Sunday 6 December 2020

 क्या वाकई रत्न आपके भविष्य को सुधार सकते हैं, क्या रत्नो मे इतनी ताकत होती है की इंसान की जिंदगी बदल दे ? / हमारे जीवन मे इसका कितना महत्व है? क्यों पहनते हैं कुछ लोग रत्न ?

प्राचीन काल मे प्राप्त रत्नो का उल्लेख :-

प्राचीन काल से ही रत्न अपने आकर्षक रंगों, प्रभाव, आभा तथा बहुमूल्ता के कारण मानव को प्रभावित करते आ रहे है। अग्नि पुराण ,गरुण पुराण, देवी भागवत पुराण, महाभारत आदि अनेक ग्रंथों में रत्नों का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में सात रत्नों का उल्लेख है।
तुलसीदास ने रामायण के उत्तर काण्ड में अवध पुरी कि शोभा का वर्णन करते हुए मूंगा, पन्ना, स्फटिक और हीरे आदि रत्नों का उल्लेख किया है।
कौटिल्य ने भी अपने अर्थ शास्त्र में रत्नों के गुण दोषों का उल्लेख किया है। वराहमिहिर कि बृहत्संहिता के रत्न परीक्षा ध्याय में नव रत्नों का विस्तार से वर्णन किया गया है। ईसाई, जैन और बौद्ध धर्म कि अनेक प्राचीन पुस्तकों में भी रत्नों के विषय में लिखा हुआ मिलता है ।


रत्नो की उत्पत्ति :-

रत्नों कि उत्पत्ति के विषय में अनेक पौराणिक मान्यताएं हैं। अग्नि पुराण के अनुसार जब दधीचि ऋषि कि अस्थियों से देवराज इंद्र का प्रसिद्ध अस्त्र वज्र बना था तो जो चूर्ण अवशेष पृथ्वी पर गिरा था उनसे ही रत्नों कि उत्पत्ति हुई थी। गरुण-पुराण के अनुसार बल नाम के दैत्य के शरीर से रत्नों कि खानें बनी। समुद्र मंथन के समय प्राप्त अमृत कि कुछ बूंदे छलक कर पृथ्वी पर गिरी जिनसे रत्नों कि उत्पत्ति हुई, ऐसी भी मान्यता है ।
मूलरूप से असली रत्नो की उत्पत्ति पहाड़ों , पेड़ पौधों ,जीव जंतुओं से ही होती है ।
रत्न केवल आभूषणों कि शोभा में ही वृद्धि नहीं करते अपितु इनमें दैवीय शक्ति भी निहित रहती है, ऐसी मान्यता विश्व भर में पुरातन काल से चली आ रही है। महाभारत में स्मयन्तक मणि का वर्णन है जिसके प्रभाव से मणि के आस पास के क्षेत्र में सुख समृद्धि, आरोग्यता तथा दैवीय कृपा रहती थी।

पश्चिमी देशों में बच्चों को अम्बर कि माला इस विश्वास से पहनाई जाती है कि इस से उनके दांत बिना कष्ट के निकल आयेंगे। यहूदी लोग कटैला रत्न भयानक स्वप्नों से बचने के लिए धारण करते हैं। प्राचीन रोम निवासी, बच्चों के पालने में मूंगे के दाने लटका देते थे ताकि उन्हें अरिष्टों से भय न रहे। जेड रत्न को चीन में आरोग्यता देने वाला माना जाता है ।
आधुनिक युग मे रत्नो की व्याख्या कुछ इस प्रकार है की –
यदि आपकी शारीरिक व्याधियों( बीमारियों ) को ठीक करने हेतु मेडिकल साइन्स मे दवा या कोई इन्स्ट्रुमेंट दिया जाता है उदाहरण के लिए जैसे आपकी दृष्टि मे दोष होने पर डॉक्टर उतने पावर का चश्मा बताते हैं जितनी आपकी आँख कमजोर होती है और ऊस चश्मे को पहनतें ही आपका दृष्टि दोष दूर हो जाता है ।
ठीक इसी प्रकार आपके जन्म कालीन ग्रह के कमजोर होने पर यदि जानकार astrologer ठीक उतने ही पावर का रत्न धारण करा दे जितने पावर की उस ग्रह को आवश्यकता है तो उस रत्न के धारण करने पर आपकी उन समस्याओं का समाधान होने लगता है जिस ज़िम्मेदारी को प्रकृति ने आपके जीवन मे उस ग्रह को दे रखा था । लेकिन कभी भी नीच और मरकेश ग्रहों का रत्न धारण करने की सलाह नहीं दी जाती है।
वैसे तो रत्नों कि संख्या बहुत है पर उनमें 84 रत्नों को ही महत्व दिया गया है। इनमें भी प्रतिष्ठित 9 को रत्न और शेष को उपरत्न कि संज्ञा दी गई है।

नवरत्न : 1.माणिक्य 2.नीलम 3.हीरा 4.पुखराज 5.पन्ना 6.मूंगा 7.मोती 8.गोमेद 9.लहसुनिया

उपरत्न : 10 लालड़ी 11.फिरोजा 12.एमनी 13.जबरजदद 14.ओपल 15.तुरमली 16.नरम 17.सुनैला 18.कटैला 19.संग-सितारा 20.सफ ेद बिल्लोर 21.गोदंती 22.तामड़ा 23.लुधिआ 24.मरियम 25.मकनातीस 26.सिंदूरिया 27.नीली 28.धुनेला 29.बैरूंज 30.मरगज 31.पित्तोनिया 32.बांसी 33.दुरवेजफ 34.सुलेमानी 35.आलेमानी 36.जजे मानी 37.सिवार 38.तुरसावा 39.अहवा 40.आबरी 41.लाजवर्त 42.कुदरत 43.चिट्टी 44.संग-सन 45.लारू 46.मारवार 47.दाने-फिरंग 48.कसौटी 49.दारचना 50.हकीक 51.हालन 52.सीजरी 53.मुबेनज्फ 54.कहरुवा 55.झना 56.संग बसरी 57.दांतला 58.मकड़ा 59.संगीया 60.गुदड़ी 61.कामला 62.सिफरी 63.हरीद 64.हवास 65.सींगली 66.डेड़ी 67.हकीक 68.गौरी 69.सीया 70.सीमाक 71.मूसा 72.पनघन 73.अम्लीय 74.डूर 75.लिलियर 76.खारा 77.पारा-जहर 78.सेलखड़ी 79.जहर मोहरा 80.रवात 81.सोना माखी 82.हजरते ऊद 83.सुरमा 84.पारस

उपरोक्त उपरत्नों में से कुछ उपरत्न ही आज कल प्रचलित हैं। किस ग्रह का कौन सा रत्न है, उसे कब और किस प्रकार धारण करना चाहिए, रत्नों और उपरत्नों कि और क्या विशेषताएं हैं, किस रोग में किस रत्न को धारण करने से लाभ होगा इत्यादि की सलाह आपको एक्सपर्ट जरूर लेनी चाहिए।

रत्नों की शक्ति:-

रत्नों में अद्भूत शक्ति होती है. रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमन पर पहुंचा सकता है तो किसी को आसमान से ज़मीन पर लाने की क्षमता भी रखता है. रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकर से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए. ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए. रत्न धारण करते समय ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा का भी ख्याल रखना चाहिए. रत्न पहनते समय मात्रा का ख्याल रखना आवश्यक होता है. अगर मात्रा सही नहीं हो तो फल प्राप्ति में विलम्ब या नहीं होता है.

बिना सिद्धि के रत्न कभी काम नहीं करते -

यही कारण है कि व्यापारी दिन भर लगभग सभी रत्न को स्पर्श करता है लेकिन उस कोई असर नहीं होता है। अतः रत्न को धारण करने से पूर्व उसे सिद्ध जरूर करा लेना चाहिए ।
सिद्धि के लिए किसी की मदद भी ली जा सकती है। शनि और राहु के रत्न कुंडली के सूक्ष्म निरीक्षण के बाद ही पहनना चाहिए अन्यथा इनसे भयंकर नुकसान भी हो सकता है।

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Saturday 26 September 2020


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Monday 15 June 2020

आने वाला सूर्य ग्रहण क्या इस पृथ्वी पर होने वाले किसी अनहोनी का संकेत तो नहीं....! क्या कलयुग की एक पूर्ण आहुति इसी वर्ष में है ?
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सूर्यग्रहण का ज्योतिषीय कारण :-

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एक साल में तीन या उससे अधिक ग्रहण शुभ नहीं माने जाते हैं। 21 जून 2020 को लाग्ने वाले सूर्य ग्रहन क्या पृथ्वी पर कोई विध्वंसक घटना का संकेत है ?

इस ग्रहण का कुप्रभाव  मानव जीवन को काफी विचलित कर सकते हैं. इस ग्रहणकाल में 6-6 ग्रहों (बुद्ध,गुरु,शुक्र,शनि और राहु - केतु) के वक्री होने से तूफान, भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं, गृह युद्ध, अग्नि की घटनाओं,अनहोनी की संभावना बढ़ जाती है. इस पृथ्वी के अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
इस ग्रहण का सूतक काल करीब 12 घंटे पहले लग जाएगा. सूर्यग्रहण का सूतक काल 20 जून की रात 10 बजकर 20 मिनट से लग जाएगा और जो सूर्यग्रहण के साथ खत्म होगा

सूर्यग्रहण का वैज्ञानिक कारण

विज्ञान के अनुसार, सूर्यग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब चंद्रमा घूमते-घूमते सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य की चमकती रोशनी चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ती। चंद्रमा के कारण सूर्य पूर्ण या आंशिक रूप से ढकने लगता है और इसी को सूर्यग्रहण कहा जाता है।

21 जून को दो बड़ी खगोलीय घटनाएं होने वाली हैं। 

पहली घटना सूर्यग्रहण है। 

दूसरी घटना, 21 को ही साल का सबसे बड़ा दिन भी होगा। ये सदी का दूसरा ऐसा सूर्यग्रहण है, जो 21 जून को हो रहा है। इससे पहले 2001 में 21 जून को सूर्य ग्रहण हुआ था।

ज्योतिष के नजरिये से 21 जून, यानी रविवार को होने वाले सूर्य ग्रहण पर ग्रहों की ऐसी स्थिति बन रही है, जो 500 सालों में नहीं बनी। इस सूर्य ग्रहण के समय 6 ग्रह वक्री रहेंगे। यह स्थिति देश और दुनिया के लिए ठीक नहीं है।

6 ग्रहों के वक्री होने से ग्रहण खास होगा

     मिथुन राशि में राहु सूर्य-चंद्रमा को पीड़ित कर रहा है। मंगल  मीन राशि  में है और मिथुन राशि के ग्रहों पर दृष्टि डाल रहा है। इस दिन बुध, गुरु, शुक्र और शनि वक्री रहेंगे। राहु और केतु हमेशा वक्री ही रहते है। 

आगजनी, विवाद और तनाव , प्राकृतिक आपदाएं, युद्ध, विभिन्न नई बीमारियां होने के हालात बन सकते हैं

 वराहमिहिर के ज्योतिष ग्रंथ बृहत्संहिता के अनुसार इस ग्रहण पर मंगल की दृष्टि पड़ने से देश में आगजनी, विवाद और तनाव की स्थितियां बन सकती हैं। आषाढ़ महीने में ये ग्रहण होने से नदी के किनारे बसे शहरों पर भी इसका अशुभ असर पड़ेगा। वहीं अफगानिस्तान और चीन के लिए भी ग्रहण अशुभ रहेगा।

सूर्य ग्रहण कब और कहां दिखेगा 

रविवार यानी 21 जून 2020  को सूर्य ग्रहण सुबह करीब 10.20 बजे शुरू होगा और दोपहर 1.49 बजे खत्म होगा। इसका सूतक 12 घंटे पहले यानी 20 जून को रात 10.20 पर शुरू हो जाएगा। जो कि ग्रहण के साथ ही खत्म होगा। ये ग्रहण भारत, नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूएई, इथियोपिया और कांगो में दिखाई देगा।

12 में से 8 राशियों के लिए अशुभ 

अशुभ - वृष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ और मीन

सामान्य - मेष, मकर, कन्या और सिंह

क्या करें और क्या नहीं ----
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ग्रहण के समय घर से बाहर नहीं निकलें। 

ग्रहण से पहले स्नान करें। 

तीर्थों पर न जा सकें तो घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाएं।

 ग्रहण के दौरान भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें। श्रद्धा के अनुसार दान करना चाहिए। 

मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार सूर्य ग्रहण के दौरान सोना, यात्रा करना, किसी भी वस्तु में  छेद करना, तिनका तोड़ना, लकड़ी काटना, फूल तोड़ना, बाल और नाखून काटना, कपड़े धोना और सिलना, दांत साफ करना, भोजन करना, शारीरिक संबंध बनाना, घुड़सवारी, हाथी की सवारी करना और जनवरी का दूध निकालना वर्जित  है।

आचार्य राजेश कुमार

Sunday 26 April 2020


पुराणों के अनुसार कभी ना क्षय होने वाला समय, सर्व कार्य सिद्ध का समय "अक्षय तृतीया "/ पूजन का शुभ समय / पूजन विधि / लोक डाउन के कारण नहीं कर पाएंगे सोने का क्रय तो क्या क रें !
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प्रत्येक वर्ष यह पर्व बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में पूरे भारत वर्ष में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन प्रमुखता से लोग सोने चांदी, तांबे, पीतल तथा घर की अन्य आवश्यक वस्तुएं खरीदते हैं।
इस वर्ष 26 अप्रैल 2020 को अक्षय तृतीया पड़ रही है-
अक्षय तृतीया का क्या महत्व है?
सर्व सिद्ध मुहूर्त के रुप में भी अक्षय तृतीया का बहुत अधिक महत्व है। माना जाता है इस दिन बिना पंचांग या शुभ मुहूर्त देखे आप हर प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, वस्त्र आभूषण आदि की खरीदारी, जमीन या वाहन खरीदना आदि को कर सकते है। पुराणों में इस दिन पितरों का तर्पण, पिंडदान या अन्य किसी भी तरह का दान अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते है। इतना ही नहीं इस दिन किये जाने वाला जप, तप, हवन, दान और पुण्य कार्य भी अक्षय हो जाते है।
कहा जाता है अगर यह तिथि सोमवार और रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किये जाने वाले दान-पुण्य के कार्यों का फल और अधिक बढ़ जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी के पूजन का विधान है।
अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त -

वर्ष 2020 में अक्षय तृतीया 26 अप्रैल के दिन होगी।
अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त – प्रातः 05:45 से दोपहर 12:19 तक
तृतीया तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 25, 2020 को प्रातः 11:51 बजे तक
तृतीया तिथि समाप्त – अप्रैल 26, 2020 को अपरान्ह 01:22 ब जे तक

आज ही के दिन कई महापुरुषों का जन्म भी हुआ था । अक्षय तृतीया पर्व को कई नामों से जाना जाता है. इसे आ खातीज और वैशाख तीज भी कहा जाता है. . इस पर्व को भारतवर्ष के खास त्यौहारों की श्रेणी में रखा जाता है.  इस दिन स्नान, दान, जप, होम आदि अपने सामर्थ्य के अनुसार जितना भी किया जाएं, अक्षय रुप में प्राप्त होता है.
अक्षय तृतीया में सोना खरीदना बहुत शुभ माना गया है. इस दिन स्वर्णादि आभूषणों की ख़रीद-फरोख्त को भाग्य की शुभता से जोडा़ जाता है.
इस पर्व से अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं.
इसके साथ महाभारत के दौरान पांडवों के भगवान श्रीकृष्ण से अक्षय पात्र लेने का उल्लेख आता है.

इस दिन सुदामा भगवान श्री कृष्ण के पास मुट्ठी - भर भुने चावल प्राप्त करते हैं.

इस तिथि में भगवान के नर-नारायण, परशुराम, हयग्रीव रुप में अवतरित हुए थे. इसलिये इस दिन इन अवतारों की जयन्तियां मानकर इस दिन को उत्सव रुप में मनाया जाता है.
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी. इसी कारण से यह तिथि युग तिथि भी कहलाती है.
इसी दिन प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी खुलते हैं.  वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मन्दिर में केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं.
अक्षय तृतीया में पूजा, जप-तप, दान स्नानादि शुभ कार्यों का विशेष महत्व तथा फल रहता है. इस दिन गंगा इत्यादि पवित्र नदियों और तीर्थों में स्नान करने का विशेष फल प्राप्त होता है. यज्ञ, होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दान आदि कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है.
इस दिन किया गया दान का कभी क्षय नहीं होता :-
आज के दिन दान और क्रय करने का बड़ा ही महत्व है यदि आप लोक डाउन के कारण खरीददारी नहीं कर पा रहे हैं तो आज के दिन दान करें।
अक्षय तृ्तिया के दिन गर्मी की ऋतु में खाने-पीने, पहनने आदि के काम आने वाली और गर्मी को शान्त करने वाली सभी वस्तुओं का दान करना शुभ होता है. इस्के अतिरिक्त इस दिन जौ, गेहूं, चने, दही, चावल, खिचडी, ईश (गन्ना) का रस, ठण्डाई व दूध से बने हुए पदार्थ, सोना, कपडे, जल का घडा आदि दें. इस दिन पार्वती जी का पूजन भी करना शुभ रहता है.
अक्षत तृतीया व्रत एवं पूजा
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान इत्यादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रत या उपवास का संकल्प करें. पूजा स्थान पर विष्णु भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित कर पूजन आरंभ करें भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं, तत्पश्चात उन्हें चंदन, पुष्पमाला अर्पित करें.
पूजा में में जौ या जौ का सत्तू, चावल, ककडी और चने की दाल अर्पित करें तथा इनसे भगवान विष्णु की पूजा करें. इसके साथ ही विष्णु की कथा एवं उनके विष्णु सस्त्रनाम का पाठ करें.  पूजा समाप्त होने के पश्चात भगवान को भोग लाएं ओर प्रसाद को सभी भक्त जनों में बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें. सुख शांति तथा सौभाग्य समृद्धि हेतु इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती जी का पूजन भी किया जाता है.
पूरे भारत वर्ष में अक्षय तृतीया की खासी धूम रहती है. ह र कोई इस शुभ मुहुर्त के इंतजार में रहता है ताकी इस समय किया गया कार्य उसके लिए अच्छे फल लेकर आए. मान्यता है कि इस दिन होने वाले काम का कभी क्षय नहीं होता ।
इस तिथि के दिन महर्षि गुरु परशुराम का जन्म दिन होने के कारण इसे "परशुराम तीज" या "परशुराम जयंती" भी कहा जाता है. इस दिन गंगा स्नान का बडा भारी महत्व है. इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्नाता के लिए कलश, पंखा, खडाऊँ, छाता,सत्तू, ककडी, खरबूजा आदि फल, शक्कर आदि पदार्थ ब्राह्माण को दान करने चाहिए. उसी दिन चारों धामों में श्री बद्रीनाथ नारायण धाम के पाट खुलते है. इस दिन भक्तजनों को श्री बद्री नारायण जी का चित्र सिंहासन पर रख के मिश्री तथा चने की भीगी दाल से भोग लगाना चाहिए. भारत में सभी शुभ कार्य मुहुर्त समय के अनुसार करने का प्रचलन है अत: इस जैसे अनेकों महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इस शुभ तिथि का चयन किया जाता है, जिसे अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है।इस त्योहार का वर्णन भविष्य पुराण एवं पद्म पुराण में प्रमुखता से मिलता है।
    सधन्यवाद,
              
                   आचार्य राजेश कुमार

            Divyansh Jyotish kendra
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