~ईश्वर एक नाम अनेक~
जन्माष्टमी
पर विशेष /श्रीमदभगवतगीता एवं अन्य ग्रन्थों
से संकलित लेख
“देवता को डॉन या तड़ीपार से संबोधित करना बहुत गलत और शर्मनाक है “
प्रत्येक वर्ष भगवान “श्री कृष्ण जी” के जन्म दिन
पर भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र मे उनके जन्मदिन मनाने की होड़ चारो तरफ लग जाती है । विश्व के हर कोने मे उनका जन्मदिन लोग भिन्न
भिन्न तरीके से मनाते हैं । वास्तव मे देखा
जाय तो ईश्वर के अवतार मे श्री कृष्ण ही ऐसे देव हैं जो बिश्व के हर कोने मे अत्यधिक
प्रसिद्ध हैं।
जब
से सोशल नेटवर्क हम सभी के हाथों मे पहुचा है तब से “अभिव्यक्ति की आज़ादी” के कारण
ज़्यादातर युवा पीढ़ी श्रीक़ृष्ण के जन्मदिन की बधाई अपनों के बीच अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल
करते हुए देते हैं जैसे कोई ड़ान तो कोई तड़ीपार
इत्यादि इत्यादि असंसदीय शब्दों का प्रयोग करते हुए आफ्नो के बीच बधाई देते है । हमे लगता है की ये उचित नहीं है ।
यदि भगवान श्री कृष्ण के बारे मे ग्रंथो मे उल्लेखित
तथ्य पढ़ने का आपके पास समय नहीं है तो कम से
कम उनके बारे मे मुख्य-मुख्य तथ्यों की जानकारी से मै अवगत करा रहा हूँ जिसे आपको अवश्य
समझना चाहिए ।
पूर्व से उपलब्ध ग्रन्थों मे उनके जीवन के बारे मे लिखी गई कुछ रोचक बातों का संकलन आप सभी के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हूँ ........
श्री कृष्ण के धनुष का नाम
सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका का नाम
राधारानी था जो बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से
निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत बड़ी
थी। लगभग 6 साल से भी ज्यादा का अंतर था। श्री कृष्ण ने 14
वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था।। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले।
श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने
हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण
महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।।
श्री कृष्ण की कुल 125 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे
और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में
चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।
श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि
शांडिल्य थे।
श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग
ने किया था।
श्री कृष्ण के पिता का नाम
वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण
के दादा का नाम शूरसेन था..
श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश
के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।
श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन
उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे, अंगिरस ने बाद में
तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे।
श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन
राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे
विवाह किया था। क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज
उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।।
श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही
थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन
थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु ।
दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था
और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।
श्री कृष्ण के बड़े पोते का
नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके
उन्हें पराजित किया था।
श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र
के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका
निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।
श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी
का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।
श्री कृष्ण ने हरियाणा के
कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन दिया था।
भगवान् श्री कृष्ण को अलग
अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाना जाता है।
उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल
गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है।
राजस्थान में श्रीनाथजी या
ठाकुरजी के नाम से जानते है।
महाराष्ट्र में बिट्ठल के
नाम से भगवान् जाने जाते है।
उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से
जाने जाते है।
बंगाल में गोपालजी के नाम से
जाने जाते है।
दक्षिण भारत में वेंकटेश या
गोविंदा के नाम से जाने जाते है।
गुजरात में द्वारिकाधीश के
नाम से जाने जाते है।
असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में
कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।
मलेशिया, इंडोनेशिया,
अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस
इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।
गोविन्द या गोपाल में
"गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से
है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की
इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है
गोपाल है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
शुभकामनाएं
आचार्य राजेश कुमार Website- www.divyanshjyotish.com