12 ज्योतिर्लिंगों मे बैद्यनाथ धाम की उत्पत्ति,स्थापना एवं महिमा:-
मित्रों आजकल सावन के महीने मे मंदिरों ,घरो यानि चारो तरफ देवाधिदेव महादेव अर्थात शिव की महिमा का गुणगान ,पूजा अर्चना हो रही है । हम सभी भली भांति जानते हैं की इस पृथ्वी पर कुल 12 स्वयं भू शिव लिंग अर्थात कुल 12 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं । इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों मे झारखंड राज्य के देवघर मे बाबा वैद्यनाथ धाम का सिद्धपीठ ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं । इस शिव लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है । इस सावन के महीने मे लाखों भक्तगण जिसे हम कांवरिया भी कहते हैं ,देवघर से लगभग 100 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज से जल भरकर बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करने आते हैं और शिव की कृपा का पात्र बनते हैं ।
वैद्यनाथ धाम मे स्थित शिव लिंग की पौराणिक कहानी कुछ इस प्रकार है ----
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रकांडविद्वान रावण भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर घोर तपस्या कर रहा था। वह एक एक करके अपना सर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था। नौ सर चढ़ाने के बाद जब रावण अपना दसवां सर काटने वाला ही था तब भोलेनाथ को प्रसन्न होकर रावण को दर्शन दिए। और उससे वर मांगने को कहा। रावण को सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी। साथ ही साथ उसने कई देवता यक्ष और ऋषि-मुनि को कैद करके लंका में रखे हुए था। इसी वजह से रावण ने यह इच्छा जताई कि भगवान शिव भी कैलाश छोड़कर लंका में ही रहे इसलिए रावण ने भगवान शिव शंकर से कामना लिंग को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया। शिव जी ने अनुमति इस चेतावनी के साथ दी, की यदि वह इस कामना लिंग को पृथ्वी के मार्ग में कहीं रख देगा तो वह वही अचल होकर स्थापित हो जाएगा।
महादेव के इस चेतावनी को सुनने के बावजूद भी दशानन रावण कामना लिंग को अपने नगरी लंका ले जाने के लिए तैयार हो गया। इधर भगवान शिव के कैलाश छोड़ने की बात सुनते हैं सभी देवता चिंतित हो गए। इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने अपनी लीला रची उन्होंने वरुणदेव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लंका की ओर ले चला तो उसे देवघर के पास लघुशंका लग गई। शिवलिंग को हाथ में लेकर लघुशंका करना उसे उचित नहीं लगा, इसलिए उसने अपने आसपास देखा कि कहीं कोई मिल जाए, जिसे वह शिवलिंग थमाकर लघुशंका कर सके कुछ देर के बाद ही उसे एक ग्वाला नजर आया जिसका नाम बैजू था। कहते हैं उस बैजू नाम के ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु वहां आए थे। रावण ने उस ग्वाले से कहा कि वह शिव लिंग को पकड़ कर रखें ताकि वह लघुशंका से निर्मित हो सके। और साथ ही साथ उसने यह भी कहा शिवलिंग को भूल से भी भूमि पर मत रखना।
रावण जब लघुशंका करने लगा तब उसी लघुशंका से एक तालाब बन गया। लेकिन रावण की लघुशंका नहीं समाप्त हुई।ग्वाले के रूप में मौजूद भगवान विष्णु ने रावण से कहा कि अब बहुत देर हो चुकी है, अब मैं और शिवलिंग उठाये खड़ा नहीं रह सकता, इतना कहकर उसने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया इसके बाद रावण की लघुशंका भी समाप्त हो गई। जब रावण लौट कर आया तो वह अपने लाख कोशिश के बावजूद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब उसे भगवान की लीला समझ में आ गई। और तब रावण क्रोधित होकर उस शिवलिंग को अंगूठे से दबाकर वहां से चला गया । उसके बाद देवताओं ने आकर शिवलिंग की पूजा की । शिव जी का दर्शन होते ही सभी देवताओं ने शिवलिंग के उसी स्थान पर स्थापना कर दी। और तभी से महादेव कामना लिंग के रूप में देवघर में विराजते हैं।
आचार्य राजेश कुमार
मित्रों आजकल सावन के महीने मे मंदिरों ,घरो यानि चारो तरफ देवाधिदेव महादेव अर्थात शिव की महिमा का गुणगान ,पूजा अर्चना हो रही है । हम सभी भली भांति जानते हैं की इस पृथ्वी पर कुल 12 स्वयं भू शिव लिंग अर्थात कुल 12 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं । इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों मे झारखंड राज्य के देवघर मे बाबा वैद्यनाथ धाम का सिद्धपीठ ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं । इस शिव लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है । इस सावन के महीने मे लाखों भक्तगण जिसे हम कांवरिया भी कहते हैं ,देवघर से लगभग 100 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज से जल भरकर बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करने आते हैं और शिव की कृपा का पात्र बनते हैं ।
वैद्यनाथ धाम मे स्थित शिव लिंग की पौराणिक कहानी कुछ इस प्रकार है ----
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रकांडविद्वान रावण भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर घोर तपस्या कर रहा था। वह एक एक करके अपना सर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था। नौ सर चढ़ाने के बाद जब रावण अपना दसवां सर काटने वाला ही था तब भोलेनाथ को प्रसन्न होकर रावण को दर्शन दिए। और उससे वर मांगने को कहा। रावण को सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी। साथ ही साथ उसने कई देवता यक्ष और ऋषि-मुनि को कैद करके लंका में रखे हुए था। इसी वजह से रावण ने यह इच्छा जताई कि भगवान शिव भी कैलाश छोड़कर लंका में ही रहे इसलिए रावण ने भगवान शिव शंकर से कामना लिंग को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया। शिव जी ने अनुमति इस चेतावनी के साथ दी, की यदि वह इस कामना लिंग को पृथ्वी के मार्ग में कहीं रख देगा तो वह वही अचल होकर स्थापित हो जाएगा।
महादेव के इस चेतावनी को सुनने के बावजूद भी दशानन रावण कामना लिंग को अपने नगरी लंका ले जाने के लिए तैयार हो गया। इधर भगवान शिव के कैलाश छोड़ने की बात सुनते हैं सभी देवता चिंतित हो गए। इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने अपनी लीला रची उन्होंने वरुणदेव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लंका की ओर ले चला तो उसे देवघर के पास लघुशंका लग गई। शिवलिंग को हाथ में लेकर लघुशंका करना उसे उचित नहीं लगा, इसलिए उसने अपने आसपास देखा कि कहीं कोई मिल जाए, जिसे वह शिवलिंग थमाकर लघुशंका कर सके कुछ देर के बाद ही उसे एक ग्वाला नजर आया जिसका नाम बैजू था। कहते हैं उस बैजू नाम के ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु वहां आए थे। रावण ने उस ग्वाले से कहा कि वह शिव लिंग को पकड़ कर रखें ताकि वह लघुशंका से निर्मित हो सके। और साथ ही साथ उसने यह भी कहा शिवलिंग को भूल से भी भूमि पर मत रखना।
रावण जब लघुशंका करने लगा तब उसी लघुशंका से एक तालाब बन गया। लेकिन रावण की लघुशंका नहीं समाप्त हुई।ग्वाले के रूप में मौजूद भगवान विष्णु ने रावण से कहा कि अब बहुत देर हो चुकी है, अब मैं और शिवलिंग उठाये खड़ा नहीं रह सकता, इतना कहकर उसने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया इसके बाद रावण की लघुशंका भी समाप्त हो गई। जब रावण लौट कर आया तो वह अपने लाख कोशिश के बावजूद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब उसे भगवान की लीला समझ में आ गई। और तब रावण क्रोधित होकर उस शिवलिंग को अंगूठे से दबाकर वहां से चला गया । उसके बाद देवताओं ने आकर शिवलिंग की पूजा की । शिव जी का दर्शन होते ही सभी देवताओं ने शिवलिंग के उसी स्थान पर स्थापना कर दी। और तभी से महादेव कामना लिंग के रूप में देवघर में विराजते हैं।
आचार्य राजेश कुमार