धनत्रयोदशी:-धनतेरस' स्थाई सुख,
धन और समृद्धि प्राप्त करने का दिन:--
धनतेरस पर पीतल के बर्तन खरीदना होता है शुभ...
धनतेरस पर पीतल के बर्तन खरीदना होता है शुभ...
दिवाली से ठीक दो दिन पूर्व
धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. दरअसल, ऐसी मान्यता है कि धनतेरस
के दिन यानी धनत्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था. तभी से धनत्रयोदशी
के दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा और इस दिन को धन तेरस के रूप में पूजा
जाता है. इस बार धनतेरस 5 नवंबर को है.
उत्तरी भारत में
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व
विश्वास से मनाया जाता है. देव धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी जी और धन के देवता कुबेर के पूजन की परम्परा है.
इस दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है. इस दिन यमदेव की पूजा
करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय
मृ्त्यु का भय नहीं रहता है. धन त्रयोदशी के दिन यमदेव की पूजा करने के बाद घर के
मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर 4 मुख वाला दीपक पूरी रात्रि जलाना चाहिए. इस
दीपक में कुछ पैसा व कौडी भी डाली जाती है.
धनतेरस 2018
का मुहूर्त-
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त: 5 नवंबर
को शाम 6.05 बजे से 8.01 बजे
शुभ मुहूर्त की अवधि: 1 घंटा
55 मिनट
प्रदोष काल: शाम 5.29 से रात 8.07
बजे तक
वृषभ काल: शाम 6:05 बजे से रात 8:01
बजे तक
त्रयोदशी तिथि आरंभ: 5 नवंबर
को सुबह 01:24 बजे
त्रयोदशी तिथि खत्म: 5 नवंबर
को रात्रि 11.46 बजे
इस बार ये त्योहार 5 नवम्बर 2018 (सोमवार) को मनाया जाएगा। धनतेरस पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न होती है। ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान धनतेरस पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है। दिनांक 5 नवम्बर 2018 को सायं 6.05 से 8.01 पर वृष लग्न है जिसे स्थिर लग्न माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है। अतः इस शुभ मुहूर्त में पूजा करने से धन, स्वास्थ्य और आयु बढ़ती है।
धनत्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था और इसीलिए इस दिन को धन तेरस के रूप में पूजा जाता है. दीपावली के दो दिन पहले आने वाले इस त्योहार को लोग काफी धूमधाम से मनाते हैं. इस दिन गहनों और बर्तन की खरीदारी जरूर की जाती है। भगवान धनवंतरि' चिकित्सा के देवता भी हैं इसलिए उनसे अच्छे स्वास्थ्य की भी कामना की जाती है।
देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन मे प्रगत हुए थे भगवान धन्वन्तरी
शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को धन त्रयोदशी कहा जाता है. धन और वैभव देने वाली इस त्रयोदशी का विशेष महत्व माना गया है.
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय बहुत ही दुर्लभ और कीमती वस्तुओं के अलावा शरद पूर्णिमा का चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी के दिन कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धनवंतरी और कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को भगवती लक्ष्मी जी का समुद्र से अवतरण हुआ था. यही कारण है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन और उसके दो दिन पहले त्रयोदशी को भगवान धनवंतरी का जन्म दिवस धनतेरस के रूप में मनाया जाता है.
भगवान धनवंतरी को प्रिय है चाँदी और पीतल
भगवान धनवंतरी को नारायण भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है. इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से दो भुजाओं में वे शंख और चक्र धारण किए हुए हैं. दूसरी दो भुजाओं में औषधि के साथ वे अमृत कलश लिए हुए हैं. ऐसा माना जाता है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ है क्योंकि पीतल भगवान धनवंतरी की प्रिय धातु है।
चांदी खरीदना भी शुभ:-
धनतेरस के दिन लोग घरेलू बर्तन खरीदते हैं, वैसे इस दिन चांदी खरीदना शुभ माना जाता है क्योंकि चांदी चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है और चन्द्रमा शीतलता का मानक है, इसलिए चांदी खरीदने से मन में संतोष रूपी धन का वास होता है क्योंकि जिसके पास संतोष है वो ही सही मायने में स्वस्थ, सुखी और धनवान है।
मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु शुभ फल प्रदान करती है और लंबे समय तक चलती है. लेकिन अगर भगवान की प्रिय वस्तु पीतल की खरीदारी की जाए तो इसका तेरह गुना अधिक लाभ मिलता है.
क्यों है पूजा-पाठ में पीतल का इतना महत्व ?
शुद्ध पीतल का निर्माण तांबा और जस्ता धातुओं के मिश्रण से किया जाता है. सनातन धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक कर्म हेतु पीतल के बर्तन का ही उपयोग किया जाता है.
ऐसा ही एक किस्सा महाभारत में वर्णित है कि सूर्यदेव ने द्रौपदी को पीतल का अक्षय पात्र वरदानस्वरूप दिया था जिसकी विशेषता थी कि द्रौपदी चाहे जितने लोगों को भोजन करा दें, खाना घटता नहीं था।
यम के पूजा का भी विधान और इससे संबन्धित किव्यदंती:-
धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा देवता यम के पूजा का भी विधान है। धनतेरस के दिन यम की पूजा के संबंध में मान्यता है कि इनकी पूजा से घर में असमय मौत का भय नहीं रहता है।
एक किवदन्ती के अनुसार एक राज्य में एक
राजा था, कई वर्षों तक प्रतिक्षा करने के बाद, उसके यहां पुत्र संतान कि प्राप्ति हुई. राजा के पुत्र के बारे में
किसी ज्योतिषी ने यह कहा कि,
बालक का विवाह जिस दिन भी होगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृ्त्यु हो जायेगी.
ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद
दु:ख हुआ, ओर ऎसी घटना से बचने के लिये उसने
राजकुमार को ऎसी जगह पर भेज दिया,
जहां आस-पास कोई स्त्री न रहती हो, एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी, राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक
दूसरे को देखा, दोनों एक दूसरे को देख कर मोहित हो
गये, और उन्होने आपस में विवाह कर लिया.
ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार
ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचें. यमदूत को देख कर
राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी. यह देख यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा की
इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताईयें. इस पर यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक
कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात में जो प्राणी मेरा पूजन करके दीप माला से दक्षिण
दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृ्त्यु का भय नहीं
रहेगा. तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाये जाते
सधन्यवाद,
आपका
आचार्य राजेश कुमार
आपका
आचार्य राजेश कुमार
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