Wednesday 12 September 2018

भाद्रपद की गणेश चतुर्थी गणेशोत्सव का महत्व और पूजन विधि

जिस प्रकार पश्चिम बंगाल की दूर्गा पूजा आज पूरे देश में अत्यधिक प्रचलित हो चुकी है उसी प्रकार महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी का उत्सव भी पूरे देश में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का यह उत्सव लगभग दस दिनों तक चलता है जिस कारण इसे गणेशोत्सव भी कहा जाता है। उत्तर भारत में गणेश चतुर्थी को भगवान श्री गणेश की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

प्रत्येक चन्द्र महीने में 2 चतुर्थी तिथी होती है. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश से सम्बंधित होती है. शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या के बाद चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है, और कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी को संकटा चतुर्थी कहा जाता है.  यद्यपि विनायक चतुर्थी उपवास हर महीने किया जाता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण विनायक चतुर्थी भाद्रपद के महीने में होती है. भाद्रपद के दौरान विनायक चतुर्थी, गणेश चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है. गणेश चतुर्थी को हर साल पूरे भारत में भगवान गणेश के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

 गणेश चतुर्थी 2018 शुभ  मुहूर्त 
चतुर्थी तिथि आरंभ- 16:07 (12 सितंबर 2018)

चतुर्थी तिथि समाप्त- 14:51 (13 सितंबर 2018)

गणेश चतुर्थी पर्व तिथि व मुहूर्त - 13 सितंबर- 2018
   मध्याह्न गणेश पूजा – 11:04 से 13:31

   चंद्र दर्शन से बचने का समय- 16:07 से 20:34 (12 सितंबर 2018)

    चंद्र दर्शन से बचने का समय- 09:32 से 21:13 (13 सितंबर 2018)


भगवान गणेश के भक्त संकटा चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी तरह के विघ्न हरने के लिए पूजे जाते हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है।
जो इस उपवास का पालन करते हैं, उन भक्तों को भगवान गणेश ज्ञान और धैर्य के साथ आशीर्वाद देते हैं.

 गणेश चतुर्थी पर गणेश पूजा दोपहर के दौरान की जाती है जो हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से मध्यान्ह होता है.

गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, १० दिन के बादअनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है और यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है। अनन्त चतुर्दशी के दिन श्रद्धालु-जन बड़े ही धूम-धाम के साथ सड़क पर जुलूस निकालते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा का सरोवर, झील, नदी इत्यादि में विसर्जन करते हैं।


Wednesday 5 September 2018

🌹🥀🌸🌸🌱🌻
 5 सितंबर यानी "शिक्षक दिवस" प्रख्यात शिक्षाविद,दार्शनिक व विचारक "भारतरत्न पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती~
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बिना गुरु के ज्ञान संभव नही और बिना ज्ञान के विजय संभव नही ।
जब से ये सृस्टि की की संरचना हुई तब से ही यह परिपाटी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।
जो शिक्षक होते हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ की श्रेणी में रखा गया है ।
प्राचीनकाल की गुरुकुल की शिक्षा से लेकर आज की कलयुगी शिक्षा तक का सफर बिना गुरु के मार्गदर्शन के असंभव थी। तभी तो कबीर दास जी ने कहा है
की
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागौ पाय । बलिहारी गुरु आपणै,गोविंद दियो बताय।।
 शास्त्रोक्तलिखित- तस्मै श्री गुरुवे नमः
  के व्याख्यान से हमे बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
  🌿🌿🌿🌿🌿
पुराने समय में शिक्षक बनना एक सम्मान का प्रतीक था, वहीं अब शिक्षक बनना व्यवसाय का प्रतीक है। अब सम्पूर्ण जगत में शिक्षा का व्यवसाईकरण तेजी से हो रहा है।
अब ना तो ऐसे शिक्षक रहे और न ही ऐसे शिष्य।
यद्यपि बहुत सी संस्थाएं बहुत से शिक्षक निःस्वार्थभाव से इस देश की युवा पीढ़ी को सदमार्ग दिखाने हेतु कार्यरत हैं किन्तु जब तक हम जागरूक नही होंगे तब तक ये संस्थाएं कभी सफल नही हो सकतीं।

 हमारे जीवन का प्रथम शिक्षक हमारे अपने अविभावक, माता-पिता हैं।
 युवापीढ़ी को सही मार्ग दिखाने में हर माता-पिता का बहुत बड़ा रोल होता है। क्योंकि बच्चे का अधिक समय उन्ही के पास बीतता है।

 शिक्षा और शिक्षक की गुणवत्ता में दिनप्रतिदिन कमी आती जा रही है।
  उदाहरणतः यदि किसी विद्यालय में 2000 बच्चे हैं तो उसमे से लगभग 5-7 प्रतिशत  ही सर्वोच्चतम ज्ञान/स्थान प्राप्त करते हैं शेष बच्चे एवरेज या बिलो एवरेज रह जाते हैं। यही अनुपात  प्रतिवर्ष होने के कारण बेरोजगारी, असफलता दिनोदिन बढ़ती जा रही है।
  🌲🌲🌲🌲🌲
 परंतु आजकल के माता-पिता,अविभावक अत्यधिक संतानमोह के कारण अपने बच्चों को मोहपाश के मकड़जाल में इस कदर जकड़े हैं की बच्चे स्वयं सदमार्ग अपनाने के बजाय कुमार्ग अपनाने में ज्यादा रुचि रख रहे है । इसके मुख्य कारण
 1-बच्चे को अत्यधिक सुखसुविधा देना, उनकी गलतियों को गंभीरता से नहीं लेना,उन्हें आत्मनिर्भर बनने हेतु स्वयं निर्णय नही लेने देना।

 2- उनकी हर जिद्द पूरी करना ही असफलता का कारण है।

 3- सोशल मीडिया,मोबाइल सुमार्ग कम, कुमार्ग का रास्ता ज्यादा देता है ।

 4- उन्हें हम बचपन से ही मल्टीमीडिया मोबाइल पकड़ा देते है। जबकि इसकी जगह बटन मोबाइल से भी उनकी पकड़ रख सकते हैं।

 5- बचपन से ही उन्हें बाइक,कार पकड़ा देते हैं ।

 6- पैसे का हिसाब किताब नहीं पूछते हैं ।
 7- उनकी सोहबत पर नज़र नही रखते है।
 8- परिवार में पाश्चात्य संस्कृत को बढ़ावा देना।

 9-बच्चे पर निगरानी का अभाव होना।
 🍁🍁🍁🍁🍁
 यही कारण है की असफल बच्चे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु गलत मार्ग अपना लेते हैं।
 कहने को तो बहुत कुछ है किन्तु समयाभाव के कारण मैं आपसे बस इतना ही कहना चाहूंगा की बच्चे की परवरिश में कोई कमी न रखें किन्तु याद रखें ज्यादातर देखा गया है की अत्यधिक सुख सुविधा देना ही बड़े होने पर उनके भविष्य के लिए घातक हो सकती है। हर चीज बैलेंस अनुपात में होनी चाहिए।
 आचार्य राजेश कुमार
 www.divyanshjyotish.com
🙏🙏🌸🙏🙏🌸🙏🙏🌸🙏🙏

Monday 3 September 2018



~ईश्वर एक नाम अनेक~
जन्माष्टमी पर विशेष /श्रीमदभगवतगीता एवं अन्य  ग्रन्थों से संकलित लेख
देवता को डॉन या तड़ीपार से संबोधित करना बहुत गलत और शर्मनाक है

 प्रत्येक वर्ष भगवान “श्री कृष्ण जी” के जन्म दिन पर भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र मे उनके जन्मदिन मनाने की  होड़ चारो  तरफ लग जाती  है । विश्व के हर कोने मे उनका जन्मदिन लोग भिन्न भिन्न तरीके से मनाते  हैं । वास्तव मे देखा जाय तो ईश्वर के अवतार मे श्री कृष्ण ही ऐसे देव हैं जो बिश्व के हर कोने मे अत्यधिक प्रसिद्ध हैं।
जब से सोशल  नेटवर्क हम सभी के हाथों  मे पहुचा है तब से  अभिव्यक्ति की आज़ादी” के कारण ज़्यादातर युवा पीढ़ी श्रीक़ृष्ण के जन्मदिन की बधाई अपनों के बीच अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल करते हुए देते हैं जैसे कोई ड़ान तो कोई  तड़ीपार इत्यादि इत्यादि असंसदीय शब्दों का प्रयोग करते हुए आफ्नो के बीच बधाई देते  है । हमे लगता है की ये उचित नहीं है ।
 यदि भगवान श्री कृष्ण के बारे मे ग्रंथो मे उल्लेखित तथ्य पढ़ने का आपके पास  समय नहीं है तो कम से कम उनके बारे मे मुख्य-मुख्य तथ्यों की जानकारी से मै अवगत करा रहा हूँ जिसे आपको अवश्य समझना चाहिए ।
 पूर्व से उपलब्ध ग्रन्थों मे उनके जीवन के बारे  मे लिखी गई कुछ रोचक बातों का संकलन आप  सभी के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हूँ ........


श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका का नाम राधारानी था जो बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत बड़ी थी। लगभग 6 साल से भी ज्यादा का अंतर था। श्री कृष्ण ने 14 वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था।। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले।
 श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।।
 श्री कृष्ण की कुल 125 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।
 श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे।
 श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था।
श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था..
 श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।
 श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे, अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे।
 श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था। क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।।

 श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु ।
 दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।
श्री कृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था।
 श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।
 श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।
 श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन  दिया था।

भगवान् श्री कृष्ण को अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाना जाता है।
 उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है।
 राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है।
महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते है।
 उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते है।
बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते है।
 दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते है।
गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते है।
असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।
 मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।
 गोविन्द या गोपाल में "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है गोपाल है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
आचार्य राजेश कुमार Website- www.divyanshjyotish.com

पहले कृष्ण जी के बारे में जाने फिर *जन्माष्टमी की शुभकामनाएं* दें।
 देवता को डॉन या तड़ीपार से संबोधित करना बहुत गलत और शर्मनाक है *भगवान श्री कृष्ण*.....🌹

भगवान् *श्री कृष्ण* को अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाना जाता है।

* उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है।

* राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है।

* महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते है।

* उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते है।

* बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते है।

* दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते है।

* गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते है।

* असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।

* मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।

* गोविन्द या गोपाल में "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है गोपाल है।

* श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था..

* श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।

* श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे, अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे।

* श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था। क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।।

* श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु ।

* दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।

* श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका का नाम राधारानी था जो बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत बड़ी थी। लगभग 6 साल से भी ज्यादा का अंतर था। श्री कृष्ण ने 14 वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था।। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले।

* श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।।

* श्री कृष्ण की कुल 125 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।

* श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे।

* श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था।

* श्री कृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था।

* श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।

* श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।

* श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन  दिया था।

*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं*

Friday 31 August 2018


माह सितंबर 2018 के तीज त्योहार 

काशी  पंचांग के अनुसार सावन महीने के खत्म होते ही  छठा माह भाद्रपद शुरू हो जाता है। चातुर्मास के 4 पवित्र महीनों का यह दूसरा महीना होता है।

1-Sep-18 शनिवार                            बलराम जयन्ती, रांधण छठ *गुजरात
2-Sep-18
रविवार                            कृष्ण जन्माष्टमी, शीतला सातम *गुजरात, भानु सप्तमी, मासिक कार्तिगाई,
3-Sep-18
सोमवार                            कृष्ण जन्माष्टमी, कालाष्टमी, दही हांडी ,आद्याकाली जयन्ती, अष्टमी रोहिणी, रोहिणी व्रत
4-Sep-18
मंगलवार                           दही हाण्डी
6-Sep-18
बृहस्पतिवार                      अजा एकादशी
7-Sep-18
शुक्रवार                            पर्यूषण पर्वारम्भ, प्रदोष व्रत
8-Sep-18
शनिवार                           मासिक शिवरात्रि
9-Sep-18
रविवार                            भाद्रपद अमावस्या, दर्श अमावस्या, पिठोरी अमावस्या, पोला,     वृषभोत्सव
11-Sep-18
मंगलवार                         चन्द्र दर्शन, सामवेद उपाकर्म
12-Sep-18
बुधवार                           वराह जयन्ती, हरतालिका तीज, गौरी हब्बा, अल-हिजरा, इस्लामी नया साल
13-Sep-18
बृहस्पतिवार                    गणेश चतुर्थी
14-Sep-18
शुक्रवार                         ऋषि पञ्चमी, सम्वत्सरी पर्व
15-Sep-18
शनिवार                        स्कन्द षष्ठी, गौरी आवाहन
16-Sep-18
रविवार                         ललिता सप्तमी, भानु सप्तमी, गौरी पूजा
17-Sep-18
सोमवार                         राधा अष्टमी, मासिक दुर्गाष्टमी, महालक्ष्मी व्रत आरम्भ, दूर्वा अष्टमी, गौरी विसर्जन, कन्या संक्रान्ति, विश्वकर्मा पूजा
20-Sep-18
बृहस्पतिवार                    परिवर्तिनी एकादशी
21-Sep-18
शुक्रवार                          वैष्णव परिवर्तिनी एकादशी, वामन जयन्ती, कल्की द्वादशी, भुवनेश्वरी जयन्ती, अशुरा का दिन, मुहर्रम

22-Sep-18
शनिवार                         प्रदोष व्रत, शनि त्रयोदशी
23-Sep-18
रविवार                          शरद्कालीन सम्पात
24-Sep-18
सोमवार                         अनन्त चतुर्दशी, गणेश विसर्जन, पूर्णिमा उपवास, पूर्णिमा श्राद्ध
25-Sep-18
मंगलवार                        भाद्रपद पूर्णिमा, प्रतिपदा श्राद्ध
26-Sep-18
बुधवार                          आश्विन प्रारम्भ *उत्तर, द्वितीया श्राद्ध
27-Sep-18
बृहस्पतिवार                   तृतीया श्राद्ध
28-Sep-18
शुक्रवार                        महा भरणी, चतुर्थी श्राद्ध, संकष्टी चतुर्थी
29-Sep-18
शनिवार                       पञ्चमी श्राद्ध
30-Sep-18
रविवार                       षष्ठी श्राद्ध, रोहिणी व्रत

आचार्या राजेश कुमार ( rajpra.infocom@gmail.com)
दिव्यान्श ज्योतिष केंद्र

Thursday 30 August 2018

 

श्री कृष्ण जन्मोत्सव को "व्रतराज" क्यों कहते हैं और इसका हमारे जीवन में क्या है महत्व और कब है वास्तविक शुभ मुहूर्त/ सात अक्षरी, आठ अक्षरी और बारह अक्षरी मंत्र बोलने और जप करने से कठिन से कठिन कार्य पूर्ण होते हैं :-
हर साल जन्माष्टमी रक्षा बंधन के बाद मनाई जाती है । जन्माष्टमी के त्योहार के कारण बाज़ार कृष्ण जन्मोत्सव संबन्धित सजावट के सामानो से सज गया है  हर वर्ष की तरह  ही सभी गृहस्त जन इस बात को लेकर  उलझन में हैं  कि कृष्ण जन्माष्टमी किस तारीख को मनाई जाएगी. कुछ लोगों को कहना है कि कृष्ण जन्माष्टमी 2 सितंबर को मनाई जाएगी वहीं कुछ 3 सितंबर को मनाने की बात कह रहे हैं.
कब है  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त और नियम:-

शास्त्रों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन वृष राशि में चंद्रमा व सिंह राशि में सूर्य था । इसलिए श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव भी इसी काल में ही मनाया जाता है। लोग रातभर मंगल गीत गाते हैं और भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में होने के कारण इसको कृष्णजन्माष्टमी कहते हैं। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण का रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में रोहिणी नक्षत्र का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं।

काशी पंचांग के अनुसार इस बार अष्टमी 02 सितंबर 2018 को रात्रि 08:47 पर आरम्भ होगी और यह 03 सितंबर 2018 को रात्रि 8.04 पर समाप्त होगी।
चुकी मध्य  रात्रि में अष्टमी तिथि 02 सितंबर 2018 को मिलेगी । इसलिए इस बार जन्माष्टमी 02 सितम्बर को मनाना उत्तम होगा। मध्य रात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म होगा और तभी जन्मोत्सव मनाया जाएगा। ।
 इसका शुभ मुहूर्त रात में 23:58 से 00:44 तक करीब 45 मिनट का है। जन्माष्टमी का पारण 3 सितम्बर को होगा। 
अष्टमी तिथि मे गृहस्त जन एवं नवमी तिथि मे वैष्णवजन व्रत पूजन करते हैं ।
गृहस्थ जनो  के लिए पूजन विधि :-
वैसे तो भक्तजन  नियमतः भगवान की छठी, बरही इत्यादि बड़े धूमधाम से मनाते हैं । लगभग 12 दिन तक झांकी सजी रहती है किन्तु समयाभाव के कारण ज़्यादातर गृहस्थ जन लोग केवल जन्मदिन के दिन ही पुजापाठ करते है । अथवा मंदिरो मे देशन कर लेते हैं । वृस्तृत पुजा केवल मंदिरों  ही होती है ।

जो भक्तजन अपने घर के मंदिर मे जन्माष्टमी के दिन  भगवान का जन्म कराते है उन्हे कृष्णजी या लड्डू गोपाल की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराकर  दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, केसर के घोल से स्नान कराकर फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं। फिर सुन्दर वस्त्र पहनाएं। रात्रि बारह बजे भोग लगाकर पूजन करें व फिर श्रीकृष्णजी की आरती करें  । उसके बाद भक्तजन प्रसाद ग्रहण करें। व्रती दूसरे दिन नवमी में व्रत का पारणा करें।


श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शास्त्रों में इसके व्रत को व्रतराजकहा जाता है :-

मान्यता है कि इस एक दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है। अगर भक्त पालने में भगवान को झुला दें, तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति , दीर्घआयु तथा सुखसमृद्धि की प्राप्ति होती है।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है।



भगवान श्रीकृष्ण श्री विष्णु के आठवें अवतार हैं।इस दिन भगवान स्वयं पृथ्वी पर अवतरित हुए थे इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी अथवा जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष रात्रि बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला में झुलाया जाता है।

सभी लोग इस दिन अलग-अलग तरीके से पूजा-पाठ करते हैं। लेकिन इस दिन इन मंत्रों का जाप बहुत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। सात अक्षरी, आठ अक्षरी और बारह अक्षरी मंत्र बोलने और जप करने में बड़े सरल और मंगलकारी हैं और ये मंत्र हैं -
ऊं क्रीं कृष्णाय नमः
'गोकुल नाथाय नम:'

'ऊँ नमो भगवते श्री गोविन्दाय'

'गोवल्लभाय स्वाहा'

जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर हो वे आज विशेष पूजा से लाभ पा सकते हैं।


आचार्य राजेश कुमार