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Wednesday, 1 January 2020
Thursday, 31 October 2019
Famous Astrologer "Divyansh Jyotish Kendra": भगवान सूर्य देव की बहन ख़ष्ठी मईया का पूजन 31 अक्टू...
Famous Astrologer "Divyansh Jyotish Kendra": भगवान सूर्य देव की बहन ख़ष्ठी मईया का पूजन 31 अक्टू...: भगवान सूर्य देव की बहन ख़ष्ठी मईया का पूजन 31 अक्टूबर-2019 से प्रारम्भ:- जानिए इसके पीछे का इतिहास,भारतवर्ष के ऐतिहासिक सूर्य मंदिर एवं शुभ...
भगवान सूर्य देव की बहन ख़ष्ठी मईया का पूजन 31 अक्टूबर-2019 से प्रारम्भ:-
जानिए इसके पीछे का इतिहास,भारतवर्ष के ऐतिहासिक सूर्य मंदिर एवं शुभ
मुहूर्त :-
छठ पूजा भारत में भगवान सूर्य की उपासना का सबसे प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है।इस त्योहार
को षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है, जिस कारण इसे सूर्य षष्ठी व्रत या छठ कहा गया है. यह
त्योहार एक साल में दो बार मनाया जाता है- पहली बार चैत्र महीने में और दूसरी बार
कार्तिक महीने में. हिन्दू पंचांग की की अगर बात करें तो, चैत्र शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए
जाने वाले छठ त्योहार को चैती छठ कहा जाता है जबकि कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी पर
मनाए जाने वाले इस त्योहार को कार्तिकी छठ कहा जाता है:-
छठ पूजा पर्व तिथि व मुहूर्त 2019
31 अक्तूबर, गुरुवार: नहाय-खाय
1 नवंबर, शुक्रवार : खरना
2 नवंबर, शनिवार: डूबते सूर्य को अर्घ्य
3 नवंबर, रविवार : उगते सूर्य को अर्घ्य और पारण
पूजा विधि : -
भगवान सूर्य देव को सम्पूर्ण रूप से समर्पित यह त्योहार पूरी स्वच्छता के साथ मनाया जाता है|
इस व्रत को पुरुष और स्त्री दोनों ही सामान रूप से धारण करते है| यह पावन पर्व पुरे चार दिनों
तक चलता है|
व्रत के पहले दिन यानी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाए खाए होता है, जिसमे सारे वर्ती आत्म
सुद्धि के हेतु केवल शुद्ध आहार का सेवन करते है|
कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन खरना रखा जाता है, जिसमे शरीर की शुधि करण के बाद पूजा
करके सायं काल में ही गुड़ की खीर और पुड़ी बनाकर छठी माता को भोग लगाया जाता है| इस
खीर को प्रसाद के तौर पर सबसे पहले वर्तियों को खिलाया जाता है और फिर ब्राम्हणों और
परिवार के लोगो में बांटा जाता है|
कार्तिक शुक्ल षष्टि के दिन घर में पवित्रता के साथ कई तरह के पकवान बनाये जाते है और
सूर्यास्त होते ही सारे पकवानों को बड़े-बड़े बांस के डालों में भड़कर निकट घाट पर ले जाया
जाता है| नदियों में ईख का घर बनाकर उनपर दीप भी जलाये जाते है| व्रत करने वाले सारे स्त्री
और पुरुष जल में स्नान कर इन डालों को अपने हाथों में उठाकर षष्टी माता और भगवान सूर्य
को अर्ग देते है| सूर्यास्त के पश्चात अपने-अपने घर वापस आकर सह-परिवार रात भर सूर्य देवता
का जागरण किया जाता है
कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सूर्योदय से पहले ब्रम्ह मुहूर्त में सायं काल की भाती डालों में पकवान,
नारियल और फलदान रख नदी के तट पर सारे वर्ती जमा होते है| इस दिन व्रत करने वाले
स्त्रियों और पुरुषों को उगते हुए सूर्य को अर्ग देना होता है| इसके बाद छठ व्रत की कथा सुनी
जाती है और कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है| सरे वर्ती इसी दिन प्रसाद ग्रहण कर
पारण करते है|
छठ पूजा सामग्री की सूची :-
प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी।
बांस या पीतल के बने तीन सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास।
नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा।
चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक।
पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो।
सुथनी और शकरकंदी।
हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा।
नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं।
शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी।
कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई।
इसके साथ ही ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू, जिसे
लडु़आ भी कहते हैं आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा।
छठ पूजा 2019: महोत्सव का इतिहास और महत्व:-
छठ केवल एक पर्व ही नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय
से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक
ऐतिहासिक महत्व है।
छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं
1- पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद
को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की
पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो
पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ।
प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान
की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई जो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी
कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए
प्रेरित करने को कहा।
राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।
2-इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के
मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से
मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया।
पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया । मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल
छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की
उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों
तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
3-एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत
सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और
वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान
योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
4- छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा
राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी
हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य
देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना
फलदायी मानी गई।
5-एक मान्यता के अनुसार लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन
कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानी छठ के दिन भगवान राम और माता सीता ने व्रत किया था और
सूर्यदेव की आराधना की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से
आशीर्वाद प्राप्त किया था.
परंपरा के अनुसार छठ पर्व के व्रत को स्त्री और पुरुष समान रूप से रख सकते हैं. छठ पूजा की
परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली पौराणिक और लोककथाओं के अनुसार
यह पर्व सर्वाधिक शुद्धता और पवित्रता का पर्व है.
~~~~~~~~~~~~~~~
भारतवर्ष के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर:-
~~~~~~~~~~~~~~~
1-पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद (बिहार)
2-कोणार्क सूर्य मंदिर, पुरी (उड़ीसा)
3-सूर्य मंदिर, रांची (झारखंड)
4-विवस्वान सूर्य मंदिर, ग्वालियर (मध्यप्रदेश)
5-बेलार्क सूर्य मंदिर, भोजपुर (बिहार)
6-मोढ़ेरा सूर्य मंदिर, पाटन (गुजरात)
आचार्य राजेश कुमार
जानिए इसके पीछे का इतिहास,भारतवर्ष के ऐतिहासिक सूर्य मंदिर एवं शुभ
मुहूर्त :-
छठ पूजा भारत में भगवान सूर्य की उपासना का सबसे प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है।इस त्योहार
को षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है, जिस कारण इसे सूर्य षष्ठी व्रत या छठ कहा गया है. यह
त्योहार एक साल में दो बार मनाया जाता है- पहली बार चैत्र महीने में और दूसरी बार
कार्तिक महीने में. हिन्दू पंचांग की की अगर बात करें तो, चैत्र शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए
जाने वाले छठ त्योहार को चैती छठ कहा जाता है जबकि कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी पर
मनाए जाने वाले इस त्योहार को कार्तिकी छठ कहा जाता है:-
छठ पूजा पर्व तिथि व मुहूर्त 2019
31 अक्तूबर, गुरुवार: नहाय-खाय
1 नवंबर, शुक्रवार : खरना
2 नवंबर, शनिवार: डूबते सूर्य को अर्घ्य
3 नवंबर, रविवार : उगते सूर्य को अर्घ्य और पारण
पूजा विधि : -
भगवान सूर्य देव को सम्पूर्ण रूप से समर्पित यह त्योहार पूरी स्वच्छता के साथ मनाया जाता है|
इस व्रत को पुरुष और स्त्री दोनों ही सामान रूप से धारण करते है| यह पावन पर्व पुरे चार दिनों
तक चलता है|
व्रत के पहले दिन यानी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाए खाए होता है, जिसमे सारे वर्ती आत्म
सुद्धि के हेतु केवल शुद्ध आहार का सेवन करते है|
कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन खरना रखा जाता है, जिसमे शरीर की शुधि करण के बाद पूजा
करके सायं काल में ही गुड़ की खीर और पुड़ी बनाकर छठी माता को भोग लगाया जाता है| इस
खीर को प्रसाद के तौर पर सबसे पहले वर्तियों को खिलाया जाता है और फिर ब्राम्हणों और
परिवार के लोगो में बांटा जाता है|
कार्तिक शुक्ल षष्टि के दिन घर में पवित्रता के साथ कई तरह के पकवान बनाये जाते है और
सूर्यास्त होते ही सारे पकवानों को बड़े-बड़े बांस के डालों में भड़कर निकट घाट पर ले जाया
जाता है| नदियों में ईख का घर बनाकर उनपर दीप भी जलाये जाते है| व्रत करने वाले सारे स्त्री
और पुरुष जल में स्नान कर इन डालों को अपने हाथों में उठाकर षष्टी माता और भगवान सूर्य
को अर्ग देते है| सूर्यास्त के पश्चात अपने-अपने घर वापस आकर सह-परिवार रात भर सूर्य देवता
का जागरण किया जाता है
कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सूर्योदय से पहले ब्रम्ह मुहूर्त में सायं काल की भाती डालों में पकवान,
नारियल और फलदान रख नदी के तट पर सारे वर्ती जमा होते है| इस दिन व्रत करने वाले
स्त्रियों और पुरुषों को उगते हुए सूर्य को अर्ग देना होता है| इसके बाद छठ व्रत की कथा सुनी
जाती है और कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है| सरे वर्ती इसी दिन प्रसाद ग्रहण कर
पारण करते है|
छठ पूजा सामग्री की सूची :-
प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी।
बांस या पीतल के बने तीन सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास।
नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा।
चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक।
पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो।
सुथनी और शकरकंदी।
हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा।
नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं।
शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी।
कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई।
इसके साथ ही ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू, जिसे
लडु़आ भी कहते हैं आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा।
छठ पूजा 2019: महोत्सव का इतिहास और महत्व:-
छठ केवल एक पर्व ही नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय
से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक
ऐतिहासिक महत्व है।
छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं
1- पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद
को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की
पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो
पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ।
प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान
की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई जो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी
कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए
प्रेरित करने को कहा।
राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।
2-इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के
मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से
मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया।
पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया । मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल
छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की
उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों
तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
3-एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत
सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और
वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान
योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
4- छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा
राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी
हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य
देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना
फलदायी मानी गई।
5-एक मान्यता के अनुसार लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन
कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानी छठ के दिन भगवान राम और माता सीता ने व्रत किया था और
सूर्यदेव की आराधना की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से
आशीर्वाद प्राप्त किया था.
परंपरा के अनुसार छठ पर्व के व्रत को स्त्री और पुरुष समान रूप से रख सकते हैं. छठ पूजा की
परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली पौराणिक और लोककथाओं के अनुसार
यह पर्व सर्वाधिक शुद्धता और पवित्रता का पर्व है.
~~~~~~~~~~~~~~~
भारतवर्ष के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर:-
~~~~~~~~~~~~~~~
1-पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद (बिहार)
2-कोणार्क सूर्य मंदिर, पुरी (उड़ीसा)
3-सूर्य मंदिर, रांची (झारखंड)
4-विवस्वान सूर्य मंदिर, ग्वालियर (मध्यप्रदेश)
5-बेलार्क सूर्य मंदिर, भोजपुर (बिहार)
6-मोढ़ेरा सूर्य मंदिर, पाटन (गुजरात)
आचार्य राजेश कुमार
Saturday, 26 October 2019
दीपावली पूजन पूजन विधी
मुहूर्त 27/10/2019 :-
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त –
शाम -7 बजकर 15 मिनट से 8 बजकर 36 मिनट तक
प्रदोश काल- शाम 6 बजकर 4 मिनट से 8 बजकर 36 मिनट तक
वृषभ काल- शाम 7 बजकर 15 मिनट से 9 बजकर15 मिनट तक
लक्ष्मी पूजा चौघड़िया-
2019 दोपहर शुभ पूजा मुहूर्त- दोपहर 1 बजकर
48 से 3 बजकर 13 मिनट तक शाम शुभ,
अमृत, खडोपचार पूजा मुहूर्त – शाम 6 बजकर 04
मिनट से 10 बजकर 48 तक
दिवाली की पूजा विधि -
दिवाली के दिन भगवान गणेश और मां लक्ष्मी तथा कुबेर जी की
पूजा का विधान है।
गृहस्थ के लोगो को वृषभ काल स्थिर लग्न में पूजा करनी चाहिए ।
दिवाली की शाम को पूजा स्थल पर एक
चौकी बिछांए। इसके बाद गंगाजल डालकर चौकी
को साफ करें। इसके बाद भगवान गणेश और मां
लक्ष्मी तथा कुबेर जी की प्रतिमा को स्थापित करें।
पूजा स्थल पर गणेश जी के सामने दाहिनी तरफ आटे से
नवग्रह बनाए और पास में जल से भरा कलश रखें
। उस कलश में कुछ कौड़ियां,गोमती चक्र, सिक्के
सुपारी, शहद ,गंगा जल इत्यादि डालें।
उस कलश पर रोली
से स्वस्तिक बना लें और मोली से कलश को 5 बार लपेट दें।
उस पर आम के पत्ते लगाकर बड़ी दियाली से
कलश को ढक दें । उस दीयाली में चावल रखें
चावल के ऊपर लाल कपड़े में लपेट कर जटा
नारियल
रखें।
इसके बाद पूजा स्थल पर किसी लाल कपड़े की थैली में
कौड़ियां5, गोमती चक्र5, हल्दी की गांठें5, सबूत बादाम 21 रखें ।
,पंच मेवा, गुड़ फूल , मिठाई,घी , कमल
का फूल ,खील बतासे आदि भगवान गणेश और मां
लक्ष्मी के आगे रखें। धनतेरस में खरीदे गए समान भी पूजा स्थान पर ही रखें ।
भगवान गणेश और मां लक्ष्मीजी एवं कुबेर जी के
आगे घी का दीपक 5 या 11 जलाएं और
आवश्यकतानुसार कड़ू तेल के
दीपक तैयार कर रखे। पूजा समाप्ति पर अन्य
दीपक को मूर्ति के सामने के दीपक से प्रज्ज्वलित
कर घर में सभी स्थान पर रखवाएं।
अब अपने दाहिने हाथ में जल अक्षत पुष्प लेकर
गणेश लक्ष्मी जी का ध्यान करते हुए संकल्प लेकर
जमीन पर छोड़ दें। अब सभी मूर्तियों को तिलक
कर घर के सदस्यों को तिलक लगाएं। अब समस्त
सामग्रियों पर गंगा जल छिड़क दें।
अब विधिवत गणेश और मां लक्ष्मी जी के साथ ही
कुबेर
जी की पूजा करें अर्थात गणेशअथर्व शिष और मां
लक्ष्मी जी का श्री सूक्तम का पाठ तथा कुबेर जी
का पूजन करें।
पूजन के पश्चात आरती करें। दूसरे दिन सुबह लाल
थैले को पूजा स्थान या लाकर में रख दें।
दिवाली के दिन लोग आपने गहनों ,पैसों और बहीखातों की भी पूजा करते हैं।
माना जाता है ऐसा करने से मां लक्ष्मी का घर में
वास होता है और धन की कभी भी कोई कमीं नही
रहती है।
आचार्य
राजेश कुमारलक्ष्मी पूजा मुहूर्त –
शाम -7 बजकर 15 मिनट से 8 बजकर 36 मिनट तक
प्रदोश काल- शाम 6 बजकर 4 मिनट से 8 बजकर 36 मिनट तक
वृषभ काल- शाम 7 बजकर 15 मिनट से 9 बजकर15 मिनट तक
लक्ष्मी पूजा चौघड़िया-
2019 दोपहर शुभ पूजा मुहूर्त- दोपहर 1 बजकर
48 से 3 बजकर 13 मिनट तक शाम शुभ,
अमृत, खडोपचार पूजा मुहूर्त – शाम 6 बजकर 04
मिनट से 10 बजकर 48 तक
दिवाली की पूजा विधि -
दिवाली के दिन भगवान गणेश और मां लक्ष्मी तथा कुबेर जी की
पूजा का विधान है।
गृहस्थ के लोगो को वृषभ काल स्थिर लग्न में पूजा करनी चाहिए ।
दिवाली की शाम को पूजा स्थल पर एक
चौकी बिछांए। इसके बाद गंगाजल डालकर चौकी
को साफ करें। इसके बाद भगवान गणेश और मां
लक्ष्मी तथा कुबेर जी की प्रतिमा को स्थापित करें।
पूजा स्थल पर गणेश जी के सामने दाहिनी तरफ आटे से
नवग्रह बनाए और पास में जल से भरा कलश रखें
। उस कलश में कुछ कौड़ियां,गोमती चक्र, सिक्के
सुपारी, शहद ,गंगा जल इत्यादि डालें।
उस कलश पर रोली
से स्वस्तिक बना लें और मोली से कलश को 5 बार लपेट दें।
उस पर आम के पत्ते लगाकर बड़ी दियाली से
कलश को ढक दें । उस दीयाली में चावल रखें
चावल के ऊपर लाल कपड़े में लपेट कर जटा
नारियल
रखें।
इसके बाद पूजा स्थल पर किसी लाल कपड़े की थैली में
कौड़ियां5, गोमती चक्र5, हल्दी की गांठें5, सबूत बादाम 21 रखें ।
,पंच मेवा, गुड़ फूल , मिठाई,घी , कमल
का फूल ,खील बतासे आदि भगवान गणेश और मां
लक्ष्मी के आगे रखें। धनतेरस में खरीदे गए समान भी पूजा स्थान पर ही रखें ।
भगवान गणेश और मां लक्ष्मीजी एवं कुबेर जी के
आगे घी का दीपक 5 या 11 जलाएं और
आवश्यकतानुसार कड़ू तेल के
दीपक तैयार कर रखे। पूजा समाप्ति पर अन्य
दीपक को मूर्ति के सामने के दीपक से प्रज्ज्वलित
कर घर में सभी स्थान पर रखवाएं।
अब अपने दाहिने हाथ में जल अक्षत पुष्प लेकर
गणेश लक्ष्मी जी का ध्यान करते हुए संकल्प लेकर
जमीन पर छोड़ दें। अब सभी मूर्तियों को तिलक
कर घर के सदस्यों को तिलक लगाएं। अब समस्त
सामग्रियों पर गंगा जल छिड़क दें।
अब विधिवत गणेश और मां लक्ष्मी जी के साथ ही
कुबेर
जी की पूजा करें अर्थात गणेशअथर्व शिष और मां
लक्ष्मी जी का श्री सूक्तम का पाठ तथा कुबेर जी
का पूजन करें।
पूजन के पश्चात आरती करें। दूसरे दिन सुबह लाल
थैले को पूजा स्थान या लाकर में रख दें।
दिवाली के दिन लोग आपने गहनों ,पैसों और बहीखातों की भी पूजा करते हैं।
माना जाता है ऐसा करने से मां लक्ष्मी का घर में
वास होता है और धन की कभी भी कोई कमीं नही
रहती है।
Thursday, 24 October 2019
"दिव्यांश ज्योतिष् केंद्र"
धनत्रयोदशी:-धनतेरस' स्थाई सुख, धन और समृद्धि
धनत्रयोदशी:-धनतेरस' स्थाई सुख, धन और समृद्धि
प्राप्त करने का दिन:--इस दिन यमदेव की पूजा
करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है
धनतेरस पर आपनी राशि के अनुसार वस्तु खरीदने
करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है
धनतेरस पर आपनी राशि के अनुसार वस्तु खरीदने
से होता है शुभ... धनतेरस पर किन वस्तुओं का दान करके बन सकते हैं धनवान:-
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उत्तरी भारत में कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन दिनांक 25 अक्टूबर 2019 को धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास से मनाया जाएगा. देव धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी जी और धन के देवता कुबेर के पूजन की परम्परा है.
इसी दिन यमदेव को भी दीपदान किया जाता है. इस दिन यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है. धन त्रयोदशी के दिन यमदेव की पूजा करने के बाद घर से बाहर कुड़ा रखने वाले स्थान पर दक्षिण दिशा की ओर दीपक पूरी रात्रि जलाना चाहिए. इस दीपक में कुछ पैसा व कौडी भी डाली जाती है.
धनतेरस पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न होती है। ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान धनतेरस पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है।
धनतेरस का पंचांग और शुभ मुहूर्त :-
धनतेरस की तिथि: 25 अक्टूबर 2019
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 25 अक्टूबर 2019 को शाम 07.08 बजे से
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 26 अक्टूबर 2019 को दोपहर 03.36 बजे तक
धनतेरस पूजा और खरीदारी का शुभ मुहूर्त: 25 अक्टूबर 2019 को शाम 07.08 बजे से रात 08.13 बजे तक
अवधि: 01 घंटे 05 मिनट
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उत्तरी भारत में कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन दिनांक 25 अक्टूबर 2019 को धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास से मनाया जाएगा. देव धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी जी और धन के देवता कुबेर के पूजन की परम्परा है.
इसी दिन यमदेव को भी दीपदान किया जाता है. इस दिन यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है. धन त्रयोदशी के दिन यमदेव की पूजा करने के बाद घर से बाहर कुड़ा रखने वाले स्थान पर दक्षिण दिशा की ओर दीपक पूरी रात्रि जलाना चाहिए. इस दीपक में कुछ पैसा व कौडी भी डाली जाती है.
धनतेरस पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न होती है। ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान धनतेरस पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है।
धनतेरस का पंचांग और शुभ मुहूर्त :-
धनतेरस की तिथि: 25 अक्टूबर 2019
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 25 अक्टूबर 2019 को शाम 07.08 बजे से
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 26 अक्टूबर 2019 को दोपहर 03.36 बजे तक
धनतेरस पूजा और खरीदारी का शुभ मुहूर्त: 25 अक्टूबर 2019 को शाम 07.08 बजे से रात 08.13 बजे तक
अवधि: 01 घंटे 05 मिनट
इस शुभ मुहूर्त में पूजा करने से धन, स्वास्थ्य और आयु बढ़ती है।
धनत्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था और इसीलिए इस दिन को धन तेरस के रूप में पूजा जाता है. दीपावली के दो दिन पहले आने वाले इस त्योहार को लोग काफी धूमधाम से मनाते हैं. इस दिन गहनों और बर्तन की खरीदारी जरूर की जाती है.धनवंतरि' चिकित्सा के देवता भी हैं इसलिए उनसे अच्छे स्वास्थ्य की भी कामना की जाती है।
देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन
शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को धन त्रयोदशी कहा जाता है. धन और वैभव देने वाली इस त्रयोदशी का विशेष महत्व माना गया है.
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय बहुत ही दुर्लभ और कीमती वस्तुओं के अलावा शरद पूर्णिमा का चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी के दिन कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धनवंतरी और कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को भगवती लक्ष्मी जी का समुद्र से अवतरण हुआ था. यही कारण है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन और उसके दो दिन पहले त्रयोदशी को भगवान धनवंतरी का जन्म दिवस धनतेरस के रूप में मनाया जाता है.
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय बहुत ही दुर्लभ और कीमती वस्तुओं के अलावा शरद पूर्णिमा का चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी के दिन कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धनवंतरी और कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को भगवती लक्ष्मी जी का समुद्र से अवतरण हुआ था. यही कारण है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन और उसके दो दिन पहले त्रयोदशी को भगवान धनवंतरी का जन्म दिवस धनतेरस के रूप में मनाया जाता है.
भगवान धनवंतरी को प्रिय है पीतल :--
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भगवान धनवंतरी को नारायण भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है. इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से दो भुजाओं में वे शंख और चक्र धारण किए हुए हैं. दूसरी दो भुजाओं में औषधि के साथ वे अमृत कलश लिए हुए हैं. ऐसा माना जाता है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ है क्योंकि पीतल भगवान धनवंतरी की प्रिय धातु है.
चांदी खरीदना शुभ:-
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भगवान धनवंतरी को नारायण भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है. इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से दो भुजाओं में वे शंख और चक्र धारण किए हुए हैं. दूसरी दो भुजाओं में औषधि के साथ वे अमृत कलश लिए हुए हैं. ऐसा माना जाता है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ है क्योंकि पीतल भगवान धनवंतरी की प्रिय धातु है.
चांदी खरीदना शुभ:-
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धनतेरस के दिन लोग घरेलू बर्तन खरीदते हैं, वैसे इस दिन चांदी खरीदना शुभ माना जाता है क्योंकि चांदी चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है और चन्द्रमा शीतलता का मानक है, इसलिए चांदी खरीदने से मन में संतोष रूपी धन का वास होता है क्योंकि जिसके पास संतोष है वो ही सही मायने में स्वस्थ, सुखी और धनवान है।
मान्यता के अनुसार धनतेरस:--
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मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु शुभ फल प्रदान करती है और लंबे समय तक चलती है. लेकिन अगर भगवान की प्रिय वस्तु पीतल की खरीदारी की जाए तो इसका तेरह गुना अधिक लाभ मिलता है.
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मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु शुभ फल प्रदान करती है और लंबे समय तक चलती है. लेकिन अगर भगवान की प्रिय वस्तु पीतल की खरीदारी की जाए तो इसका तेरह गुना अधिक लाभ मिलता है.
क्यों है पूजा-पाठ में पीतल का इतना महत्व?
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पीतल का निर्माण तांबा और जस्ता धातुओं के मिश्रण से किया जाता है. सनातन धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक कर्म हेतु पीतल के बर्तन का ही उपयोग किया जाता है.
ऐसा ही एक किस्सा महाभारत में वर्णित है कि सूर्यदेव ने द्रौपदी को पीतल का अक्षय पात्र वरदानस्वरूप दिया था जिसकी विशेषता थी कि द्रौपदी चाहे जितने लोगों को भोजन करा दें, खाना घटता नहीं था।
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पीतल का निर्माण तांबा और जस्ता धातुओं के मिश्रण से किया जाता है. सनातन धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक कर्म हेतु पीतल के बर्तन का ही उपयोग किया जाता है.
ऐसा ही एक किस्सा महाभारत में वर्णित है कि सूर्यदेव ने द्रौपदी को पीतल का अक्षय पात्र वरदानस्वरूप दिया था जिसकी विशेषता थी कि द्रौपदी चाहे जितने लोगों को भोजन करा दें, खाना घटता नहीं था।
यम के पूजा का भी विधान:-
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धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा देवता यम के पूजा का भी विधान है। धनतेरस के दिन यम की पूजा के संबंध में मान्यता है कि इनकी पूजा से घर में असमय मौत का भय नहीं रहता है।
धनतेरस पर किन वस्तुओं का दान करके बन सकते हैं धनवान:-
१-
धनतेरस के दिन आप किसी गरीब व्यक्ति को नए पीले वस्त्र दान कर सकते हैं। धनतेरस के दिन वस्त्र दान महादान माना गया है। ऐसा करने से आपको विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
2-
धनतेरस के शुभ अवसर पर आपको कम से कम किसी एक गरीब को घर बुलाकर पूरा आदर और सम्मान देकर भोजन करवाना चाहिए। भोजन में चावल की खीर और पूड़ी विशेष रूप से शामिल करनी चाहिए। भोजन करवाने के बाद दक्षिणा भी अवश्य देनी चाहिए।
3-
धनतेरस के दिन आपको किसी जरूरतमंद व्यक्ति को नारियल और मिठाई का दान करना चाहिए। ऐसा करने से आपके भंडार भी साल भर भरे रहते हैं और आपको कभी भी तंगी का सामना नहीं करना पड़ता।
4-
धनतेरस के दिन आप एक ओर सोने-चांदी का सामान खरीद सकते हैं तो दूसरी ओर इस दिन आपको लोहे की धातु की कोई वस्तु दान भी करनी चाहिए। लोहा दान करने से आपका दुर्भाग्य चला जाता है और आपको शुभ फल की प्राप्ति होती है। लक्ष्मी माता आप पर प्रसन्न होती हैं।
5-
धनतेरस के दिन कई घरों में नई झाड़ू लाकर उसकी पूजा की जाती है। अगर आपका कोई ऐसा करीबी है जो लगातार पैसों की तंगी से जूझ रहा है तो आप उसे झाड़ू खरीदकर दे सकते हैं। ऐसा करने से मां लक्ष्मी आप पर तो प्रसन्न होंगी ही साथ में आपके मन की अच्छी भावना को देखकर आपके करीबी को भी सम्पन्न बना देंगी।
झाड़ू की खरीददारी होगी शुभ:
धनतेरस के दिन आप सोना खरीदते हैं यह अच्छी बात है लेकिन याद रहे इस दिन आप झाड़ू खरीदें। क्योंकि झाडू़ ही आपके घर द्वार को स्वच्छ रखती है। इस दिन भगवान विष्णु, राम और लक्ष्मी के चरणों का आगमन आपके घर होता है। इसलिए झाड़ू की पूजा करना भी शुभ माना जाता है।
धनतेरस पर राशि अनुसार करें खरीदारी :-
मेष - चांदी या तांबा के बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक सामान
वृष - चांदी या तांबे के बर्तन
मिथुन - स्वर्ण आभूषण, स्टील के बर्तन, हरे रंग के घरेलू सामान, पर्दा
कर्क - चांदी के आभूषण, बर्तन
सिंह - तांबे के बर्तन, वस्त्र, सोना
कन्या - गणेश की मूर्ति, सोना या चांदी के आभूषण, कलश
तुला- वस्त्र, सौंदर्य या सजावट सामग्री, चांदी या स्टील के बर्तन
वृश्चिक - इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, सोने के आभूषण, बर्तन
धनु - स्वर्ण आभूषण, तांबे के बर्तन
मकर - वस्त्र, वाहन, चांदी के बर्तन
कुम्भ - सौंन्दर्य के सामान, स्वर्ण, ताम्र पात्र, जूता-चप्पल
मीन - स्वर्ण आभूषण, बर्तन
आचार्य राजेश कुमार
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