Sunday 16 January 2022

करियर निर्माण में बृहस्पति या गुरु ग्रह की भूमिका


जिन व्यक्तियों की कुंडली में गुरु ग्रह बलवान स्थिति में होता है ऐसे व्यक्तियों के अंदर ज्ञान की कभी कोई कमी नहीं रहती है। साथ ही ऐसे व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में बिना किसी बाधा और परेशानी के आगे बढ़ते हैं। जिस व्यक्ति की कुंडली में गुरु ग्रह या बृहस्पति ग्रह अनुकूल स्थिति में होते हैं ऐसे व्यक्तियों का करियर खराब से खराब परिस्थिति के बावजूद बृहस्पति की दशा अंतर्दशा में या अनुकूल गोचर होने पर करियर में सफलता अवश्य प्राप्त होती है।

ज्योतिष में गुरु ग्रह को दर्शन, धर्म, ज्ञान, आदि का कारक माना गया है। यदि कुंडली में बृहस्पति ग्रह मजबूत स्थिति में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति वकील, बैंक मैनेजर, बड़ी कंपनी में डायरेक्टर, ज्योतिषी, शिक्षक, शेयर मार्केट में उच्च पद पर काम करने वाले, शिक्षा क्षेत्र में, शिक्षण संस्थानों के संचालक, हलवाई या फिल्म निर्माता, आदि बन सकते हैं।

कार्यों में मुद्रा का क्रय-विक्रय, कूटनीतिक सलाहकार, चिकित्सा, पुजारी तथा धर्म-कर्म के कार्य, प्रवक्ता, धार्मिक संस्थानों के अधिकारी व ट्रस्टी, संचालक, दार्शनिक, साहित्यकार, कैशियर, मंत्री और राजनीतिज्ञ आदि भी बृहस्पति की ही देन हैं, इसलिए जिन व्यक्तियों की कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत है या बृहस्पति अनुकूल स्थिति में होता है वह इन क्षेत्रों में भी सफलता कमा सकते हैं।

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विभिन्न भावों में गुरु ग्रह का प्रभाव 

गुरु की भावगत स्थिति सामान्य फल 
प्रथम भाव में गुरुव्यक्ति ज्ञानी और अच्छा परामर्शदाता बन सकता है।
दूसरे भाव में गुरुव्यक्ति शानदार वक्ता और प्रवक्ता बन सकता है।
तीसरे भाव में गुरुव्यक्ति धार्मिक आचरण वाला होता है और पुजारी बन सकता है।
चौथे भाव में गुरु व्यक्ति को पैतृक कार्यों से लाभ मिल सकता है।
पंचम भाव में गुरु व्यक्ति को शिक्षा में सफलता मिलती है और उसी से धन प्राप्त हो सकता है। 
छठे भाव में गुरु इस स्थिति को अनुकूल नहीं माना जाता है क्योंकि इससे व्यक्ति को बीमारी आदि की आशंका बढ़ जाती है
सप्तम भाव में गुरु व्यक्ति को व्यापार में लाभ मिल सकता है। 
अष्टम भाव में गुरु व्यक्ति आध्यात्मिक क्षेत्र में झुकाव रखता है और उसमें सफलता हासिल कर सकता है।
नवम भाव में गुरु व्यक्ति के यश व कीर्ति में इजाफ़ा होता है। 
दशम भाव में गुरु व्यक्ति कार्यक्षेत्र में निपुण होता है और तमाम सफलता हासिल कर सकता है। 
एकादश भाव में गुरु व्यक्ति कथावाचक और उपदेशक बन सकता है। 
द्वादश भाव में गुरु व्यक्ति धर्म और परोपकार में धन 

Sunday 6 December 2020

 क्या वाकई रत्न आपके भविष्य को सुधार सकते हैं, क्या रत्नो मे इतनी ताकत होती है की इंसान की जिंदगी बदल दे ? / हमारे जीवन मे इसका कितना महत्व है? क्यों पहनते हैं कुछ लोग रत्न ?

प्राचीन काल मे प्राप्त रत्नो का उल्लेख :-

प्राचीन काल से ही रत्न अपने आकर्षक रंगों, प्रभाव, आभा तथा बहुमूल्ता के कारण मानव को प्रभावित करते आ रहे है। अग्नि पुराण ,गरुण पुराण, देवी भागवत पुराण, महाभारत आदि अनेक ग्रंथों में रत्नों का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में सात रत्नों का उल्लेख है।
तुलसीदास ने रामायण के उत्तर काण्ड में अवध पुरी कि शोभा का वर्णन करते हुए मूंगा, पन्ना, स्फटिक और हीरे आदि रत्नों का उल्लेख किया है।
कौटिल्य ने भी अपने अर्थ शास्त्र में रत्नों के गुण दोषों का उल्लेख किया है। वराहमिहिर कि बृहत्संहिता के रत्न परीक्षा ध्याय में नव रत्नों का विस्तार से वर्णन किया गया है। ईसाई, जैन और बौद्ध धर्म कि अनेक प्राचीन पुस्तकों में भी रत्नों के विषय में लिखा हुआ मिलता है ।


रत्नो की उत्पत्ति :-

रत्नों कि उत्पत्ति के विषय में अनेक पौराणिक मान्यताएं हैं। अग्नि पुराण के अनुसार जब दधीचि ऋषि कि अस्थियों से देवराज इंद्र का प्रसिद्ध अस्त्र वज्र बना था तो जो चूर्ण अवशेष पृथ्वी पर गिरा था उनसे ही रत्नों कि उत्पत्ति हुई थी। गरुण-पुराण के अनुसार बल नाम के दैत्य के शरीर से रत्नों कि खानें बनी। समुद्र मंथन के समय प्राप्त अमृत कि कुछ बूंदे छलक कर पृथ्वी पर गिरी जिनसे रत्नों कि उत्पत्ति हुई, ऐसी भी मान्यता है ।
मूलरूप से असली रत्नो की उत्पत्ति पहाड़ों , पेड़ पौधों ,जीव जंतुओं से ही होती है ।
रत्न केवल आभूषणों कि शोभा में ही वृद्धि नहीं करते अपितु इनमें दैवीय शक्ति भी निहित रहती है, ऐसी मान्यता विश्व भर में पुरातन काल से चली आ रही है। महाभारत में स्मयन्तक मणि का वर्णन है जिसके प्रभाव से मणि के आस पास के क्षेत्र में सुख समृद्धि, आरोग्यता तथा दैवीय कृपा रहती थी।

पश्चिमी देशों में बच्चों को अम्बर कि माला इस विश्वास से पहनाई जाती है कि इस से उनके दांत बिना कष्ट के निकल आयेंगे। यहूदी लोग कटैला रत्न भयानक स्वप्नों से बचने के लिए धारण करते हैं। प्राचीन रोम निवासी, बच्चों के पालने में मूंगे के दाने लटका देते थे ताकि उन्हें अरिष्टों से भय न रहे। जेड रत्न को चीन में आरोग्यता देने वाला माना जाता है ।
आधुनिक युग मे रत्नो की व्याख्या कुछ इस प्रकार है की –
यदि आपकी शारीरिक व्याधियों( बीमारियों ) को ठीक करने हेतु मेडिकल साइन्स मे दवा या कोई इन्स्ट्रुमेंट दिया जाता है उदाहरण के लिए जैसे आपकी दृष्टि मे दोष होने पर डॉक्टर उतने पावर का चश्मा बताते हैं जितनी आपकी आँख कमजोर होती है और ऊस चश्मे को पहनतें ही आपका दृष्टि दोष दूर हो जाता है ।
ठीक इसी प्रकार आपके जन्म कालीन ग्रह के कमजोर होने पर यदि जानकार astrologer ठीक उतने ही पावर का रत्न धारण करा दे जितने पावर की उस ग्रह को आवश्यकता है तो उस रत्न के धारण करने पर आपकी उन समस्याओं का समाधान होने लगता है जिस ज़िम्मेदारी को प्रकृति ने आपके जीवन मे उस ग्रह को दे रखा था । लेकिन कभी भी नीच और मरकेश ग्रहों का रत्न धारण करने की सलाह नहीं दी जाती है।
वैसे तो रत्नों कि संख्या बहुत है पर उनमें 84 रत्नों को ही महत्व दिया गया है। इनमें भी प्रतिष्ठित 9 को रत्न और शेष को उपरत्न कि संज्ञा दी गई है।

नवरत्न : 1.माणिक्य 2.नीलम 3.हीरा 4.पुखराज 5.पन्ना 6.मूंगा 7.मोती 8.गोमेद 9.लहसुनिया

उपरत्न : 10 लालड़ी 11.फिरोजा 12.एमनी 13.जबरजदद 14.ओपल 15.तुरमली 16.नरम 17.सुनैला 18.कटैला 19.संग-सितारा 20.सफ ेद बिल्लोर 21.गोदंती 22.तामड़ा 23.लुधिआ 24.मरियम 25.मकनातीस 26.सिंदूरिया 27.नीली 28.धुनेला 29.बैरूंज 30.मरगज 31.पित्तोनिया 32.बांसी 33.दुरवेजफ 34.सुलेमानी 35.आलेमानी 36.जजे मानी 37.सिवार 38.तुरसावा 39.अहवा 40.आबरी 41.लाजवर्त 42.कुदरत 43.चिट्टी 44.संग-सन 45.लारू 46.मारवार 47.दाने-फिरंग 48.कसौटी 49.दारचना 50.हकीक 51.हालन 52.सीजरी 53.मुबेनज्फ 54.कहरुवा 55.झना 56.संग बसरी 57.दांतला 58.मकड़ा 59.संगीया 60.गुदड़ी 61.कामला 62.सिफरी 63.हरीद 64.हवास 65.सींगली 66.डेड़ी 67.हकीक 68.गौरी 69.सीया 70.सीमाक 71.मूसा 72.पनघन 73.अम्लीय 74.डूर 75.लिलियर 76.खारा 77.पारा-जहर 78.सेलखड़ी 79.जहर मोहरा 80.रवात 81.सोना माखी 82.हजरते ऊद 83.सुरमा 84.पारस

उपरोक्त उपरत्नों में से कुछ उपरत्न ही आज कल प्रचलित हैं। किस ग्रह का कौन सा रत्न है, उसे कब और किस प्रकार धारण करना चाहिए, रत्नों और उपरत्नों कि और क्या विशेषताएं हैं, किस रोग में किस रत्न को धारण करने से लाभ होगा इत्यादि की सलाह आपको एक्सपर्ट जरूर लेनी चाहिए।

रत्नों की शक्ति:-

रत्नों में अद्भूत शक्ति होती है. रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमन पर पहुंचा सकता है तो किसी को आसमान से ज़मीन पर लाने की क्षमता भी रखता है. रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकर से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए. ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए. रत्न धारण करते समय ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा का भी ख्याल रखना चाहिए. रत्न पहनते समय मात्रा का ख्याल रखना आवश्यक होता है. अगर मात्रा सही नहीं हो तो फल प्राप्ति में विलम्ब या नहीं होता है.

बिना सिद्धि के रत्न कभी काम नहीं करते -

यही कारण है कि व्यापारी दिन भर लगभग सभी रत्न को स्पर्श करता है लेकिन उस कोई असर नहीं होता है। अतः रत्न को धारण करने से पूर्व उसे सिद्ध जरूर करा लेना चाहिए ।
सिद्धि के लिए किसी की मदद भी ली जा सकती है। शनि और राहु के रत्न कुंडली के सूक्ष्म निरीक्षण के बाद ही पहनना चाहिए अन्यथा इनसे भयंकर नुकसान भी हो सकता है।

Divyansh Jyotish Kendra - 9454320396

Saturday 26 September 2020


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Monday 15 June 2020

आने वाला सूर्य ग्रहण क्या इस पृथ्वी पर होने वाले किसी अनहोनी का संकेत तो नहीं....! क्या कलयुग की एक पूर्ण आहुति इसी वर्ष में है ?
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सूर्यग्रहण का ज्योतिषीय कारण :-

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एक साल में तीन या उससे अधिक ग्रहण शुभ नहीं माने जाते हैं। 21 जून 2020 को लाग्ने वाले सूर्य ग्रहन क्या पृथ्वी पर कोई विध्वंसक घटना का संकेत है ?

इस ग्रहण का कुप्रभाव  मानव जीवन को काफी विचलित कर सकते हैं. इस ग्रहणकाल में 6-6 ग्रहों (बुद्ध,गुरु,शुक्र,शनि और राहु - केतु) के वक्री होने से तूफान, भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं, गृह युद्ध, अग्नि की घटनाओं,अनहोनी की संभावना बढ़ जाती है. इस पृथ्वी के अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
इस ग्रहण का सूतक काल करीब 12 घंटे पहले लग जाएगा. सूर्यग्रहण का सूतक काल 20 जून की रात 10 बजकर 20 मिनट से लग जाएगा और जो सूर्यग्रहण के साथ खत्म होगा

सूर्यग्रहण का वैज्ञानिक कारण

विज्ञान के अनुसार, सूर्यग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब चंद्रमा घूमते-घूमते सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य की चमकती रोशनी चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ती। चंद्रमा के कारण सूर्य पूर्ण या आंशिक रूप से ढकने लगता है और इसी को सूर्यग्रहण कहा जाता है।

21 जून को दो बड़ी खगोलीय घटनाएं होने वाली हैं। 

पहली घटना सूर्यग्रहण है। 

दूसरी घटना, 21 को ही साल का सबसे बड़ा दिन भी होगा। ये सदी का दूसरा ऐसा सूर्यग्रहण है, जो 21 जून को हो रहा है। इससे पहले 2001 में 21 जून को सूर्य ग्रहण हुआ था।

ज्योतिष के नजरिये से 21 जून, यानी रविवार को होने वाले सूर्य ग्रहण पर ग्रहों की ऐसी स्थिति बन रही है, जो 500 सालों में नहीं बनी। इस सूर्य ग्रहण के समय 6 ग्रह वक्री रहेंगे। यह स्थिति देश और दुनिया के लिए ठीक नहीं है।

6 ग्रहों के वक्री होने से ग्रहण खास होगा

     मिथुन राशि में राहु सूर्य-चंद्रमा को पीड़ित कर रहा है। मंगल  मीन राशि  में है और मिथुन राशि के ग्रहों पर दृष्टि डाल रहा है। इस दिन बुध, गुरु, शुक्र और शनि वक्री रहेंगे। राहु और केतु हमेशा वक्री ही रहते है। 

आगजनी, विवाद और तनाव , प्राकृतिक आपदाएं, युद्ध, विभिन्न नई बीमारियां होने के हालात बन सकते हैं

 वराहमिहिर के ज्योतिष ग्रंथ बृहत्संहिता के अनुसार इस ग्रहण पर मंगल की दृष्टि पड़ने से देश में आगजनी, विवाद और तनाव की स्थितियां बन सकती हैं। आषाढ़ महीने में ये ग्रहण होने से नदी के किनारे बसे शहरों पर भी इसका अशुभ असर पड़ेगा। वहीं अफगानिस्तान और चीन के लिए भी ग्रहण अशुभ रहेगा।

सूर्य ग्रहण कब और कहां दिखेगा 

रविवार यानी 21 जून 2020  को सूर्य ग्रहण सुबह करीब 10.20 बजे शुरू होगा और दोपहर 1.49 बजे खत्म होगा। इसका सूतक 12 घंटे पहले यानी 20 जून को रात 10.20 पर शुरू हो जाएगा। जो कि ग्रहण के साथ ही खत्म होगा। ये ग्रहण भारत, नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूएई, इथियोपिया और कांगो में दिखाई देगा।

12 में से 8 राशियों के लिए अशुभ 

अशुभ - वृष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ और मीन

सामान्य - मेष, मकर, कन्या और सिंह

क्या करें और क्या नहीं ----
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ग्रहण के समय घर से बाहर नहीं निकलें। 

ग्रहण से पहले स्नान करें। 

तीर्थों पर न जा सकें तो घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाएं।

 ग्रहण के दौरान भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें। श्रद्धा के अनुसार दान करना चाहिए। 

मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार सूर्य ग्रहण के दौरान सोना, यात्रा करना, किसी भी वस्तु में  छेद करना, तिनका तोड़ना, लकड़ी काटना, फूल तोड़ना, बाल और नाखून काटना, कपड़े धोना और सिलना, दांत साफ करना, भोजन करना, शारीरिक संबंध बनाना, घुड़सवारी, हाथी की सवारी करना और जनवरी का दूध निकालना वर्जित  है।

आचार्य राजेश कुमार