श्राद्ध
के भेद तथा श्राद्ध करने का तरीका / कैसे
मिलता है पित्रों को आहार
‘श्राद्ध’ का अर्थ है श्रद्धा
से जो कुछ दिया जाए। पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए पदार्थ-दान (हविष्यान्न,
तिल, कुश, जल के दान) का
नाम ही श्राद्ध है। श्राद्धकर्म पितृऋण चुकाने का सरल व सहज मार्ग है। पितृपक्ष
में श्राद्ध करने से पितरगण वर्षभर प्रसन्न रहते हैं।
श्राद्ध-कर्म से व्यक्ति केवल
अपने सगे-सम्बन्धियों को ही नहीं, बल्कि ब्रह्मा से
लेकर तृणपर्यन्त सभी प्राणियों व जगत को तृप्त करता है। पितरों की पूजा को
साक्षात् विष्णुपूजा ही माना गया है।
श्राद्ध परिचय-
प्रति वर्ष भाद्रपद, शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के काल को पित्र पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहते हैं। इस वर्ष श्रद्ध 24 सितंबर -2018 से प्रारम्भ होकर 8 ओक्टूबर -2018 को आखिरी श्राद्ध होगा ।
शास्त्रों में मनुष्य के लिए कुल तीन ऋण बतलाए गए हैं –
1-देव-ऋण
2-ऋषि ऋण और
3,- पितृ ऋण-
ये तीन ऋण बतलाए गए हैं। इनमें श्राद्ध के द्वारा पितृ ऋण उतारना आवश्यक माना जाता है क्योंकि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्य और सुख-सौभाग्यादि की वृद्धि के अनेक यत्न या प्रयास किए उनके ऋण से मुक्त न होने पर मनुष्य जन्म ग्रहण करना निरर्थक माना जाता है। श्राद्ध से तात्पर्य हमारे मृत पूर्वजों व संबंधियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान प्रकट करना है।
दिवंगत व्यक्तियों की मृत्युतिथियों के अनुसार इस पक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन तिथियों में हमारे पितृगण इस पृथ्वी पर अपने अपने परिवार के बीच आते हैं।
श्राद्ध करने से हमारे पितृगण प्रसन्न होते हैं और हमारा सौभाग्य बढ़ता है।
श्राद्ध के दो भेद माने गए हैं-
1. पार्वण और 2. एकोद्दिष्ट
पार्वण श्राद्ध अपराह्न व्यापिनी (सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से लेकर बाहरवें मुहूर्त तक का काल अपराह्न काल होता है।) मृत्यु तिथि के दिन किया जाता है, जबकि एकोद्दिष्ट श्राद्ध मध्याह्न व्यापिनी (सूर्योदय के बाद सातवें मुहूर्त से लेकर नवें मुहूर्त तक का काल मध्याह्न काल कहलाता है।) मृत्यु तिथि में किया जाता है।
पार्वण श्राद्ध में पिता, दादा, पड़-दादा, नाना, पड़-नाना तथा इनकी पत्नियों का श्राद्ध किया जाता है। गुरु, ससुर, चाचा, मामा, भाई, बहनोई, भतीजा, शिष्य, फूफा, पुत्र, मित्र व इन सभी की पत्नियों श्राद्ध एकोद्दिष्ट श्राद्ध में किया जाता है।
मृत संबंधी व उनसे जुड़ी श्राद्ध तिथि-
पितृ पक्ष श्राद्ध की तिथियां-
24 सितंबर 2018 पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर 2018 तृतिया श्राद्ध
28 सितंबर 2018 चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2018 सर्वपितृ अमावस्या
जिस संबंधी की मृत्यु जिस चंद्र तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध आश्विन कृष्णपक्ष की उसी तिथि के दुबारा आने पर किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी तिथि को किया जाता है। विमान दुर्घटना, सर्प के काटने, जहर, शस्त्र प्रहार आदि से मृत्यु को प्राप्त हुए संबंधियों का श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए। जिन संबंधियों की मृत्यु तिथि पता न हो उनका श्राद्ध आश्विन अमावस्या को किया जाता है। जिन लोगों की मृत्यु तिथि पूर्णिमा हो उनका श्राद्ध भाद्रपद पूर्णिमा अथवा आश्विन अमावस्या को किया जाता है। नाना, नानी का श्राद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है।
श्राद्ध करने की विधि-
श्राद्ध तिथि के दिन प्रातःकाल उठकर किसी पवित्र नदी अथवा घर में ही स्नान करके पितरों के नाम से तिल, चावल(अक्षत) और कुशा घास हाथ में लेकर पितरों को जलांजलि अर्पित करें। इसके उपरांत मध्याह्न काल में श्राद्ध कर्म करें और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर स्वयं भोजन करें। शास्त्रानुसार जिस स्त्री के कोई पुत्र न हों वह स्वयं अपने पति का श्राद्ध कर सकती है। इस दिन गया तीर्थ में पितरों के निमित्त श्राद्ध करने के विशेष माहात्म्य माना जाता है। प्रायः परिवार का मुखिया या सबसे बड़ा पुरुष ही श्राद्ध कार्य करता है।
उपरोक्त विधि से जिस परिवार में श्राद्ध किया जाता है, वहां यशस्वी लोग उत्पन्न होते हैं और व्यक्ति आरोग्य रहता है। ऐसा विश्वास है कि श्राद्ध से प्रसन्न होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को आयु, धन, विद्या, सुख-संपति आदि प्रदान करते हैं। पितरों के पूजन से मनुष्य को आयु, पुत्र, यश-कीर्ति, लक्ष्मी आदि की प्राप्त सहज ही हो जाती है।
कैसे मिलता है पित्रों को आहार
श्रद्धया
दीयते यत् तत् श्राद्धम्।’
श्राद्ध की वस्तुएं
पितरों को कैसे मिलती हैं?
प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं
कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है?
कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न-भिन्न होती
हैं–कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई
चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है। तब मन में यह शंका
होती है कि छोटे से पिण्ड से अलग-अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है?
इस शंका का स्कन्दपुराण में बहुत सुन्दर समाधान मिलता है।
एक बार राजा करन्धम ने महायोगी
महाकाल से पूछा 'मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिण्डदान किया जाता है तो वह जल, पिण्ड
आदि तो यहीं रह जाता है फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे
पितरों को तृप्ति होती है?’
भगवान महाकाल ने बताया कि–विश्व नियन्ता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके
अनुरुप होकर पितरों के पास पहुंचती है। इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि।
पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं,
दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गयी स्तुतियों से ही
प्रसन्न हो जाते हैं। वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं
और सभी जगह पहुंच सकते हैं। पांच तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति–इन नौ
तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर दसवें तत्व के रूप में साक्षात्
भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं। इसलिए देवता और पितर गन्ध व रसतत्व से
तृप्त होते हैं। शब्दतत्व से रहते हैं और स्पर्शतत्व को ग्रहण करते हैं। पवित्रता
से ही वे प्रसन्न होते हैं और वर देते हैं।
पितरों का आहार है
अन्न-जल का सारतत्व
जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है,
पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार
अन्न का सार-तत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं।
शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है।
किस रूप में पहुंचता
है पितरों को आहार ?
नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो
अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है, विश्वेदेव
एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं। यदि पितर
देवयोनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें ‘अमृत’
होकर प्राप्त होता है। यदि गन्धर्व बन गए हैं तो वह अन्न उन्हें
भोगों के रूप में प्राप्त होता है। यदि पशुयोनि में हैं तो वह अन्न तृण के रूप में
प्राप्त होता है। नागयोनि में वायुरूप से, यक्षयोनि में
पानरूप से, राक्षसयोनि में आमिषरूप में, दानवयोनि में मांसरूप में, प्रेतयोनि में रुधिररूप
में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता
हैं।
जिस प्रकार बछड़ा झुण्ड में अपनी
मां को ढूंढ़ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र,
हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मन्त्र
पितरों के पास पहुंचा देते हैं। जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर
गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।
श्रीराम द्वारा श्राद्ध में
आमन्त्रित ब्राह्मणों में सीताजी ने किए राजा दशरथ व पितरों के दर्शन
श्राद्ध में आमन्त्रित ब्राह्मण
पितरों के प्रतिनिधिरूप होते हैं। एक बार पुष्कर में श्रीरामजी अपने पिता दशरथजी
का श्राद्ध कर रहे थे। रामजी जब ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे तो सीताजी वृक्ष की
ओट में खड़ी हो गयीं। ब्राह्मण-भोजन के बाद रामजी ने जब सीताजी से इसका कारण पूछा
तो वे बोलीं–
श्राद्ध करने से मिलते हैं ये 6 पवित्र लाभ –
‘मैंने जो आश्चर्य देखा, उसे
आपको बताती हूँ। आपने जब नाम-गोत्र का उच्चारणकर अपने पिता-दादा आदि का आवाहन किया
तो वे यहां ब्राह्मणों के शरीर में छायारूप में सटकर उपस्थित थे। ब्राह्मणों के
शरीर में मुझे अपने श्वसुर आदि पितृगण दिखाई दिए फिर भला मैं मर्यादा का उल्लंघन
कर वहां कैसे खड़ी रहती; इसलिए मैं ओट में हो गई।’
तुलसी से
पिण्डार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से
प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरुढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।
पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न
श्राद्ध से बढ़कर
और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र
उपाय है...
आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं
पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात्
पितृपूजनात्।। (यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)
यमराजजी का कहना है
कि–
* श्राद्ध-कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।
* पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।
* परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।
* श्राद्ध-कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश
व पुष्टि प्रदान करता है।
* पितरगण स्वास्थ्य,
बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।
* श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं
रहता वरन् वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।
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