Friday 28 July 2017

क्यों महिलाएं नाग को भी मानती हैं

     
क्यों महिलाएं नाग को भाई मानती है           बहुचर्चित कथा
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    हिंदू धर्म में सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है नागपंचमी. अमृत सहित नवरत्नों की प्राप्ति के लिए देव-दानवों ने जब समुद्र-मंथन किया था, तो जगत-कल्याण के लिए वासुकी नाग ने मथानी की रस्सी के रुप में काम किया था.

         हिंदू धर्म में नाग देव का अपना विशेष स्थान है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी. महाभारत की एक कथा के अनुसार जब महाराजा परीक्षित को उनका पुत्र जनमेजय तक्षक नाग के काटने से नहीं बचा सका तो जनमेजय ने विशाल सर्पयज्ञ कर यज्ञाग्नि में भस्म होने के लिए तक्षक को आने पर विवश कर दिया. नागपंचमी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. इस दिन कही और सुनी जाने वाली एक प्रचलित कथा इस प्रकार है-

        एक समय में एक सेठ हुआ करते थे. उनके सात बेटे थे. सातों की शादी हो चुकी थी. सबसे छोटे बेटे की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, लेकिन उसका कोई भाई नहीं था.

         एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को चलने को कहा. इस पर बाकी सभी बहुएं उनके साथ चली गईं और डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगीं. तभी वहां एक नाग निकला. इससे ड़रकर बड़ी बहू ने उसे खुरपी से मारना शुरू कर दिया. इस पर छोटी बहू ने उसे रोका. इस पर बड़ी बहू ने सांप को छोड़ दिया. वह नाग पास ही में जा बैठा. छोटी बहू उसे यह कहकर चली गई कि हम अभी लौटते हैं तुम जाना मत. लेकिन वह काम में व्यस्त हो गई और नाग को कही अपनी बात को भूल गई.

अगले दिन उसे अपनी बात याद आई. वह भागी-भागी उस ओर गई, नाग वहीं बैठा था. छोटी बहू ने नाग को देखकर कहा- सर्प भैया नमस्कार! नाग ने कहा- 'तूने भैया कहा तो तुझे माफ करता हूं, नहीं तो झूठ बोलने के अपराध में अभी डस लेता. छोटी बहू ने उससे माफी मांगी, तो सांप ने उसे अपनी बहन बना लिया.

    कुछ दिन बाद वह सांप इंसानी रूप लेकर छोटी बहू के घर पहुंचा और बोला कि 'मेरी बहन को भेज दो.' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था. उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया.

रास्ते में नाग ने छोटी बहू को बताया कि वह वही नाग है और उसे ड़रने की जरूरत नहीं. जहां चला न जाए मेरी पूंछ पकड़ लेना. बहन ने भाई की बात मानी और वह जहां पहुंचे वह सांप का घर था, वहां धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई.

एक दिन भूलवश छोटी बहू ने नाग को ठंडे की जगह गर्म दूध दे दिया. इससे उसका मुंह जल गया. इस पर सांप की मां बहुत गुस्सा हुई. तब सांप को लगा कि बहन को घर भेज देना चाहिए. इस पर उसे सोना, चांदी और खूब सामान देकर घर भेज दिया गया.

सांप ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था. उसकी प्रशंसा खूब फैल गई और रानी ने भी सुनी. रानी ने राजा से उस हार की मांग की. राजा के मंत्रि‍यों ने छोटी बहू से हार लाकर रानी को दे दिया.

छोटी बहू ने मन ही मन अपने भाई को याद किया ओर कहा- भाई, रानी ने हार छीन लिया, तुम ऐसा करो कि जब रानी हार पहने तो वह सांप बन जाए और जब लौटा दे तो फिर से हीरे और मणियों का हो जाए. सांप ने वैसा ही किया.

रानी से हार वापस तो मिल गया, लेकिन बड़ी बहू ने उसके पति के कान भर दिए. पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा - यह धन तुझे कौन देता है? छोटी बहू ने सांप को याद किया और वह प्रकट हो गया. इसके बाद छोटी बहू के पति ने नाग देवता का सत्कार किया. उसी दिन से नागपंचमी पर स्त्रियां नाग को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।
         आचार्य राजेश कुमार

नागपंचमी की पूजा से मिलता है सुख समृद्धि और शांति


 असलियत में नाग पंचमी 28 जुलाई 2017 को है
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      हिंदूओं में अब ज्यादातर त्योहारों को लेकर असमंजस की स्थिति होने लगी है क्योंकि अधिकतर त्योहार दो दिन मनाए जाने लगे हैं। यही स्थिति Nag Panchami की है। ज्यादातर कलेंडर और ज्यादातर मीडिया रिपोर्ट में 27 जुलाई को नाग पंचमी का त्योहार होने की बात कह रहे हैं।  असलियत में Nag Panchami आज नहीं कल यानी 28 जुलाई के दिन है। जानें कैसे?
 
    पंचांग के मुताबिक पंचमी तिथि आज सुबह 07 बजकर 01 मिनट से शुरू हो चुकी है जो कल सुबह 06 बजकर 38 मिनट पर खत्म होगी। पंचमी के हिसाब से कुछ लोग इस त्योहार को आज मना रहे हैं। लेकिन शास्त्रों में Nag Panchami उदया तिथि में मानी गई है। चूंकि उदया तिथि कल है इसलिए इस त्योहार को भी कल मनाना शास्त्र संवत है।
हालांकि कल सुबह पंचमी समाप्त हो रही है लेकिन फिर भी उदया तिथि लगने के कारण नाग पंचमी के त्योहार का महत्व पूरे दिन रहेगा। यानी अगर आप सुबह जल्दी उठकर पूजन नहीं कर सकते तो परेशान न हों, दिन में अपने अनुसार किसी भी समय पूजन कर सकते हैं।

ये है मान्यता
नाग पंचमी को लेकर मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है, उसे और उसके पूरे परिवार को कभी भी सर्प नुकसान नहीं पहुंचाते।
आचार्य राजेश कुमार



Tuesday 25 July 2017

हरियाली तीज विशेष

   हरियाली तीज का मुहूर्त और विधि:-
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श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं  । इस बार हरियाली तीज 26 जुलाई 2017 दिन बुधवार को पड़ रही है।

            यह मुख्यतः स्त्रियों का त्योहार है, इसे मां पार्वती के शिव से मिलन की याद में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ही विरहाग्नि में व्यथित देवी गौरी देवाधिदेव शिव से मिली थीं व आलिंगनबद्ध होकर प्रसन्नता से झूम उठी थीं। इस दिन महिलाएं माता पार्वती की पूजा करती हैं। नवविवाहिता महिलाएं अपने पीहर में आकर यह त्योहार मनाती हैं, इस दिन व्रत रखकर विशेष श्रृंगार किया जाता है। नवविवाहिता इस पर्व को मनाने के लिए एक दिन पूर्व से अपने हाथों एवं पावों में कलात्मक ढंग से मेंहन्दी लगाती हैं।
इस पर्व पर विवाह के पश्चात् पहला सावन आने पर नवविवाहिता लड़की को ससुराल में नहीं छोड़ा जाता है। हरियाली तीज से एक दिन पूर्व सिंजारा मनाया जाता है। इस दिन नवविवाहिता लड़की की ससुराल से वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेंहन्दी एवं मिठाई भेजी जाती है। इस दिन मेंहन्दी लगाने का विशेष महत्व होता है।

कैसे मनाये त्योहार:-
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इस दिन प्रातः काल आम एवं अशोक के पत्तों सहित टहनियां पूजा के स्थान के पास स्थापित झूले को सजाएं तथा दिन भर उपवास रखकर भगवान श्री कृष्ण के श्रीविग्रह को झूले में रखकर श्रृद्धापूर्वक झुलाएं। साथ में लोक गीतों को मधुर स्वर में गाएं। माता पार्वती की सुसज्जित सवारी धूम-धाम से निकाली जाती है। इस दिन महिलाएं तीन संकल्प लें 1. पति से छल कपट नहीं करेंगी, 2. झूठ एवं लोगों से बुरा व्यवहार नहीं करेंगी, 3. दूसरों की बुराई नहीं करेंगी।
इस दिन कलात्मकता एवं विलासिता के भोगकारी ग्रह शुक्र सांय 05:09 बजे मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र रहेगा। मिथुन राशि का स्वामी बुद्ध ग्रह एवं बुधवार का दिन होना बुध-शुक्र का सम्बन्ध लाभकारी रहेगा।
  आचार्य राजेश कुमार



Thursday 6 July 2017

गुरु पूर्णिमा अपने गुरु की पूजा सम्मान का दिन

     " गुरु पुर्णिमा के दिन करें अपने गुरु का सम्मान"
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जब आषाढ महीने का अंतिम दिन होता है तो उस दिन गुरु पूर्णिमा का त्योहार पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 9 जुलाई यानि मंगलवार को है। हिन्दू धर्म में गुरु का दर्जा भगवान से भी ऊपर माना जाता है।
1-महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु माना जाता है कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को वेद व्यास का जन्म हुआ था।

2- जिस माता-पिता ने हमें जन्म दिया है वे ही आपके प्रथम गुरु हैं ।

3-हमेशा ज्ञान देने वाला शिक्षक को  गुरु के बराबर  सम्मान देना चाहिए। क्योंकि शिक्षक ही हमें कई विषयो के बारे में हमे शिक्षित करता है।

4-जो हमे ज्ञान देता है उसका आदर करना धर्म माना जाता है। यही नहीं उनकी सेवा करने का भी कोई मौका नहीं छोड़ना चाहिए।

5-मनु स्मृति के अनुसार, सिर्फ वेदों की शिक्षा देने वाला ही गुरु नहीं होता। हर वो व्यक्ति जो हमारा सही मार्गदर्शन करे, उसे भी गुरु के समान ही समझना चाहिए।

6-ऐसा व्यक्ति जिसने आपको नौकरी दिलाने में मदद की हो, वो आपका सबसे बड़ा गुरु होता है। फिर चाहे वो दफ्तर में ही क्यों न हों। हमेशा उनसे सलाह लेनी चाहिए।

7-जो व्यक्ति धर्म के कार्यो में हमेशा लगा रहता है उसे भी गुरु के बराबर का दर्जा देने चाहिए। अगर धर्मात्मा व्यक्ति कभी कोई सलाह दे तो उसे भी गुरु के समान समझकर उसका पालन करना चाहिए।

8- जिनसे आप गुरु दीक्षा लेते हैं वे है आपके गुरु ।

इसीलिए कबीर दास जी ने कहा है कि -

 "गुरु-गोविंद दोउ खड़े, काके लागौ पाय ।
 बलिहारी गुरु आपने,गोविंद दियो बताय ।।

 आचार्य राजेश कुमार








Guru purnima ka mahatva

               गुरु पूर्णिमा का महत्व
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आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को Guru Purnima कहा जाता है। यह पर्व महर्षि वेद व्यास को प्रथम गुरु मानते हुए उनके सम्मान में मनाया जाता है। महर्षि वेद व्यास ही थे जिन्होंने सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी।  इस बार गुरु पूर्णिमा 8 जुलाई को सुबह 7:32 से प्रारंभ होकर 9 जुलाई को सुबह 9:37 मिनट तक रहेगी।
 मान्यता:-

माना जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। चूंकि गुरु वेद व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेद का ज्ञान दिया था इसलिए वे सभी के प्रथम गुरु हुए। इसलिए उनके जन्मदिवस के दिन उनके सम्मान में यह पर्व मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
कैसे करे गुरु पूर्णिमा के दिन पूजन:----

1- प्रातः घर की सफाई, स्नानादि के बाद घर के किसी पवित्र स्थान पर पाटे पर सफेद वस्त्र बिछाएं व उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं।

2- संकल्प:-इसके बाद दाहिने हाथ मे जल,अक्षत व पुष्प लेकर गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये मंत्र पढ़कर पूजा का संकल्प लें।

3-उसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़े।

4- इसके बाद व्यासजी, ब्रह्माजी, शुक्रदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करें।

5- फिर अपने गुरु की या उनकी फोटो रखकर पूजा करें व उन्हें वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर यथा योग्य दक्षिणा दें और उन्हें प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
  आचार्य राजेश कुमार