Thursday 6 July 2017

गुरु पूर्णिमा अपने गुरु की पूजा सम्मान का दिन

     " गुरु पुर्णिमा के दिन करें अपने गुरु का सम्मान"
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जब आषाढ महीने का अंतिम दिन होता है तो उस दिन गुरु पूर्णिमा का त्योहार पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 9 जुलाई यानि मंगलवार को है। हिन्दू धर्म में गुरु का दर्जा भगवान से भी ऊपर माना जाता है।
1-महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु माना जाता है कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को वेद व्यास का जन्म हुआ था।

2- जिस माता-पिता ने हमें जन्म दिया है वे ही आपके प्रथम गुरु हैं ।

3-हमेशा ज्ञान देने वाला शिक्षक को  गुरु के बराबर  सम्मान देना चाहिए। क्योंकि शिक्षक ही हमें कई विषयो के बारे में हमे शिक्षित करता है।

4-जो हमे ज्ञान देता है उसका आदर करना धर्म माना जाता है। यही नहीं उनकी सेवा करने का भी कोई मौका नहीं छोड़ना चाहिए।

5-मनु स्मृति के अनुसार, सिर्फ वेदों की शिक्षा देने वाला ही गुरु नहीं होता। हर वो व्यक्ति जो हमारा सही मार्गदर्शन करे, उसे भी गुरु के समान ही समझना चाहिए।

6-ऐसा व्यक्ति जिसने आपको नौकरी दिलाने में मदद की हो, वो आपका सबसे बड़ा गुरु होता है। फिर चाहे वो दफ्तर में ही क्यों न हों। हमेशा उनसे सलाह लेनी चाहिए।

7-जो व्यक्ति धर्म के कार्यो में हमेशा लगा रहता है उसे भी गुरु के बराबर का दर्जा देने चाहिए। अगर धर्मात्मा व्यक्ति कभी कोई सलाह दे तो उसे भी गुरु के समान समझकर उसका पालन करना चाहिए।

8- जिनसे आप गुरु दीक्षा लेते हैं वे है आपके गुरु ।

इसीलिए कबीर दास जी ने कहा है कि -

 "गुरु-गोविंद दोउ खड़े, काके लागौ पाय ।
 बलिहारी गुरु आपने,गोविंद दियो बताय ।।

 आचार्य राजेश कुमार








Guru purnima ka mahatva

               गुरु पूर्णिमा का महत्व
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आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को Guru Purnima कहा जाता है। यह पर्व महर्षि वेद व्यास को प्रथम गुरु मानते हुए उनके सम्मान में मनाया जाता है। महर्षि वेद व्यास ही थे जिन्होंने सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी।  इस बार गुरु पूर्णिमा 8 जुलाई को सुबह 7:32 से प्रारंभ होकर 9 जुलाई को सुबह 9:37 मिनट तक रहेगी।
 मान्यता:-

माना जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। चूंकि गुरु वेद व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेद का ज्ञान दिया था इसलिए वे सभी के प्रथम गुरु हुए। इसलिए उनके जन्मदिवस के दिन उनके सम्मान में यह पर्व मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
कैसे करे गुरु पूर्णिमा के दिन पूजन:----

1- प्रातः घर की सफाई, स्नानादि के बाद घर के किसी पवित्र स्थान पर पाटे पर सफेद वस्त्र बिछाएं व उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं।

2- संकल्प:-इसके बाद दाहिने हाथ मे जल,अक्षत व पुष्प लेकर गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये मंत्र पढ़कर पूजा का संकल्प लें।

3-उसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़े।

4- इसके बाद व्यासजी, ब्रह्माजी, शुक्रदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करें।

5- फिर अपने गुरु की या उनकी फोटो रखकर पूजा करें व उन्हें वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर यथा योग्य दक्षिणा दें और उन्हें प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
  आचार्य राजेश कुमार

Monday 19 June 2017

अद्भुत अकल्पनीय अविश्वनीय

काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े 11 अद्भुत तथ्य


वाराणसी. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ के दरबार में शिवरात्रि पर आस्था का जन सैलाब उमड़ता है। यहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजते हैं। यह अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।

1. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।

2. देवी भगवती के दाहिनी ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है। यहां मनुष्य को मुक्ति मिलती है और दोबारा गर्भधारण नहीं करना होता है। भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र देकर लोगों को तारते हैं। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव अराधना के मुक्ति नहीं पा सकता।

3. श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।

4. विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। तांत्रिक सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान है। इसे श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है।

5. बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं :- 1. शांति द्वार। 2. कला द्वार। 3. प्रतिष्ठा द्वार। 4. निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।

6. बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार। तंत्र की 10 महा विद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है।

7. मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है। इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है। यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।

8. भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिकंटक विराजते यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदागिन क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों के बीच में ज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है, जो त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकता।

9. बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि नौ बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती किया जाता है तो वह राज वेश में होते हैं। इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं।

10. बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।

11. बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। शिवरात्रि में बाबा विश्वनाथ औघड़ रूप में भी विचरण करते हैं। उनके बारात में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी सभी शामिल होते हैं।

Thursday 15 June 2017

आपके हाथ में उपस्थित रेखाओं से जाने स्वयं अपना भविष्य फल

भाग -1
प्रिय मित्रों यदि आपका सही जनम विवरण आपके पास उपलब्ध नहीं है और आप अपना और अपनों के भविष्य के विषय में जानकारी चाहते हैं तो अपने हाथ की रेखाओं को देख कर बहुत कुछ विश्लेषण कर सकते हैं क्योंकि एक बार जन्म विवरण गलत हो सकता है किन्तु हाथ की रेखाएं कभी गलत नहीं हो सकतीं I इतना ही नहीं बल्कि इन्हीं रेखाओं से जन्म तारीख ,जन्म का महिना ,जन्म वर्ष व् जन्म समय समय भी ज्ञात कर सकते हैं i
आज से आपको आपकी हाथों में बनी हस्त रेखाओं के बारे में कुछ ऐसी रोचक जानकारी देना चाहता हु जिससे आप देख कर बहुत सी घटनाओं को स्वयं जान सकेंगे i
हाथ मे बने विभिन्न त्रिभुज,तिल,सितारे,यव,वर्ग,जाली,त्रीशुलादि चिन्हों का फलाफल बताएंगे:-

1.
तिल का चिन्ह,हथेली पर जिस किसी ग्रह के क्षेत्र पर होगा उसी के शुभफल की हानी करेगा। जैसे संतान रेखा पर तिल हो तो संतान हानि, विवाह रेखा पर तिल हो तो पति-पत्नी में अनबन या अमिलन या विलंब से विवाह इत्यादि। शुक्र पर्वत पर होने से यौन दुर्बलता इत्यादि समझना चाहिए।।

मित्रों हाथ की प्रत्येक उँगलियों मे तीन पर्व(खाने)होते हैं।

उंगली के ऊपरी खाने को प्रथम पर्व, बीच के खाने को द्वितीय पर्व एवं तीसरे खाने को तृतीय पर्व कहते हैं।

            तर्जनी उंगली के प्रथम पर्व पर विभिन्न चिन्हों का फलाफल:-

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तर्जनी उंगली के प्रथम पर्व पर यदि सितारे का निशान हो तो जातक के जीवन में एक गंभीर हादसा हो कर भाग्योदय होता है अर्थात उक्त गंभीर घटना ही भाग्य को बदल डालती है।

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प्रथम पर्व पर त्रिभुज का चिन्ह हो तो जातक योगी य जादूगर होगा।धर्म शास्त्र जादू टोना व गूढ़ विद्या का जानकर होता है।साथ ही विवेकी व निष्ठावान परम भक्त होता है।

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यदि प्रथम पर्व पर वक्र (~)रेखा है तो जातक नास्तिक बुद्धि का होता है।

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यदि (// + )रेखाएं हैं तो जातक धार्मिक उन्मादी ज़िहादी होता है।
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यदि त्रिभुज() है तो यह नम्रता सज्जनता व सफलता का सूचक है। ऐसा व्यक्ति अपने कुल व खानदान को यश प्रतिष्ठा व मान दिलाता है।
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यदि प्रथम पर्व पर जाली(##) का निशान या तो सन्यासी बना कर एकांत जीवन व्यतीत करता है या तो जेहादी जूनून के कारण जेल की सज़ा दिलवाता है।
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यदि (×) का चिन्ह पागलपन व आकस्मिक मृत्यु का सूचक है।

Saturday 10 June 2017

विवाह : कब, कहां, किस उम्र में होगा, बताता है ज्योतिष

विवाह : कब, कहां, किस उम्र में होगा, बताता है ज्योतिष: ज्योतिष् विज्ञान के आधार पर हम जान सकते हैं कि जातक का विवाह कब, कहां, किस उम्र में कैसे युवक या युवती से कितनी दूरी पर होगा।