Sunday 3 June 2018

june 2018 ke tyohar

जून 2018 की शुरुआत हो चुकी है। इस माह कई महत्वपूर्ण व्रत पड़ेंगे। जिससे करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।  जून 2018 में होने वाले पर्व और त्यौहार के बारें में बताया गया है। जून महीने में होने वाले सभी पर्व और त्यौहार हिन्दू पंचाग के अनुसार निम्नानुसार है।


1 जून गुरुवार  : श्री दुर्गा अष्टमी व्रत, दश महाविद्या माता श्री धूमावती जी की जयंती, मेला क्षीर भवानी (जम्मू-कश्मीर), मेला स्थूल-मंडोल (हिमाचल)

2 शुक्रवार : श्री उमा ब्राह्मणी व्रत

4 रविवार : श्री गंगा दशहरा, श्री गंगा दशमी, दस दिनों के श्री गंगा व्रत-स्नान दशहरा समाप्त, श्री रामेश्वरम् प्रतिष्ठा दिवस, श्री रामेश्वरम् यात्रा दर्शन पूजन, सोपोर यात्रा धारलदा (ऊधमपुर), मेला श्री गंगा दशहरा महापर्व (हरिद्वार)

5 सोमवार : निर्जला एकादशी व्रत, मेला नमाणी एकादशी नौंवे गुरु बरहे (भटिंडा, पंजाब), श्री भीमसैनी एकादशी, श्री गायत्री जयंती, मेला पिपलु, हमीरपुर (हिमाचल), श्री रुक्मिणि विवाह; (ओडिशा)

6 मंगलवार : भौम प्रदोष व्रत, वट सावित्री व्रत (पूर्णिमा पक्ष), चम्पक द्वादशी

8 वीरवार : श्री सत्यनारायण व्रत

9 शुक्रवार : स्नानदान आदि की ज्येष्ठ की पूर्णिमा (आज ज्येष्ठा नक्षत्र होने से ज्येष्ठी योग है), देव स्नान पूर्णिमा, संत शिरोमणि भक्त कबीरदास जी की जयंती, मेला श्री शुद्ध महादेव यात्रा ऊधमपुर (जम्मू-कश्मीर)

10 शनिवार : आषाढ़ कृष्ण पक्ष प्रारम्भ

11 रविवार : श्री ऋषभदेव जी की जयंती

13 मंगलवार : संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत, अंगारकी चतुर्थी, चंद्रमा रात 10 बजकर 30 मिनट पर उदय होगा

15 गुरुवार  : सूर्योदय से पहले प्रात: 4 बजकर 28 मिनट पर पंचक प्रारम्भ, प्रात: 5 बजकर 32 मिनट पर सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करेगा, सूर्य की मिथुन संक्रांति एवं आषाढ़ महीना प्रारम्भ, संक्रांति का पुण्यकाल दोपहर 11 बजकर 56 मिनट तक है, मेला भुंतर (कुल्लू) एवं मेला पांडवों का बाड़ी मेला सरयांझ (सोलन)

17 शनिवार : मासिक काल अष्टमी व्रत, शहादत-ए-श्री हजरत अली जी, मेला माता श्री शूलिनी प्रारम्भ (सोलन)

19 सोमवार : सायं 5 बजकर 26 मिनट पर पंचक समाप्त

20 मंगलवार : योगिनी एकादशी व्रत

21 बुधवार : प्रदोष व्रत, सूर्य ‘सायण’ कर्क राशि में प्रवेश करेगा, सूर्य ‘दक्षिण अयन’ एवं वर्षा ऋतु प्रारम्भ

22 गुरुवार  : मासिक शिवरात्रि व्रत, श्री संगमेश्वर महादेव अरुणाय-पिहोवा (हरियाणा) के शिव त्रयोदशी पर्व की तिथि, राष्ट्रीय महीना आषाढ़ प्रारम्भ

23 शुक्रवार : शब-ए-कद्र एवं जमात-उल-विदा (रमजान का आखिरी जुम्मा)

 24 शनिवार : स्नानदान आदि की आषाढ़ की अमावस, शनैश्चरी (शनिवार) की अमावस, प्रात: 8 बजकर एक मिनट के बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रारम्भ एवं आषाढ़ महीने के माता के गुप्त नवरात्रे प्रारम्भ, श्री ध्यानूं भगत जी की जयंती, विद्यादिक सम्मेलन प्रारम्भ श्री भैणी साहिब जी नामधारी पर्व (चंडीगढ़ रोड, लुधियाना)

25 रविवार : रथयात्रा-रथ महोत्सव (ओडिशा-श्री जगन्नाथपुरी जी), प्रारम्भ, मनोरथ द्वितीया, श्री जगन्नाथ पुरी (ओडिशा) में  श्री सुभद्रा जी-श्री बलराम जी एवं श्री जगदीश जी का भव्य रथ महोत्सव का शुभ प्रारम्भ, चंद्र दर्शन

27 मंगलवार : सिद्धि विनायक श्री गणेश चतुर्थी व्रत

29 गुरुवार  : स्कन्द षष्ठी, कुमार षष्ठी, श्री महावीर च्यवन दिवस (जैन पर्व), शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी की बरसी

30 जून शुक्रवार : विवस्वत् सप्तमी, विवस्वत् (सूर्य) पूजा।

 

दिव्यांश ज्योतिष केंद्र

 

जून माह में सूर्य, मंगल ,बुध और शुक्र बदलेंगे अपनी चाल:- जून में कई ग्रह बदलेंगे अपना स्थान, किन राशियों को मिलेगा सबसे ज्यादा फायदा



जून का महीना शुरू हो चुका है और इस महीने में कई ग्रह अपना स्थान परिवर्तन करने वाले हैं। ज्योतिष के अनुसार सभी 9 ग्रह समय-समय पर एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इन ग्रहों के परिवर्तन से सभी राशियों पर इसका प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं जून महीने में ग्रहों के परिवर्तन का सभी 12 राशियों पर क्या होगा असर।आइये जानते हैं:-

सूर्य:-
ग्रहों के राजा माने जाते हैं और लगभग एक महीने में एक राशि से दूसरी राशि में अपना स्थान परिवर्तन करते है। सूर्य जून के पहले 15 दिनों तक वृष राशि में रहेंगे इसके बाद मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे।

मंगल :-
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जून के शुरुआती समय में मकर राशि में गोचर करेंगे फिर इसके बाद 27 जून को यह ग्रह वक्री होगा। 
बुध:-
-अगर बात बुध ग्रह की कीजाय तो 10 जून को यह मिथुन राशि में प्रवेश करेगा फिर इसके बाद कर्क राशि में प्रवेश करेगा।

शुक्र:-
8 जून को शुक्र कर्क राशि में प्रवेश करेगा। बाकी ग्रहों की स्थिति पहले जैसी रहेगी।

माह जून- में ग्रहों के परिवर्तन से राशियों पर क्या होगा असर:-


मेष- तनाव बढ़ सकता है। परिवार और दोस्तों के बीच मनमुटाव रहेगा। सरकारी क्षेत्र में परेशानी होगी। व्यवसाय में लाभ कम होगा।

वृष- अचानक कहीं से धन की प्राप्ति हो सकती है या फिर कोई पुराना पैसा वापस आपको मिल सकता है।

मिथुन- किसी विशेष व्यक्ति से मुलाकात संभव है जो भविष्य में आपके फायदे दिला सकता है।

कर्क- आपके साथ कोई दुर्घटना हो सकती है वाहन चलाते समय सावधानी बरतें।

सिंह- नौकरी में पदोन्नति मिलने की प्रबल संभावना है।

कन्या- कोई शुभ समाचार मिलने के संकेत है।

तुला- मन प्रसन्न रहेगा। प्रतिकूल स्थितियों पर विजय मिलेगी। व्यवसाय में धन लाभ होगा। घर में खुशी होगी।

वृश्चिक- आत्मबल बढ़ेगा। विरोधी परास्त होंगे। नौकरी में वर्चस्व बना रहेगा। व्यावसायिक लाभ व साख बढ़ेगी।

धनु- नौकरी में सम्मान बना रहेगा। राजकाज में सफलता मिलेगी। व्यवसाय में लाभ कम होगा। घर में शांति रहेगी।

मकर- स्वास्थ्य का ध्यान रखें। कार्य क्षेत्र में वरिष्ठों से मतभेद रहेंगे। व्यवसाय में लाभ होगा। मन अशांत रहेगा।

कुंभ- उत्साह में वृद्धि होगी। कार्य विशेष में सफलता मिलेगी। नौकरी में मन लगेगा। व्यवसाय में लाभ होगा।

मीन- धर्म कर्म में रुचि रहेगी। चली आ रही चिंता से मुक्ति मिलेगी।व्यावसायिक स्थिति व लाभ से संतुष्ट रहेंगे।
आचार्य राजेश कुमार


Sunday 1 April 2018

अप्रैल २०१८  अर्थात बैशाख मास के तीज त्योहार:-इस माह किए गए पुण्य कार्य गरीबी दरिद्रता को दूर करते हैं।
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         मार्च का महीना बीत चुका है और अब अप्रैल का महीना शुरू हो चुका है। मार्च माह की तरह इस माह भी कई व्रत और त्योहार आएंगे। आइए जानते हैं पूरे अप्रैल अर्थात बैशाख मास महीने में पड़ने वाले व्रत और त्होहारों के बारे में।

 बैशाख कृष्ण पक्ष एक अप्रैल 2018 से 16 अप्रैल 2018 तक तथा बैशाख कृष्ण पक्ष 17 अप्रैल 2018 से 30 अप्रैल 2018 तक रहेगा।

बैसाख का महीना सावन माह के समान पुण्यदायी होता है। इस माह किए गए पुण्य कार्य गरीबी दरिद्रता को दूर करते हैं। इसके साथ ही मनवांछित फलों की प्राप्ति भी होती है। बैसाख को अक्षय फल प्राप्ति वाला महीना भी कहा जाता है।


दान पुण्य का महत्व
बैसाख माह में दान पुण्य का विशेष महत्व है। पवित्र नदियों में स्नान करने और कथा पूजन करना चाहिए। इसके बाद सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य करें। खासकर सत्तू और मटके का दान करना जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए अचूक उपाय बताये गए है।

०१रविवारवैशाख प्रारम्भ *उत्तर, बैंक अवकाश, ईस्टर
०३मंगलवारसंकष्टीचतुर्थी
०८रविवारकालाष्टमी
१२बृहस्पतिवारबरूथिनी एकादशी, वल्लभाचार्य जयन्ती
१३शुक्रवारप्रदोषव्रत
१४शनिवारमासिक शिवरात्रि, सोलर नववर्ष, मेष संक्रान्ति, बैसाखी, पुथन्डू, अम्बेडकर जयन्ती
१५रविवारदर्श अमावस्या, विषु कानी, पहेला वैशाख
१६सोमवारवैशाख अमावस्या, सोमवती अमावस
१७मंगलवारचन्द्रदर्शन
१८बुधवारपरशुराम जयन्ती, अक्षय तृतीया, वर्षी तप पारण, मातङ्गी जयन्ती, मासिककार्तिगाई
१९बृहस्पतिवारविनायक चतुर्थी, रोहिणीव्रत
२०शुक्रवारशंकराचार्य जयन्ती, सूरदास जयन्ती
२१शनिवारस्कन्दषष्ठी, रामानुजजयन्ती२२रविवारभानु सप्तमी, गंगासप्तमी
२३सोमवारमासिक दुर्गाष्टमी, बगलामुखी जयन्ती
२४मंगलवारसीता नवमी
२५बुधवारमहावीर स्वामी कैवल्य ज्ञान
२६बृहस्पतिवारमोहिनी एकादशी, परशुराम द्वादशी, थ्रिस्सूर पूरम
२७
शुक्रवारप्रदोष व्रत
२८शनिवारनरसिंघ जयन्ती, छिन्नमस्ता जयन्ती
२९रविवारकूर्म जयन्ती, पूर्णिमा उपवास
३०सोमवारवैशाख पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा, चित्रा पूर्णनामी
आचार्य राजेश कुमार
rajpra.infocom@gmail.com

Friday 30 March 2018

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हनुमानजी के जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर जानिए सफलता के मंत्र:-

हर मनुष्य को अपने जीवन काल में सफलता प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना होगा। क्योंकि बिना संघर्ष के सफलता नहीं पाई जा सकती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं हनुमान है। जैसे - रामभक्त हनुमान ने भी लंका जाने के लिए और वहां माता सीता को खोजने के लिए बहुत संघर्ष किया था। इसलिए मनुष्य को संघर्ष के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

इसी प्रकार जामवंत भी लंका विजय के अभियान में सबसे बुजुर्ग वानरसेना थे। जब हम सुंदरकांड का पाठ शुरू करते हैं तो शुरुआत में ही उनके नाम का उल्लेख आता है, वह हमें सीख देता है कि हम अपने बुजुर्गों का सम्मान करें।



जीवन में बड़ा काम करने से पहले तीन चीजें जरूरी हैं :-


पहला- काम शुरू करने के पहले भगवान का नाम लें।

दूसरा- बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें।

तीसरा है - काम की शुरुआत मुस्कुराते हुए करें।

सफलता का पहला सूत्र है-सक्रियता।

जैसे हनुमानजी हमेशा सक्रिय रहते थे। वैसे ही मनुष्य का तन हमेशा सक्रिय रहना चाहिए और मन निष्क्रिय होना चाहिए। मन का विश्राम ही मेडीटेशन है। आप मन को निष्क्रिय करिए तो जीवन की बहुत-सी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी।

सफलता का दूसरा सूत्र है-सजगता।

मनुष्य को हमेशा सजग रहना चाहिए। यह तभी संभव है, जब उसका लक्ष्य निश्चित होगा। इससे समय और ऊर्जा
का सदुपयोग होगा।

इसका उदाहरण यह है कि स्वयं हनुमानजी ने लंका यात्रा के दौरान कई तरह की बाधाओं का सामना किया। सबसे पहले उन्होंने मैनाक पर्वत को पार किया, जहां पर भोग और विलास की सारी सुविधाएं उपलब्ध थी, लेकिन हनुमानजी ने मैनाक पर्वत को केवल छुआ। अन्य चीजों पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया।

इसके बाद उन्हें सुरसा नामक राक्षसी मिली। इसे पार करने के लिए हनुमानजी ने लघु रूप धारण किया। हनुमानजी का यह लघु रूप हमें बताता है कि दुनिया में बड़ा होना है, आगे बढ़ना है तो छोटा होना पड़ेगा। छोटा होने का तात्पर्य यहां आपके कद से नहीं आपकी विनम्रता से है, यानी हमें विनम्र होना पड़ेगा।
फसलता का तीसरा सूत्र है-सक्षम

 होना
 ‎यानी मनुष्य को तभी सफलता मिल सकती है, जब वह सक्षम होगा। सक्षम होने का मतलब केवल शारीरिक रूप से ही सक्षम होना नहीं है, बल्कि तन, मन और धन तीनों से सक्षम होना है। जब हम इन तीनों से पूरी तरह सक्षम हो जाएंगे तभी हम सफलता को प्राप्त कर सकेंगे।
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आचार्य राजेश कुमार

Friday 16 March 2018

क्यों खरमास में मंगल कार्यों को करना उत्तम नही बताया गया है/गुरू का ध्यान सूर्यदेव पर:-
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सूर्यदेव के गुरू की राशि में प्रवेश करते ही 14 मार्च 2018 से खरमास शुरू हो जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्य जब गुरू की राशि धनु या मीन में विराजमान रहते है तो उस घड़ी को खरमास माना जाता है और खरमास में मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं। यह मास 14 मार्च 2018 से प्रारंभ होकर 14 अप्रैल 2018 तक रहेगा।

इस माह में सूर्यदेव की उपासना से मिलता है सर्वश्रेष्ठ फल :-

खरमास की इस अवधि में जनेऊ संस्कार, मुंडन संस्कार, नव गृह प्रवेश, विवाह आदि नहीं करना चाहिए। इसे शुभ नही माना गया है। वहीं विवाह आदि शुभ संस्कारों में गुरू एवं शुक्र की उपस्थिति आवश्यक बतायी गई है। ये सुख और समृद्धि के कारक माने गए हैं। खरमास में धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, किंतु मंगल शहनाई नही बजती। इस माह में सभी राशि वालों को सूर्यदेव की उपासना अवश्य करनी चाहिए।


गुरू का ध्यान सूर्यदेव पर:-:

इसका एक धार्मिक पक्ष यह भी माना जाता है कि जब सूर्यदेव जब बृहस्पति के घर में प्रवेश करते हैं जो देव गुरू का ध्यान एवं संपूर्ण समर्पण उन पर ही केंद्रित हो जाता है। इससे मांगलिक कार्यों पर उनका प्रभाव सूक्ष्म ही रह जाता है जिससे की इस दौरान शुभ कार्यों का विशेष लाभ नही होता। इसलिए भी खरमास में मंगल कार्यों को करना उत्तम नही बताया गया है।
आचार्य राजेश कुमार

Thursday 1 March 2018

 कांची कामकोटि पीठ के पीठाधिपति और 69वें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी महराज दिनांक 28 फरवरी 2018 दिन  बुधवार को ब्रम्हलीन हो गए । "दिव्यांश ज्योतिष केंद्र" की तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि------
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होलिका दहन का अभिप्राय .होलिका दहन का  पर्व संदेश देता है कि ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
होलिका दहन की पौराणिक कथाएँ

 
    होलिका दहन, होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।

.भारत में मनाए जाने वाले सबसे शानदार त्योहारों में से एक है होली। दीवाली की तरह ही इस त्योहार को भी अच्छाई की बुराई पर जीत का त्योहार माना जाता है। हिंदुओं के लिए होली का पौराणिक महत्व भी है। इस त्योहार को लेकर सबसे प्रचलित है प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी। लेकिन होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है। वैष्णव परंपरा मे होली को, होलिका-प्रहलाद की कहानी का प्रतीकात्मक सूत्र मानते हैं।

होलिका दहन का शास्त्रों के अनुसार नियम

फाल्गुन शुक्ल
अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -

1. पहला, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।

2.दूसरी बात , पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।
होलिका दहन का मुहूर्त

होलिका दहन मुहूर्त :18:20:47 से 20:49:49

होलिका दहन की पौराणिक कथा

  पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब
देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत -- होलिका जलकर भस्म हो गयी और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है।

कामदेव को किया था भस्म

होली की एक कहानी
कामदेव की भी है। पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन तपस्या में लीन शिव
का ध्यान उनकी ओर गया ही नहीं। ऐसे में प्यार के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने
शिव पर पुष्प बाण चला दिया।तपस्या भंग होने से शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने
अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। कामदेव के
भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और शिव से कामदेव को जीवित करने की
गुहार लगाई। अगले दिन तक शिव का क्रोध शांत हो चुका था, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित किया। कामदेव के भस्म होने के दिन होलिका जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है।

महाभारत की ये कहानी

महाभारत की एक कहानी
के मुताबिक युधिष्ठर को श्री कृष्ण ने बताया- एक बार श्री राम के एक पूर्वज रघु, के शासन मे एक असुर महिला धोधी थी। उसे कोई भी नहीं मर सकता था, क्योंकि वह एक वरदान द्वारा संरक्षित थी। उसे गली मे खेल रहे बच्चों, के अलावा किसी से भी डर नहीं था। एक दिन, गुरु वशिष्ठ, ने बताया कि- उसे मारा जा सकता है, यदि बच्चे अपने हाथों में लकड़ी के छोटे टुकड़े लेकर, शहर के बाहरी इलाके के पास चले जाएं और सूखी घास के साथ-साथ उनका ढेर लगाकर जला दे। फिर उसके चारों ओर परिक्रमा दे, नृत्य करे, ताली बजाए, गाना गाएं और ड्रम बजाए। फिर ऐसा ही किया गया। इस दिन को,एक उत्सव के रूप में मनाया गया, जो बुराई पर एक मासूम दिल की जीत का प्रतीक है।

श्रीकृष्ण और पूतना की कहानी

होली का श्रीकृष्ण
से गहरा रिश्ता है। जहां इस त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के तौर पर
देखा जाता है। वहीं,पौराणिक कथा के अनुसार जब कंस को श्रीकृष्ण के गोकुल में होने का पता चला तो उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल में जन्म लेने वाले हर बच्चे को मारने के लिए भेजा। पूतना स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए। उन्होंने दुग्धपान करते समय ही पूतना का वध कर दिया। कहा जाता है कि तभी से होली पर्व मनाने की मान्यता शुरू हुई।


होलिका दहन का इतिहास

विंध्य पर्वतों के
निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।

Achary Rajesh Kumar  rajpra.infocom@gmail.com