Wednesday, 23 August 2017

गणेश महोत्सव का इतिहास

गणेशमहोत्सव की उत्पत्ति और इतिहास:-
 -------------------------------------

        गणेश चतुर्थी के त्यौहार पर पूजा प्रारंभ होने की सही तारीख किसी को ज्ञात नहीं है, हालांकि इतिहास के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि गणेश चतुर्थी 1630-1680 के दौरान शिवाजी (मराठा साम्राज्य के संस्थापक) के समय में एक सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया जाता था। शिवाजी के समय, यह गणेशोत्सव उनके साम्राज्य के कुलदेवता के रूप में नियमित रूप से मनाना शुरू किया गया था। पेशवाओं के अंत के बाद, यह एक पारिवारिक उत्सव बना रहा, यह 1893 में लोकमान्य तिलक (एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक) द्वारा पुनर्जीवित किया गया।

गणेश चतुर्थी एक बड़ी तैयारी के साथ एक वार्षिक घरेलू त्यौहार के रूप में हिंदू लोगों द्वारा मनाना शुरू किया गया था। सामान्यतः यह ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच संघर्ष को हटाने के साथ ही लोगों के बीच एकता लाने के लिए एक राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाना शुरू किया गया था। महाराष्ट्र में लोगों ने ब्रिटिश शासन के दौरान बहुत साहस और राष्ट्रवादी उत्साह के साथ अंग्रेजों के क्रूर व्यवहार से मुक्त होने के लिये मनाना शुरु किया था। गणेश विसर्जन की रस्म लोकमान्य तिलक द्वारा स्थापित की गयी थी।

धीरे - धीरे लोगों द्वारा यह त्यौहार परिवार के समारोह के बजाय समुदाय की भागीदारी के माध्यम से मनाना शुरू किया गया। समाज और समुदाय के लोग इस त्यौहार को एक साथ सामुदायिक त्यौहार के रुप में मनाने के लिये और बौद्धिक भाषण, कविता, नृत्य, भक्ति गीत, नाटक, संगीत समारोहों, लोक नृत्य करना, आदि क्रियाओं को सामूहिक रुप से करते है। लोग तारीख से पहले एक साथ मिलते हैं और उत्सव मनाने के साथ ही साथ यह भी तय करते है कि इतनी बडी भीड को कैसे नियंत्रित करना है।

गणेश चतुर्थी, एक पवित्र हिन्दू त्यौहार है, लोगों द्वारा भगवान गणेश (भगवानों के भगवान, अर्थात् बुद्धि और समृद्धि के सर्वोच्च भगवान) के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। पूरा हिंदू समुदाय एक साथ पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ प्रतिवर्ष मनाते है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि गणेश जी का जन्म माघ माह में चतुर्थी (उज्ज्वल पखवाड़े के चौथे दिन) हुआ था। तब से, भगवान गणेश के जन्म की तारीख गणेश चतुर्थी के रूप में मनानी शुरू की गयी। आजकल, यह त्योहार हिंदू एवं बहुत से मुश्लिम समुदाय के लोगों द्वारा पूरी दुनिया में मनाया जाता है।
आचार्य राजेश कुमार

सर्वप्रथम गणेशचतुर्थी पूजन किसने किया

सर्वप्रथम गणेश चतुर्थी का उपवास किसने और क्यों रखा:-
--------------------------------------
     एकबार, गणेश स्वर्ग की यात्रा कर रहे थे तभी वो चन्द्रमा से मिले। उसे अपनी सुन्दरता पर बहुत घमण्ड था और वो गणेश जी की भिन्न आकृति देख कर हँस पड़ा। तब गणेश जी ने उसे श्राप दे दिया। चन्द्रमा बहुत उदास हो गया और गणेश से उसे माफ करने की प्रार्थना की। अन्त में भगवान गणेश ने उसे श्राप से मुक्त होने के लिये पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ गणेश चतुर्थी का व्रत रखने की सलाह दी। इस प्रकार पहले व्यक्ति जिसने गणेश चतुर्थी का उपवास रखा था वे "चन्द्रमा" थे।

वायु पुराण के अनुसार, यदि कोई भी भगवान कृष्ण की कथा को सुनकर व्रत रखता है तो वह (स्त्री/पुरुष) गलत आरोप से मुक्त हो सकता है। कुछ लोग इस पानी को शुद्ध करने की धारणा से हर्बल और औषधीय पौधों की पत्तियाँ मूर्ति विसर्जन करते समय पानी में मिलाते है। कुछ लोग इस दिन विशेष रूप से अपने आप को बीमारियों से दूर रखने के लिये झील का पानी का पानी पाते है। लोग शरीर और परिवेश से सभी नकारात्मक ऊर्जा और बुराई की सत्ता हटाने के उद्देश्य से विशेष रूप से गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश के आठ अवतार (अर्थात् अष्टविनायक) की पूजा करते हैं। यह माना जाता है कि गणेश चतुर्थी पर पृथ्वी पर नारियल तोड़ने की क्रिया वातावरण से सभी नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने में सफलता को सुनिश्चित करता है।
 आचार्य राजेश कुमार


Saturday, 19 August 2017

दिव्यांश ज्योतिष केंद्र के संबंध में पब्लिक की राय जानने के लिए यहाँ क्लिक करें

 
For public reviews, kindly see below links.:-
1-Google reviews-
--------------------
https://business.google.com/reviews/l/02553523043059200074
-------------------------------------
2-Sulekha reviews:-
---------------------- https://www.sulekha.com/divyansh-jyotish-kendra-vikas-nagar-lucknow-contact-address

Monday, 14 August 2017

चातुर्मास में असाध्य बीमारियों से बचने के उपाय श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को अवश्य करें

अत्यधिक बीमारियों का समय चातुर्मास(15 जुलाई से 16 नवम्बर)- श्रीकृष्णजन्माष्टमी के दिनों में ही इन बीमारियों से बचने के निरोग रहने के वैज्ञानिक व अचूक उपाय:-
.......................................................................

प्रिय मित्रों, आप सभी प्रत्येक वर्ष माह जुलाई से नवम्बर के मध्य होने वाली बड़ी छोटी साध्य असाध्य सभी बीमारियों(  विभिन्न प्रकार के बुखार ,इंसेफलाइटिस, फ्लू, चर्म रोग, खांसी ,स्वांस रोग इत्यादि) से अच्छी तरह परिचित हैं ।अभी हाल ही में जिला गोरखपुर के बी आर डी अस्पताल में इंसेफलाइटिस से 35-40 बच्चों की अकाल मौत से पूरे देशवासी व सरकारी तंत्र हिल गया। जबकि ऐसी घटनाएं प्रयेक वर्ष इस समय होती हैं और वैक्सीन, ऑक्सीजन, सही ईलाज के अभाव में लोग दम तोड़ देते हैं ।
    इनदिनों घरों में खुले में रखे खाद्य पदार्थ जल्दी खराब हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण वातावरण में तेजी से बढ़ते खतरनाक वायरस और  बैक्टिरिया  हैं।
    मित्रों मैं आपको लेकर इतिहास की तरफ जाना चाहता हूं कि सैकड़ों वर्ष पूर्व भी इन दिनों मे ऐसी ही बीमारियां होती थीं तब आज की तरह विज्ञान इतना बृद्धि नहीं किया था । इसके बावजूद भी लोग  पेड़ पौधों , जड़ी बूटियों के माध्यम से अपनी रक्षा स्वयं कर लेते थे और आज से अधिक जीवित रहते थे।

              आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आपके रसोई घर( किचन) में इस्तेमाल होने वाले मसालों में इन बीमारियों से लड़ने व इन बीमारियों को खत्म करने का अचूक उपाय है।
                          उन्हीं मसालों में सुखी धनिया व  तेजपत्ता पाउडर को भाद्रपद के कृष्ण पक्ष ,अष्टमी के रोहिणी नक्षत्र में इन पाउडर को भूनकर चीनी मिलाकर पंजीरी बना कर जन्माष्टमी के प्रसाद के रूप में खाने से ये बीमारियां रफूचक्कर हो जाती थीं। किन्तु धीरे धीरे बदलते समय के साथ-साथ  लोग इस अचूक उपाय को भूलते चले गए। आज भी भारत वर्ष के कई प्रान्तों में इस प्रसाद को ग्रहण करने की परंपरा यथावत बनी हुई है।

           अतः आप सभी से निवेदन है कि अपने पूरे परिवार के सुरक्षा कवच हेतु आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी को रात्रि में अपने घर में भगवान के जन्म समय पर सुखी धनिया व तेजपत्ता के पाउडर की पंजीरी बनाकर प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें तथा प्रत्येक दिन सुबह ब्रश करने के पश्चात दो चम्मच जरूर ग्रहण करें। इससे चातुर्मास में होने वाली खतरनाक बीमारियों से कोसों दूर रहेंगे।
           आचार्य राजेश कुमार

तुलसी शतक पुस्तक में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर का जिक्र

*पढ़ें तुलसीदास जी ने भी बाबरी मस्जिद का उल्लेख अपनी पुस्तक "तुलसी शतक" में किया है!*

आम तौर पर हिंदुस्तान में ऐसे परिस्थितियां कई बार उत्पन्न हुई जब राम -मंदिर और बाबरी मस्जिद (ढांचा ) एक विचार-विमर्श का मुद्दा बना और कई विद्वानों ने चाहे वो इस पक्ष के हो या उस पक्ष के अपने विचार रखे . कई बार तुलसीदास रचित रामचरित मानस पर भी सवाल खड़े किये गए की अगर बाबर ने राम -मंदिर का विध्वंश किया तो तुलसीदास जी ने इस घटना का जिक्र क्यों नही किया .
सच ये है कि कई लोग तुलसीदास जी कि रचनाओं से अनभिज्ञ है और अज्ञानतावश ऐसी बातें करते हैं . वस्तुतः रामचरित्रमानस के अलावा तुलसीदास जी ने कई अन्य ग्रंथो की भी रचना की है . तुलसीदास जी ने तुलसी शतक में इस घंटना का विस्तार से विवरण भी दिया है .

हमारे वामपंथी विचारको तथा इतिहासकारो ने ये भ्रम की स्थति उतप्पन की , कि रामचरितमानस में ऐसी कोई घटना का वर्णन नही है . श्री नित्यानंद मिश्रा ने जिज्ञाशु के एक पत्र व्यवहार में "तुलसी दोहा शतक " का अर्थ इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रस्तुत किया है | हमनें भी उस अर्थो को आप तक पहुंचने का प्रयास किया है | प्रत्येक दोहे का अर्थ उनके नीचे दिया गया है , ध्यान से पढ़ें |

*(1) मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास ।*
*जवन जराये रोष भरि करि तुलसी परिहास ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया ।

*(2) सिखा सूत्र से हीन करि बल ते हिन्दू लोग ।*
*भमरि भगाये देश ते तुलसी कठिन कुजोग ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवित से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।

*(3) बाबर बर्बर आइके कर लीन्हे करवाल ।*
*हने पचारि पचारि जन जन तुलसी काल कराल ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।

*(4) सम्बत सर वसु बान नभ ग्रीष्म ऋतु अनुमानि ।*
*तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किये अनखानि ॥*

(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन 1528 आता है ।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत अनर्थ किये । (वर्णन न करने योग्य) ।

*(5) राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय ।*
*जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी किन्ही हाय ॥*

जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई । साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये ।

*(6) दल्यो मीरबाकी अवध मन्दिर रामसमाज ।*
*तुलसी रोवत ह्रदय हति हति त्राहि त्राहि रघुराज ॥*

मीरबकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदिर्ण ह्रदय तुलसी रोये ।

*(7) राम जनम मन्दिर जहाँ तसत अवध के बीच ।*
*तुलसी रची मसीत तहँ मीरबाकी खाल नीच ॥*

तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीरबकी ने मस्जिद बनाई ।

*(8)रामायन घरि घट जँह, श्रुति पुरान उपखान ।*
*तुलसी जवन अजान तँह, कइयों कुरान अज़ान ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।


अब यह स्पष्ट हो गया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में जन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया किया
है!
।यह लेख मुझे एक ग्रुप में आया है,आप लोग पढ़िये।

Saturday, 12 August 2017

श्रीकृष्णजन्मोत्सव को "व्रतराज" क्यों कहते हैं

श्री कृष्ण जन्मोत्सव को "व्रतराज" क्यों कहते हैं और इसका हमारे जीवन में क्या है महत्व और  कब है वास्तविक शुभ मुहूर्त
---------------------------------------------
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शास्त्रों में इसके व्रत को ‘व्रतराज’ कहा जाता है।

  मान्यता है कि इस एक दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है। अगर भक्त पालने में भगवान को झुला दें, तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की  अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में होने के कारण इसको कृष्णजन्माष्टमी कहते हैं।  चूंकि भगवान श्रीकृष्ण का रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में रोहिणी नक्षत्र का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं।

   इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति , दीर्घआयु तथा सुखसमृद्धि की प्राप्ति होती है।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है।

        जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर हो वे आज विशेष पूजा से लाभ पा सकते हैं।

कब है दिनांक 14/08/2017 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त और नियम:-

शास्त्रों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन वृष राशि में चंद्रमा व सिंह राशि में सूर्य था। इसलिए श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव भी इसी काल में ही मनाया जाता है। लोग रातभर मंगल गीत गाते हैं और भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं।

        इस बार अष्टमी 14 अगस्त को सायं 07:45 पर आरम्भ होगी और यह 15 अगस्त को सायं 05:40 पर समाप्त होगी।रात्रि में अष्टमी तिथि 14 अगस्त को होगी। इसलिए इस बार जन्माष्टमी 14 अगस्त को मनाना उत्तम होगा।मध्य रात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म होगा और तभी जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
        आचार्य राजेश कुमार

Thursday, 10 August 2017

राहु - केतु के 18 अगस्त-2017 को राशि परिवर्तन से किसके जीवन में आएगा भूचाल

राहु - केतु का 18 अगस्त - 2017 को राशि परिवर्तन से किन लोगों के जीवन मे आएगा भूचाल


राहु - केतु खगोलीय दृष्टि से कोई ग्रह भले न हो लेकिन ज्योतिष में राहू -केतु का बहुत अधिक महत्व है। राहु के साथ केतु का भी नाम लिया जाता है क्योंकि दोनों एक दूसरे के विपरीत बिंदुओं पर समान गति से गोचर करते हैं। राह-केतुु को जन्म से ही वक्री ग्रह माना जाता है।

   पौराणिक ग्रंथों में राहु एक असुर हुआ करता था जिसने समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत की कुछ बूंदे गटक ली थी। सूर्य और चंद्रमा को तुरंत इसकी भनक लगी और सूचना भगवान विष्णु को दी इसके पश्चात अमृत गले से नीचे उतरने से पहले ही भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जिसके कारण उसका सिर अमरता को प्राप्त हो गया और राहु कहलाया।

   सूर्य व चंद्रमा से राहु की शत्रुता का कारण भी यही माना जाता है। मान्यता है कि इसी शत्रुता के चलते राहु सूर्य व चंद्रमा को समय-समय पर निगलने का प्रयास करता है जिसके कारण इन्हें ग्रहण लगता है। ज्योतिष शास्त्र में भी राहु को छाया ग्रह माना जाता है। राहु एक पाप ग्रह माने जाते हैं। जातक की कुंडली में कालसर्प जैसे दोष राहु के कारण ही मिलते हैं। मिथुन राशि में राहु को उच्च का तो धनु राशि में नीच का माना जाता है। राहु को अनैतिक कृत्यों का कारक भी माना जाता है। शनि के बाद राहु-केतु ऐसे ग्रह हैं जो एक राशि में लंबे समय लगभग 18 महीने तक रहते हैं। ऐसे में राहु का राशि परिवर्तन करना एक बड़ी ज्योतिषीय घटना मानी जाती है 

राहु-केतु गोचर 2017- तिथि व समय

राहु गोचर सिंह से कर्क-18 अगस्त 2017 (शुक्रवार) 00:37
स्पष्ट राहू गोचर सिंह से कर्क-  09 सितंबर 2017 (शनिवार) 02:03 

केतु गोचर कुंभ से मकर उपरोक्त तिथि व समयानुसार ।

  इनके स्वभाव-
समस्त ग्रहों में राहु को एक क्रूर स्वभाव और बुद्धि को भ्रमित कर देने वाले छाया ग्रह के नाम से जाना जाता है। राहु के प्रभाव से मनुष्य के जीवन में रहस्यमयी और अप्रत्याशित परिवर्तन होते हैं। इसके फलस्वरूप जीवन में अचानक कोई बड़ा परिवर्तन और हादसे घटित होते हैं। हालांकि ये सुखद और दुखद दोनों हो सकते हैं। कुंडली में राहु की दशा और स्थिति से इसका बोध होता है। गोचर के दौरान राहु एक राशि में 18 महीने तक संचरण करता है। फिलहाल राहु सिंह राशि में गोचर कर रहा है। 18 अगस्त 2017 को राहु सिंह से कर्क राशि में लौटेगा। साल 2017 में राहु के कर्क राशि में गोचर से आपकी राशि पर कैसा होगा असर? 

मेष

राहु आपकी राशि से पांचवें भाव में गोचर करेगा। इस गोचर के फलस्वरूप नए और सृजनात्मक विचार उत्पन्न होंगे। जो कला और लेखन से जुड़े जातकों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा। छात्रों को पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होगी। इसके अलावा बच्चे ज्यादा शरारती और उपद्रवी हो जाएंगे और उन पर आपका नियंत्रण नहीं रहेगा। 9 सितंबर को राहु आपके चौथे भाव में संचरण करेगा। इस दौरान आप निवास स्थान बदल सकते हैं या किसी दूसरे शहर और घर में शिफ्ट हो सकते हैं। राहु के चौथे भाव में होना आपके लिए कई मामलों में लाभकारी रहेगा। कार्य स्थल पर आपको कई ऐसे अवसर मिलेंगे, जहां नए विचारों के प्रयोग से आपके काम और सार्थक होंगे। राहु के इस गोचर की वजह से आप पर काम की अधिकता रहेगी, जिसकी वजह से मानसिक दबाव बढ़ सकता है। पारिवारिक जीवन में परेशानी आ सकती है।

वृषभ

राहु के चौथे भाव में गोचर करने से आपके निर्णय लेने की क्षमता पर असर पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप प्रभावी फैसले लेने में दिक्कत आएगी। छोटे-मोटे कामों और प्रोजेक्ट्स में व्यस्त रह सकते हैं। पारिवारिक जीवन में कुछ ग़लतफहमी की वजह से मतभेद हो सकते हैं। हालांकि कर्क राशि में राहु के गोचर के फलस्वरूप आपके जीवन में अपार खुशियां आएंगी। आप लक्ष्यों का निर्धारण कर कड़ी मेहनत और लगन के साथ काम करेंगे और सफलता प्राप्त करेंगे। काम के सिलसिले में या किसी और वजह से यात्रा पर जा सकते हैं। सितंबर के बाद आपके व्यवहार और आचरण में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन की ओर झुकाव बढ़ेगा।

मिथुन

सितबंर तक राहु आपके तीसरे भाव में स्थित होगा। राहु के तीसरे भाव में होने से आपके अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होगा और दृढ़ इच्छाशक्ति आएगी। जीवन में आने वाली तमाम चुनौतियों का सामना करने के लिए आप मानसिक रूप से तैयार रहेंगे। इस गोचर का प्रभाव आपके भाई-बहनों के लिए अच्छा नहीं रहेगा। कम दूरी की यात्रा संभावित है। 9 सितंबर के बाद आपको घर से दूर रहना पड़ सकता है। आय के साधनों में बढ़ोतरी होगी। जीवन साथी या परिजन की सेहत गड़बड़ा सकती है।

कर्क

राहु के दूसरे भाव में होने से आर्थिक मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। पारिवारिक जीवन में कुछ परेशानी आएगी। परिजनों की सेहत को लेकर चिंता बढ़ सकती है। ग़लतफहमी की वजह से परिवार में मतभेद हो सकते हैं। चूंकि राहु आपकी लग्न राशि में स्थित है इसलिए इसके प्रभाव से आपकी सोच में बदलाव आएगा और यह आपके लिए लाभकारी होगा। बौद्धिक कौशल और निर्णय लेने की क्षमता में सुधार होगा। हालांकि विचारों में टकराव होने की वजह से घरेलू जीवन में मतभेद होंगे। इसलिए धैर्य के साथ काम लें। पारिवारिक जीवन में सब कुछ सामान्य हो जाएगा।

सिंह

राहु के आपकी राशि में स्थित होने से इस साल व्यक्तिगत जीवन में आपको कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। राहु के गोचर के प्रभाव से आपके स्वभाव और व्यवहार में चिड़चिड़ापन आएगा और इसका असर आपके रिश्तों पर पड़ेगा। आप दोस्त और दुश्मनों में फर्क करना भूल जाएंगे। वैवाहिक जीवन में भी परेशानियां आ सकती है लेकिन जून के बाद परिस्थितियों में सुधार होगा। लंबी दूरी की यात्रा और विदेशों में संपर्क बढ़ने की संभावना नज़र आ रही है। अगर आपकी कुंडली में शत्रु ग्रह एक-दूसरे के साथ बैठकर संबंध बना रहे हैं, तो इसका जातक की साख और सेहत पर गहरा असर पड़ सकता है। खर्च लगातार बढ़ेंगे।

कन्या

राहु का बारहवें भाव में संचरण करना आपकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। कानूनी कार्यवाही और अन्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। विरोधी आपकी छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे। काम या किसी अन्य वजह से लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ सकती है। सितंबर के बाद राहु आपके ग्यारहवें भाव में आएगा। इस दौरान आमदनी बढ़ेगी और धन का आगमन तेजी से होगा। नौकरीपेशा और बिज़नेस से जुड़े जातकों की तरक्की होगी। कार्य स्थल पर वरिष्ठ अधिकारियों को आपके विचारों को समझने में मुश्किल होगी इसलिए शांति और संयम के साथ उन्हें समझाने की कोशिश करें। नए प्रेम प्रसंग बन सकते हैं।

तुला

राहु आपके ग्यारहवें भाव में स्थित होगा। 11वां भाव आर्थिक वृद्धि और सफलताओं से संबंधित होता है। इसलिए इस वर्ष आपको अपार सफलता मिलेगी, जो जीवन भर आपके लिए यादगार रहेगी। आय के नए साधन मिलेंगे और करियर में कई सुनहरे अवसर आएंगे। जीवन साथी या प्रियतम के साथ कहीं घूमने जा सकते हैं। लव लाइफ भी अच्छी रहेगी। हालांकि संतान पक्ष के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंता परेशान कर सकती है। सितंबर के बाद नई नौकरी मिलने के आसार बन रहे हैं। कार्य स्थल पर विवाद की स्थिति निर्मित हो सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि सभी मसलों को धैर्य और शांति के साथ सुलझाने की कोशिश करें। काम की अधिकता से परिवार को पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे।

वृश्चिक

राहु आपके दसवें भाव में स्थित है। यह भाव आपके कर्म और प्रोफेशन से जुड़ा है। राहु के इस गोचर की वजह से आपको अपने करियर के प्रति सावधान और समर्पण का भाव रखने की ज़रुरत है। क्योंकि यदि आप सुनहरा भविष्य चाहते हैं तो आपको वर्तमान की योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इस वर्ष काम में व्यस्तता की वजह से पारिवारिक जीवन प्रभावित होगा। इसलिए कामकाज और पारिवारिक जीवन में संतुलन बनाए रखने की कोशिश करें। काम के साथ-साथ परिजनों को पर्याप्त समय दें। राहु के कर्क राशि में गोचर करने के बाद आपके अंदर आध्यात्मिक चिंतन की लालसा बढ़ेगी। लंबी दूरी की यात्रा की संभावना बन रही है। पिता जी की सेहत पर ध्यान देने की ज़रुरत होगी। राहु के गोचर की वजह से क्रांतिकारी विचार उत्पन्न होंगे। जिसके फलस्वरूप आपका स्वभाव उग्र और उपद्रवी होगा। इसलिए कुछ भी करने से पहले सोचें और आगे बढ़े। क्योंकि आपके बोल और विचार किसी को ठेस पहुंचा सकते हैं।

धनु

राहु आपके नौंवे भाव में स्थित है। यह भाव आपकी प्रसिद्धि और भाग्य से संबंधित है। इस वर्ष पिता के स्वास्थ्य पर ध्यान देने की ज़रुरत है। पिता के साथ रिश्तों में कुछ ग़लतफहमी पैदा हो सकती है। सितंबर के बाद आध्यात्मिक और जादू टोना जैसी विद्या के प्रति झुकाव बढ़ सकता है। किसी गंभीर बीमारी या दुर्घटना की चपेट में आ सकते हैं। अवैध व प्रतिबंधित वस्तुओं और उससे जुड़े कार्यों से दूरी बनाए रखें।

मकर

इस वर्ष राहु आपके आठवें भाव में बना रहेगा। रहस्यपूर्ण गतिविधियों की ओर झुकाव बढ़ेगा। अवैध साधनों से धन की प्राप्ति होगी। राहु के गोचर के दौरान अप्रत्याशित लाभ की संभावना है। पिता की सेहत थोड़ी गड़बड़ा सकती है। रिसर्च और अध्यापन से जुड़े जातक कुछ नया और आविष्कारिक कार्य करने में सक्षम होंगे। कर्क राशि में राहु के गोचर के दौरान आपके वैवाहिक जीवन में कष्ट आएंगे। पत्नी के साथ ग़लतफहमी और मतभेद उभरेंगे। इसलिए रिश्तों में शांति और सद्भाव बनाए रखने की कोशिश करें। करियर में प्रगति होगी।

कुंभ

राहु आपके सातवें भाव में गोचर करेगा। यह घर पत्नी और साझेदारी से संबंधित है। राहु के गोचर से वैवाहिक रिश्तों में परेशानी होगी। साझेदारी से जुड़े काम में भी समस्या का सामना करना पड़ेगा। पति-पत्नी के बीच ग़लतफहमी होने से मतभेद होंगे। इस समय में प्रेमिका के साथ भी टकराव बढ़ेगा। सितंबर में राहु के छठवें भाव में संचरण करने पर करियर में उन्नति होगी। विरोधियों पर हावी रहेंगे और आपकी जीत होगी। सेहत का ख्याल रखने की ज़रुरत है क्योंकि आप बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। छात्रों को प्रतियोगी परीक्षा में सफलता मिलेगी। कानूनी विवादों का समाधान होगा और फैसला आपके पक्ष में होगा।

मीन

राहु आपके छठवें भाव में गोचर करेगा। इसके फलस्वरूप जीवन में आने वाली समस्याओं और चुनौतियों से लड़ने के लिए आपको साहस और आत्मबल मिलेगा। आप शत्रुओं और प्रतिद्वन्दी पर हावी होंगे और उन्हें पराजित करेंगे। सभी विवादों को किनारे करते हुए आप आगे की ओर बढ़ेंगे। सितंबर में राहु पांचवें भाव में गोचर करेगा। इस समय में आप के अंदर आसान तरीकों से कामों को पूरा करने की इच्छा होगी। हालांकि अपनी रणनीति को लागू करने से पहले अच्छे से सोचें वरना ऐसा ना हो कि सुनहरे अवसर हाथ से निकल जाये। आय में वृद्धि होगी। राजनीति और आईटी सेक्टर में रूचि बढ़ेगी।

उपाय :

यदि आप राहु की दशा से पीड़ित हैं तो इन उपायों के जरिए उसके बुरे प्रभावों को दूर कर सकते हैं।

चांदी के आभूषण पहनें।काले कुत्ते को रोटी व अन्य खाद्य पदार्थ खिलाएं।भगवान शिव की आराधना करें।भैरव बाबा के मंदिर जाकर दर्शन कीजिए और पूजा-अर्चना करें।

  राहु कुछ लोगों को 18 अगस्त 2017 से 2-3 दिन  पूर्व से ही नकारात्मक असर दिखाने लगेंगे। अतः समय रहते अपनो व  परिवारजनो के ग्रह-३ दशा किसी सक्षम एस्ट्रोलॉजर को अवश्य दिख लें। 
  आचार्य राजेश कुमार