Sunday 16 September 2018


विश्वकर्मा पूजन का  शुभ मुहूर्त ,तिथि ,महत्व एवं इतिहास
पुराणों में वर्णित लेखों के अनुसार इस "सृष्टि" के  रचयिता आदिदेव ब्रह्मा जी को माना जाता है । ब्रह्मा जी,विश्वकर्मा जी की सहायता से इस सृष्टि का निर्माण किये,  इसी कारण विश्वकर्मा जी को इंजीनियर भी कहा जाता है

धर्म शास्त्रो के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र "धर्म" के सातवी संतान जिनका नाम "वास्तु" था, विश्वकर्मा जी वास्तु के पुत्र थे जो अपने माता पिता की भाती महान शिल्पकार हुए जिन्होंने इस सृष्टि में अनेको प्रकार के निर्माण इन्ही के द्वारा हुआ। देवताओ का स्वर्ग हो या लंका के रावण की सोने की लंका हो या भगवान कृष्ण की द्वारिका और पांडवो की राजधानी हस्तिनापुर इन सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा  द्वारा की गयी है जो की वास्तु कला की अद्भुत मिशाल है।
विश्वकर्मा जी को औजारों का देवता भी कहा जाता है महृषि दधीचि द्वारा दी गयी उनकी हड्डियों से ही "बज्र" का निर्माण इन्होंने ही किया है, जो की देवताओ के राजा इंद्र का प्रमुख हथियार है।
कुछ जानकारों का मानना है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ था. वहीं, कुछ विशेषज्ञ भाद्रपद की अंतिम तिथि को विश्वकर्मा पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानते हैं. इन सभी मतों से अलग, एक स्थापित मान्यता के अनुसार विश्वकर्मा पूजन का शुभ मुहूर्त सूर्य के पारगमन के आधार पर तय किया जाता है. इसके पीछे कारण यह है कि भारत में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों का निर्धारण चंद्र कैलेंडर के मुताबिक किया जाता है, वहीं विश्वकर्मा पूजा की तिथि सूर्य को देखकर की जाती है. यह तिथि हर साल 17 सितंबर को पड़ती है. 
सृजन के देवता श्री विश्वकर्मा जी के संबंध में रोचक जानकारी

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वास्तुशास्त्र के जनक विश्वकर्मा जी:-

हिंदू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को सृजन का देवता कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि विश्वकर्मा जी ने इन्द्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका आदि का निर्माण किया था। प्रत्येक वर्ष विश्वकर्मा जयंती पर औजार, मशीनों, औद्योगिक इकाइयों की पूजा की जाती है।
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भगवान विश्वकर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा जाता है। उन्होंने अपने ज्ञान से यमपुरी, वरुणपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी, पुष्पक विमान, विष्णु का चक्र, शंकर का त्रिशूल, यमराज का कालदण्ड आदि का निर्माण किया।
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विश्वकर्मा जी ने ही सभी देवताओं के भवनों को भी तैयार किया। विश्वमर्का जयंती वाले दिन अधिकतर प्रतिष्ठान बंद रहते हैं। भगवान विश्वकर्मा को आधुनिक युग का इंजीनियर भी कहा जाता है।

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एक कथा के अनुसार संसार की रचना के शुरुआत में भगवान विष्णु क्षीर सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रहा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रहा जी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह संस्कार वस्तु नाम स्त्री से हुआ।

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धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए। उनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया। वास्तु शिल्पशास्त्र में निपुण था। वास्तु के पुत्र का नाम विश्वकर्मा था। वास्तुशास्त्र में महारथ होने के कारण विश्कर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा गया। इस तरह भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ

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भगवान विश्वकर्मा के जन्म से जुड़ा प्रसंग

एक कथा के अनुसार संसार की रचना के शुरुआत में भगवान विष्णु क्षीर सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रहा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रहा जी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह संस्कार वस्तु नाम स्त्री से हुआ। धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए। उनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया।

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भगवान विश्वकर्मा के जन्म से जुड़ा प्रसंग

वास्तु शिल्पशास्त्र में निपुण था। वास्तु के पुत्र का नाम विश्वकर्मा था। वास्तुशास्त्र में महारथ होने के कारण विश्कर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा गया। इस तरह भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ

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पूजन के लिए मंत्र

भगवान विश्वकर्मा की पूजा में ओम आधार शक्तपे नम: और ओम कूमयि नम:, ओम अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम:मंत्र का जप करना चाहिए। जप के लिए रुद्राक्ष की माला हो।

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जप शुरू करने से पहले ग्यारह सौ, इक्कीस सौ, इक्यावन सौ या ग्यारह हजार जप का संकल्प लें। चुंकि इस दिन प्रतिष्ठान में छुट्टी रहती है तो आप किसी पुरोहित से भी जप संपन्न करा सकते हैं।

विश्वकर्मा पूजन विधि

विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रतिमा को विराजित करके पूजा की जाती है। जिस व्यक्ति के प्रतिष्ठान में पूजा होनी है, वह प्रात:काल स्नान आदि करने के बाद अपनी पत्नी के साथ पूजन करें। हाथ में फूल, चावल लेकर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए घर और प्रतिष्ठान में फूल व चावल छिड़कने चाहिए।

इसके बाद पूजन कराने वाले व्यक्ति को पत्नी के साथ यज्ञ में आहुति देनी चाहिए। पूजा करते समय दीप, धूप, पुष्प, गंध, सुपारी आदि का प्रयोग करना चाहिए। पूजन से अगले दिन प्रतिमा के विसर्जन करने का विधान है

औजारों की पूजा

विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रतिष्ठान के सभी औजारों या मशीनों या अन्य उपकरणों को साफ करके उनका तिलक करना चाहिए। साथ ही उन पर फूल भी चढ़ाए।

हवन के बाद सभी भक्तों में प्रसाद का वितरण करना चाहिए। भगवान विश्वकर्मा के प्रसन्न होने से व्यक्ति के व्यवसाय में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने वाले व्यक्ति के यहां घर धन-धान्य तथा सुख-समृद्धि की कमी नहीं रहती। इस पूजा की महिमा से व्यक्ति के व्यापार में वृद्धि होती है तथा सभी मनोकामना पूरी हो जाती है।

जिस फैक्टरी के मालिक भगवान विश्वकर्मा की जयंती को धूम-धाम से नहीं मनाते उन्हें पूरे साल समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

सबसे बड़े पुत्र मनु ऋषि

भगवान विश्वकर्मा के सबसे बड़े पुत्र मनु ऋषि थे। इनका विवाह अंगिरा ऋषि की कन्या कंचना के साथ हुआ था। इन्होंने ही मानव सृष्टि का निर्माण किया। विष्णुपुराण में विश्वकर्मा को देवताओं का देव बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है।
सबसे बड़े पुत्र मनु ऋषि

स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। विश्वकर्मा इतने बड़े शिल्पकार थे कि उन्होंने जल पर चलने योग्य खड़ाऊ तैयार की थी।
आचार्य राजेश कुमार     www.divyanshjyotish.com


Wednesday 12 September 2018


गणेश महोत्सव की उत्पत्ति और इतिहास

गणेश चतुर्थी के त्यौहार पर पूजा प्रारंभ होने की सही तारीख किसी को ज्ञात नहीं है, हालांकि इतिहास के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि गणेश चतुर्थी 1630-1680 के दौरान क्षत्रपति शिवाजी (मराठा साम्राज्य के संस्थापक) के समय में एक सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया जाता था। शिवाजी के समय, यह गणेशोत्सव उनके साम्राज्य के कुलदेवता के रूप में नियमित रूप से मनाना शुरू किया गया था। पेशवाओं के अंत के बाद, यह एक पारिवारिक उत्सव बना रहा, यह 1893 में बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक (एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक) द्वारा पुनर्जीवित किया गया।

गणेश चतुर्थी एक बड़ी तैयारी के साथ एक वार्षिक घरेलू त्यौहार के रूप में हिंदू लोगों द्वारा मनाना शुरू किया गया था। सामान्यतः यह ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच संघर्ष को हटाने के साथ ही लोगों के बीच एकता लाने के लिए एक राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाना शुरू किया गया था। महाराष्ट्र में लोगों ने ब्रिटिश शासन के दौरान बहुत साहस और राष्ट्रवादी उत्साह के साथ अंग्रेजों के क्रूर व्यवहार से मुक्त होने के लिये मनाना शुरु किया था। गणेश विसर्जन की रस्म बाल  गंगाधर लोकमान्य तिलक द्वारा स्थापित की गयी थी।

धीरे - धीरे लोगों द्वारा यह त्यौहार परिवार के समारोह के बजाय समुदाय की भागीदारी के माध्यम से मनाना शुरू किया गया। समाज और समुदाय के लोग इस त्यौहार को एक साथ सामुदायिक त्यौहार के रुप में मनाने के लिये और बौद्धिक भाषण, कविता, नृत्य, भक्ति गीत, नाटक, संगीत समारोहों, लोक नृत्य करना, आदि क्रियाओं को सामूहिक रुप से करते है। लोग तारीख से पहले एक साथ मिलते हैं और उत्सव मनाने के साथ ही साथ यह भी तय करते है कि इतनी बडी भीड को कैसे नियंत्रित करना है।

गणेश चतुर्थी, एक पवित्र हिन्दू त्यौहार है, लोगों द्वारा भगवान गणेश (भगवानों के भगवान, अर्थात् बुद्धि और समृद्धि के सर्वोच्च भगवान) के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। पूरा हिंदू समुदाय एक साथ पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ प्रतिवर्ष मनाते है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि गणेश जी का जन्म माघ माह में चतुर्थी (उज्ज्वल पखवाड़े के चौथे दिन) हुआ था। तब से, भगवान गणेश के जन्म की तारीख गणेश चतुर्थी के रूप में मनानी शुरू की गयी। आजकल, यह त्योहार हिंदू एवं बहुत से मुश्लिम समुदाय के लोगों द्वारा पूरी दुनिया में मनाया जाता है ।
आचार्य राजेश कुमार     www.divyanshjyotish.com



गणेश चतुर्थी / विनायक चतुर्थी व्रत पूजा विधि :-

सबसे पहले एक ईशान कोण में स्वच्छ जगह पर रंगोली डाली जाती हैं, जिसे चौक पुरना कहते हैं.

उसके उपर पाटा अथवा चौकी रख कर उस पर लाल अथवा पीला कपड़ा बिछाते हैं.

उस कपड़े पर केले के पत्ते को रख कर उस पर मूर्ति की स्थापना की जाती हैं.

इसके साथ एक पान पर सवा रूपये रख पूजा की सुपारी रखी जाती हैं.

कलश भी रखा जाता हैं एक लोटे पर नारियल को रख कर उस लौटे के मुख कर लाल धागा बांधा जाता हैं. यह कलश पुरे दस दिन तक ऐसे ही रखा जाता हैं. दसवे दिन इस पर रखे नारियल को फोड़ कर प्रशाद खाया जाता हैं.

सबसे पहले कलश की पूजा की जाती हैं जिसमे जल, कुमकुम, चावल चढ़ा कर पुष्प अर्पित किये जाते हैं.

कलश के बाद गणेश देवता की पूजा की जाती हैं. उन्हें भी जल चढ़ाकर वस्त्र पहनाए जाते हैं फिर कुमकुम एवम चावल चढ़ाकर पुष्प समर्पित किये जाते हैं.

गणेश जी को मुख्य रूप से दूर्बा चढ़ायी जाती हैं.

इसके बाद भोग लगाया जाता हैं. गणेश जी को मोदक प्रिय होते हैं.

फिर सभी परिवार जनो के साथ आरती की जाती हैं. इसके बाद प्रसाद वितरित किया जाता हैं.

गणेश जी की उपासना में गणेश  अथर्वशीर्ष  का बहुत अधिक महत्व हैं. इसे रोजाना भी पढ़ा जाता हैं. इससे बुद्धि का विकास होता हैं एवम सभी संकट दूर होते हैं.

भाद्रपद की गणेश चतुर्थी गणेशोत्सव का महत्व और पूजन विधि

जिस प्रकार पश्चिम बंगाल की दूर्गा पूजा आज पूरे देश में अत्यधिक प्रचलित हो चुकी है उसी प्रकार महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी का उत्सव भी पूरे देश में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का यह उत्सव लगभग दस दिनों तक चलता है जिस कारण इसे गणेशोत्सव भी कहा जाता है। उत्तर भारत में गणेश चतुर्थी को भगवान श्री गणेश की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

प्रत्येक चन्द्र महीने में 2 चतुर्थी तिथी होती है. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश से सम्बंधित होती है. शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या के बाद चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है, और कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी को संकटा चतुर्थी कहा जाता है.  यद्यपि विनायक चतुर्थी उपवास हर महीने किया जाता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण विनायक चतुर्थी भाद्रपद के महीने में होती है. भाद्रपद के दौरान विनायक चतुर्थी, गणेश चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है. गणेश चतुर्थी को हर साल पूरे भारत में भगवान गणेश के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

 गणेश चतुर्थी 2018 शुभ  मुहूर्त 
चतुर्थी तिथि आरंभ- 16:07 (12 सितंबर 2018)

चतुर्थी तिथि समाप्त- 14:51 (13 सितंबर 2018)

गणेश चतुर्थी पर्व तिथि व मुहूर्त - 13 सितंबर- 2018
   मध्याह्न गणेश पूजा – 11:04 से 13:31

   चंद्र दर्शन से बचने का समय- 16:07 से 20:34 (12 सितंबर 2018)

    चंद्र दर्शन से बचने का समय- 09:32 से 21:13 (13 सितंबर 2018)


भगवान गणेश के भक्त संकटा चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी तरह के विघ्न हरने के लिए पूजे जाते हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है।
जो इस उपवास का पालन करते हैं, उन भक्तों को भगवान गणेश ज्ञान और धैर्य के साथ आशीर्वाद देते हैं.

 गणेश चतुर्थी पर गणेश पूजा दोपहर के दौरान की जाती है जो हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से मध्यान्ह होता है.

गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, १० दिन के बादअनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है और यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है। अनन्त चतुर्दशी के दिन श्रद्धालु-जन बड़े ही धूम-धाम के साथ सड़क पर जुलूस निकालते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा का सरोवर, झील, नदी इत्यादि में विसर्जन करते हैं।


Wednesday 5 September 2018

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 5 सितंबर यानी "शिक्षक दिवस" प्रख्यात शिक्षाविद,दार्शनिक व विचारक "भारतरत्न पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती~
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बिना गुरु के ज्ञान संभव नही और बिना ज्ञान के विजय संभव नही ।
जब से ये सृस्टि की की संरचना हुई तब से ही यह परिपाटी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।
जो शिक्षक होते हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ की श्रेणी में रखा गया है ।
प्राचीनकाल की गुरुकुल की शिक्षा से लेकर आज की कलयुगी शिक्षा तक का सफर बिना गुरु के मार्गदर्शन के असंभव थी। तभी तो कबीर दास जी ने कहा है
की
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागौ पाय । बलिहारी गुरु आपणै,गोविंद दियो बताय।।
 शास्त्रोक्तलिखित- तस्मै श्री गुरुवे नमः
  के व्याख्यान से हमे बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
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पुराने समय में शिक्षक बनना एक सम्मान का प्रतीक था, वहीं अब शिक्षक बनना व्यवसाय का प्रतीक है। अब सम्पूर्ण जगत में शिक्षा का व्यवसाईकरण तेजी से हो रहा है।
अब ना तो ऐसे शिक्षक रहे और न ही ऐसे शिष्य।
यद्यपि बहुत सी संस्थाएं बहुत से शिक्षक निःस्वार्थभाव से इस देश की युवा पीढ़ी को सदमार्ग दिखाने हेतु कार्यरत हैं किन्तु जब तक हम जागरूक नही होंगे तब तक ये संस्थाएं कभी सफल नही हो सकतीं।

 हमारे जीवन का प्रथम शिक्षक हमारे अपने अविभावक, माता-पिता हैं।
 युवापीढ़ी को सही मार्ग दिखाने में हर माता-पिता का बहुत बड़ा रोल होता है। क्योंकि बच्चे का अधिक समय उन्ही के पास बीतता है।

 शिक्षा और शिक्षक की गुणवत्ता में दिनप्रतिदिन कमी आती जा रही है।
  उदाहरणतः यदि किसी विद्यालय में 2000 बच्चे हैं तो उसमे से लगभग 5-7 प्रतिशत  ही सर्वोच्चतम ज्ञान/स्थान प्राप्त करते हैं शेष बच्चे एवरेज या बिलो एवरेज रह जाते हैं। यही अनुपात  प्रतिवर्ष होने के कारण बेरोजगारी, असफलता दिनोदिन बढ़ती जा रही है।
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 परंतु आजकल के माता-पिता,अविभावक अत्यधिक संतानमोह के कारण अपने बच्चों को मोहपाश के मकड़जाल में इस कदर जकड़े हैं की बच्चे स्वयं सदमार्ग अपनाने के बजाय कुमार्ग अपनाने में ज्यादा रुचि रख रहे है । इसके मुख्य कारण
 1-बच्चे को अत्यधिक सुखसुविधा देना, उनकी गलतियों को गंभीरता से नहीं लेना,उन्हें आत्मनिर्भर बनने हेतु स्वयं निर्णय नही लेने देना।

 2- उनकी हर जिद्द पूरी करना ही असफलता का कारण है।

 3- सोशल मीडिया,मोबाइल सुमार्ग कम, कुमार्ग का रास्ता ज्यादा देता है ।

 4- उन्हें हम बचपन से ही मल्टीमीडिया मोबाइल पकड़ा देते है। जबकि इसकी जगह बटन मोबाइल से भी उनकी पकड़ रख सकते हैं।

 5- बचपन से ही उन्हें बाइक,कार पकड़ा देते हैं ।

 6- पैसे का हिसाब किताब नहीं पूछते हैं ।
 7- उनकी सोहबत पर नज़र नही रखते है।
 8- परिवार में पाश्चात्य संस्कृत को बढ़ावा देना।

 9-बच्चे पर निगरानी का अभाव होना।
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 यही कारण है की असफल बच्चे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु गलत मार्ग अपना लेते हैं।
 कहने को तो बहुत कुछ है किन्तु समयाभाव के कारण मैं आपसे बस इतना ही कहना चाहूंगा की बच्चे की परवरिश में कोई कमी न रखें किन्तु याद रखें ज्यादातर देखा गया है की अत्यधिक सुख सुविधा देना ही बड़े होने पर उनके भविष्य के लिए घातक हो सकती है। हर चीज बैलेंस अनुपात में होनी चाहिए।
 आचार्य राजेश कुमार
 www.divyanshjyotish.com
🙏🙏🌸🙏🙏🌸🙏🙏🌸🙏🙏

Monday 3 September 2018



~ईश्वर एक नाम अनेक~
जन्माष्टमी पर विशेष /श्रीमदभगवतगीता एवं अन्य  ग्रन्थों से संकलित लेख
देवता को डॉन या तड़ीपार से संबोधित करना बहुत गलत और शर्मनाक है

 प्रत्येक वर्ष भगवान “श्री कृष्ण जी” के जन्म दिन पर भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र मे उनके जन्मदिन मनाने की  होड़ चारो  तरफ लग जाती  है । विश्व के हर कोने मे उनका जन्मदिन लोग भिन्न भिन्न तरीके से मनाते  हैं । वास्तव मे देखा जाय तो ईश्वर के अवतार मे श्री कृष्ण ही ऐसे देव हैं जो बिश्व के हर कोने मे अत्यधिक प्रसिद्ध हैं।
जब से सोशल  नेटवर्क हम सभी के हाथों  मे पहुचा है तब से  अभिव्यक्ति की आज़ादी” के कारण ज़्यादातर युवा पीढ़ी श्रीक़ृष्ण के जन्मदिन की बधाई अपनों के बीच अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल करते हुए देते हैं जैसे कोई ड़ान तो कोई  तड़ीपार इत्यादि इत्यादि असंसदीय शब्दों का प्रयोग करते हुए आफ्नो के बीच बधाई देते  है । हमे लगता है की ये उचित नहीं है ।
 यदि भगवान श्री कृष्ण के बारे मे ग्रंथो मे उल्लेखित तथ्य पढ़ने का आपके पास  समय नहीं है तो कम से कम उनके बारे मे मुख्य-मुख्य तथ्यों की जानकारी से मै अवगत करा रहा हूँ जिसे आपको अवश्य समझना चाहिए ।
 पूर्व से उपलब्ध ग्रन्थों मे उनके जीवन के बारे  मे लिखी गई कुछ रोचक बातों का संकलन आप  सभी के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हूँ ........


श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका का नाम राधारानी था जो बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत बड़ी थी। लगभग 6 साल से भी ज्यादा का अंतर था। श्री कृष्ण ने 14 वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था।। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले।
 श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।।
 श्री कृष्ण की कुल 125 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।
 श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे।
 श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था।
श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था..
 श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।
 श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे, अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे।
 श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था। क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।।

 श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु ।
 दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।
श्री कृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था।
 श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।
 श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।
 श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन  दिया था।

भगवान् श्री कृष्ण को अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाना जाता है।
 उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है।
 राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है।
महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते है।
 उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते है।
बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते है।
 दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते है।
गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते है।
असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।
 मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।
 गोविन्द या गोपाल में "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है गोपाल है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
आचार्य राजेश कुमार Website- www.divyanshjyotish.com

पहले कृष्ण जी के बारे में जाने फिर *जन्माष्टमी की शुभकामनाएं* दें।
 देवता को डॉन या तड़ीपार से संबोधित करना बहुत गलत और शर्मनाक है *भगवान श्री कृष्ण*.....🌹

भगवान् *श्री कृष्ण* को अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाना जाता है।

* उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है।

* राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है।

* महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते है।

* उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते है।

* बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते है।

* दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते है।

* गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते है।

* असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।

* मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।

* गोविन्द या गोपाल में "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है गोपाल है।

* श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था..

* श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।

* श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे, अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे।

* श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था। क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।।

* श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु ।

* दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।

* श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका का नाम राधारानी था जो बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत बड़ी थी। लगभग 6 साल से भी ज्यादा का अंतर था। श्री कृष्ण ने 14 वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था।। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले।

* श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।।

* श्री कृष्ण की कुल 125 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।

* श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे।

* श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था।

* श्री कृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था।

* श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।

* श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।

* श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन  दिया था।

*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं*