Thursday 4 January 2018

गणेश चतुर्थी को सर्वप्रथम सकट चौथ की कथा का उल्लेख कब और कहां एवं

गणेश चतुर्थी को सर्वप्रथम सकट चौथ की कथा का उल्लेख कब और कहां एवं इसका महात्म्य :-
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मित्रों , यह पर्व प्रति वर्ष माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष सकट चौथ ०५ जनवरी २०१८ (शुक्रवार) को है।

इस दिन रात्रि के समय चंद्र उदय होने के बाद चन्द्र को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं  ब्रत तोड़ती हैं।

सकट चतुर्थी के दिन महिलाएं सुख-सौभाग्य, संतान की समृद्धि और सर्वत्र कल्याण की इच्छा से प्रेरित होकर व्रत रखती हैं।

  पदम पुराण के अनुसार इस व्रत को स्वयं भगवान गणेश ने मां पार्वती को बताया था। वैसे तो हर महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी 'गणेश चतुर्थी' कहलाती है। लेकिन माघ मास की चतुर्थी 'सकट चौथ' कहलाती है।
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 पदम पुराण के अनुसार आज ही के दिन
 ‎चतुर्थी तिथि को भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था और चतुर्थी तिथि के दिन ही कार्तिकेय के साथ पृथ्वी की परिक्रमा लगाने की प्रतिस्पर्धा में उन्होंने पृथ्वी की बजाय भोलेनाथ और मां पार्वती की सात बार परिक्रमा की थी। तब शिवजी ने प्रसन्न होकर देवों में प्रमुख मानते हुए उनको प्रथम पूजा का अधिकार दिया था।

  सकट चौथ व्रत की विधि :-

         भालचंद्र गणेश की पूजा सकट चौथ को की जाती है। प्रात:काल नित्य क्रम से निवृत होकर षोड्शोपचार विधि से गणेश जी की पूजा करें। निम्न श्लोक पढ़कर गणेश जी की वंदना करें :-

गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥

इसके बाद भालचंद्र गणेश का ध्यान करके पुष्प अर्पित करें।
पूरे दिन मन ही मन श्री गणेश जी के नाम का जप करें । सुर्यास्त के बाद स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र पहन लें । अब विधिपूर्वक( अपने घरेलु परम्परा के अनुसार ) गणेश जी का पूजन करें । एक कलश में जल भर कर रखें । धूप-दीप अर्पित करें । नैवेद्य के रूप में तिल तथा गुड़ के बने हुए लड्डु, ईख, गंजी(शकरकंद), गुड़ तथा घी अर्पित करें।

यह नैवेद्य रात्रि भर बांस के बने हुए डलिया(टोकरी) से ढ़ंककर यथावत् रख दिया जाता है । पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की सुख समृद्धि के लिये व्रत रखती है। इस ढ़ंके हुए नैवेद्य को पुत्र ही खोलता है तथा भाई बंधुओं में बांटता है। ऐसी मान्यता है कि इससे भाई-बंधुओं में आपसी प्रेम-भावना की वृद्धि होती है।

 अलग-अलग राज्यों मे अलग-अलग प्रकार के तिल और गुड़ के लड्डु बनाये जाते हैं। तिल के लड्डु बनाने हेतु तिल को भूनकर ,गुड़ की चाशनी में मिलाया जाता है ,फिर तिलकूट का पहाड़ बनाया जाता है, कहीं-कहीं पर तिलकूट का बकरा भी बनाते हैं। तत्पश्चात् गणेश पूजा करके तिलकूट के बकरे की गर्दन घर का कोई बच्चा काट देता है।

गणेश पूजन के बाद चंद्रमा को कलश से अर्घ्य अर्पित करें । धूप-दीप दिखायें। चंद्र देव से अपने घर-परिवार की सुख और शांति के लिये प्रार्थना करें। इसके बाद एकाग्रचित होकर कथा सुनें अथवा सुनायें । सभी उपस्थित जनों में प्रसाद बांट दें।

नोट-अपने घरेलू परंपरा के अनुसार ही इस पूजन को करना चाहिए।

           आचार्य राजेश कुमार
  ‎ Divyansh Jyotish Kendra
  ‎mail id:-
  ‎rajpra.infocom@gmail.com

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