Friday 21 February 2020

महा शिवरात्रि 2020 : यह शिवरात्रि है बहुत खास, जानिए इसका राज, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा / https://hindi.webdunia.com/shivratri-special/maha-shivratri-2020-shubh-muhurat-120020900018_1.html?contentType=article

Sunday 9 February 2020

महाशिवरात्रि के दिन आपकी कुंडली मे तीन – तीन ग्रह स्वराशि और उच्च  के होकर बना रहे हैं दुर्लभ संयोग / कैसे होते हैं महाशिवरात्रि के दिन जन्म लेने वाले बच्चे / इसका कैसा परिणाम मिलने वाला है आपको/ कैसे करें अपनी राशि अनुसार रुद्राभिषेक / महाशिवरात्रि की कथायेँ :-

“शिवरात्रि” का अर्थ है “भगवान शिव की महान रात्रि । ऐसे तो प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि का व्रत रखने का बड़ा महत्व है इस तरह सालभर में 12 शिवरात्रि व्रत किए जाते हैं परन्तु उन सभी में महाशिवरात्रि का व्रत रखने का खास महत्व होता है। महाशिवरात्रि व्रत काशी पंचांग के अनुसार फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर किया जाता है।  इस दिन रंक हो या राजा सभी बड़ी धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं । 
इस वर्ष महाशिवरात्रि 21 फरवरी 2020  को शाम को 5 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी कि 22 फरवरी दिन शनिवार को शाम 07 बजकर 9 मिनट तक रहेगी। रात्रि प्रहर की पूजा शाम को 6 बजकर 57 मिनट से रात 12 बजकर 54 मिनट तक होगी। 
117 साल बाद शनि और शुक्र का दुर्लभ योग :-
 इस बार शिवरात्रि पर 117 साल बाद शनि और शुक्र का दुर्लभ योग बन रहा है। इस साल शिवरात्रि पर शनि अपनी स्वयं की राशि मकर में और शुक्र ग्रह अपनी उच्च राशि मीन में रहेगा।  इस साल गुरु भी अपनी स्वराशि धनु राशि में स्थित है। इस योग में शिव पूजा करने पर शनि, गुरु, शुक्र के दोषों से भी मुक्ति मिल सकती है। 21 फरवरी को सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। पूजन के लिए और नए कार्यों की शुरुआत करने के लिए ये योग बहुत ही शुभ माना गया है।

शिवरात्रि पर 28 साल बाद बनेगा विष योग :-

 शिवरात्रि को शनि के साथ चंद्रमाँ  भी रहेगा। शनि-चंद्र की युति की वजह से विष योग बन रहा है। इस साल से पहले करीब 28 साल पहले शिवरात्रि पर विष योग बना था । 
इस योग में शनि और चंद्रमाँ के लिए विशेष पूजा करनी चाहिए। शिवरात्रि पर ये योग बनने से इस दिन शिव पूजा का महत्व और अधिक बढ़ गया है। कुंडली में शनि और चंद्र के दोष दूर करने के लिए शिव पूजा करने की सलाह दी जाती है ।


शिवरात्रि के पावन पर्व में शिव मंदिरों की रौनक खूब दिखती है। प्रातःकाल से ही शिव मंदिरों में भक्तों का तांता जुटने लगता है। और सभी भगवान शिव के मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हैं। इस दिन शिव जी को दूध और जल से अभिषेक कराने की भी प्रथा है

महाशिवरात्रि की कथायेँ :-

महाशिवरात्रि को लेकर एक या दो नहीं बल्कि हिंदू पुराणों में कई कथाएं प्रचलित हैं:-पुराणों में महाशिवरात्रि मानाने के पीछे एक कहानी है जिसके अनुसार
कथा 1- 
समुद्र मंथन के दौरान जब देवतागण एवं असुर पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए मंथन कर रहे थे, तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला।
देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने भयंकर विष को अपने शंख में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं।
उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ (गले) में ही रोक कर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलंकठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।


कथा 2-
शिव पुराण में एक अन्य कथा के अनुसार एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा

अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया, और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा।
चूंकि यह फाल्गुन के महीने का 14 वा दिन था जिस दिन शिव ने पहली बार खुद को लिंग रूप में प्रकट किया था। इस दिन को बहुत ही शुभ और विशेष माना जाता है और महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिव की पूजा करने से उस व्यक्ति को सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।

कथा 3- 
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक आदमी जो शिव का परम भक्त था, एक बार लकड़ियाँ कटाने के लिए जंगल गया, और खो गया। बहुत रात हो चुकी थी इसीलिए उसे घर जाने का रास्ता नहीं मिल रहा था। क्योंकि वह जंगल में काफी अंदर चला गया था इसलिए जानवरों के डर से वह एक पेड़ पर चढ़ गया।
लेकिन उसे डर था कि अगर वह सो गया तो वह पेड़ से गिर जाएगा और जानवर उसे खा जाएंगे। इसलिए जागते रहने के लिए वह रात भर शिवजी नाम लेके पत्तियां तोड़ के गिरता रहा। जब सुबह हुई तो उसने देखा कि उसने रात में हजार पत्तियां तोड़ कर शिव लिंग पर गिराई हैं, और जिस पेड़ की पत्तियां वह तोड़ रहा था वह बेल का पेड़ था।
अनजाने में वह रात भर शिव की पूजा कर रहा था जिससे खुश हो कर शिव ने उसे आशीर्वाद दिया। यह कहानी महाशिवरात्रि को उन लोगों को सुनाई जाती है जो व्रत रखते हैं। और रात शिव जी पर चढ़ाया गया प्रसाद खा कर अपना व्रत तोड़ते हैं।

एक कारण यह भी है इस पूजा को करने  कि यह रात अमावस की रात होती है जिसमें चाँद नहीं दीखता है और हम ऐसे मे भगवान की पूजा करते हैं ।

महाशिवरात्रि के तुरंत बाद पेड़ फूलों से भर जाते हैं जैसे सर्दियों के बाद होता है। पूरी धरती फिर से उपजाऊ हो जाती है। यही कारण है कि पूरे भारत में शिव लिंग को उत्पत्ति का प्रतीक माना जाता है। भारत के हर कोने में शिवरात्रि को अलग अलग तरीके से मनाया जाता है।

अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है़ स्नान करना या कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक ।

भगवान शिव को रुद्र कहा गया है और उनका रूप शिवलिंग में देखा जाता है। इसका अर्थ हुआ शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना।
 अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना या फिर श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा करवाना। अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।
जानिए किस धारा का अभिषेक शुभ है आपकी राशि के लिए....

कैसे करें अपनी राशि अनुसार रुद्राभिषेक -

1. मेष- शहद और गन्ने का रस

2. वृष- दुग्ध ,दही
3. मिथुन-
दूर्वा से

4. कर्क- दुग्ध, शहद

5. सिंह- शहद, गन्ने के रस से

6. कन्या- दूर्वा एवं
दही

7. तुला- दुग्ध, दही

8. वृश्चिक- गन्ने का रस, शहद, दुग्ध

9. धनु- दुग्ध, शहद

10. मकर- गंगा जल में गुड़ डाल कर मीठे रस से

11. कुंभ- दही से

12. मीन- दुग्ध, शहद, गन्ने का रस

कैसे होते हैं महाशिवरात्रि के दिन जन्मक लेने वाले बच्चे:-


क्या आपका जन्म भी महाशिवरात्रि के दिन हुआ है। महाशिवरात्रि को जन्म लेने वाले बच्चे बहुत ही दयालु और दानी होते हैं। यह बच्चे जीवन में खूब यश और प्रतिष्ठा की प्राप्ति करते हैं। हालांकि बहुत खर्चीले भी होते हैं और दान पुण्य खुले हाथ से करते हैं। ऐसे बच्चें प्रायः शासन और प्रशासन में रहते हैं।


माना जाता है कि महाशिवरात्रि पर जन्मस लेने वाले बच्चों। में जो पुत्र होते हैं वे योग्य साबित होते हैं। पुत्रियां भी यश कमाती हैं। इस दिन जन्मे बच्चे अचल और चल संपत्ति की प्राप्ति करते हैं। सुंदर व सुयोग्य होते हैं। स्वलभाव से क्रोधी भी होते हैं।


महाशिवरात्रि के दिन जन्म लेने वाले लोग कला, पत्रकारिता और फिल्म उद्योग के
क्षेत्र में बहुत यश व प्रतिष्ठा की प्राप्ति करते हैं।

आचार्य राजेश कुमार ( Divyansh Jyotish Kendra )

Wednesday 29 January 2020


             "दिव्यांश ज्योतिष् केंद्र"   
            
             "जब जागो तभी सबेरा"
              🌍🌍🌍🌍🌍🌍 ----------------------------------------------------------------------
मित्रों,
         "Divyansh jyotish kendra "आपका हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता है।
        प्रिय मित्रों हर इंसान सर्वसुख से संपन्न नहीं हो सकता, अर्थात प्रत्येक इंसान के जीवन में कोई न कोई कमी,आभाव या समस्या अवश्य ही होती है।
🌞🌞🌞🌞🌞🌞                     
उसमे से कुछ समस्यायों का समाधान तो इंसान एन-केन प्रकारेण कर लेता है परंतु कुछ समस्याये  ऐसी होती हैं जिसका समाधान लाख चाहने के बावजूद हो ही नहीं पाता। जिस कारण वह ईश्वर की मर्ज़ी समझ कर उपर वाले पर छोड़ देता है। जैसे
   1 व्यवसाय/ नौकरी में असफलता
   2 विवाह नहीं होना
   3 संतान का नहीं होना
   4 लाख चाहने के बावजूद बचत नहीं कर पाना
   5 इनकम से अत्यधिक खर्च
   6 हमेशा स्वयं या घर के सदस्यों का बीमार रहना या दवा में अत्यधिक पैसे का खर्च होना।
   7 पति- पत्नी या अन्य सगे-संबंधी से  अत्यधिक मतभेद रहना
   8 शिक्षा या इक्षा के अनुरूप नौकरी/व्यवसाय का ना होना
   9 मुक़दमें बाज़ी में धन व्यय होना
   10 किसी विवाद का समाधान नहीं होना
   11 रोजगार में सफलता नहीं मिलना
   12 उलटे- पलटे स्वप्न आना।
   13 किसी भी चीज में मन न लगना
   14 बार- बार दुर्घटना का होना
   15 स्वयं की प्रॉपर्टी- मकान का नहीं होना या प्रॉपर्टी में विवाद उत्पन्न होना
  
   16 घर में बच्चों का व्यव्हार ठीक नहीं होना या गलत संगत/रास्ता होना
17 पारिवारिक विवाद का नहीं सुलझना
18 प्रेम विवाह होने में बाधा उत्पन्न होना या वैवाहिक जीवन में कड़वाहट का होना।
19 मन के अनुरूप विवाह होने में कठिनाई
20 घर में अप्रत्याशित घटनाओं का होना।
21 नौकरी के क्षेत्र में अपने सीनियर से ताल- मेल ठीक नहीं होना
22 पदोन्नति(प्रमोशन) में बाधा का आना।इत्यादि-इत्यादि
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आचार्य राजेश कुमार
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Monday 27 January 2020

Saturn in Capricorn: क्या होगा जब शनि बदलेंगे अपना घर, 5 राशियों पर सबसे बड़ा असर / http://hindi.webdunia.com/astrology-articles/saturn-in-capricorn-120011200027_1.html

Thursday 31 October 2019

Famous Astrologer "Divyansh Jyotish Kendra": भगवान सूर्य देव की बहन ख़ष्ठी मईया का पूजन 31 अक्टू...

Famous Astrologer "Divyansh Jyotish Kendra": भगवान सूर्य देव की बहन ख़ष्ठी मईया का पूजन 31 अक्टू...: भगवान सूर्य देव की बहन ख़ष्ठी मईया का पूजन 31 अक्टूबर-2019 से प्रारम्भ:- जानिए इसके पीछे का इतिहास,भारतवर्ष के ऐतिहासिक सूर्य मंदिर एवं शुभ...
भगवान सूर्य देव की बहन ख़ष्ठी मईया का पूजन 31 अक्टूबर-2019 से प्रारम्भ:-
जानिए इसके पीछे का इतिहास,भारतवर्ष के ऐतिहासिक सूर्य मंदिर एवं शुभ
मुहूर्त :-
छठ पूजा भारत में भगवान सूर्य की उपासना का सबसे प्रसिद्ध हिंदू त्‍योहार है।इस त्‍योहार
को षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है, जिस कारण इसे सूर्य षष्ठी व्रत या छठ कहा गया है. यह
त्‍योहार एक साल में दो बार मनाया जाता है- पहली बार चैत्र महीने में और दूसरी बार
कार्तिक महीने में. हिन्दू पंचांग की की अगर बात करें तो, चैत्र शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए
जाने वाले छठ त्‍योहार को चैती छठ कहा जाता है जबकि कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी पर
मनाए जाने वाले इस त्‍योहार को कार्तिकी छठ कहा जाता है:-

छठ पूजा पर्व तिथि व मुहूर्त 2019
31 अक्तूबर, गुरुवार: नहाय-खाय
1 नवंबर, शुक्रवार : खरना
2 नवंबर, शनिवार: डूबते सूर्य को अर्घ्य
3 नवंबर, रविवार : उगते सूर्य को अर्घ्य और पारण
पूजा विधि : -

भगवान सूर्य देव को सम्पूर्ण रूप से समर्पित यह त्योहार पूरी स्वच्छता के साथ मनाया जाता है|
इस व्रत को पुरुष और स्त्री दोनों ही सामान रूप से धारण करते है| यह पावन पर्व पुरे चार दिनों
तक चलता है|
व्रत के पहले दिन यानी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाए खाए होता है, जिसमे सारे वर्ती आत्म
सुद्धि के हेतु केवल शुद्ध आहार का सेवन करते है|
कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन खरना रखा जाता है, जिसमे शरीर की शुधि करण के बाद पूजा
करके सायं काल में ही गुड़ की खीर और पुड़ी बनाकर छठी माता को भोग लगाया जाता है| इस
खीर को प्रसाद के तौर पर सबसे पहले वर्तियों को खिलाया जाता है और फिर ब्राम्हणों और
परिवार के लोगो में बांटा जाता है|
कार्तिक शुक्ल षष्टि के दिन घर में पवित्रता के साथ कई तरह के पकवान बनाये जाते है और
सूर्यास्त होते ही सारे पकवानों को बड़े-बड़े बांस के डालों में भड़कर निकट घाट पर ले जाया

जाता है| नदियों में ईख का घर बनाकर उनपर दीप भी जलाये जाते है| व्रत करने वाले सारे स्त्री
और पुरुष जल में स्नान कर इन डालों को अपने हाथों में उठाकर षष्टी माता और भगवान सूर्य
को अर्ग देते है| सूर्यास्त के पश्चात अपने-अपने घर वापस आकर सह-परिवार रात भर सूर्य देवता
का जागरण किया जाता है
कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सूर्योदय से पहले ब्रम्ह मुहूर्त में सायं काल की भाती डालों में पकवान,
नारियल और फलदान रख नदी के तट पर सारे वर्ती जमा होते है| इस दिन व्रत करने वाले
स्त्रियों और पुरुषों को उगते हुए सूर्य को अर्ग देना होता है| इसके बाद छठ व्रत की कथा सुनी
जाती है और कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है| सरे वर्ती इसी दिन प्रसाद ग्रहण कर
पारण करते है|

छठ पूजा सामग्री की सूची :-
   प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी।
   बांस या पीतल के बने तीन सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास।
    नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा।
   चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक।
   पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो।
    सुथनी और शकरकंदी।
   हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा।
    नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं।
   शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी।
    कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई।
इसके साथ ही ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू, जिसे
लडु़आ भी कहते हैं आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा।

छठ पूजा 2019: महोत्सव का इतिहास और महत्व:-
छठ केवल एक पर्व ही नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय
से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक
ऐतिहासिक महत्व है।

छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं
1- पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद
को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की
पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो
पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ।
प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान
की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई जो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी
कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए
प्रेरित करने को कहा।

राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।
2-इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के
मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से
मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया।
पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया । मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल
छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की
उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों
तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
3-एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत
सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और
वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान
योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
4- छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा

राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी
हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य
देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना
फलदायी मानी गई।
5-एक मान्यता के अनुसार लंका पर विजय प्राप्‍त करने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन
कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानी छठ के दिन भगवान राम और माता सीता ने व्रत किया था और
सूर्यदेव की आराधना की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से
आशीर्वाद प्राप्त किया था.

परंपरा के अनुसार छठ पर्व के व्रत को स्त्री और पुरुष समान रूप से रख सकते हैं. छठ पूजा की
परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली पौराणिक और लोककथाओं के अनुसार
यह पर्व सर्वाधिक शुद्धता और पवित्रता का पर्व है.
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भारतवर्ष के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर:-
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1-पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद (बिहार)
2-कोणार्क सूर्य मंदिर, पुरी (उड़ीसा)
3-सूर्य मंदिर, रांची (झारखंड)
4-विवस्वान सूर्य मंदिर, ग्वालियर (मध्यप्रदेश)
5-बेलार्क सूर्य मंदिर, भोजपुर (बिहार)
6-मोढ़ेरा सूर्य मंदिर, पाटन (गुजरात)
आचार्य राजेश कुमार