Saturday 13 January 2018

घर में महालक्ष्मी जी के स्थाई निवास हेतु करें “मकर संक्रांति “ को महालक्ष्मी जी की अत्यंत प्राचीन और दुर्लभ सिद्ध मंत्र से पूजन

"दिव्यांश ज्योतिष् केंद्र"
घर में महालक्ष्मी जी के स्थाई निवास हेतु करें “मकर संक्रांति “ को महालक्ष्मी जी की अत्यंत प्राचीन और दुर्लभ सिद्ध मंत्र से पूजन
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प्रिय मित्रों,
प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के द्वारा राजाओं-महाराजाओं के यहाँ स्थाई सुख शांति हेतु समय-समय पर पूजा-पाठ अनुष्ठान किये जाते थे जिस कारण उनके यहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी "समृद्धता " बनी रहती थी।
इन्हीं अनुष्ठानों में से "महालक्ष्मी" जी की एक अति दुर्लभ और अचूक अनुष्ठान जो अमावस्या में मुख्यतः मकर संक्रांति और दीपावली में किये जाते हैं। जिसे "सहस्त्ररूपा सर्व्यापी लक्ष्मी " कहा जाता है।
"सहस्त्ररूपा सर्व्यापी लक्ष्मी साधना विधि "
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प्रिय मित्रों,
प्रत्येक वर्ष दीपावली या मकर संक्रांति के दिन सर्वत्र विद्यमान, सर्व सुख प्रदान करने वाली माता "महाँ लक्ष्मी जी" की पूजन करने की विधि बताई जाती है।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी हम चाहते हैं की आप सभी मित्र अपने-अपने घरों या दुकानों में सपरिवार इस पूजा को करके माँ को अपने घर में पुनः सविराजमान करें।
यह पूजन समस्त ग्रहों की महादशा या अन्तर्दशा के लिए लाभप्रद होता है।
इस विधि से माता लक्ष्मी की पूजा करने से "सहस्त्ररुपा सर्व व्यापी लक्ष्मी" जी सिद्ध होती हैं। इस पूजा को सिद्ध करने का समय इस दिनांक १४ जनवरी २००१८ को रात्रि ११ .00 pm से १५ जनवरी की सुबह 4.00 am तथा १५ जनवरी २०१८ को दोपहर १.५७ से ३.५५ के मध्य किया जायेगा।
प्रिय मित्रों जो भक्तजन "सहस्त्र रुपा सर्वव्यापी लक्ष्मी "पूजन करते हैं उनके आमदनी के नये-नये लक्षण बनने लगते हैं।आर्थिक उन्नति,पारिवारिक समृद्धता ,व्यापार में बृद्धि,यश, प्रसिद्धि बढ़ने लगती है। दरिद्रता और क़र्ज़ समाप्त होने लगता है। पति-पत्नी के बीच कलह समाप्त होने लगता है। सभी प्रकार के मानोवांछित फल प्राप्त होने लगते हैं।
लक्ष्मी का तात्पर्य केवल धन ही नही होता बल्कि जीवन की समस्त परिस्थितियों की अनुकूलता ही लक्ष्मी कही जाती हैं।
सहस्त्र रुपा सर्व व्यापी लक्ष्मी का अर्थ 1-धन लक्ष्मी,2-स्वास्थ्य लक्ष्मी 3-पराक्रम लक्ष्मी 4-सुख लक्ष्मी 5-संतान लक्ष्मी 6-शत्रु निवारण लक्ष्मी 7-आनंद लक्ष्मी 8- दीर्घायु लक्ष्मी 9-भाग्य लक्ष्मी 10-पत्नी लक्ष्मी 11-राज्य सम्मान लक्ष्मी 12 वाहन लक्ष्मी 13-सौभाग्य लक्ष्मी 14-पौत्र लक्ष्मी 15-राधेय लक्ष्मी इत्यादि-इत्यादि होता है।
इस पूजन को विशेष रूप से अमावस्या को अर्ध रात्रि में किया जाना अत्यंत शुभ फलदायी होता है। प्रत्येक दीपावली एवं मकर संक्रांति के दिन अमावस्या होती है अतः इसी दिन यह पूजा करना लाभ प्रद होता है।
पूजन-सामग्री
1.श्री यंत्र ( ताम्बा,चांदी या सोने का) एक
2.तिल का तेल 500 ग्राम
3.मिट्टी की 11 दियाली
4. रुइ बत्ती लंबी वाली 22
5.केसर
6.गुलाब या चमेली या कमल के 108 फूल
7.दूध ,दही,घी,शहद और गंगा जल
8.सफेद रुमाल
9.साबुत कमल गट्टा दाना 108 को किसी ताम्बे के कटोरे में पिघला घी मे डाल कर रखें।
10.कमल गट्टे की माला एक
11.आम की लकड़ी 1.5kg
12.पिलि धोती,पिला तौलिया या गमछा
13.ताम्बा या पीतल या चांदी की बड़ी परात( जिसमे उपरोक्त समान आ सके)
14.फूल या पीतल का भगौना या अन्य पात्र
नोट- इस पूजा में किसी भी प्रकार का स्टील या लोहे का बर्तन का प्रयोग वर्जित है।।
पूजन विधि:-
सर्व प्रथम स्नान करके पिला वस्त्र पहन कर उपरोक्त समस्त सामान पूजा स्थल पर अपने पास रख लें और पूरब या उत्तर की ओर मुह करके बैठ जाएं।
अब अपने सामने परात रखें। उस परात के ठीक बीच में श्री यंत्र को रख दें अब श्री यंत्र के चारो तरफ 11 तिल के तेल का दीपक ऐसे रखें की दीपक की लौ साधक की ओर होनी चाहिए।
यदि पत्नी बैठें थो अपने दाहिनी तरफ बैठाएं।
अब दीपक को थाली के बाहर कर लें। परात के केंद्र में स्वस्तिक का निशान बनावें। श्री यंत्र पर 11 बिंदी लगावें । ग्यारहवी बिंदी यंत्र के केंद्र में थोड़ा बड़ी बिंदी लगा कर परात के केंद्र पर रख दें। अब गणपति एवं विष्णु जी का बारी-बारी ध्यान करके हाथ में जल अक्षत पुष्प लेकर "ऊँ श्रीं श्रीं सहस्त्र रुपा सर्व व्यापी लक्ष्मी"जी का पूजन करने हेतु संकल्प ले एवं हाथ की सामग्री पृथ्वी पर गिरा दें। अब परात में रखे 11 दीपक परात से बाहर निकालें।
अब श्री यंत्र को किसी पीतल या फूल के पात्र में क्रमशः दूध, दही, घी, शहद, शक्कर से स्नान कर कर अब गंगा जल से स्नान कराकर यंत्र को सफेद कपड़े से अच्छी तरह पोछ लें। स्नान कराने पर जो सामग्री फूल य पीतल के पात्र मे इकट्ठा हुई वही सामग्री पूजन के पश्चात प्रसाद रूप में ग्रहण की जायेगी। प्रसाद हेतु मिश्री डालकर खीर बनाकर अर्पित कर सकते हैं। पूजा में कोई रुपये की गड्डी जरुर रक्खें I
अब परात के बीच में पुनः स्वस्तिक का निशान बना कर श्री यंत्र को स्थापित करके पहले की तरह उस पर 11 बिंदी केशर की लगाएं। तत्पश्चात धूप बत्ती या अगर बत्ती प्रज्वलित करें एवं यंत्र के चारो तरफ पहले की तरह उन दीपक को लगा कर कमल गट्टे की माला से निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए एक -एक फूल बारी बारी से प्रत्येक मंत्र के पश्चात स्वाहा बोलते हुए श्री यंत्र पर 108 पुष्पों को (आप या आपकी पत्नी या कोई अन्य) रखते जाय।
मंत्र है --||"ऊँ श्रीं -श्रीं सहस्त्र-रुपा सर्व- व्यापी लक्ष्मी सिद्धये श्रीं-श्रीं ऊँ नमः"||
अब हवन पात्र में आम की लकड़ी रख कर अग्नि प्रज्ज्वलित कर के कमल गट्टे की माला से पुनः उपरोक्त मंत्र एवं स्वाहा के उच्चारण के साथ एक एक कमल गट्टे के दाने को घी सहित किसी आम्र- पल्लव या ताम्बे के चम्मच से थोड़ा थोड़ा घी सहित हवन कुण्ड में डालते जाएं। अंतिम मंत्र के साथ कटोरे का समस्त घी अग्नि मे डाल दें। अब आपकी पूजा सम्पन्न हुई । अब मुख्यतःलक्ष्मी गणेश जी की आरती घी के दीपक से करके प्रसाद को माँ लक्ष्मी एवं अग्नि देव को ग्रहण करावें। तत्पश्चात अब घर के सदस्य आरती लेकर उस प्रसाद को ग्रहण करें।इस पूजा मे आप सफेद मिष्ठान भी चढा सकते है।
अब आपकी पूजा पूर्णरूप से सम्पन्न हुई। पूजा के पश्चात रात्रि 4.30 बजे तक सोना नहीं चाहिए आप पूजा के पश्चात भजन कीर्तन कर या सुन सकते हैं।
सुबह आप श्री यंत्र एवं कोई रुपये की गड्डी को पूजा में या आलमारी के लोकर में या दुकान में या कहीं भी पवित्र स्थान पर लाल कपड़े में लपेट कर रख सकते हैं।
सधन्यवाद,
Achary Rajesh Kumar Divyansh Jyotish Kendra
Contact-Mob no-9454320396/7607718546

Friday 12 January 2018

मकर संक्रांति पर अपनी राशी के हिसाब से करें दान :-

मकर संक्रांति पर अपनी राशी  के हिसाब से करें दान :-

मकर संक्रांति पर सूर्य का प्रवेश मकर राशी  में होता है और इसका हर राशि पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आपके द्वारा किया जाने वाला कौन सा दान फलदायी साबित होगाI

 
मेष- राशि के लोगों को गुड़, चिक्की , तिल का दान देना चाहिए।

वृषभ- राशि के लोगों के लिए सफेद कपड़े और सफ़ेद तिल का दान करना उपयुक्त रहेगा।

 
मिथुन -राशि के लोग मूंग दाल, चावल और कंबल का दान करें।

 
कर्क -राशि के लोगों के लिए चांदी, चावल और सफेद वस्त्र का दान देना उचित है।

 
सिंह- राशि के लोगों को तांबा और सोने के मोती दान करने चाहिए।

कन्या -राशि के लोगों को चावल, हरे मूंग या हरे कपड़े का दान देना चाहिए।

तुला- राशि के जातकों को हीरे, चीनी या कंबल का देना चाहिए।

 
वृश्चिक -राशि के लोगों को मूंगा, लाल कपड़ा और काला   तिल दान करना चाहिए।

धनु -राशि के जातकों को वस्‍त्र, चावल, तिल और गुड़ का दान करना चाहिए।

 
मकर -राशि के लोगों को गुड़, चावल और तिल दान करने चाहिए।

 
कुंभ -राशि के जातकों के लिए काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी और तिल का दान चाहिए।

मीन- राशि के लोगों को रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल और तिल दान देने चाहिए।

Achary Rajesh Kumar  rajpra.infocom@gmail.com


मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

- मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं। इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का महत्व बहुत है।

- मकर संक्रांति में उत्तर भारत में ठंड का समय रहता है। ऐसे में तिल-गुड़ का सेवन करने के बारे में विज्ञान भी कहता है। ऐसा करने पर शरीर को ऊर्जा मिलती है। जो सर्दी में शरीर की सुरक्षा के लिए मदद करता है।

- इस दिन खिचड़ी का सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। इसमें अदरक और मटर मिलाकर बनाने पर यह शरीर को रोग-प्रतिरोधक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।
वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है

वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।

पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है।
इसलिए इस दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। दिन बड़ा होने से सूर्य की रोशनी अधिक होगी और रात छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। आंध्रप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है


मकर संक्रांति की पौराणिक बातें


मकर संक्रांति की पौराणिक बातें

१- मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके  घर जाते हैं।

२- द्वापर युग में महाभारत युद्ध के समय भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था।

३- उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा गया है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है।

४- इसी दिन भागीरथ के तप के कारण गंगा मां नदी के रूप में पृथ्वी पर आईं थीं। और राजा सगर सहित भागीरथ के पूर्वजों को तृप्त किया था।

वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व उपनिषद में भी किया गया है।

आज ही के दिन घर में “धन लक्ष्मी “ के  स्थाई निवास हेतु राजा-महाराजा करते थे लक्ष्मी जी का “विशेष पूजन “

मकर संक्रांति के दिन या दीपावली के दिन सर्वत्र विद्यमान, सर्व सुख प्रदान करने वाली माता "महाँ लक्ष्मी जी" का पूजन पुराने समय में हिन्दू राजा महाराजा करते थे । हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी हम चाहते हैं की आप सभी मित्र अपने-अपने घरों में सपरिवार इस पूजा को करके माँ को श्री यंत्र के रूप में अपने घर में पुनः विराजमान करें।यह पूजन समस्त ग्रहों की महादशा या अन्तर्दशा के लिए लाभप्रद होता है।
इस विधि से माता लक्ष्मी की पूजा करने से "सहस्त्ररुपा सर्व व्यापी लक्ष्मी" जी सिद्ध होती हैं।

इस पूजा को सिद्ध करने का समय दिनांक १४ जनवरी २०१८ को रात्रि 11.30 बजे  से सुबह 02.57बजे  के मध्य किया जायेगा।  इस पूजन का विस्तृत विशेष पूजन अग्रिम लेख में प्राप्त होगा I

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

आज ही के दिन  भगवान् सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं

आज ही के दिन घर में “धन लक्ष्मी “ के  स्थाई निवास हेतु राजा-महाराजा करते थे लक्ष्मी जी का “विशेष पूजन “

अपनी राशी  के हिसाब से करें दान

काशी पंचांग के अनुसार भगवान्  भास्कर दिनांक १४ जनवरी २०१८ दिन रविवार को रात्रि ७ बजकर ३५ मिनट पर धनु राशी से मकर राशी में प्रवेश कर जायेंगे I धर्मशास्त्र के अनुसार सूर्यास्त के बाद लगने वाली संक्रांति का पुण्यकाल दुसरे दिन मध्यान्ह काल तक रहता है अतः मकरसंक्रांति दिनांक १५ जनवरी २०१८ को सर्वत्र अपनी –अपनी विविध परम्पराओं के साथ मनाया जायेगा I इसीदिन भगवान् भास्कर उत्तरापथ्गामी हो जायेंगे I

सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।

स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥