावस, सोमवती अमावस, मेला हरिद्वार-प्रयागराज, तीर्थस्नान माहात्म्य
20 दिसंबर बुधवारआरोग्य व्रत
21 दिसंबर बृहस्पतिवारसायन उत्तरायण आरंभ, गौरी पूजन
23 दिसंबर शनिवार पंचक आरंभ 08:30 से
25 दिसंबर सोमवार मार्तण्ड सप्तमी, श्री गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती, क्रिसमिस डे(क्रिश्चियन)
26 दिसंबर मंगलवार दुर्गाष्टमी
27 दिसंबर बुधवार पंचक समाप्त 25:37(01:37)
29 दिसंबर शुक्रवार पुत्रदा एकादशी व्रत
30 दिसंबर शनिवार शनि प्रदोष व्रत
31 दिसंबर रविवार ईशान व्रत
आचार्य राजेश कुमार
दिव्यांश ज्योतिष केंद्र



Friday 3 November 2017

नवम्बर २०१७ के तीज त्योहार:-

नवम्बर २०१७  के तीज त्योहार:-
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०१  नवंबर-2017 बुधवार       
  तुलसी विवाह, योगेश्वर द्वादशी, प्रदोष व्रत
०२ नवंबर-2017 गुरुवार   
वैकुण्ठ चतुर्दशी, विश्वेश्वर व्रत०
३  नवंबर-2017  शुक्रवार
  मणिकर्णिका स्नान, चौमासी चौदस, देव दीवाली
  ‎०४.  नवंबर-2017 शनिवार
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  ‎कार्तिक पूर्णिमा, पुष्कर स्नान, पूर्णिमा उपवास, गुरु नानक जयन्ती, भीष्म पञ्चक समाप्त, अष्टाह्निका विधान पूर्ण, रथ यात्रा
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  ‎०५.   नवंबर-2017 रविवार
  ‎मार्गशीर्ष प्रारम्भ *उत्तर, मासिक कार्तिगाई
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०६.नवंबर-2017. सोमवार
रोहिणी व्रत
०७ नवंबर-2017. मंगलवार
संकष्टी चतुर्थी
१०. नवंबर-2017  शुक्रवार
कालभैरव जयन्ती
१४. नवंबर-2017 मंगलवार
उत्पन्ना एकादशी, नेहरू जयन्ती
१५.    नवंबर-2017. बुधवार
प्रदोष व्रत
१६.   नवंबर-2017 बृहस्पतिवार
मासिक शिवरात्रि, वृश्चिक संक्रान्ति, मण्डला काल प्रारम्भ
१८.  नवंबर-2017 शनिवार
मार्गशीर्ष अमावस्या, दर्श अमावस्या
२२.   नवंबर-2017  बुधवार
    विनायक चतुर्थी
    ‎
२३.    गुरुवार
विवाह पञ्चमी, नाग पञ्चमी *तेलुगू
२४  नवंबर-2017 शुक्रवार
सुब्रहमन्य षष्ठी, चम्पा षष्ठी
२७ नवंबर-2017   सोमवार
मासिक दुर्गाष्टमी
३०  नवंबर-2017  गुरुवार
मोक्षदा एकादशी, गीता जयन्ती, मत्स्य द्वादशी, गुरुवार एकादशी

                आचार्य राजेश कुमार
         ‎divyansh jyotish kendra
         ‎मेल आई डी-
         ‎ rajpra.infocom@gmail.com

उ प्र में निकाय चुनाव -2017 का नामांकन करने का शुभ मुहुर्त



निकाय चुनाव-2017 में नामांकन करने से पूर्व रखें शुभ मुहूर्त का ध्यान तो आपकी जीत की संभावना बढ़ जाएगी:-
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     उत्तर प्रदेश नगर निगम चुनाव  के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है  लेकिन पार्षद और महापौर बनने के लिए नामांकन कराने से पहले प्रतिभागी शुभ मुहूर्त का पूरा ध्यान रखें तो अपने प्रतिद्वंदी को शिकस्त देने में काल चक्र आपका साथ अवश्य देगा ।
       वैदिक काल से लेकर आज तक किसी भी कार्य को करने से पहले शुभ मुहूर्त देखने की परम्परा रही है। शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न होता है ऐसा ऋषि मुनियों का वचन है तथा इसका अनुभव हम अपने दिन चार्य में समय-समय पर करते रहते हैं। अपने सम्पूर्ण जीवन यात्रा में जिसने समय को पहचान लिया अर्थात समय के अनुसार कार्य करने लगा वैसा व्यक्ति अवश्य ही सफल होता है उसकी सफलता में संदेह नहीं होता।
       ‎
         सामान्यतः लोगों  के मुँह से यह शब्द निकलता है कि आज का दिन बहुत अच्छा था सब काम अपने निर्धारित समय से पूरा हो गया परन्तु क्यों ? क्योंकि आज हम सही समय पर घर से निकले थे और एकदम सही समय पर कार्यस्थल पर पहुंच गए थे। वस्तुतः किसी कार्य का तुरंत हो जाना या  अल्प प्रयास में ही हो जाना यह सब जाने अनजाने में शुभ मुहूर्त/समय  का ही परिणाम है।
     क्योंकि यह बात स्पष्ट है कि  आपके जन्म कालीन ग्रह नक्षत्र व गोचरीय ग्रहों के सकारात्मक प्रभाव के कारण ही आप  इस चुनाव में नामांकन करने हेतु कदम आगे बढ़ाए हैं ।   अब हार और जीत के फैसले में आपकी किस्मत,आपके ग्रह, नक्षत्रों की ग्रेविटी ही ,आपकी महादशा-अंतरदशा प्रत्यंतर दशा शुक्ष्म दशा इत्यादि का प्रभाव ही आर-पार की लड़ाई में अंतिम फैसले के लिए निर्णायक होगा।
नामांकन के लिए शुभ मुहूर्त:-
01 नोवेम्बर से 7 नोवेम्बर-2017  के मध्य अत्यधिक शुभ तारीख :-
04 नोवेम्बर-2017 - शुक्ल पक्ष भरणी नक्षत्र
पूर्णमासी सिद्ध योग को समय 11.27 से 12.12 pm
तत्पश्चात 13.27 से 14.27 तक नामांकन के लिए अत्यधिक शुभ समय रहेगा।
राहु काल का समय -10.26 से 11.49

07 नोवेम्बर-2017:-
कृष्णा पक्ष चतुर्थी, मृगा नक्षत्र, शिव योग
शुभ समय 10.27 -12.44
राहुकाल:-14.34 से 15.57
         कोई भी शुभ कार्य करने के लिए उस दिन आपका चंद्रमा मजबूत होना चाहिए एवं आपको अपने कार्य स्थिर लग्न में करने चाहिए।  समस्त प्रतिभागियों को चाहिए कि निकाय चुनाव में नामांकन से पूर्व  किसी सक्षम एस्ट्रोलॉजर से संपर्क कर सटीक शुभ समय की जानकारी अवश्य करें।
         ‎मेरी शुभ कामना आप सभी प्रतिभागियों के साथ है।
         ‎          आचार्य राजेश कुमार
         ‎divyansh jyotish kendra
         ‎मेल आई डी-
         ‎ rajpra.infocom@gmail.com


Saturday 21 October 2017

भैया दूज पूजन विधि एवं मुहूर्त

भैया दूज शुभ मुहूर्त और पूजन विधि:--
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 भाई दूज पर तिलक लगाने या टिका करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 01:12 से 03:27 तक है। तिलक करने के मुहूर्त की अवधि 2 घंटे 14 मिनट की है।
  
          कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि 21 अक्टूबर 2017 सुबह 01:37 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 22 अक्टूबर 2017 प्रातः 03:00 बजे समाप्त होगी।

भैया दूज की पूजा सामग्री:-

1- आरती की थाली
2- टीका, चावल
3- नारियल, गोला (सूखा नारियल) और मिठाई
4-ज्योत और धूप
5- सिर ढंकने के लिये रुमाल या छोटा तोलिया
6- कलावा

 भैया दूज की पूजन विधि:-
 
भाई दूज के दिन बहनों को भाई के माथे पर टीका लगा उसकी लंबी उम्र की कामना करनी चाहिए। इस दिन सुबह पहले स्नान करके विष्णु और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इसके उपरांत भाई को तिलक लगाना चाहिए। 

स्कंदपुराण के अनुसार इस दिन पूजा की विधि :-

       इस दिन भाई को बहन के घर जाकर भोजन करना चाहिए। अगर बहन की शादी ना हुई हो तो उसके हाथों का बना भोजन करना चाहिए। अपनी सगी बहन न होने पर चाचा, भाई, मामा आदि की पुत्री अथवा पिता की बहन के घर जाकर भोजन करना चाहिए। साथ ही भोजन करने के पश्चात बहन को गहने, वस्त्र आदि उपहार स्वरूप देना चाहिए। इस दिन यमुनाजी में स्नान का विशेष महत्व है। 
 मान्यता है की इस दिन यदि आसमान में उड़ती हुई चील दिखे और बहनें अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करें तो वो दुआ पूरी होती है।
जो बहनें अपने भाईयों से दूर होती है और जिनका कोई भाई नहीं है वे चन्द्र देव की आरती करके अपने भाई के जीवन में खुशहाली और समृद्धि लाने की प्रार्थना करती है।
         आचार्य राजेश कुमार
Divyansh jyotish Kendra

यम द्वितीया, भैया दूज, चित्रगुप्त पूजन और विश्वकर्मा पूजन 21 ऑक्टूबर-2017 को:- चित्रगुप्त जी यमराज जी के आपसी रिश्ते

यम द्वितीया, भैया दूज, चित्रगुप्त पूजन और विश्वकर्मा पूजन 21 ऑक्टूबर-2017 को:- चित्रगुप्त जी यमराज के बहनोई कैसे हुए....
जानिए पौराणिक कथा--
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दीपावली की घोर अमावस्या के बाद जिस दिन चंद्रमा के दर्शन होते हैं, उसी दिन भारत में सर्वत्र यम द्वितीया यानी भैया दूज या भाई दूज का पर्व मनाया जाता है।  इस बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि 21 अक्टूबर 2017 अपरान्ह 01:37 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 22 अक्टूबर 2017 प्रातः 03:00 बजे समाप्त होगी।

इस दिन बहन अपने घर में आए हुए भाई को विशेष प्रकार के व्यंजन परोसती है और उसका आशीर्वाद लेती है।
यम द्वितीया के दिन भाई द्वारा बहन के घर जाना भी एक पौराणिक कथा से संबंधित है। 
पौराणिक कथा:--
      सूर्य के दो जुड़वां संतान यम और यमी का जन्म हुआ था। यम अपने जीवन में इतना व्यस्त हुए कि उसे कभी भी अपनी बहन की सुध लेने की फुर्सत नहीं होती है। 

        यमी का विवाह देवताओं के लेखपाल चित्रगुप्त के साथ हुआ था। जिस कारण चित्रगुप्त और यमराज में बहनोई का रिश्ता हुआ। चित्रगुप्त को भी यमराज के अधीन ही कार्य करना पड़ता है। बाद में यमी का अवतरण धरती पर यमुना नदी के रूप में हुआ। 

         एक दिन यमी ने यमराज से अपने घर आकर उसका आतिथ्य स्वीकार करने की प्रार्थना की। अंततः कार्तिक मास की द्वितीया के दिन यमराज को अपनी बहन यमी के घर जाने की फुर्सत मिली। यमी ने माथे पर तिलक लगा कर यमराज से वचन लिया कि हर वर्ष कार्तिक मास की द्वितीया के दिन चाहे कुछ भी हो, भाई को बहन के घर अवश्य जाना होगा। यमराज ने प्रसन्न होकर यमी को यह वरदान दिया कि मैं अवश्य तेरे घर आऊं और इस दिन पृथ्वी लोक में रहने वाला जो भी नर यमुना नदी के स्नान के बाद अपनी बहन के घर जाएगा, उसे नरक की यातना नहीं भोगनी पड़ेगी।
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  भैयादूज के दिन  यदि आसमान में चील दिखाई दे तो मनोरथ पूर्ण होता है----
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संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस संदर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं, उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा।
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चित्रगुप्त जी की पूजा का विशेष महत्व:-
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         इसके साथ ही कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं। 
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विश्वकर्मा पूजन का महत्व-
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           पुराणों में वर्णित लेखों के अनुसार इस "सृष्टि"की रचयिता आदिदेव ब्रह्मा जी को माना जाता है । ब्रह्मा जी,विश्वकर्मा जी की सहायता से इस सृष्टि का निर्माण किये,  इसी कारण विश्वकर्मा जी को इंजीनियर भी कहा जाता है

         धर्म शास्त्रो के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र "धर्म" के सातवी संतान जिनका नाम "वास्तु" था, विश्वकर्मा जी वास्तु के पुत्र थे जो अपने माता पिता की भाती महान शिल्पकार हुए जिन्होंने इस सृष्टि  में अनेको प्रकार के निर्माण इन्ही के द्वारा हुआ। देवताओ का स्वर्ग हो या लंका के रावण की सोने की लंका हो या भगवान कृष्ण की द्वारिका और पांडवो की राजधानी हस्तिनापुर इन सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा  द्वारा की गयी है जो की वास्तु कला की अद्भुत मिशाल है। 
         विश्वकर्मा जी को औजारों का देवता भी कहा जाता है महृषि दधीचि द्वारा दी गयी उनकी हड्डियों से ही "बज्र" का निर्माण इन्होंने ही किया है, जो की देवताओ के राजा इंद्र का प्रमुख हथियार है।

               आचार्य राजेश कुमार
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