Sunday, 7 January 2018

कुछ समयांतराल के पश्चात् पानी के बोतल की तरह हम oxigen की बोतल भी ले कर सफ़र करेंगे :-

क्या आप जानते हैं की आपके संतान की उन्नति के मार्ग में आ रही बाधा अलग -अलग वृक्षा रोपण से १००% दूर हो सकती है  

ग्रह नक्षत्रों के कुप्रभावों से बचने के लिए कारगर सिद्ध होते हैं पेड़-पौधे

नक्षत्र राशि तथा ग्रह के लिए कौन-कौन से निर्धारित पेड़ पौधे हैं i

ग्रह नक्षत्रों के नकारात्मक प्रभाव को दुर करने के लिए पेड़ पौधों का सहारा कब और क्यों लिया जाता था

कुछ समयांतराल के पश्चात् पानी के बोतल की तरह हम oxigen की बोतल भी ले कर सफ़र  करेंगे :-



इसे समझने के लिए आपको ज्योतिष विज्ञान से सम्बंधित कुछ बातें समझनी होंगी .

         ब्रह्माण्ड में उपस्थित समस्त सजीव अर्थात जिनमे सांस लेने की क्षमता हो जैसे हम मनुष्य ,जानवर तथा पेड़-पौधे  ये सभी कुल पञ्च तत्वों से मिलकर बने हैं  अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश, जो चीजें इन ५ तत्वों से मिलकर बनी होती हैं इन सभी की जीवन की समस्त घटनाओं  को मुख्यतः ९ग्रह १२ राशियाँ तथा २७ नक्षत्र संचालित करते हैं  . कहने का तात्पर्य ये है की हमारे जीवन में होने वाली अच्छी और बुरी घटनाएँ के लिए आपके जन्म समय के ग्रह-नक्षत्र  जिम्मेदार होते हैं .

         आज  से सैकड़ों हजारों वर्ष पूर्व ऋषि- मुनि ज्योतिर्विद , जीवन में होने वाली सभी सदृश्य या अदृश्य समस्याओं के समाधान हेतु पेड़ पौधों का सहारा लेते थे और इसी से ठीक हो जाते थे क्योंकि उक्त के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता था .


वृक्ष प्रकृति की अनमोल धरोहर  है यह हमारे पर्यावरण तथा मानव जीवन का संरक्षक है:-

 जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य की अपनी विशेषता है उसी प्रकार प्रत्येक वृक्ष की अपनी विशेषता है। वस्तुतः इस पृथ्वी  पर यदि वृक्ष न हो तो हमारा जीवन खतरे में पड़ जाएगा। यह हम सभी जानते है वृक्ष हमें आक्सीजन प्रदान करता है और आक्सीजन के बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। इसी कारण वैदिक साहित्य में वृक्ष पूजनका स्पष्ट निर्देश दिया गया था जो आज भी विराजमान है चाहे वह अंधविश्वास के रूप में ही सही वृक्षो की पूजा की जाती है। इसका मुख्य श्रेय हमारे ऋषि मुनियो, पौराणिक परम्परा, यज्ञ आदि के लिए निर्धारित सामग्री में निश्चित लकड़ी का प्रयोग का श्रेया  आज के ज्योतिष शास्त्री को जाता है।

ज्योतिष शास्त्र में वृक्ष की पूजा का विधान है

     यदि कोई जातक बहुत परेशानी में है चाहे व्यापार से सम्बंधित हो, संतान से, दाम्पत्य जीवन से आदि आदि तो ज्योतिषी जन्मकुंडली के आधार पर यह जानने का प्रयास करता है की किस ग्रह नक्षत्र, राशि वा राशि स्वामी के कारण वह परेशान है। उस ग्रह-नक्षत्र अथवा राशि के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने हेतु उनसे सम्बंधित पेड़ पौधों इस्तेमाल किये जाते हैं .

भारतीय ज्योतिष में प्रत्येक नक्षत्र, ग्रह और राशि के लिए कोई न कोई पेड़-पौधे निर्धारित है। जन्म कुंडली में बुरे ग्रहो के प्रभाव को कम करने के लिए तथा शुभ ग्रहो के शुभत्त्व को बढ़ाने के लिए निर्धारित पेड़-पौधों की सेवा तथा उसके जड़ को धारण करने का विधान है।

आइये जानते है की कौन पौधा किस ग्रह राशि तथा नक्षत्र के लिए निर्धारित किया गया है।

ज्योतिषीयशास्त्र में 27 नक्षत्रों के लिए अलग-अलग गुणवाले पेड़-पौधे निर्धारित किये गए है आइये जानते है वे कौन कौन है।

27 नक्षत्रो के लिए निर्धारित पेड़-पौधे

अश्विन कोचिला,

भरनी आंवला

कृतका गुडहल  

रोहिणी जामुन

मृगशिरा खैर

आद्रा शीशम

पुनर्वसु बांस

पुष्य पीपल

अश्लेषा नागकेसर

मघा बट







पूर्वा फाल्गुन पलास


उत्तरा फाल्गुन पाकड़

हस्त रीठा

चित्रा बेल

स्वाती- अजरुन

विशाखा भट कटैया

अनुराधा भालसरी

ज्योष्ठा चीड

मूला शाल

पूर्वाषाढ़ अशोक

उत्तराषाढ़ कटहल

श्रवण अकौन

धनिष्ठा शमी

शतभिषा कदम्ब

पूर्व भाद्र आम

उत्तरभाद्र नीम

रेवती महुआ












बारह राशि के लिए निर्धारित पेड़-पौधे

राशि पेड़-पौधे

मेष आंवला

वृष जामुन,

मिथुन शीशम,

कर्क नागकेश्वर,

सिंह पलास,

कन्या रिट्ठा,

तुला अजरुन,

वृश्चिक भालसरी,

धनु जलवेतस,

मकर अकोन,

कुंभ कदम्ब

मीन नीम

प्रत्येक ग्रह के लिए निर्धारित पेड़ -पौधे

सूर्य अकोन ( एकवन)

चन्द्रमा पलास,

मंगल खैर,

बुद्ध चिरचिरी,

गुरु पीपल,

शुक्र गुलड़,

शनि शमी,



राहु दुर्वा व

केतु कुश
  बच्चे के जन्म के समय एक पौधा अवश्य लगावें अथवा  अपने परिवार की संख्या के बराबर पेड़ लगावें  :-

याद   रखिये जैसे जैसे पेड़  बढेगा वैसे वैसे आपके बच्चे का भविष्य भी उज्जवल होता जायेगा .आपको जानकर हैरत होगी की पेड़ पौधों के अन्दर एक एनर्जी ,एक औरा होता है जो आपको एवं आपके परिवार को हर दृष्टिकोण से सुरक्षा प्रदान करता है

         ग्रह, राशि, नक्षत्र के लिए निर्धारित पेड़ पौधे का प्रयोग करने से अंतश्चेतना में सकारात्मक सोच का संचार होता है तत्पश्चात हमारी मनोकामनाये शनै शनै पूरी होने लगती है ।

भारत सरकार  के पास वृक्षा रोपड़  की तमाम योजनायें हैं जो निरंतर कार्य कर रही हैं किन्तु जबतक आप सभी  का सहयोग नहीं मिलेगा अकेले सरकार  कुछ नहीं कर सकती .

कुछ समयांतराल के पश्चात् पानी के बोतल की तरह हम oxigen की बोतल भी ले कर सफ़र  करेंगे :-

दिन प्रतिदिन विश्व की जनसँख्या निरंतर बदने के कारन आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जगह जगह इमारतें यातायात व्ययवस्था हेतु सड़कें फक्ट्रियां इत्यादि बनाने के कारण हमें प्रकृत्ति द्वारा दिए गए अनमोल धरोहर लगातार पेड़ पौधों पहाड़ नदी नालें इत्यादि को हमारा समाज ख़त्म करता  जा रहा है ,जिस कारन मानव जीवन की मुलभुत जरुरत जल ,वायु इत्यादि की कमी होती जारही है.

जबकि हम अच्छी तरह जानते हैं की पेड़ पौधे हमारे चारो तरफ की दूषित वायु तथा जल को लेकर हमें स्वक्ष  ओक्सीजन  प्रदान करते हैं  जो प्रत्येक जीव को जीवित रहने के लिए नितांत आवश्यक है.  यह बात हम सभी प्राणियों को भलीभांति पता होने के बावजूद पेड़ पौधों  के प्रति हम  में से ७०% लोग नीरसता  दिखाते हैं .  इसी तरह जगह जगह जमीं से पानी निकालने हेतु समरसेबुल इत्यादि जैसे मशीनरी लगाने के कारन जलस्तर भी काफी निचे होता जा रहा है . पेट्रोल-डीजल   के वाहनों में लगातार बृद्धि होती जा रही है . शहर में कच्ची ज़मीं तथा पेड़ नहीं बच पाने के कारन वायु प्रदुषण ,जल प्रदुषण तथा  ध्वनि प्रदुषण लगातार बढता ही जा रहा है ,जिस कारन हम तरह तरह की बिमारियों से ग्रसित होते जा रहे हैं हमारी उम्र लगातार औसत सीमा  से कम होती जा रही है.

        यदि ऐसे ही हम १०-१५ वर्ष और नीरसता दिखाए तो पानी की बोतल की तरह हमें स्वांस लेने हेतु oxigen की बोतल लेकर सफ़र करना होगा .धीरे धीरे इसकी शुरुवात भी हो चुकी है .
    अतः आप सभी से अनुरोध है की कृपया आपकी आने वाली युवा पीडी के उज्जवल भविष्य के लिए केवल धन-दौलत मकान ज़मीं ही नहीं बल्कि पेड़ पौधे लगावें . क्योंकि जब जीवन रहेगा तभी धन-दौलत काम आवेगी.

            आज से हम सभी प्रण लें की अपने परिवार के सदस्यों की संख्या के बराबर अपनी राशी,नक्षत्र के अनुसार पेड़ अवश्य लगावें. याद  रखिये जैसे जैसे पेड़ बढेंगे वैसे-वैसे आपके संतान का भविष्य भी उज्जवल होता जायेगा .यदि आपके पास जगह नहीं हो और आप फ्लैट में रहते है या आप कहीं भी रहते हों आपको कम से कम एक पेड़ अवश्य लगाने चाहिए तथा समय समय पर उसकी देखभाल करनी चाहिए .

    मित्रों यद्यपि हमसे जुड़े अनगिनत परिवार ऐसे हैं जिनकी संतान के सुख, समृद्धि, करियर, वैवाहिक जीवन तथा स्वस्थ्य के मार्ग में आ रहे अवरोध  को  वृक्षारोपण से बेहद सुखद जीवन प्राप्त हुआ है .
Achary Rajesh Kumar  rajpra.infocom@gmail.com


क्या आप अपनी जिन्दगी में काफी उतार –चदाव, माँ को असाध्य बीमारी ,अपयश दुर्घटना, इत्यादि से परेशान हैं ??? कहीं इसका कारण ग्रहण दोष तो नहीं !

  • क्या आप अपनी जिन्दगी में काफी उतार –चदाव, माँ को असाध्य बीमारी ,अपयश दुर्घटना, इत्यादि से परेशान हैं ??? कहीं इसका कारण ग्रहण दोष तो नहीं !
    चंद्र ग्रहण दोष क्या होता ? क्यों होता हैं ग्रहण दोष ?? कैसे करें निवारण ??? चंद्र ग्रहण दोष के विभिन्नि कारण –

    चंद्र ग्रहण दोष का पता किस प्रकार लगाया जा सकता है – चंद्र ग्रहण दोष के परिणाम(प्रभाव) –
    प्रकांड पंडित रावण द्वारा चंद्र दोष निवारण के लिये तांत्रिक टोटका —-

    चंद्र ग्रहण दोष क्याव होता है –

    ज्योतिषाचार्य आचार्य राजेश कुमार ने बताया कि जब राहु या केतू की युति चंद्र के साथ हो जाती है तो चंद्र ग्रहण दोष हो जाता है। खगोलशास्त्र के वैज्ञानिक आधार पर जब सूर्य ,पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं तो चंद्रग्रहण लगता है। दूसरे शब्दों् में, चंद्र के साथ राहु और केतू का नकारात्म क गठन, चंद्र ग्रहण दोष कहलाता है। ग्रहण दोष का प्रभाव, विभिन्नव राशियों पर विभिन्नर प्रकार से पड़ता है जिसके लिए जन्मगकुंडली, ग्रहों की स्थिति भी मायने रखती है|

    चंद्र ग्रहण दोष के विभिन्नन कारण –

    चंद्र ग्रहण दोष के कई कारण होते हैं और हर व्यभक्ति के जीवन पर उसका प्रभाव भी अलग तरीके से पड़ता है। चंद्र ग्रहण दोष का सबसे अधिक प्रभाव, उत्तंरा भादपत्र नक्षत्र में पड़ता है। जो जातक, मीन राशि का होता है और उसकी कुंडली में चंद्र की युति राहु या केतू के साथ स्थित हो जाएं, ग्रहण दोष के कारण स्व त: बन जाते हैं। ऐसे व्यीक्तियों पर इसके प्रभाव अधिक गंभीर होते हैं।

    चंद्र ग्रहण दोष के अन्यह कारण –

    राहु, राशि के किसी भी हिस्से में चंद्र के साथ पाया जाता है- जबकि केतू समान राशि में चंद्र के साथ पाया जाता है

    – राहु, चंद्र महादशा के दौरान ग्रहण लगाते हैं

    चंद्र ग्रहण दोष का पता किस प्रकार लगाया जा सकता है –

    ज्योतिषाचार्य आचार्य राजेश कुमार ने बताया की चंद्र ग्रहण दोष का पता लगाने के सबसे पहले जन्मिकुंडली का होना आवश्यिक होता है, इस जन्मीकुंडली में राहु और केतू की दशा को किसी विद्वान एस्ट्रोलॉजर के द्वारा पता लगाया जा सकता है या फिर, नवमाश या द्वादसमास चार्ट को देखकर भी दोष को जाना जा सकता है। बेहतर होगा कि किसी विद्वान पंडित से सलाह लें। ऐसा माना जाता है कि पिछले जन्मे के कर्मों के कारण वर्तमान जन्मो में चंद्र ग्रहण दोष लगता है।

    चंद्र ग्रहण दोष के दुषपरिणाम (दुषप्रभाव): –

    ज्योतिषाचार्य आचार्य राजेश कुमार ने बताया की व्य क्ति दिक्कत में रहता है, दूसरों पर दोष लगाता रहता है, उसके मां के सुख में भारी कमी आ जाती है। उसमें सम्माकन में कमी अाती है। हर प्रकार से उस व्य–क्ति पर भारी समस्या एं आ जाती है जिनके पीछे सिर्फ वही दोषी होता है। साथ ही स्वाास्य्रक सम्बंतधी दिक्कयतें भी आती हैं। सूर्य और चंद्र में से सूर्य के कारण दोष व्यक्तिगत सफलता, शोहरत नाम ,समग्र विकास में पड़ाव परिणाम प्राप्त करने में बाधाओं का सामना। एक औरत बार-बार गर्भपात, बच्चे और दोषपूर्ण पुत्रयोग की अवधारणा में समस्या की तरह बच्चे से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ता। स्वास्थ्य समस्याओं को भी सूर्य दोष के कारण प्रमुख हैं। चंद्र दोष अपने स्वयं के बुरे प्रभावों के रूप में यह व्यक्ति अनावश्यक तनाव देता है।

    इस दोष के कारण अविश्वास, भावनात्मक अपरिपक्वता, लापरवाही, याददाश्त में कमी, असंवेदनशीलता अस्वास्थ्य छाती, फेफड़े, सांस लेने और मानसिक अवसाद से संबंधित समस्याऐं उत्पन्न होती हैं। आत्म विनाशकारी प्रकृति भी हो जाता है व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने की इक्षा जागृत होती है।यदि आप हमेशा कश्मकश में रहते हैं, इधर-उधर की सोचते रहते हैं, निर्णय लेने में कमजोर हैं, भावुक एवं संवेदनशील हैं, अन्तर्मुखी हैं, शेखी बघारने वाले व्यक्ति हैं, नींद पूरी नही आती है, सीधे आप सो नहीं सकते हैं अर्थात हमेशा करवट बदलकर सोएंगे अथवा उल्टे सोते हैं, भयभीत रहते हैं तो निश्चित रुप से आपकी कुंडती में चन्द्रमा कमजोर होगा | समय पर इस कमजोर चंद्रमा अर्थात प्रतिकूल प्रभाव को कम करने का उपाय करना चाहिए अन्यथा जीवन भर आप आत्म विश्वास की कमी से ग्रस्त रहेंगे.

    जिन व्यक्तियों का चन्द्रमा क्षीण होकर अष्टम भाव में और चतुर्थ तथा चंद्र पर राहु का प्रभाव हो, अन्य शुभ प्रभाव न हो तो वे मिरगी रोग का शिकार होते हैं.

    जिन लोगों का चन्द्रमा छठे आठवें,बारहवें आदि भावों में राहु से दृष्ट हो, वैसे पाप दृष्ट हो तो उनको रक्त चाप आदि होता है.

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    ज्योतिषाचार्य ने बताया की चंद्रमा को सोम भी कहा जाता है. सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है और इस दिन भगवान शिव के पूजन से मनुष्यद को विशेष लाभ प्राप्त होता है. चन्द्रमा के अधिदेवता भी शिव हैं और इसके प्रत्याधिदेवता जल है. महादेव के पूजन से चंद्रमा के दोष का निवारण होता है. महादेव ने चंद्र को अपनी जटाओं पर धारण किया हुआ है. इस प्रकार भगवान शिव की पूजा से चंद्रमा के उलटे प्रभाव से तत्काल मुक्ति मिलती है. भगवान शिव के कई प्रचलित नामों में एक नाम सोमसुंदर भी है. सोम का अर्थ चंद्र होता है |

    चन्द्रमा ज्योतिष शास्त्र में बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके संबंध में ज्योतिष शास्त्र कहता है कि चन्द्रमा का आकर्षण पृथ्वी पर भूकंप, समुद्री आंधियां, ज्वार भाटा, तूफानी हवाएं, अति वर्षा, भूस्खलन आदि लाता हैं। रात को चमकता पूरा चांद मानव सहित जीव-जंतुओं पर भी गहरा असर डालता है। चन्द्रमा से ही मनुष्य का मन और समुद्र से उठने वाली लहरे दोनों का निर्धारण होता है। माता और चंद्र का संबंध भी गहरा होता है। कुंडली में माता की स्थिति को भी चन्द्रमा देवता से देखा जाता है और चन्द्रमा को माता भी कहा जाता है।हमारी कुंडली में जिस भी राशि में चन्द्रमा हो वही हमारी जन्म राशि कहलाती है और जब भी शुभ कार्य करने के लिए महूर्त देखा जाता है वह हमारी जन्मराशि के अनुसार देखा जाता है जैसे की हमारी जन्म राशि के अनुसार चन्द्रमा कहाँ और किस नक्षत्र में गोचर कर रहा है।

    चन्द्रमा ही हमारे जीवन की जीवन शक्ति है। किसी कुंडली में अगर चन्द्रमा की स्थिति अगर क्षीण होती है अथवा चन्द्रमा पाप प्रभाव लिए हो तो उस व्यक्ति की मानसिक स्थिति को कोई भी अच्छा ज्योतिषी देख कर बता सकता है कि जातक के मन में क्या विचार चलते है तथा जातक की मनोस्थिति किस प्रकार है । निश्चित ही ऐसे जातक का मन उतावला होगा, अत्यंत चंचल होगा। मन को एकाग्र करने में कठनाईयाँ होंगी और जब मन ही एकाग्र नही होगा तो जातक पढ़ने तो बैठेगा लेकिन कुछ ही मिनट बाद उठ जायेगा, जातक सोचेगा की पहले फलां कार्य कर लूँ , पढ़ तो कुछ देर बाद भी लूँगा।चन्द्रमा देवता हमारे मन और मस्तिक्ष के करक है। किसी भी जन्मकुंडली में चन्द्र की महत्वपूर्ण भूमिका को देखे बिना कुंडली का विश्लेषण केवल कुंडली के शव के परिक्षण जैसा होता है।

    ज्योतिषी इन ग्रहो युतियों को कई प्रकारों से सम्बोधित करते है। कई ज्योतिष इन्हे दोष कह कर सम्बोधित करते है तो कई योग कह कर बुलाते है . मेरे विचार से जबतक किन्ही ग्रहों कि युतियां अच्छा फल देने में समर्थ न हो तब तक उसे योग नही कहा जा सकता है। वह दुषयोग ही कहलाएगी।

    चन्द्र ग्रहण दोष की अचूक पूजा- किसी भी प्रकार की पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है एक निश्चित संख्या में जाप:-

    वैदिक ज्योतिष चन्द्र पूजा का सुझाव मुख्य रूप से किसी कुंडली में अशुभ रूप से कार्य कर रहे चन्द्र की अशुभता को कम करने के लिए, अशुभ चन्द्र द्वारा कुंडली में बनाए जाने वाले किसी दोष के निवारण के लिए अथवा किसी कुंडली में शुभ रूप से कार्य कर रहे चन्द्र की शक्ति तथा शुभ फल बढ़ाने के लिए देता है। चन्द्र पूजा का आरंभ सामान्यतया सोमवार वाले दिन शिव वास या चंद्रमा के नक्षत्र के दिन किया जाता है तथा उससे अगले सोमवार को इस पूजा का समापन कर दिया जाता है जिसके चलते इस पूजा को पूरा करने के लिए सामान्यता 7 दिन लगते हैं किन्तु कुछ स्थितियों में यह पूजा 7 से 10 दिन तक भी ले सकती है जिसके चलते सामान्यतया इस पूजा के आरंभ के दिन को बदल दिया जाता है तथा इसके समापन का दिन सामान्यतया सोमवार ही रखा जाता है।

    किसी भी प्रकार की पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है एक निश्चित संख्या में जाप:-

    चन्द्र पूजा में भी चन्द्र वेद मंत्र का 125,000 बार जाप करना अनिवार्य होता है। । संकल्प के समय मंत्र का जाप करने वाली सभी पंडितों का नाम तथा उनका गोत्र बोला जाता है तथा इसी के साथ पूजा करवाने वाले यजमान का नाम, उसके पिता का नाम तथा उसका गोत्र भी बोला जाता है तथा इसके अतिरिक्त जातक द्वारा करवाये जाने वाले चन्द्र वेद मंत्र के इस जाप के फलस्वरूप मांगा जाने वाला फल भी बोला जाता है जो साधारणतया जातक की कुंडली में अशुभ चन्द्र द्वारा बनाये जाने वाले किसी दोष का निवारण होता है अथवा चन्द्र ग्रह से शुभ फलों की प्राप्ति करना होता है।

    इस संकल्प के पश्चात सभी पंडित अपने यजमान अर्थात जातक के लिए चन्द्र वेद मंत्र का जाप करना शुरू कर देते हैं तथा प्रत्येक पंडित इस मंत्र के जाप को प्रतिदिन लगभग 8 से 10 घंटे तक करता है जिससे वे इस मंत्र की 125,000 संख्या के जाप को संकल्प के दिन निश्चित की गई अवधि में पूर्ण कर सकें। निश्चित किए गए दिन पर जाप पूरा हो जाने पर इस जाप तथा पूजा के समापन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जो लगभग 2 से 3 घंटे तक चलता है। सबसे पूर्व भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश तथा शिव परिवार के अन्य सदस्यों की पूजा फल, फूल, दूध, दहीं, घी, शहद, शक्कर, धूप, दीप, मिठाई, हलवे के प्रसाद तथा अन्य कई वस्तुओं के साथ की जाती है तथा इसके पश्चात मुख्य पंडित के द्वारा चन्द्र वेद मंत्र का जाप पूरा हो जाने का संकल्प किया जाता है जिसमे यह कहा जाता है कि मुख्य पंडित ने अपने सहायक अमुक अमुक पंडितों की सहायता से इस मंत्र की 125,000 संख्या का जाप निर्धारित विधि तथा निर्धारित समय सीमा में सभी नियमों का पालन करते हुए किया है तथा यह सब उन्होंने अपने यजमान अर्थात जातक के लिए किया है जिसने जाप के शुरू होने से लेकर अब तक पूर्ण निष्ठा से पूजा के प्रत्येक नियम की पालना की है तथा इसलिए अब इस पूजा से विधिवत प्राप्त होने वाला सारा शुभ फल उनके यजमान को प्राप्त होना चाहिए।

    “ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:” अथवा “ॐ सों सोमाय नम:” का जाप करना अच्छे परिणाम देता है। ये वैदिक मंत्र हैं, इस मंत्र का जाप जितनी श्रद्धा से किया जाएगा यह उतना ही फलदायक होगा।

    इस समापन पूजा के चलते नवग्रहों से संबंधित अथवा नवग्रहों में से कुछ विशेष ग्रहों से संबंधित कुछ विशेष वस्तुओं का दान किया जाता है जो विभिन्न जातकों के लिए भिन्न भिन्न हो सकता है तथा इन वस्तुओं में सामान्यतया चावल, गुड़, चीनी, नमक, गेहूं, दाल, खाद्य तेल, सफेद तिल, काले तिल, जौं तथा कंबल इत्यादि का दान किया जाता है। इस पूजा के समापन के पश्चात उपस्थित सभी देवी देवताओं का आशिर्वाद लिया जाता है तथा तत्पश्चात हवन की प्रक्रिया शुरू की जाती है जो जातक तथा पूजा का फल प्रदान करने वाले देवी देवताओं अथवा ग्रहों के मध्य एक सीधा तथा शक्तिशाली संबंध स्थापित करती है। औपचारिक विधियों के साथ हवन अग्नि प्रज्जवल्लित करने के पश्चात तथा हवन शुरू करने के पश्चात चन्द्र वेद मंत्र का जाप पुन: प्रारंभ किया जाता है तथा प्रत्येक बार इस मंत्र का जाप पूरा होने पर स्वाहा: का स्वर उच्चारण किया जाता है जिसके साथ ही हवन कुंड की अग्नि में एक विशेष विधि से हवन सामग्री डाली जाती है तथा यह हवन सामग्री विभिन्न पूजाओं तथा विभिन्न जातकों के लिए भिन्न भिन्न हो सकती है। चन्द्र वेद मंत्र की हवन के लिए निश्चित की गई जाप संख्या के पूरे होने पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण मंत्रों का उच्चारण किया जाता है तथा प्रत्येक बार मंत्र का उच्चारण पूरा होने पर स्वाहा की ध्वनि के साथ पुन: हवन कुंड की अग्नि में हवन सामग्री डाली जाती है।

    अंत में एक सूखे नारियल को उपर से काटकर उसके अंदर कुछ विशेष सामग्री भरी जाती है तथा इस नारियल को विशेष मंत्रों के उच्चारण के साथ हवन कुंड की अग्नि में पूर्ण आहुति के रूप में अर्पित किया जाता है तथा इसके साथ ही इस पूजा के इच्छित फल एक बार फिर मांगे जाते हैं।

    तत्पश्चात यजमान अर्थात जातक को हवन कुंड की 3, 5 या 7 परिक्रमाएं करने के लिए कहा जाता है तथा यजमान के इन परिक्रमाओं को पूरा करने के पश्चात तथा पूजा करने वाले पंडितों का आशिर्वाद प्राप्त करने के पश्चात यह पूजा संपूर्ण मानी जाती है। हालांकि किसी भी अन्य पूजा की भांति चन्द्र पूजा में भी उपरोक्त विधियों तथा औपचारिकताओं के अतिरिक्त अन्य बहुत सी विधियां तथा औपचारिकताएं पूरी की जातीं हैं किन्तु उपर बताईं गईं विधियां तथा औपचारिकताएं इस पूजा के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं तथा इसीलिए इन विधियों का पालन उचित प्रकार से तथा अपने कार्य में निपुण पंडितों के द्वारा ही किया जाना चाहिए। इन विधियों तथा औपचारिकताओं में से किसी विधि अथवा औपचारिकता को पूरा न करने पर अथवा इन्हें ठीक प्रकार से न करने पर जातक को इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल में कमी आ सकती है तथा जितनी कम विधियों का पूर्णतया पालन किया गया होगा, उतना ही इस पूजा का फल कम होता जाएगा।

    चन्द्र पूजा के आरंभ होने से लेकर समाप्त होने तक पूजा करवाने वाले जातक को भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इस अवधि के भीतर जातक के लिए प्रत्येक प्रकार के मांस, अंडे, मदिरा, धूम्रपान तथा अन्य किसी भी प्रकार के नशे का सेवन निषेध होता है अर्थात जातक को इन सभी वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में अपनी पत्नि अथवा किसी भी अन्य स्त्री के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिएं तथा अविवाहित जातकों को किसी भी कन्या अथवा स्त्री के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिएं। इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में किसी भी प्रकार का अनैतिक, अवैध, हिंसात्मक तथा घृणात्मक कार्य आदि भी नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को प्रतिदिन मानसिक संकल्प के माध्यम से चन्द्र पूजा के साथ अपने आप को जोड़ना चाहिए तथा प्रतिदिन स्नान करने के पश्चात जातक को इस पूजा का समरण करके यह संकल्प करना चाहिए कि चन्द्र पूजा उसके लिए अमुक स्थान पर अमुक संख्या के पंडितों द्वारा चन्द्र वेद मंत्र के 125,000 संख्या के जाप से की जा रही है तथा इस पूजा का विधिवत और अधिकाधिक शुभ फल उसे प्राप्त होना चाहिए। ऐसा करने से जातक मानसिक रूप से चन्द्र पूजा के साथ जुड़ जाता है तथा जिससे इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल और भी अधिक शुभ हो जाते हैं।

    यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि चन्द्र पूजा जातक की अनुपस्थिति में भी की जा सकती है तथा जातक के व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की स्थिति में इस पूजा में जातक की तस्वीर अर्थात फोटो का प्रयोग किया जाता है जिसके साथ साथ जातक के नाम, उसके पिता के नाम तथा उसके गोत्र आदि का प्रयोग करके जातक के लिए इस पूजा का संकल्प किया जाता है। इस संकल्प में यह कहा जाता है कि जातक किसी कारणवश इस पूजा के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में सक्षम नहीं है जिसके चलते पूजा करने वाले पंडितों में से ही एक पंड़ित जातक के लिए जातक के द्वारा की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं पूरा करने का संकल्प लेता है तथा उसके पश्चात पूजा के समाप्त होने तक वह पंडित ही जातक की ओर से की जाने वाली सारी क्रियाएं करता है जिसका पूरा फल संकल्प के माध्यम से जातक को प्रदान किया जाता है। प्रत्येक प्रकार की क्रिया को करते समय जातक की तस्वीर अर्थात फोटो को उपस्थित रखा जाता है तथा उसे सांकेतिक रूप से जातक ही मान कर क्रियाएं की जातीं हैं। उदाहरण के लिए यदि जातक के स्थान पर पूजा करने वाले पंडित को भगवान शिव को पुष्प अर्थात फूल अर्पित करने हैं तो वह पंडित पहले पुष्प धारण करने वाले अपने हाथ को जातक के चित्र से स्पर्श करता है तथा तत्पश्चात उस हाथ से पुष्पों को भगवान शिव को अर्पित करता है तथा इसी प्रकार सभी क्रियाएं पूरी की जातीं हैं। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि व्यक्तिगत रूप से अनुपस्थित रहने की स्थिति में भी जातक को चन्द्र पूजा के आरंभ से लेकर समाप्त होने की अवधि तक पूजा के लिए निश्चित किये गए नियमों का पालन करना होता है भले ही जातक संसार के किसी भी भाग में उपस्थित हो। इसके अतिरिक्त जातक को उपर बताई गई विधि के अनुसार अपने आप को इस पूजा के साथ मानसिक रूप से संकल्प के माध्यम से जोड़ना भी होता है जिससे इस चन्द्र पूजा के अधिक से अधिक शुभ फल जातक को प्राप्त हो सकें।

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    चंद्र दोष निवारण के अन्य तरीके —-
    चंद्र दोष के उपाय जो शास्त्रों में उल्लेखित हैं उनमें सोमवार का व्रत करना, माता की सेवा करना, शिव की आराधना करना, मोती धारण करना, दो मोती या दो चांदी का टुकड़ा लेकर एक टुकड़ा पानी में बहा देना तथा दूसरे को अपने पास रखना है.

    कुंडली के छठवें भाव में चंद्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है. यदि चंद्र बारहवां हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएं और ना ही दूध पिलाएं. सोमवार को सफेद वास्तु जैसे दही, चीनी, चावल, सफेद वस्त्र, 1 जोड़ा जनेऊ, दक्षिणा के साथ दान करना और ॐ सोम सोमाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है.

    जाप मंत्र —

    ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:.

    चंद्र नमस्कार के लिए मंत्र —

    दधि शंख तुषारामं क्षीरोदार्णव सम्भवम्. नमामि शशिनं भक्तया शम्भोर्मकुट भूषणम्..

    शिव का महामृत्युंजय मंत्र—

    त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्ष्रिय मामृतात्.

    इसे मृत संजीवनी मंत्र भी कहा गया है. यह मंत्र दैत्य गुरु शुक्राचार्य द्वारा दधीचि ऋषि को प्रदान किया गया था. चन्द्र दोष निवारण के लिये शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक करवाएं. यदि आपके आसपास कोई शिव मंदिर हो तो वहां जाकर विशेष पूजा -अर्चना करनी चाहिए. उस रात्रि को संभव हो तो शिव मंदिर में जाकर जागरण करें.

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    प्रकांड पंडित रावण द्वारा चंद्र दोष निवारण के लिये तांत्रिक टोटका —-

    महापंडित रावण जैसे ज्ञानी चार वेदों के ज्ञान के आधार पर और अपने ज्योतिष ज्ञान के आधार पर चंद्र दोष निवारण के कुछ उपाय बताएं हैं. रावण के महान विद्या के आधार पर ‘लाल किताब’ की रचना की गयी है. यहां वैदिक ज्योतिष में चंद्र दोष निवारण के लिए बड़े बड़े हवन आदि करने पड़ते है वहीं रावण के तांत्रिक टोटके उस समस्या को कुछ ही दिनों में नष्ट कर देते है. हमारे ज्योतिष शास्त्रों ने चंद्रमा को चौथे घर का कारक माना है. यह कर्क राशी का स्वामी है. चन्द्र ग्रह से वाहन का सुख सम्पति का सुख विशेष रूप से माता और दादी का सुख और घर का रूपया पैसा और मकान आदि सुख देखा जाता है.

    उपाय –
    प्रकांड विद्वान महामहिम रावण ने अपनी संहिता में कुंडली में उपस्थित चंद्रग्रहण के स्थायी समाधान हेतु निम्न सटीक उपाय सुझाये हैं परंतु यह ग्रहण के समय ही फलित होगा।

    1 किलो जौ दूध में धोकर और एक सुखा नारियल चलते पानी में बहायें और 1 किलो चावल मंदिर में चढ़ा दे।

    अगर चन्द्र राहू के साथ है और यदि चन्द्र केतु के साथ है तो चूना पत्थर ले उसे एक भूरे कपडे में बांध कर पानी में बहा दे और एक लाल तिकोना झंडा किसी मंदिर में चढ़ा दें।
    Achary Rajesh Kumar rajpra.infocom@gmail.com

Thursday, 4 January 2018

गणेश चतुर्थी को सर्वप्रथम सकट चौथ की कथा का उल्लेख कब और कहां एवं

गणेश चतुर्थी को सर्वप्रथम सकट चौथ की कथा का उल्लेख कब और कहां एवं इसका महात्म्य :-
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मित्रों , यह पर्व प्रति वर्ष माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष सकट चौथ ०५ जनवरी २०१८ (शुक्रवार) को है।

इस दिन रात्रि के समय चंद्र उदय होने के बाद चन्द्र को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं  ब्रत तोड़ती हैं।

सकट चतुर्थी के दिन महिलाएं सुख-सौभाग्य, संतान की समृद्धि और सर्वत्र कल्याण की इच्छा से प्रेरित होकर व्रत रखती हैं।

  पदम पुराण के अनुसार इस व्रत को स्वयं भगवान गणेश ने मां पार्वती को बताया था। वैसे तो हर महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी 'गणेश चतुर्थी' कहलाती है। लेकिन माघ मास की चतुर्थी 'सकट चौथ' कहलाती है।
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 पदम पुराण के अनुसार आज ही के दिन
 ‎चतुर्थी तिथि को भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था और चतुर्थी तिथि के दिन ही कार्तिकेय के साथ पृथ्वी की परिक्रमा लगाने की प्रतिस्पर्धा में उन्होंने पृथ्वी की बजाय भोलेनाथ और मां पार्वती की सात बार परिक्रमा की थी। तब शिवजी ने प्रसन्न होकर देवों में प्रमुख मानते हुए उनको प्रथम पूजा का अधिकार दिया था।

  सकट चौथ व्रत की विधि :-

         भालचंद्र गणेश की पूजा सकट चौथ को की जाती है। प्रात:काल नित्य क्रम से निवृत होकर षोड्शोपचार विधि से गणेश जी की पूजा करें। निम्न श्लोक पढ़कर गणेश जी की वंदना करें :-

गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥

इसके बाद भालचंद्र गणेश का ध्यान करके पुष्प अर्पित करें।
पूरे दिन मन ही मन श्री गणेश जी के नाम का जप करें । सुर्यास्त के बाद स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र पहन लें । अब विधिपूर्वक( अपने घरेलु परम्परा के अनुसार ) गणेश जी का पूजन करें । एक कलश में जल भर कर रखें । धूप-दीप अर्पित करें । नैवेद्य के रूप में तिल तथा गुड़ के बने हुए लड्डु, ईख, गंजी(शकरकंद), गुड़ तथा घी अर्पित करें।

यह नैवेद्य रात्रि भर बांस के बने हुए डलिया(टोकरी) से ढ़ंककर यथावत् रख दिया जाता है । पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की सुख समृद्धि के लिये व्रत रखती है। इस ढ़ंके हुए नैवेद्य को पुत्र ही खोलता है तथा भाई बंधुओं में बांटता है। ऐसी मान्यता है कि इससे भाई-बंधुओं में आपसी प्रेम-भावना की वृद्धि होती है।

 अलग-अलग राज्यों मे अलग-अलग प्रकार के तिल और गुड़ के लड्डु बनाये जाते हैं। तिल के लड्डु बनाने हेतु तिल को भूनकर ,गुड़ की चाशनी में मिलाया जाता है ,फिर तिलकूट का पहाड़ बनाया जाता है, कहीं-कहीं पर तिलकूट का बकरा भी बनाते हैं। तत्पश्चात् गणेश पूजा करके तिलकूट के बकरे की गर्दन घर का कोई बच्चा काट देता है।

गणेश पूजन के बाद चंद्रमा को कलश से अर्घ्य अर्पित करें । धूप-दीप दिखायें। चंद्र देव से अपने घर-परिवार की सुख और शांति के लिये प्रार्थना करें। इसके बाद एकाग्रचित होकर कथा सुनें अथवा सुनायें । सभी उपस्थित जनों में प्रसाद बांट दें।

नोट-अपने घरेलू परंपरा के अनुसार ही इस पूजन को करना चाहिए।

           आचार्य राजेश कुमार
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Wednesday, 27 December 2017

पुत्रदा एकादशी के दिन निःसंतान दंपत्ति करें ये अचूक उपाय


क्या आपकी कुंडली में "संतान योग " नहीं है या संतान को कष्ट है तो “पुत्रदा एकादशी” के दिन पुत्र की प्राप्ति हेतु करें ये अचूक उपाय :-
एकादशी व्रत हिन्दू कैलेंडर के अनुसार बहुत ही शुभ व्रत माना जाता है। एकादशी शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है ग्यारह’ । प्रत्येक महीने में दो एकादशी होती हैं जो कि शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष के दौरान आती हैं। मांह दिसंबर -२०१७ में २९ दिसंबर -२०१७ दिन मंगलवारशुक्ल पक्ष को पौष पुत्रदा एकादशीमनाई जाएगी . , पुत्रदा एकादशी व्रत:-

व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्य होकर सबसे पहले स्नान कर लेना चाहिए। यदि आपके पास गंगाजल है तो पानी में गंगाजल डालकर नहाना चाहिए। स्नान करने के लिए कुश और तिल के लेप का प्रयोग करना श्रेष्ठ माना गया है। स्नान करने के बाद शुद्ध व साफ कपड़ा पहनकर विधिवत भगवान श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
भगवान् विष्णु देव की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं तथा पुनः व्रत का संकल्प लेकर कलश की स्थापना करना चाहिए। कलश को लाल वस्त्र से बांध कर उसकी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद उसके ऊपर भगवान की प्रतिमा रखेंप्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहना देना चाहिए। उसके बाद पुनः धूपदीप से आरती करनी चाहिए और नैवेध तथा फलों का भोग लगाना चाहिए। उसके बाद प्रसाद का वितरण करे तथा ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। रात में भगवान का भजन कीर्तन करना चाहिए। दूसरे दिन ब्राह्मण भोजन तथा दान के बाद ही खाना खाना चाहिए।
भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। संतान की ईच्छा रखने वाले निःसंतान व्यक्ति को इस व्रत को करने से शीघ्र ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। अतः संतान प्राप्ति की ईच्छा रखने वालों को इस व्रत को श्रद्धापूर्वक अवश्य ही करना चाहिए।
संतान प्राप्ति हेतु अज के दिन अचूक उपाय :-
          पुत्रदा एकादशी के दिन सपत्निक विष्णु सहस्त्रनाम का १०८ पाठ एवं एकादशी व्रत पाठ करें तथा विष्णु प्रतिमा या अपने घर के मंदिर के समीप ही शयन करें . ब्राह्मणों को भोजन एवं यथा शक्ति दान दक्षिणा देकर उनक आशीर्वाद प्राप्त करें तो योग्य संतान की प्राप्ति अवश्य होगी .
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा :-

पुत्रदा एकादशी कथा के सम्बन्ध में कहा गया है कि प्राचीन काल में महिष्मति नामक नगरी में महीजित’ नामक एक धर्मात्मा राजा सुखपूर्वक राज्य करता था। वह बहुत ही शांतिप्रियज्ञानी और दानी था। सभी प्रकार का सुख-वैभव से सम्पन्न था परन्तु राजा संतान कोई भी संतान नहीं था इस कारण वह राजा बहुत ही दुखी रहता था।
एक दिन राजा ने अपने राज्य के सभी ॠषि-मुनियोंसन्यासियों और विद्वानों को बुलाकर संतान प्राप्ति के लिए उपाय पूछा। उन ऋषियों में दिव्यज्ञानी लोमेश ऋषि ने कहा- राजन ! आपने पूर्व जन्म में सावन / श्रावण मास की एकादशी के दिन आपके तालाब एक गाय जल पी रही थी आपने अपने तालाब से जल पीती हुई गाय को हटा दिया था। उस प्यासी गाय के शाप देने के कारण तुम संतान सुख से वंचित हो। यदि आप अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी को भगवान जनार्दन का भक्तिपूर्वक पूजन-अर्चन और व्रत करो तो तुम्हारा शाप दूर हो जाएगा। शाप मुक्ति के बाद अवश्य ही पुत्र रत्न प्राप्त होगा।
लोमेश ऋषि की आज्ञानुसार राजा ने ऐसा ही किया। उसने अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से रानी ने एक सुंदर शिशु को जन्म दिया। पुत्र लाभ से राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ और पुनः वह हमेशा ही इस व्रत को करने लगा। उसी समय से यह व्रत लोक में प्रचलित हो गया। अतः जो भी व्यक्ति निःसन्तान है और संतान की इच्छा रखता हो वह व्यक्ति यदि इस व्रत को शुद्ध मन से करता है तो अवश्य ही उसकी इच्छा की पूर्ति है कहा जाता है की भगवान् के घर में देर है पर अंधेर नहीं।
आचार्य राजेश कुमार
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