Monday 3 September 2018



~ईश्वर एक नाम अनेक~
जन्माष्टमी पर विशेष /श्रीमदभगवतगीता एवं अन्य  ग्रन्थों से संकलित लेख
देवता को डॉन या तड़ीपार से संबोधित करना बहुत गलत और शर्मनाक है

 प्रत्येक वर्ष भगवान “श्री कृष्ण जी” के जन्म दिन पर भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र मे उनके जन्मदिन मनाने की  होड़ चारो  तरफ लग जाती  है । विश्व के हर कोने मे उनका जन्मदिन लोग भिन्न भिन्न तरीके से मनाते  हैं । वास्तव मे देखा जाय तो ईश्वर के अवतार मे श्री कृष्ण ही ऐसे देव हैं जो बिश्व के हर कोने मे अत्यधिक प्रसिद्ध हैं।
जब से सोशल  नेटवर्क हम सभी के हाथों  मे पहुचा है तब से  अभिव्यक्ति की आज़ादी” के कारण ज़्यादातर युवा पीढ़ी श्रीक़ृष्ण के जन्मदिन की बधाई अपनों के बीच अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल करते हुए देते हैं जैसे कोई ड़ान तो कोई  तड़ीपार इत्यादि इत्यादि असंसदीय शब्दों का प्रयोग करते हुए आफ्नो के बीच बधाई देते  है । हमे लगता है की ये उचित नहीं है ।
 यदि भगवान श्री कृष्ण के बारे मे ग्रंथो मे उल्लेखित तथ्य पढ़ने का आपके पास  समय नहीं है तो कम से कम उनके बारे मे मुख्य-मुख्य तथ्यों की जानकारी से मै अवगत करा रहा हूँ जिसे आपको अवश्य समझना चाहिए ।
 पूर्व से उपलब्ध ग्रन्थों मे उनके जीवन के बारे  मे लिखी गई कुछ रोचक बातों का संकलन आप  सभी के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हूँ ........


श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका का नाम राधारानी था जो बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत बड़ी थी। लगभग 6 साल से भी ज्यादा का अंतर था। श्री कृष्ण ने 14 वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था।। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले।
 श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।।
 श्री कृष्ण की कुल 125 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।
 श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे।
 श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था।
श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था..
 श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।
 श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे, अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे।
 श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था। क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।।

 श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु ।
 दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।
श्री कृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था।
 श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।
 श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।
 श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन  दिया था।

भगवान् श्री कृष्ण को अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाना जाता है।
 उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है।
 राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है।
महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते है।
 उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते है।
बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते है।
 दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते है।
गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते है।
असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।
 मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।
 गोविन्द या गोपाल में "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है गोपाल है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
आचार्य राजेश कुमार Website- www.divyanshjyotish.com

पहले कृष्ण जी के बारे में जाने फिर *जन्माष्टमी की शुभकामनाएं* दें।
 देवता को डॉन या तड़ीपार से संबोधित करना बहुत गलत और शर्मनाक है *भगवान श्री कृष्ण*.....🌹

भगवान् *श्री कृष्ण* को अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाना जाता है।

* उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है।

* राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है।

* महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते है।

* उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते है।

* बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते है।

* दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते है।

* गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते है।

* असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।

* मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।

* गोविन्द या गोपाल में "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है गोपाल है।

* श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था..

* श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।

* श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे, अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे।

* श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था। क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।।

* श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु ।

* दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।

* श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका का नाम राधारानी था जो बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत बड़ी थी। लगभग 6 साल से भी ज्यादा का अंतर था। श्री कृष्ण ने 14 वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था।। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले।

* श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।।

* श्री कृष्ण की कुल 125 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।

* श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे।

* श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था।

* श्री कृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था।

* श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।

* श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।

* श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन  दिया था।

*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं*

Friday 31 August 2018


माह सितंबर 2018 के तीज त्योहार 

काशी  पंचांग के अनुसार सावन महीने के खत्म होते ही  छठा माह भाद्रपद शुरू हो जाता है। चातुर्मास के 4 पवित्र महीनों का यह दूसरा महीना होता है।

1-Sep-18 शनिवार                            बलराम जयन्ती, रांधण छठ *गुजरात
2-Sep-18
रविवार                            कृष्ण जन्माष्टमी, शीतला सातम *गुजरात, भानु सप्तमी, मासिक कार्तिगाई,
3-Sep-18
सोमवार                            कृष्ण जन्माष्टमी, कालाष्टमी, दही हांडी ,आद्याकाली जयन्ती, अष्टमी रोहिणी, रोहिणी व्रत
4-Sep-18
मंगलवार                           दही हाण्डी
6-Sep-18
बृहस्पतिवार                      अजा एकादशी
7-Sep-18
शुक्रवार                            पर्यूषण पर्वारम्भ, प्रदोष व्रत
8-Sep-18
शनिवार                           मासिक शिवरात्रि
9-Sep-18
रविवार                            भाद्रपद अमावस्या, दर्श अमावस्या, पिठोरी अमावस्या, पोला,     वृषभोत्सव
11-Sep-18
मंगलवार                         चन्द्र दर्शन, सामवेद उपाकर्म
12-Sep-18
बुधवार                           वराह जयन्ती, हरतालिका तीज, गौरी हब्बा, अल-हिजरा, इस्लामी नया साल
13-Sep-18
बृहस्पतिवार                    गणेश चतुर्थी
14-Sep-18
शुक्रवार                         ऋषि पञ्चमी, सम्वत्सरी पर्व
15-Sep-18
शनिवार                        स्कन्द षष्ठी, गौरी आवाहन
16-Sep-18
रविवार                         ललिता सप्तमी, भानु सप्तमी, गौरी पूजा
17-Sep-18
सोमवार                         राधा अष्टमी, मासिक दुर्गाष्टमी, महालक्ष्मी व्रत आरम्भ, दूर्वा अष्टमी, गौरी विसर्जन, कन्या संक्रान्ति, विश्वकर्मा पूजा
20-Sep-18
बृहस्पतिवार                    परिवर्तिनी एकादशी
21-Sep-18
शुक्रवार                          वैष्णव परिवर्तिनी एकादशी, वामन जयन्ती, कल्की द्वादशी, भुवनेश्वरी जयन्ती, अशुरा का दिन, मुहर्रम

22-Sep-18
शनिवार                         प्रदोष व्रत, शनि त्रयोदशी
23-Sep-18
रविवार                          शरद्कालीन सम्पात
24-Sep-18
सोमवार                         अनन्त चतुर्दशी, गणेश विसर्जन, पूर्णिमा उपवास, पूर्णिमा श्राद्ध
25-Sep-18
मंगलवार                        भाद्रपद पूर्णिमा, प्रतिपदा श्राद्ध
26-Sep-18
बुधवार                          आश्विन प्रारम्भ *उत्तर, द्वितीया श्राद्ध
27-Sep-18
बृहस्पतिवार                   तृतीया श्राद्ध
28-Sep-18
शुक्रवार                        महा भरणी, चतुर्थी श्राद्ध, संकष्टी चतुर्थी
29-Sep-18
शनिवार                       पञ्चमी श्राद्ध
30-Sep-18
रविवार                       षष्ठी श्राद्ध, रोहिणी व्रत

आचार्या राजेश कुमार ( rajpra.infocom@gmail.com)
दिव्यान्श ज्योतिष केंद्र

Thursday 30 August 2018

 

श्री कृष्ण जन्मोत्सव को "व्रतराज" क्यों कहते हैं और इसका हमारे जीवन में क्या है महत्व और कब है वास्तविक शुभ मुहूर्त/ सात अक्षरी, आठ अक्षरी और बारह अक्षरी मंत्र बोलने और जप करने से कठिन से कठिन कार्य पूर्ण होते हैं :-
हर साल जन्माष्टमी रक्षा बंधन के बाद मनाई जाती है । जन्माष्टमी के त्योहार के कारण बाज़ार कृष्ण जन्मोत्सव संबन्धित सजावट के सामानो से सज गया है  हर वर्ष की तरह  ही सभी गृहस्त जन इस बात को लेकर  उलझन में हैं  कि कृष्ण जन्माष्टमी किस तारीख को मनाई जाएगी. कुछ लोगों को कहना है कि कृष्ण जन्माष्टमी 2 सितंबर को मनाई जाएगी वहीं कुछ 3 सितंबर को मनाने की बात कह रहे हैं.
कब है  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त और नियम:-

शास्त्रों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन वृष राशि में चंद्रमा व सिंह राशि में सूर्य था । इसलिए श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव भी इसी काल में ही मनाया जाता है। लोग रातभर मंगल गीत गाते हैं और भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में होने के कारण इसको कृष्णजन्माष्टमी कहते हैं। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण का रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में रोहिणी नक्षत्र का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं।

काशी पंचांग के अनुसार इस बार अष्टमी 02 सितंबर 2018 को रात्रि 08:47 पर आरम्भ होगी और यह 03 सितंबर 2018 को रात्रि 8.04 पर समाप्त होगी।
चुकी मध्य  रात्रि में अष्टमी तिथि 02 सितंबर 2018 को मिलेगी । इसलिए इस बार जन्माष्टमी 02 सितम्बर को मनाना उत्तम होगा। मध्य रात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म होगा और तभी जन्मोत्सव मनाया जाएगा। ।
 इसका शुभ मुहूर्त रात में 23:58 से 00:44 तक करीब 45 मिनट का है। जन्माष्टमी का पारण 3 सितम्बर को होगा। 
अष्टमी तिथि मे गृहस्त जन एवं नवमी तिथि मे वैष्णवजन व्रत पूजन करते हैं ।
गृहस्थ जनो  के लिए पूजन विधि :-
वैसे तो भक्तजन  नियमतः भगवान की छठी, बरही इत्यादि बड़े धूमधाम से मनाते हैं । लगभग 12 दिन तक झांकी सजी रहती है किन्तु समयाभाव के कारण ज़्यादातर गृहस्थ जन लोग केवल जन्मदिन के दिन ही पुजापाठ करते है । अथवा मंदिरो मे देशन कर लेते हैं । वृस्तृत पुजा केवल मंदिरों  ही होती है ।

जो भक्तजन अपने घर के मंदिर मे जन्माष्टमी के दिन  भगवान का जन्म कराते है उन्हे कृष्णजी या लड्डू गोपाल की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराकर  दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, केसर के घोल से स्नान कराकर फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं। फिर सुन्दर वस्त्र पहनाएं। रात्रि बारह बजे भोग लगाकर पूजन करें व फिर श्रीकृष्णजी की आरती करें  । उसके बाद भक्तजन प्रसाद ग्रहण करें। व्रती दूसरे दिन नवमी में व्रत का पारणा करें।


श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शास्त्रों में इसके व्रत को व्रतराजकहा जाता है :-

मान्यता है कि इस एक दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है। अगर भक्त पालने में भगवान को झुला दें, तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति , दीर्घआयु तथा सुखसमृद्धि की प्राप्ति होती है।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है।



भगवान श्रीकृष्ण श्री विष्णु के आठवें अवतार हैं।इस दिन भगवान स्वयं पृथ्वी पर अवतरित हुए थे इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी अथवा जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष रात्रि बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला में झुलाया जाता है।

सभी लोग इस दिन अलग-अलग तरीके से पूजा-पाठ करते हैं। लेकिन इस दिन इन मंत्रों का जाप बहुत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। सात अक्षरी, आठ अक्षरी और बारह अक्षरी मंत्र बोलने और जप करने में बड़े सरल और मंगलकारी हैं और ये मंत्र हैं -
ऊं क्रीं कृष्णाय नमः
'गोकुल नाथाय नम:'

'ऊँ नमो भगवते श्री गोविन्दाय'

'गोवल्लभाय स्वाहा'

जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर हो वे आज विशेष पूजा से लाभ पा सकते हैं।


आचार्य राजेश कुमार

Friday 17 August 2018


देश वासियों के सभी के दिलों पर राज करने वाला सितारा आखिर इस मतलबी दुनिया को अलविदा कह ही गया-
मैं हार नही मानूँगा, मैं रार नही ठानूँगा--- ने आखिर 16 अगस्त 2018 को शाम 5 बजे एम्स नई दिल्ली में काल से लड़ते-लड़ते देश के तिरंगे झंडे का सम्मान करते हुए 15 अगस्त को पार कर कर ही  गया:---
हम बात कर रहे हैं देश के पूर्व प्रधान मंत्री भारत रत्न एवं महान कवि माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी की।
अटल जी भले ही मध्यप्रदेश के ग्वालियर में जन्म लिए लेकिन वह उत्तर प्रदेश के लखनऊ वासियों के हर दिल में वास् करते थे। लखनऊ की हर गलियाँ हर मोहल्ले के वासिंदों की आंखे आज नम हो गई हैं। आज लखनऊ ही नही बल्कि पूरे देश का हर शख्स उन्हें याद कर उन्हें  भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है।
अटल जी अच्छे वक्ता के साथ अच्छे श्रोता भी थे:-
जब वह सदन में भाषण देते थे तो सदन में उपस्थित  हर पार्टी का सदस्य उन्हें बड़े ध्यान से सुनता था । अटल जी के विरोध करने का अंदाजे बयाँ काबिले तारीफ था। उनकी बात का बुरा शायद ही कोई मानता था।
अटल जी साधारण व्यक्तित्व के धनी थे-
आज से तकरीबन 25-26 वर्ष पूर्व मैं लखनऊ के लाप्लास में एक अपने मित्र श्री शैलेन्द्र शर्मा के यहां जाया करता था। उसी के सामने अटल जी का कमर नम्बर 302-303 था । वहाँ मेरी पहली मुलाक़ात अटल जी से जब हुई तो वह जेब वाली बनियान व धोती पहने हुए छोटे बच्चों से खेलते मिले थे। एक बार "लुका-छिपी "खेलते समय  एक बच्ची कही ऐसी जगह छिप गई की अटल जी को नहीं मिल रही थी तब उनकी नज़र हम पर पड़ी । अटल जी ने हमसे मुस्कुराते हुए कहा था  की देखो वह कहाँ छिप गई है। जब तक अटल जी अपनी आंखे बंद किये थे तो वह लड़की मेरे मित्र के घर में छिप गई थी।
इससे यह स्पष्ट होता था की अटल जी कितने हर दिल अज़ीज़ इंसान थे।
उनके अंदर कभी छोटे बड़े का भेद भाव कदापि नही था । वह छोटों को पहले तवज्जु देते थे। अटल जी जब दिल्ली से  लखनऊ आते थे तो हम उनको वीवीआईपी गेस्ट हाउस या चौक स्थित लाल जी टंडन जी के घर पर ही होने की सूचना पाते थे।

  उनकी याददाश्त बड़ी तेज़ थी।
उनको छोटे छोटे कर्मचारियों एवं लोगों के नाम तक याद रहते थे। अटल जी कहा करते थे की इंसान धन से नहीं मन और दिल से बड़ा होता है।

जैसे इस धरती पर सभी कार्य प्रणाली का हिसाब-किताब रखा जाता है ,ठीक उसी प्रकार ऊपर वाले का भी अपना लेख जोखा रखने की कोई कार्य प्रणाली होगी :----
   तभी तो इसका साक्षात प्रमाण न्यूमरोलोजी के इस  उदाहरण से मिलता है:--
अटल जी का जन्म दिन 25.12.1924 है जबकि उनका अंत दिनांक 16.08.2018 है। इन दोनो तिथियों  के अंकों का योग 26 अर्थात 2+6=8 आएगा।
जन्म दिन का योग:-25.12.1924
2+5+1+2+1+9+2+4=26
उनकी मृत्यु के दिन का योग-16.08.2018
1+6+8+2+1+8=26
इसे आप क्या कहेंगे महज़ एक संयोग या ऊपर वाले का लेख -जोखा !
आचार्य राजेश कुमार
मेल-rajpra.infocom@gmail.com


Wednesday 15 August 2018

     
नागपंचमी- का पर्व-2018
बहुचर्चित कथा-क्यों महिलाएं नाग को भाई मानती है         
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पंचमी तिथि प्रारंभ – 15 अगस्त -2018 को सुबह 03:27 बजे शुरू

पंचमी तिथि समाप्ति – 16 अगस्त को सुबह 01:51 बजे समाप्त। 

    नाग पंचमी , सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है । अमृत सहित नवरत्नों की प्राप्ति के लिए देव-दानवों ने जब समुद्र-मंथन किया था, तो जगत-कल्याण के लिए वासुकी नाग ने मथानी की रस्सी के रुप में काम किया था.

         हिंदू धर्म में नाग देव का अपना विशेष स्थान है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी.
         महाभारत की एक कथा के अनुसार जब महाराजा परीक्षित को उनका पुत्र जनमेजय तक्षक नाग के काटने से नहीं बचा सका तो जनमेजय ने विशाल सर्पयज्ञ कर यज्ञाग्नि में भस्म होने के लिए तक्षक को आने पर विवश कर दिया.
         नागपंचमी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. इस दिन कही और सुनी जाने वाली एक प्रचलित कथा इस प्रकार है-

        एक समय में एक सेठ हुआ करते थे. उनके सात बेटे थे. सातों की शादी हो चुकी थी. सबसे छोटे बेटे की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, लेकिन उसका कोई भाई नहीं था.

         एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को चलने को कहा. इस पर बाकी सभी बहुएं उनके साथ चली गईं और डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगीं. तभी वहां एक नाग निकला. इससे ड़रकर बड़ी बहू ने उसे खुरपी से मारना शुरू कर दिया. इस पर छोटी बहू ने उसे रोका. इस पर बड़ी बहू ने सांप को छोड़ दिया. वह नाग पास ही में जा बैठा. छोटी बहू उसे यह कहकर चली गई कि हम अभी लौटते हैं तुम जाना मत. लेकिन वह काम में व्यस्त हो गई और नाग को कही अपनी बात को भूल गई.

अगले दिन उसे अपनी बात याद आई. वह भागी-भागी उस ओर गई, नाग वहीं बैठा था. छोटी बहू ने नाग को देखकर कहा- सर्प भैया नमस्कार! नाग ने कहा- 'तूने भैया कहा तो तुझे माफ करता हूं, नहीं तो झूठ बोलने के अपराध में अभी डस लेता. छोटी बहू ने उससे माफी मांगी, तो सांप ने उसे अपनी बहन बना लिया.

    कुछ दिन बाद वह सांप इंसानी रूप लेकर छोटी बहू के घर पहुंचा और बोला कि 'मेरी बहन को भेज दो.' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था. उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया.

रास्ते में नाग ने छोटी बहू को बताया कि वह वही नाग है और उसे ड़रने की जरूरत नहीं. जहां चला न जाए मेरी पूंछ पकड़ लेना. बहन ने भाई की बात मानी और वह जहां पहुंचे वह सांप का घर था, वहां धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई.

एक दिन भूलवश छोटी बहू ने नाग को ठंडे की जगह गर्म दूध दे दिया. इससे उसका मुंह जल गया. इस पर सांप की मां बहुत गुस्सा हुई. तब सांप को लगा कि बहन को घर भेज देना चाहिए. इस पर उसे सोना, चांदी और खूब सामान देकर घर भेज दिया गया.

सांप ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था. उसकी प्रशंसा खूब फैल गई और रानी ने भी सुनी. रानी ने राजा से उस हार की मांग की. राजा के मंत्रि‍यों ने छोटी बहू से हार लाकर रानी को दे दिया.

छोटी बहू ने मन ही मन अपने भाई को याद किया ओर कहा- भाई, रानी ने हार छीन लिया, तुम ऐसा करो कि जब रानी हार पहने तो वह सांप बन जाए और जब लौटा दे तो फिर से हीरे और मणियों का हो जाए. सांप ने वैसा ही किया.

रानी से हार वापस तो मिल गया, लेकिन बड़ी बहू ने उसके पति के कान भर दिए. पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा - यह धन तुझे कौन देता है? छोटी बहू ने सांप को याद किया और वह प्रकट हो गया. इसके बाद छोटी बहू के पति ने नाग देवता का सत्कार किया. उसी दिन से नागपंचमी पर स्त्रियां नाग को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।

पूजन विधि:~
नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
- इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। सफेद कमल का फूल पूजा मे रखें  और यह प्रार्थना करें-
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जाप करें-
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।
इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें-
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:.....
  कलयुग में यह पूजा जीवन के हर क्षेत्र में( आर्थिक,पारिवारिक,शारीरिक,सामाजिक, वैवाहिक, व्यावसायिक, नौकरी इत्यादि) श्रेष्ठ एवं शुभ फल प्रदान करती है। आज के दिन शिव मंदिर या अपने निवास स्थान पर रुद्रआभीशेख करवाना  , शिव अमोघ कवच का पाठ करना अत्यंत ही लाभप्रद सिद्ध होता है।एक बार अवश्य कर के देखें । खुद समझ जाएंगे। वैसे आप चाहें तो बाज़ार से नागपंचमी पूजा की किताब खरीद लें।
         आचार्य राजेश कुमार 

Monday 13 August 2018

   हरियाली तीज का मुहूर्त और विधि:-
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श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं  । इस बार हरियाली तीज 13अगस्त 2018 दिन सोमवार को पड़ रही है। 13 अगस्त को मनाई जाएगी. इसे श्रावणी तीज भी कहा जाता है.

क्या है शुभ मुहूर्त

हरियाली तीज का शुभ मुहूर्त 13 अगस्त को सुबह 8:38 पर शुरू होगा और 14 अगस्त को को सुबह 5:46 तक रहेगा.



हरियाली तीज पूजा विधि

हरियाली तीज की पूजा शाम के समय की जाती है. जब दिन और रात मिलते हैं तो उस समय को प्रदोष काल कहते हैं. इस समय स्वच्छ वस्त्र धारण कर पवित्र होकर पूजा करें.

- अब भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मूर्ति बनाएं. परंपरा के अनुसार ये मूर्तियां स्वर्ण की बनी होनी चाहिए लेकिन आप काली मिट्टी से अपने हाथों से ये मूर्तियां बना सकती हैं.

- सुहाग श्रृंगार की चीज़ें माता पार्वती को अर्पित करें.

- अब भगवान शिव को वस्त्र भेंट करें.

- आप सुहाग श्रृंगार की चीज़ें और वस्त्र किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं.

- इसके बाद पूरी श्रद्धा के साथ हरियाली तीज की कथा सुने या पढ़ें.

- कथा पढ़ने के बाद भगवान गणेश की आरती करें. इसके बाद भगवान शिव और फिर माता पार्वती की आरती करें.

- तीनों देवी-देवताओं की मूर्तियों की परिक्रमा करें और पूरे मन से प्रार्थना करें.

- पूरी रात मन में पवित्र विचार रखें और ईश्वर की भक्ति करें. पूरी रात जागरण करे.

- अगले दिन सुबह भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा करें और माता पार्वती को सिंदूर अर्पित करें.

- भगवान को खीरे, हल्वे और मालपुए का भोग लगाएं, और अपना व्रत खोलें.

- ये सभी रीति पूर्ण होने के बाद इन सभी चीज़ों को किसी पवित्र नदी या तालाब में प्रवाहित कर दें.



            यह मुख्यतः स्त्रियों का त्योहार है, इसे मां पार्वती के शिव से मिलन की याद में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ही विरहाग्नि में व्यथित देवी गौरी देवाधिदेव शिव से मिली थीं व आलिंगनबद्ध होकर प्रसन्नता से झूम उठी थीं। इस दिन महिलाएं माता पार्वती की पूजा करती हैं। नवविवाहिता महिलाएं अपने पीहर में आकर यह त्योहार मनाती हैं, इस दिन व्रत रखकर विशेष श्रृंगार किया जाता है। नवविवाहिता इस पर्व को मनाने के लिए एक दिन पूर्व से अपने हाथों एवं पावों में कलात्मक ढंग से मेंहन्दी लगाती हैं।
इस पर्व पर विवाह के पश्चात् पहला सावन आने पर नवविवाहिता लड़की को ससुराल में नहीं छोड़ा जाता है। हरियाली तीज से एक दिन पूर्व सिंजारा मनाया जाता है। इस दिन नवविवाहिता लड़की की ससुराल से वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेंहन्दी एवं मिठाई भेजी जाती है। इस दिन मेंहन्दी लगाने का विशेष महत्व होता है।

कैसे मनाये त्योहार:-
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इस दिन प्रातः काल आम एवं अशोक के पत्तों सहित टहनियां पूजा के स्थान के पास स्थापित झूले को सजाएं तथा दिन भर उपवास रखकर भगवान श्री कृष्ण के श्रीविग्रह को झूले में रखकर श्रृद्धापूर्वक झुलाएं। साथ में लोक गीतों को मधुर स्वर में गाएं। माता पार्वती की सुसज्जित सवारी धूम-धाम से निकाली जाती है। इस दिन महिलाएं तीन संकल्प लें 1. पति से छल कपट नहीं करेंगी, 2. झूठ एवं लोगों से बुरा व्यवहार नहीं करेंगी ।
  आचार्य राजेश कुमार