Friday 17 August 2018


देश वासियों के सभी के दिलों पर राज करने वाला सितारा आखिर इस मतलबी दुनिया को अलविदा कह ही गया-
मैं हार नही मानूँगा, मैं रार नही ठानूँगा--- ने आखिर 16 अगस्त 2018 को शाम 5 बजे एम्स नई दिल्ली में काल से लड़ते-लड़ते देश के तिरंगे झंडे का सम्मान करते हुए 15 अगस्त को पार कर कर ही  गया:---
हम बात कर रहे हैं देश के पूर्व प्रधान मंत्री भारत रत्न एवं महान कवि माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी की।
अटल जी भले ही मध्यप्रदेश के ग्वालियर में जन्म लिए लेकिन वह उत्तर प्रदेश के लखनऊ वासियों के हर दिल में वास् करते थे। लखनऊ की हर गलियाँ हर मोहल्ले के वासिंदों की आंखे आज नम हो गई हैं। आज लखनऊ ही नही बल्कि पूरे देश का हर शख्स उन्हें याद कर उन्हें  भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है।
अटल जी अच्छे वक्ता के साथ अच्छे श्रोता भी थे:-
जब वह सदन में भाषण देते थे तो सदन में उपस्थित  हर पार्टी का सदस्य उन्हें बड़े ध्यान से सुनता था । अटल जी के विरोध करने का अंदाजे बयाँ काबिले तारीफ था। उनकी बात का बुरा शायद ही कोई मानता था।
अटल जी साधारण व्यक्तित्व के धनी थे-
आज से तकरीबन 25-26 वर्ष पूर्व मैं लखनऊ के लाप्लास में एक अपने मित्र श्री शैलेन्द्र शर्मा के यहां जाया करता था। उसी के सामने अटल जी का कमर नम्बर 302-303 था । वहाँ मेरी पहली मुलाक़ात अटल जी से जब हुई तो वह जेब वाली बनियान व धोती पहने हुए छोटे बच्चों से खेलते मिले थे। एक बार "लुका-छिपी "खेलते समय  एक बच्ची कही ऐसी जगह छिप गई की अटल जी को नहीं मिल रही थी तब उनकी नज़र हम पर पड़ी । अटल जी ने हमसे मुस्कुराते हुए कहा था  की देखो वह कहाँ छिप गई है। जब तक अटल जी अपनी आंखे बंद किये थे तो वह लड़की मेरे मित्र के घर में छिप गई थी।
इससे यह स्पष्ट होता था की अटल जी कितने हर दिल अज़ीज़ इंसान थे।
उनके अंदर कभी छोटे बड़े का भेद भाव कदापि नही था । वह छोटों को पहले तवज्जु देते थे। अटल जी जब दिल्ली से  लखनऊ आते थे तो हम उनको वीवीआईपी गेस्ट हाउस या चौक स्थित लाल जी टंडन जी के घर पर ही होने की सूचना पाते थे।

  उनकी याददाश्त बड़ी तेज़ थी।
उनको छोटे छोटे कर्मचारियों एवं लोगों के नाम तक याद रहते थे। अटल जी कहा करते थे की इंसान धन से नहीं मन और दिल से बड़ा होता है।

जैसे इस धरती पर सभी कार्य प्रणाली का हिसाब-किताब रखा जाता है ,ठीक उसी प्रकार ऊपर वाले का भी अपना लेख जोखा रखने की कोई कार्य प्रणाली होगी :----
   तभी तो इसका साक्षात प्रमाण न्यूमरोलोजी के इस  उदाहरण से मिलता है:--
अटल जी का जन्म दिन 25.12.1924 है जबकि उनका अंत दिनांक 16.08.2018 है। इन दोनो तिथियों  के अंकों का योग 26 अर्थात 2+6=8 आएगा।
जन्म दिन का योग:-25.12.1924
2+5+1+2+1+9+2+4=26
उनकी मृत्यु के दिन का योग-16.08.2018
1+6+8+2+1+8=26
इसे आप क्या कहेंगे महज़ एक संयोग या ऊपर वाले का लेख -जोखा !
आचार्य राजेश कुमार
मेल-rajpra.infocom@gmail.com


Wednesday 15 August 2018

     
नागपंचमी- का पर्व-2018
बहुचर्चित कथा-क्यों महिलाएं नाग को भाई मानती है         
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पंचमी तिथि प्रारंभ – 15 अगस्त -2018 को सुबह 03:27 बजे शुरू

पंचमी तिथि समाप्ति – 16 अगस्त को सुबह 01:51 बजे समाप्त। 

    नाग पंचमी , सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है । अमृत सहित नवरत्नों की प्राप्ति के लिए देव-दानवों ने जब समुद्र-मंथन किया था, तो जगत-कल्याण के लिए वासुकी नाग ने मथानी की रस्सी के रुप में काम किया था.

         हिंदू धर्म में नाग देव का अपना विशेष स्थान है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी.
         महाभारत की एक कथा के अनुसार जब महाराजा परीक्षित को उनका पुत्र जनमेजय तक्षक नाग के काटने से नहीं बचा सका तो जनमेजय ने विशाल सर्पयज्ञ कर यज्ञाग्नि में भस्म होने के लिए तक्षक को आने पर विवश कर दिया.
         नागपंचमी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. इस दिन कही और सुनी जाने वाली एक प्रचलित कथा इस प्रकार है-

        एक समय में एक सेठ हुआ करते थे. उनके सात बेटे थे. सातों की शादी हो चुकी थी. सबसे छोटे बेटे की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, लेकिन उसका कोई भाई नहीं था.

         एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को चलने को कहा. इस पर बाकी सभी बहुएं उनके साथ चली गईं और डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगीं. तभी वहां एक नाग निकला. इससे ड़रकर बड़ी बहू ने उसे खुरपी से मारना शुरू कर दिया. इस पर छोटी बहू ने उसे रोका. इस पर बड़ी बहू ने सांप को छोड़ दिया. वह नाग पास ही में जा बैठा. छोटी बहू उसे यह कहकर चली गई कि हम अभी लौटते हैं तुम जाना मत. लेकिन वह काम में व्यस्त हो गई और नाग को कही अपनी बात को भूल गई.

अगले दिन उसे अपनी बात याद आई. वह भागी-भागी उस ओर गई, नाग वहीं बैठा था. छोटी बहू ने नाग को देखकर कहा- सर्प भैया नमस्कार! नाग ने कहा- 'तूने भैया कहा तो तुझे माफ करता हूं, नहीं तो झूठ बोलने के अपराध में अभी डस लेता. छोटी बहू ने उससे माफी मांगी, तो सांप ने उसे अपनी बहन बना लिया.

    कुछ दिन बाद वह सांप इंसानी रूप लेकर छोटी बहू के घर पहुंचा और बोला कि 'मेरी बहन को भेज दो.' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था. उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया.

रास्ते में नाग ने छोटी बहू को बताया कि वह वही नाग है और उसे ड़रने की जरूरत नहीं. जहां चला न जाए मेरी पूंछ पकड़ लेना. बहन ने भाई की बात मानी और वह जहां पहुंचे वह सांप का घर था, वहां धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई.

एक दिन भूलवश छोटी बहू ने नाग को ठंडे की जगह गर्म दूध दे दिया. इससे उसका मुंह जल गया. इस पर सांप की मां बहुत गुस्सा हुई. तब सांप को लगा कि बहन को घर भेज देना चाहिए. इस पर उसे सोना, चांदी और खूब सामान देकर घर भेज दिया गया.

सांप ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था. उसकी प्रशंसा खूब फैल गई और रानी ने भी सुनी. रानी ने राजा से उस हार की मांग की. राजा के मंत्रि‍यों ने छोटी बहू से हार लाकर रानी को दे दिया.

छोटी बहू ने मन ही मन अपने भाई को याद किया ओर कहा- भाई, रानी ने हार छीन लिया, तुम ऐसा करो कि जब रानी हार पहने तो वह सांप बन जाए और जब लौटा दे तो फिर से हीरे और मणियों का हो जाए. सांप ने वैसा ही किया.

रानी से हार वापस तो मिल गया, लेकिन बड़ी बहू ने उसके पति के कान भर दिए. पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा - यह धन तुझे कौन देता है? छोटी बहू ने सांप को याद किया और वह प्रकट हो गया. इसके बाद छोटी बहू के पति ने नाग देवता का सत्कार किया. उसी दिन से नागपंचमी पर स्त्रियां नाग को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।

पूजन विधि:~
नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
- इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। सफेद कमल का फूल पूजा मे रखें  और यह प्रार्थना करें-
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जाप करें-
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।
इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें-
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:.....
  कलयुग में यह पूजा जीवन के हर क्षेत्र में( आर्थिक,पारिवारिक,शारीरिक,सामाजिक, वैवाहिक, व्यावसायिक, नौकरी इत्यादि) श्रेष्ठ एवं शुभ फल प्रदान करती है। आज के दिन शिव मंदिर या अपने निवास स्थान पर रुद्रआभीशेख करवाना  , शिव अमोघ कवच का पाठ करना अत्यंत ही लाभप्रद सिद्ध होता है।एक बार अवश्य कर के देखें । खुद समझ जाएंगे। वैसे आप चाहें तो बाज़ार से नागपंचमी पूजा की किताब खरीद लें।
         आचार्य राजेश कुमार 

Monday 13 August 2018

   हरियाली तीज का मुहूर्त और विधि:-
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श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं  । इस बार हरियाली तीज 13अगस्त 2018 दिन सोमवार को पड़ रही है। 13 अगस्त को मनाई जाएगी. इसे श्रावणी तीज भी कहा जाता है.

क्या है शुभ मुहूर्त

हरियाली तीज का शुभ मुहूर्त 13 अगस्त को सुबह 8:38 पर शुरू होगा और 14 अगस्त को को सुबह 5:46 तक रहेगा.



हरियाली तीज पूजा विधि

हरियाली तीज की पूजा शाम के समय की जाती है. जब दिन और रात मिलते हैं तो उस समय को प्रदोष काल कहते हैं. इस समय स्वच्छ वस्त्र धारण कर पवित्र होकर पूजा करें.

- अब भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मूर्ति बनाएं. परंपरा के अनुसार ये मूर्तियां स्वर्ण की बनी होनी चाहिए लेकिन आप काली मिट्टी से अपने हाथों से ये मूर्तियां बना सकती हैं.

- सुहाग श्रृंगार की चीज़ें माता पार्वती को अर्पित करें.

- अब भगवान शिव को वस्त्र भेंट करें.

- आप सुहाग श्रृंगार की चीज़ें और वस्त्र किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं.

- इसके बाद पूरी श्रद्धा के साथ हरियाली तीज की कथा सुने या पढ़ें.

- कथा पढ़ने के बाद भगवान गणेश की आरती करें. इसके बाद भगवान शिव और फिर माता पार्वती की आरती करें.

- तीनों देवी-देवताओं की मूर्तियों की परिक्रमा करें और पूरे मन से प्रार्थना करें.

- पूरी रात मन में पवित्र विचार रखें और ईश्वर की भक्ति करें. पूरी रात जागरण करे.

- अगले दिन सुबह भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा करें और माता पार्वती को सिंदूर अर्पित करें.

- भगवान को खीरे, हल्वे और मालपुए का भोग लगाएं, और अपना व्रत खोलें.

- ये सभी रीति पूर्ण होने के बाद इन सभी चीज़ों को किसी पवित्र नदी या तालाब में प्रवाहित कर दें.



            यह मुख्यतः स्त्रियों का त्योहार है, इसे मां पार्वती के शिव से मिलन की याद में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ही विरहाग्नि में व्यथित देवी गौरी देवाधिदेव शिव से मिली थीं व आलिंगनबद्ध होकर प्रसन्नता से झूम उठी थीं। इस दिन महिलाएं माता पार्वती की पूजा करती हैं। नवविवाहिता महिलाएं अपने पीहर में आकर यह त्योहार मनाती हैं, इस दिन व्रत रखकर विशेष श्रृंगार किया जाता है। नवविवाहिता इस पर्व को मनाने के लिए एक दिन पूर्व से अपने हाथों एवं पावों में कलात्मक ढंग से मेंहन्दी लगाती हैं।
इस पर्व पर विवाह के पश्चात् पहला सावन आने पर नवविवाहिता लड़की को ससुराल में नहीं छोड़ा जाता है। हरियाली तीज से एक दिन पूर्व सिंजारा मनाया जाता है। इस दिन नवविवाहिता लड़की की ससुराल से वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेंहन्दी एवं मिठाई भेजी जाती है। इस दिन मेंहन्दी लगाने का विशेष महत्व होता है।

कैसे मनाये त्योहार:-
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इस दिन प्रातः काल आम एवं अशोक के पत्तों सहित टहनियां पूजा के स्थान के पास स्थापित झूले को सजाएं तथा दिन भर उपवास रखकर भगवान श्री कृष्ण के श्रीविग्रह को झूले में रखकर श्रृद्धापूर्वक झुलाएं। साथ में लोक गीतों को मधुर स्वर में गाएं। माता पार्वती की सुसज्जित सवारी धूम-धाम से निकाली जाती है। इस दिन महिलाएं तीन संकल्प लें 1. पति से छल कपट नहीं करेंगी, 2. झूठ एवं लोगों से बुरा व्यवहार नहीं करेंगी ।
  आचार्य राजेश कुमार



Friday 10 August 2018


सूर्य ग्रहण और शनि अमावस्या दोनों एक साथ

11- अगस्त- 2018  को लगने वाला सूर्य ग्रहण इस साल का आखिरी सूर्य ग्रहण है। यह भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए इसका खास असर भारत में नहीं लेगा। यह 11 अगस्त को उत्तरी गोलार्ध में सुबह के शुरुआती समय में  दिखाई देगा।
यह भारत में दोपहर 01:32:08 बजे शुरू होगा  और शाम 5 बजे यह समाप्त हो जाएगा। आपको बता दें कि सूर्य ग्रहण हमेशा चंद्र ग्रहण के दो सप्ताह पहले या बाद में लगता है। इस बार सूर्य ग्रहण  का समय कुल 3 घंटे 30 मिनट तक होगा।
ग्रहण का वैज्ञानिक आधार :-
विज्ञान के मुताबिक ग्रहण पूरी तरह खगौलीय घटना है. आइए जानते हैं कब और कैसे होता है ग्रहण:
सूर्य ग्रहण:
(1) जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य की चमकती सतह चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ती है.

(2) चंद्रमा की वजह से जब सूर्य ढकने लगता है तो इस स्थिति को सूर्यग्रहण कहते हैं.

(3) जब सूर्य का एक भाग छिप जाता है तो उसे आंशिक सूर्यग्रहण कहते हैं.

(4) जब सूर्य कुछ देर के लिए पूरी तरह से चंद्रमा के पीछे छिप जाता है तो उसे पूर्ण सूर्यग्रहण कहते हैं.

(5) पूर्ण सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या को ही होता है.

चंद्रग्रहण:
(1) जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो सूर्य की पूरी रोशनी चंद्रमा पर नहीं पड़ती है. इसे चंद्रग्रहण कहते हैं.

(2) जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सरल रेखा में होते हैं तो चंद्रग्रहण की स्थिति होती है.

(3) चंद्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा की रात में ही होता है.

(4) एक साल में अधिकतम तीन बार पृथ्वी के उपछाया से चंद्रमा गुजरता है, तभी चंद्रग्रहण लगता है.


शिव आराधना जाप से मिटेंगे सारे दुख
यह ग्रहण सावन में पड़ रहा है और साथ शनि अमावस्या का शुभ संयोग भी बन रहा है. इस ग्रहण काल के समय अगर शिव जी का पूजन किया जाए तो जिन पर शनि की साढ़े साती और ढैया चल रही है, उसकी सभी मुश्किलें दूर हो जाएंगी. शनि का और ग्रहण का जिनकी कुंडली में सूर्य और राहु या सूर्य शनि का संबंध हो तो वो अवश्य पूजा कर लें.
पुजा करने की विधि:-
इस दिन गन्ने के रस, शहद और केसर मिश्रित दूध से शिव जी का पूजन करें. इस दिन शमी वृक्ष का पूजन भी अवश्य करना चाहिए, जिससे सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है. हालांकि यह ग्रहण भारत में नहीं देखा जा सकेगा जिस कारण इसका असर भारत में नहीं पड़ेगा. इसी कारण यहां पर सूतक का विचार भी नहीं किया जाएगा.
किन राशियों  पर रहेगा असर :-
 आखिरी सूर्य ग्रहण का वृष, सिंह, वृ्श्चिक और कुंभ राशि पर कुछ असर देखने को मिल सकता है। कुंभ राशि वालों के लिए थोड़ा परेशानी का कारण बन सकता है, इसलिए उन्हें हर फैसले संभल कर लेने होंगे। कन्या राशि वालों को लाभ हो सकता है, वहीं वृषभ राशि वालों को भी थोड़ी सचेत रहने की जरुरत है। सिंह राशि वाले सेहत को लेकर सचेत रहें ।
आचार्य राजेश कुमार


Wednesday 8 August 2018

12 ज्योतिर्लिंगों मे बैद्यनाथ धाम की उत्पत्ति,स्थापना  एवं महिमा
मित्रों आजकल सावन के महीने मे मंदिरों ,घरो यानि चारो तरफ देवाधिदेव महादेव अर्थात शिव की महिमा का गुणगान ,पूजा अर्चना हो रही है । हम सभी भली भांति जानते हैं की इस पृथ्वी पर कुल 12 स्वयं भू शिव लिंग अर्थात कुल 12 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं । इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों मे झारखंड राज्य के देवघर मे बाबा वैद्यनाथ धाम का सिद्धपीठ ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं । इस शिव लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है । इस सावन के महीने मे लाखों भक्तगण जिसे हम कांवरिया भी कहते हैं ,देवघर से लगभग 100 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज   से जल भरकर बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करने आते हैं और शिव की कृपा का पात्र बनते हैं ।   
वैद्यनाथ धाम मे स्थित शिव लिंग की पौराणिक कहानी कुछ इस प्रकार है ----
             पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रकांडविद्वान रावण भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर घोर तपस्या कर रहा था। वह एक एक करके अपना सर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था। नौ सर चढ़ाने के बाद जब रावण अपना दसवां सर काटने वाला ही था तब भोलेनाथ को प्रसन्न होकर रावण को दर्शन दिए। और उससे वर मांगने को कहा। रावण को सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी। साथ ही साथ उसने कई देवता यक्ष और ऋषि-मुनि को कैद करके लंका में रखे हुए था। इसी वजह से रावण ने यह इच्छा जताई कि भगवान शिव भी कैलाश छोड़कर लंका में ही रहे इसलिए रावण ने भगवान शिव शंकर से कामना लिंग को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया। शिव जी ने अनुमति इस चेतावनी के साथ दी, की यदि वह इस कामना लिंग को पृथ्वी के मार्ग में कहीं रख देगा तो वह वही अचल होकर स्थापित हो जाएगा।

            महादेव के इस चेतावनी को सुनने के बावजूद भी दशानन रावण कामना लिंग को अपने नगरी लंका ले जाने के लिए तैयार हो गया। इधर भगवान शिव के कैलाश छोड़ने की बात सुनते हैं सभी देवता चिंतित हो गए। इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने अपनी लीला रची उन्होंने वरुणदेव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लंका की ओर ले चला तो उसे देवघर के पास लघुशंका लग गई।  शिवलिंग को हाथ में लेकर लघुशंका करना उसे उचित नहीं लगा, इसलिए उसने अपने आसपास देखा कि कहीं कोई मिल जाए, जिसे वह शिवलिंग थमाकर लघुशंका कर सके कुछ देर के बाद ही उसे एक ग्वाला नजर आया जिसका नाम बैजू था। कहते हैं उस बैजू नाम के ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु वहां आए थे। रावण ने उस ग्वाले से कहा कि वह शिव लिंग को पकड़ कर रखें ताकि वह लघुशंका से निर्मित हो सके। और साथ ही साथ उसने यह भी कहा शिवलिंग को भूल से भी भूमि पर मत रखना।
रावण जब लघुशंका करने लगा तब उसी लघुशंका से एक तालाब बन गया। लेकिन रावण की लघुशंका नहीं समाप्त हुई।ग्वाले के रूप में मौजूद भगवान विष्णु ने रावण से कहा कि अब बहुत देर हो चुकी है, अब मैं और शिवलिंग उठाये खड़ा नहीं रह सकता, इतना कहकर उसने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया इसके बाद रावण की लघुशंका भी समाप्त हो गई। जब रावण लौट कर आया तो वह अपने लाख कोशिश के बावजूद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब उसे भगवान की लीला समझ में आ गई। और तब रावण क्रोधित होकर उस शिवलिंग को अंगूठे से  दबाकर वहां से चला गया । उसके बाद देवताओं ने आकर शिवलिंग की पूजा की ।  शिव जी का दर्शन होते ही सभी देवताओं ने शिवलिंग के उसी स्थान पर स्थापना कर दी। और तभी से महादेव कामना लिंग के रूप में देवघर में विराजते हैं।
आचार्य राजेश कुमार

Monday 6 August 2018

12 ज्योतिर्लिंगों मे बैद्यनाथ धाम की उत्पत्ति,स्थापना एवं महिमा:-

मित्रों आजकल सावन के महीने मे मंदिरों ,घरो यानि चारो तरफ देवाधिदेव महादेव अर्थात शिव की महिमा का गुणगान ,पूजा अर्चना हो रही है । हम सभी भली भांति जानते हैं की इस पृथ्वी पर कुल 12 स्वयं भू शिव लिंग अर्थात कुल 12 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं । इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों मे झारखंड राज्य के देवघर मे बाबा वैद्यनाथ धाम का सिद्धपीठ ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं । इस शिव लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है । इस सावन के महीने मे लाखों भक्तगण जिसे हम कांवरिया भी कहते हैं ,देवघर से लगभग 100 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज से जल भरकर बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करने आते हैं और शिव की कृपा का पात्र बनते हैं ।
वैद्यनाथ धाम मे स्थित शिव लिंग की पौराणिक कहानी कुछ इस प्रकार है ----
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रकांडविद्वान रावण भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर घोर तपस्या कर रहा था। वह एक एक करके अपना सर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था। नौ सर चढ़ाने के बाद जब रावण अपना दसवां सर काटने वाला ही था तब भोलेनाथ को प्रसन्न होकर रावण को दर्शन दिए। और उससे वर मांगने को कहा। रावण को सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी। साथ ही साथ उसने कई देवता यक्ष और ऋषि-मुनि को कैद करके लंका में रखे हुए था। इसी वजह से रावण ने यह इच्छा जताई कि भगवान शिव भी कैलाश छोड़कर लंका में ही रहे इसलिए रावण ने भगवान शिव शंकर से कामना लिंग को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया। शिव जी ने अनुमति इस चेतावनी के साथ दी, की यदि वह इस कामना लिंग को पृथ्वी के मार्ग में कहीं रख देगा तो वह वही अचल होकर स्थापित हो जाएगा।

महादेव के इस चेतावनी को सुनने के बावजूद भी दशानन रावण कामना लिंग को अपने नगरी लंका ले जाने के लिए तैयार हो गया। इधर भगवान शिव के कैलाश छोड़ने की बात सुनते हैं सभी देवता चिंतित हो गए। इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने अपनी लीला रची उन्होंने वरुणदेव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लंका की ओर ले चला तो उसे देवघर के पास लघुशंका लग गई। शिवलिंग को हाथ में लेकर लघुशंका करना उसे उचित नहीं लगा, इसलिए उसने अपने आसपास देखा कि कहीं कोई मिल जाए, जिसे वह शिवलिंग थमाकर लघुशंका कर सके कुछ देर के बाद ही उसे एक ग्वाला नजर आया जिसका नाम बैजू था। कहते हैं उस बैजू नाम के ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु वहां आए थे। रावण ने उस ग्वाले से कहा कि वह शिव लिंग को पकड़ कर रखें ताकि वह लघुशंका से निर्मित हो सके। और साथ ही साथ उसने यह भी कहा शिवलिंग को भूल से भी भूमि पर मत रखना।
रावण जब लघुशंका करने लगा तब उसी लघुशंका से एक तालाब बन गया। लेकिन रावण की लघुशंका नहीं समाप्त हुई।ग्वाले के रूप में मौजूद भगवान विष्णु ने रावण से कहा कि अब बहुत देर हो चुकी है, अब मैं और शिवलिंग उठाये खड़ा नहीं रह सकता, इतना कहकर उसने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया इसके बाद रावण की लघुशंका भी समाप्त हो गई। जब रावण लौट कर आया तो वह अपने लाख कोशिश के बावजूद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब उसे भगवान की लीला समझ में आ गई। और तब रावण क्रोधित होकर उस शिवलिंग को अंगूठे से दबाकर वहां से चला गया । उसके बाद देवताओं ने आकर शिवलिंग की पूजा की । शिव जी का दर्शन होते ही सभी देवताओं ने शिवलिंग के उसी स्थान पर स्थापना कर दी। और तभी से महादेव कामना लिंग के रूप में देवघर में विराजते हैं।
आचार्य राजेश कुमार

Sunday 5 August 2018

[8/5, 17:21] Divyansh Jyotish Kendra: "दिव्यांश ज्योतिष केंद्र"
           अति आवश्यक सूचना
         –---------------------
प्रिय मित्रों,
 अपार हर्ष के साथ सूचित किया जाता है की हमारी संस्था ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है की प्रत्येक रविवार एवं बुद्धवार को अपरान्ह 2 बजे से शाम 5 बजे तक आप अपनी किसी भी प्रकार की समस्या {ऐस्ट्रोलोजीकल समस्या (पारिवारिक ,आर्थिक ,शारीरिक, वैवाहिक, कैरियर, व्यवसाय ,वास्तु संबंधित इत्यादि ) } संबंधित समस्या के समाधान हेतु संपर्क करते है तो कोई शुल्क नहीं पड़ेगा ।आप संस्था को अपनी इक्षानुसार जो दान देना चाहे ,दे सकते हैं। इसके लिए आपको निम्न नियम एवं शर्त का अनुसरण करना होगा।
 
1-  यह सुविधा पहले आओ,पहले पाओ के आधार पर रहेगी।

 2- एक व्यक्ति को एक ही व्यक्ति के विश्लेषण करने इजाजत होगी।

3-  यदि आप पहले से जुड़े हैं तो पुराना पर्चा लाना अनिवार्य होगा।

4- इसके लिए प्रत्येक रविवार एवं बुद्धवार को 1.30 बजे तक संस्था के  मुख्यद्वार पर उपस्थित राजिस्ट्रर में अपना विवरण  लीखना अनवार्य होगा। कार्यालय 12.30 बजे खुलेगा। फ़ोन के माध्यम से केवल पेड कस्टमर को ही अपॉइंटमेंट मिलेगा।

  किसी भी जानकारी हेतु आप संपर्क करें।
  मोब-9454320396/8318953026

 New Address:-

  Divyansh jyotish kendra
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  UGF-6, Husna Plaza, near Vikas Nagar Power house chauraha, besides awas vikas office, Vikas Nagar       Lucknow-226022
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  ‎Note:- appointment is compulsory before visit.

Timing-
 1.30 pm to 8.30 pm
                ‎   

 
  आज्ञा से
  दिव्यांश ज्योतिष केंद्र
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