Sunday 18 August 2019


श्री कृष्ण जन्मोत्सव-2019
श्री कृष्ण जन्मोत्सव को "व्रतराज" क्यों कहते हैं और इसका हमारे जीवन में क्या है महत्व और कब है वास्तविक शुभ मुहूर्त/ सात अक्षरी, आठ अक्षरी और बारह अक्षरी मंत्र बोलने और जप करने से कठिन से कठिन कार्य पूर्ण होते हैं :-
   जन्माष्टमी के त्योहार के कारण बाज़ार कृष्ण जन्मोत्सव संबन्धित सजावट के सामानो से सज गया है  हर वर्ष की तरह  ही सभी गृहस्त जन इस बात को लेकर  उलझन में हैं  कि कृष्ण जन्माष्टमी किस तारीख को मनाई जाएगी. कुछ लोगों को कहना है कि कृष्ण जन्माष्टमी 23 अगस्त-2019  को मनाई जाएगी वहीं कुछ 24 अगस्त -2019 को मनाने की बात कह रहे हैं.
कब है  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त और नियम:-
शास्त्रों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन वृष राशि में चंद्रमा व सिंह राशि में सूर्य था इसलिए श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव भी इसी काल में ही मनाया जाता है। लोग रातभर मंगल गीत गाते हैं और भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में होने के कारण इसको कृष्णजन्माष्टमी कहते हैं। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण का रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में रोहिणी नक्षत्र का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं।
इस साल जन्माष्टमी पर उलझन यह है की किस दिन जन्माष्टमी मनाएँ 23 अगस्त या 24 अगस्त को । काशी पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि 23 अगस्त को सुबह 8.09 बजे से 24 अगस्त को सुबह 8.32 बजे तक है। जबकि रोहिणी नक्षत्र 24 अगस्त को सुबह 3.48 बजे से प्रारम्भ हो रहा है। और 25 अगस्त को सुबह 4.17 तक रहेगा ।
जबकि जन्माष्टमी मनाने के लिए रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि दोनोएक साथ 23 अगस्त को ही पद रही है। अतः मेरे हिसाब से बरत रखने वाले लोग 23 अगस्त को बरत रखें और अगले दिन 24 अगस्त को सुबह 8.32 के पश्चात इसका पारण कर सकते हैं ।  
अष्टमी तिथि मे गृहस्त जन एवं नवमी तिथि मे वैष्णवजन व्रत पूजन करते हैं ।
गृहस्थ जनो  के लिए पूजन विधि :-
वैसे तो भक्तजन  नियमतः भगवान की छठी, बरही इत्यादि बड़े धूमधाम से मनाते हैं । लगभग 12 दिन तक झांकी सजी रहती है किन्तु समयाभाव के कारण ज़्यादातर गृहस्थ जन लोग केवल जन्मदिन के दिन ही पुजापाठ करते है । अथवा मंदिरो मे दर्शन  कर लेते हैं । वृस्तृत पुजा केवल मंदिरों  ही होती है ।

जो भक्तजन अपने घर के मंदिर मे जन्माष्टमी के दिन  भगवान का जन्म कराते है उन्हे कृष्णजी या लड्डू गोपाल की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराकर  दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, केसर के घोल से स्नान कराकर फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं। फिर सुन्दर वस्त्र पहनाएं। रात्रि बारह बजे भोग लगाकर पूजन करें व फिर श्रीकृष्णजी की आरती करें  । उसके बाद भक्तजन प्रसाद ग्रहण करें। व्रती दूसरे दिन नवमी में व्रत का पारणा करें।


श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शास्त्रों में इसके व्रत को व्रतराजकहा जाता है :-

मान्यता है कि इस एक दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है। अगर भक्त पालने में भगवान को झुला दें, तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति , दीर्घआयु तथा सुखसमृद्धि की प्राप्ति होती है।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है।


भगवान श्रीकृष्ण श्री विष्णु के आठवें अवतार हैं।इस दिन भगवान स्वयं पृथ्वी पर अवतरित हुए थे इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी अथवा जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष रात्रि बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला में झुलाया जाता है।

सभी लोग इस दिन अलग-अलग तरीके से पूजा-पाठ करते हैं। लेकिन इस दिन इन मंत्रों का जाप बहुत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। सात अक्षरी, आठ अक्षरी और बारह अक्षरी मंत्र बोलने और जप करने में बड़े सरल और मंगलकारी हैं और ये मंत्र हैं -
ऊं क्रीं कृष्णाय नमः
'
गोकुल नाथाय नम:'
'
ऊँ नमो भगवते श्री गोविन्दाय'
'
गोवल्लभाय स्वाहा'
जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर हो वे आज विशेष पूजा से लाभ पा सकते हैं।


आचार्य राजेश कुमार

Monday 5 August 2019

नागपंचमी- का पर्व-2019
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जिन लोगो के राहु केतु कष्ट कारी हैं अथवा जिनकी राहु की महा दशा चल रही है उनके लिए आज का पूजन सर्वकष्ट निवारण हेतु अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सोमवार को पड़ने वाली नागपंचमी का अनुष्ठान इंसान को पुनर्जीवित/सर्वसुख प्रदान कर सकती है-
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पंचमी तिथि का शुभ मुहूर्त-6.22 से 10.49

नाग पंचमी , सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है । इस वर्ष यह पर्व आज सोमवार को उत्तराफाल्गुनी तदुपरि हस्त नक्षत्र के दुर्लभ योग में पड़ रहा है। इस योग में कालसर्प-योग की शान्ति हेतु पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों में वर्णित है। नागों को अपने जटाजूट तथा गले में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को काल का देवता कहा गया है।

अमृत सहित नवरत्नों की प्राप्ति के लिए देव-दानवों ने जब समुद्र-मंथन किया था, तो जगत-कल्याण के लिए वासुकी नाग ने मथानी की रस्सी के रुप में काम किया था.

हिंदू धर्म में नाग देव का अपना विशेष स्थान है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी.
महाभारत की एक कथा के अनुसार जब महाराजा परीक्षित को उनका पुत्र जनमेजय तक्षक नाग के काटने से नहीं बचा सका तो जनमेजय ने विशाल सर्पयज्ञ कर यज्ञाग्नि में भस्म होने के लिए तक्षक को आने पर विवश कर दिया.
नागपंचमी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. इस दिन कही और सुनी जाने वाली एक प्रचलित कथा इस प्रकार है- 

एक समय में एक सेठ हुआ करते थे. उनके सात बेटे थे. सातों की शादी हो चुकी थी. सबसे छोटे बेटे की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, लेकिन उसका कोई भाई नहीं था. 

एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को चलने को कहा. इस पर बाकी सभी बहुएं उनके साथ चली गईं और डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगीं. तभी वहां एक नाग निकला. इससे ड़रकर बड़ी बहू ने उसे खुरपी से मारना शुरू कर दिया. इस पर छोटी बहू ने उसे रोका. इस पर बड़ी बहू ने सांप को छोड़ दिया. वह नाग पास ही में जा बैठा. छोटी बहू उसे यह कहकर चली गई कि हम अभी लौटते हैं तुम जाना मत. लेकिन वह काम में व्यस्त हो गई और नाग को कही अपनी बात को भूल गई. 

अगले दिन उसे अपनी बात याद आई. वह भागी-भागी उस ओर गई, नाग वहीं बैठा था. छोटी बहू ने नाग को देखकर कहा- सर्प भैया नमस्कार! नाग ने कहा- 'तूने भैया कहा तो तुझे माफ करता हूं, नहीं तो झूठ बोलने के अपराध में अभी डस लेता. छोटी बहू ने उससे माफी मांगी, तो सांप ने उसे अपनी बहन बना लिया. 

कुछ दिन बाद वह सांप इंसानी रूप लेकर छोटी बहू के घर पहुंचा और बोला कि 'मेरी बहन को भेज दो.' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था. उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया. 

रास्ते में नाग ने छोटी बहू को बताया कि वह वही नाग है और उसे ड़रने की जरूरत नहीं. जहां चला न जाए मेरी पूंछ पकड़ लेना. बहन ने भाई की बात मानी और वह जहां पहुंचे वह सांप का घर था, वहां धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई.

एक दिन भूलवश छोटी बहू ने नाग को ठंडे की जगह गर्म दूध दे दिया. इससे उसका मुंह जल गया. इस पर सांप की मां बहुत गुस्सा हुई. तब सांप को लगा कि बहन को घर भेज देना चाहिए. इस पर उसे सोना, चांदी और खूब सामान देकर घर भेज दिया गया. 

सांप ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था. उसकी प्रशंसा खूब फैल गई और रानी ने भी सुनी. रानी ने राजा से उस हार की मांग की. राजा के मंत्रि‍यों ने छोटी बहू से हार लाकर रानी को दे दिया. 

छोटी बहू ने मन ही मन अपने भाई को याद किया ओर कहा- भाई, रानी ने हार छीन लिया, तुम ऐसा करो कि जब रानी हार पहने तो वह सांप बन जाए और जब लौटा दे तो फिर से हीरे और मणियों का हो जाए. सांप ने वैसा ही किया. 

रानी से हार वापस तो मिल गया, लेकिन बड़ी बहू ने उसके पति के कान भर दिए. पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा - यह धन तुझे कौन देता है? छोटी बहू ने सांप को याद किया और वह प्रकट हो गया. इसके बाद छोटी बहू के पति ने नाग देवता का सत्कार किया. उसी दिन से नागपंचमी पर स्त्रियां नाग को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।

पूजन विधि:~

नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
- इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। सफेद कमल का फूल पूजा मे रखें और यह प्रार्थना करें-
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।

प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जाप करें-
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।
इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें-
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:.....
कलयुग में यह पूजा जीवन के हर क्षेत्र में( आर्थिक,पारिवारिक,शारीरिक,सामाजिक, वैवाहिक, व्यावसायिक, नौकरी इत्यादि) श्रेष्ठ एवं शुभ फल प्रदान करती है। आज के दिन शिव मंदिर या अपने निवास स्थान पर रुद्रआभीशेख करवाना , शिव अमोघ कवच का पाठ करना अत्यंत ही लाभप्रद सिद्ध होता है।एक बार अवश्य कर के देखें । खुद समझ जाएंगे। वैसे आप चाहें तो बाज़ार से नागपंचमी पूजा की किताब खरीद लें।
आचार्य राजेश कुमार  

Tuesday 30 July 2019

महाशिव रात्रि पर अद्भुत संयोग:-

सावन शिवरात्रि आज पूरे उत्तर भारत में मनाई जा रही है। आज ही कांवड़िए गंगा जी से जल लाकर अपने शिवमंदिरों में जलाभिषेक करते हैं। शिवरात्रि के बाद सावन में चलने वाली कांवड़ यात्रा समाप्त हो जाती है। सावन शिवरात्रि  श्रावण मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई  जाती है।  इस साल यह चतुर्दशी 30 जुलाई को सुबह 11:57 बजे शुरू हो रही है और 31 जुलाई को दोपहर तक रहेगी।

शास्त्रों की मानें तो भगवान शिव की पूजा करने से हर कष्ट से निजात मिल जाती है। यही नहीं ऐसा भी कहा जाता है कि भोले बाबा अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं और बहुत छोटे से ही प्रयत्न से मान जाते हैं।

इस बार सावन शिवरात्रि पर अध्भुत संयोग बन रहा है, सावन में मंगलवार के दिन मंगला गौरी की पूजा होती है. इसके साथ ही ये दिन रुद्रवतार हनुमान जी की पूजा के लिए भी समर्पित है. कहा जाता है इस दिन शिव जी की सच्चे मन से पूजा करने, शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

सावन शिवरात्रि  2019 की तिथि और शुभ मुहूर्त:

चतुर्दशी तिथि 30 जुलाई 2019 को सुबह 11.57 से शुरू हो रही है.

चुतुर्दशी तिथि 31 जुलाई 2019 को दोपहर 02 बजकर 05 मिनट तक रहेगा.

निशिथ काल पूजाछ 31 जुलाई 2019 को दोपहर 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 49 मिनट तक रहेगा.

पारण का समय: 31 जुलाई 2019 सुबह 05 बजकर 46 मिनट से सुबह 11 बजकर 57 मिनट तक रहेगा.

सावन शिवरात्रि पूजा विधि: -

शिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें. अब घर के मंदिर या शिवालय में जाकर शिवलिंग पर पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और गन्ने का रस या चीनी का मिश्रण) चढ़ाएं. अब ऊँ नम: शिवाय का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर एक एक करके बेल पत्र, फल और फूल चढ़ाएं. सभी बेल पत्र चढ़ाने के बाद गुड़ से बना पुआ, हलवा और कच्चे चने का भोग लगाएं और सभी को प्रसाद बाटें.

राशिनुसार शिव पूजा:-

मेष राशि

मेष राशि के लोगों तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। साथ ही भगवान शिव को लाल फूल अर्पित करने चाहिए।



वृष राशि

वृष राशि के लोगों को दूध और जल के मिश्रण से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। इस दौरान चांदी या स्टील के लोटे का उपयोग करें। तांबे के बर्तन से दूध समर्पित नहीं करते हैं। साथ ही वृष राशि के लोगों को शिवलिंग पर दही, सफेद चंदन, सफेद फूल और चावल अर्पित करने चाहिए।

मिथुन राशि

मिथुन राशि में जन्मे लोगों को भगवान भोलेनाथ की पूजा तीन बिल्व पत्रों से करनी चाहिए। आप शिवलिंग का अभिषेक गन्ने के रस से कर सकते हैं। इससे आपको विशेष लाभ होगा।



कर्क राशि

कर्क राशि में जन्मे लोगों को घी से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। आप अगर कच्चा दूध शिवजी पर अर्पित करेंगे तो आपको आपकी इच्छापूर्ति में सहायता मिलेगी। सफेद चंदन से शिवजी का तिलक करें।

सिंह राशि

सिंह राशि में जन्मे लोगों को भगवान शिव का अभिषेक गुड़ मिश्रित जल से करना चाहिए। आप भगवान शिव को गेहूं अर्पित करेंगे तो आपको विशेष लाभ होगा।

कन्या राशि

कन्या राशि में जन्मे लोगों को भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए गन्ने के रस से अभिषेक करना चाहिए। शिवलिंग पर बेलपत्र और भांग के पत्ते चढ़ाने चाहिए।



तुला

तुला राशि के लोगों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए शिवरात्रि पर इत्र, फूलों से सुगंधित जल या तेल से शिव का अभिषेक करना चाहिे। साथ ही शहद अर्पित करने से लाभ होगा।

वृश्चिक

वृश्चिक राशिवालों को पंचामृत से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से आप पर भगवान शिव जल्दी प्रसन्न हो सकते हैं।



धनु राशि



धनु राशि के लोगों को भगवान शिव का अभिषेक केसर या हल्दी युक्त दूध से करना चाहिए। साथ ही शिवलिंग पर बेल पत्र और पीले फूल अर्पित करें।

मकर

मकर राशि के लोगों को काले तिल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। इससे आपको भगवान शिव की कृपा प्राप्त होगी।

कुंभ

कुंभ राशि के लोगों को भी मकर राशि के लोगों की तरह ही भगवान शिव पर काले तिल अर्पित करने चाहिए। साथ ही गंगाजल से शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। इससे जीवन कष्ट और संकट दूर होते हैं।

मीन राशि



मीन राशि के लोगों को भगवान शिव पर और शिवलिंग का अभिषेक करते समय पीले रंग के फूल अर्पित करने चाहिए। साथ ही पीली मिठाई का भोग भगवान शिव को लगाना चाहिए।

आचार्य राजेश कुमार

Friday 5 April 2019


   काशी पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल प्रतिपदा 6 अप्रैल -2019 को नया साल शुरू हो रहा है  है/ अर्थात  6 अप्रैल -2019 दिन शनिवार शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन  नवरात्र प्रारम्भ भी प्रारम्भ

नवरात्र भारतवर्ष में हिंदूओं द्वारा मनाया जाने प्रमुख पर्व है। इस दौरान मां के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं लेकिन चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं। बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वासंती नवरात्र तो शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। चैत्र और आश्विन नवरात्र में आश्विन नवरात्र को महानवरात्र कहा जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि ये नवरात्र दशहरे से ठीक पहले पड़ते हैं दशहरे के दिन ही नवरात्र को खोला जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में मां के अलग-अलग रुपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रुप में भी देखा जाता है।

मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रुप हैं। नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसके बाद लगातार नौ दिनों तक मां की पूजा
 इस साल चैत्र नवरात्र 6 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं। नवमी तिथि 14 अप्रैल की है।   काशी पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल प्रतिपदा को नया साल शुरू होता है इन नौ दिनों मे मां के नौ रुपों की पूजा की जाती है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना अच्छा रहता है।   इस साल 6 अप्रैल शनिवार से नवरात्र शुरू हो रहे हैं। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन अभिजीत मुहूर्त में 6 बजकर 9 मिनट से लेकर 10 बजकर 19 मिनट के बीच घट स्थापना करना बेहद शुभ होगा। 
 किस दिन होगी किस देवी की पूजा
नवरात्र प्रथम -   6 अप्रैल को घट स्थापन व शैलपुत्री की पुजा
नवरात्र द्वितीय - 7 अप्रैल को ब्रह्मचारिणी की पुजा
नवरात्र तृतीय –   8 अप्रैलको  चंद्रघंटा की पुजा
नवरात्र चतुर्थी -   9 अप्रैल को कुष्मांडा की पुजा
नवरात्र पंचमी –   10 अप्रैल को स्कंदमाता की पुजा
नवरात्र षष्ठी –    11 अप्रैल को कात्यायनी की पुजा
नवरात्र सप्तमी –  12 अप्रैल को कालरात्रि की पुजा
नवरात्रि अष्टमी–13 अप्रैल को महागौरी की पुजा
नवरात्र नवमी – 14 अप्रैल को सिद्धिदात्री की पुजा


घट स्थापना मुहूर्त

इस साल 6 अप्रैल शनिवार से नवरात्र शुरू हो रहे हैं। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन अभिजीत मुहूर्त में 6 बजकर 9 मिनट से लेकर 10 बजकर 19 मिनट के बीच घट स्थापना करना बेहद शुभ होगा। 


नवरात्रि में नौ दिन कैसे करें नवदुर्गा साधना

माता दुर्गा के 9 रूपों का उल्लेख श्री दुर्गा-सप्तशती के कवच में है जिनकी साधना करने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते हैं। कई साधक अलग-अलग तिथियों को जिस देवी की हैं, उनकी साधना करते हैं, जैसे प्रतिपदा से नवमी तक क्रमश:-

(1) माता शैलपुत्री : प्रतिपदा के दिन इनका पूजन-जप किया जाता है। मूलाधार में ध्यान कर इनके मंत्र को जपते हैं। धन-धान्य-ऐश्वर्य, सौभाग्य-आरोग्य तथा मोक्ष के देने वाली माता मानी गई हैं। 

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।'

 (2) माता ब्रह्मचारिणी : स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। संयम, तप, वैराग्य तथा विजय प्राप्ति की दायिका हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।'

 
(3) माता चन्द्रघंटा : मणिपुर चक्र में इनका ध्यान किया जाता है। कष्टों से मुक्ति तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए इन्हें भजा जाता है।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:।'


(4) माता कूष्मांडा : अनाहत चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। रोग, दोष, शोक की निवृत्ति तथा यश, बल व आयु की दात्री मानी गई हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:।'


(5) माता स्कंदमाता : इनकी आराधना विशुद्ध चक्र में ध्यान कर की जाती है। सुख-शांति व मोक्ष की दायिनी हैं। 

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:।'


(6) माता कात्यायनी : आज्ञा चक्र में ध्यान कर इनकी आराधना की जाती है। भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष की दात्री हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:।'

 
(7) माता कालरात्रि : ललाट में ध्यान किया जाता है। शत्रुओं का नाश, कृत्या बाधा दूर कर साधक को सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देती हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:।'


(8) माता महागौरी : मस्तिष्क में ध्यान कर इनको जपा जाता है। इनकी साधना से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। असंभव से असंभव कार्य पूर्ण होते हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:।'


(9) माता सिद्धिदात्री : मध्य कपाल में इनका ध्यान किया जाता है। सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:।'

 विधि-विधान से पूजन-अर्चन व जप करने पर साधक के लिए कुछ भी अगम्य नहीं रहता। 

 विधान- कलश स्‍थापना, देवी का कोई भी चित्र संभव हो तो यंत्र प्राण-प्रतिष्ठायुक्त तथा यथाशक्ति पूजन-आरती इत्यादि तथा रुद्राक्ष की माला से जप संकल्प आवश्यक है।  जप के पश्चात अपराध क्षमा स्तोत्र यदि संभव हो तो अथर्वशीर्ष, देवी सूक्त, रात्र‍ि सूक्त, कवच तथा कुंजिका स्तोत्र का पाठ पहले करें। गणेश पूजन आवश्यक है। ब्रह्मचर्य, सात्विक भोजन करने से सिद्धि सुगम हो जाती है।
आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। हालांकि गुप्त नवरात्र को आमतौर पर नहीं मनाया जाता लेकिन तंत्र साधना करने वालों के लिये गुप्त नवरात्र बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। तांत्रिकों द्वारा इस दौरान देवी मां की साधना की जाती है।
आचार्य राजेश कुमार

Tuesday 5 February 2019


बसंत पंचमी 2019 को शुभ मुहूर्त / मीडिया, ऐंकर, अधिवक्ता, अध्यापक व संगीत आदि के क्षेत्र से जुड़े लोगों को वसन्त पंचमी के दिन मां सरस्वती पूजा जरूर करनी चाहिए
 / पढ़ाई मे नहीं कमजोर बच्चों के लिए आज के दिन करें ये अचूक उपाय

10 फरवरी-2019  को बसंत पंचमी है, प्रत्येक वर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन से सर्दी के महीने का अंत हो जाता है और ऋतुराज बसंत का आगमन होता है. बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती की पूजा का विशेष दिन माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि मां सरस्वती ही बुद्धि और विद्या की देवी हैं. बसंत पंचमी को हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा  का शुभ मुहूर्त
सरस्वती पूजा मुहूर्त = सुबह 07:15 से 12:52
पंचमी तिथि का आरंभ = 9 फरवरी 2019 को 12:25 बजे से प्रारम्भ होगा।
पंचमी तिथि समाप्त = 10 फरवरी 2019, रविवार को 14:08 बजे होगा। 



वैसे तो वसंत पंचमी के दिन किसी भी समय मां सरस्वती की पूजा की जा सकती हैं लेकिन पूर्वान्ह का समय पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है. सभी शिक्षा केन्द्रों, विद्यालयो में पूर्वान्ह के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है.


वसंत पंचमी का सामाजिक  महत्व-

भारतीय पंचांग में छह ऋतुएं होती हैं. इनमें से बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है. बसंत फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्यौहार है. ऋतुराज बसंत का बहुत महत्व है. ठंड के बाद प्रकति की छटा देखते ही बनती है. इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ, आमों के पेड़ों पर आये फूल, चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को और भी खुश्नुमा बना देती है. यदि सेहत की दृष्टि से देखा जाये तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है. इंसानों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है.  यदि हिन्दु मान्याओं के मुताविक देखा जाये तो इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था यही कारण है कि यह त्यौहार हिन्दुओं के लिए बहुत खास है. इस त्यौहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं इसके साथ ही बसंत मेला आदि का भी आयोजन किया जाता है.



बसंत पंचमी के पौराणिक महत्व


सृष्टि की रचना करते सय ब्रम्हा ने मनुष्य और जीव-जन्तु योनि की रचना की. इसी बीच उन्हे महसूस हुआ कि कुछ कमी रह गयी है जिसके कारण सभी जगह सन्नाटा छाया रहता है. जिस पर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार हाथों वाली एक सुन्दर स्त्री जिसके एक हाथ में वीणा दूसरे में हाथ वर मुद्रा में था तथा अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी प्रटक हुई. व्रह्मा जीन ने वीणा वादन का अनुरोध किया जिस पर देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, जिस पर संसार के समस्त जीव जन्तुओं को वाणी, जल धारा कोलाहर करने लगी, हवा सरसराहट करने लगी. तब ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती का नाम दिया. मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादनी और वाग्देवी आदि कई नामों से भी जाना जाता है. ब्रह्मा जी ने माता सरस्वती की उत्पत्ति बसंत पंचमी के दिन की थी यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का जन्म दिन मानकर पूजा अर्चना की जाती है.



सरस्वती व्रत की विधि


बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। प्रात: काल सभी दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के उपरांत मां भगवती सरस्वती की आराधना का प्रण लेना चाहिए। इसके बाद दिन के समय यानि पूर्वाह्नकाल में स्नान आदि के बाद भगवान गणेश जी का ध्यान करना चाहिए। स्कंद पुराण के अनुसार सफेद पुष्प, चन्दन, श्वेत वस्त्रादि से देवी सरस्वती जी की पूजा करना चाहिए । सरस्वती जी का पूजन करते समय सबसे पहले उनका स्नान कराना चाहिए इसके पश्चात माता को सिन्दूर व अन्य श्रंगार की सामग्री चढ़ायें इसके बाद फूल माला चढ़ायें.




देवी सरस्वती का मंत्र -


सफ़ेद मिठाई से भोग लगाकर सरस्वती कवच का पाठ करें. मां सरस्वती जी के पूजा के वक्त इस मंत्र का जान करने से असीम पुण्ड मिलता है

श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा

मां सरस्‍वती का श्‍लोक
मां सरस्वती की आराधना करते वक्‍त इस श्‍लोक का उच्‍चारण करना चाहिए:

ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।

कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।

वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।

रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।

सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।वन्दे भक्तया वन्दिता च । ।


विशेष उपाय


आपका बच्चा यदि पढ़ने में कमजोर है तो वसन्त पंचमी के दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा करें एवं उस पूजा में प्रयोग की हल्दी को एक कपड़े में बांध कर बच्चे की भुजा में बांध दे।

मां सरस्वती को वाणी की देवी कहा  जाता है, इसलिए मीडिया, ऐंकर, अधिवक्ता, अध्यापक व संगीत आदि के क्षेत्र से जुड़े लोगों को वसन्त पंचमी के दिन मां सरस्वती पूजा जरूर करनी चाहिए।

माता सरस्वती की पूजा-अर्चना आदि करने से मन शान्त होता है व वाणी में बहुत ही अच्छा निखार आता है.

यदि आप चाहते है कि आपके बच्चे परीक्षा में अच्छे नम्बर लायें तो आप-अपने बच्चे के कमरे में मां सरस्वती की तस्वीर अवश्य लगायें।

जो लोग बहुत ही तीखा बोलते हैं जिस कारण उनके बने-बनाये काम भी बिगड़ जाते हैं. उन लोग को मां सरस्वती की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
आचार्य राजेश कुमार  (दिव्यान्श  ज्योतिष केंद्र )