Saturday 14 October 2017

धनत्रयोदशी कब और कैसे मनाये

       

धनत्रयोदशी:-धनतेरस' स्थाई सुख, धन और समृद्धि प्राप्त करने का दिन:--

धनतेरस पर पीतल के बर्तन खरीदना होता है शुभ...

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         इस बार ये त्योहार 17 अक्टूबर (मंगलवार) को मनाया जाएगा। धनतेरस पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न होती है। ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान धनतेरस पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है।  दिनांक 17/10/2017 को सायं 7.20 पर वृष लग्न है जिसे  स्थिर लग्न माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है।  अतः धनतेरस की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 07:20 से लेकर 08:17 के बीच तक रहेगा। इस शुभ मुहूर्त में पूजा करने से धन, स्वास्थ्य और आयु बढ़ती है।


धनत्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था और इसीलिए इस दिन को धन तेरस के रूप में पूजा जाता है. दीपावली के दो दिन पहले आने वाले इस त्योहार को लोग काफी धूमधाम से मनाते हैं. इस दिन गहनों और बर्तन की खरीदारी जरूर की जाती है.धनवंतरि' चिकित्सा के देवता भी हैं इसलिए उनसे अच्छे स्वास्थ्य की भी कामना की जाती है।


देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन


शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान त्रयो‍दशी के दिन भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को धन त्रयोदशी कहा जाता है. धन और वैभव देने वाली इस त्रयोदशी का विशेष महत्व माना गया है.

कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय बहुत ही दुर्लभ और कीमती वस्तुओं के अलावा शरद पूर्णिमा का चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी के दिन कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धनवंतरी और कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को भगवती लक्ष्मी जी का समुद्र से अवतरण हुआ था. यही कारण है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन और उसके दो दिन पहले त्रयोदशी को भगवान धनवंतरी का जन्म दिवस धनतेरस के रूप में मनाया जाता है.


भगवान धनवंतरी को प्रिय है पीतल :--

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भगवान धनवंतरी को नारायण भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है. इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से दो भुजाओं में वे शंख और चक्र धारण किए हुए हैं. दूसरी दो भुजाओं में औषधि के साथ वे अमृत कलश लिए हुए हैं. ऐसा माना जाता है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ है क्योंकि पीतल भगवान धनवंतरी की प्रिय धातु है.

चांदी खरीदना शुभ:-

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धनतेरस के दिन लोग घरेलू बर्तन खरीदते हैं, वैसे इस दिन चांदी खरीदना शुभ माना जाता है क्योंकि चांदी चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है और चन्द्रमा शीतलता का मानक है, इसलिए चांदी खरीदने से मन में संतोष रूपी धन का वास होता है क्योंकि जिसके पास संतोष है वो ही सही मायने में स्वस्थ, सुखी और धनवान है।


मान्यता के अनुसार धनतेरस:--

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मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु शुभ फल प्रदान करती है और लंबे समय तक चलती है. लेकिन अगर भगवान की प्रिय वस्तु पीतल की खरीदारी की जाए तो इसका तेरह गुना अधिक लाभ मिलता है.


क्यों है पूजा-पाठ में पीतल का इतना महत्व?

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पीतल का निर्माण तांबा और जस्ता धातुओं के मिश्रण से किया जाता है. सनातन धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक कर्म हेतु पीतल के बर्तन का ही उपयोग किया जाता है.

ऐसा ही एक किस्सा महाभारत में वर्णित है कि सूर्यदेव ने द्रौपदी को पीतल का अक्षय पात्र वरदानस्वरूप दिया था जिसकी विशेषता थी कि द्रौपदी चाहे जितने लोगों को भोजन करा दें, खाना घटता नहीं था।


यम के पूजा का भी विधान:-

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धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा देवता यम के पूजा का भी विधान है। धनतेरस के दिन यम की पूजा के संबंध में मान्यता है कि इनकी पूजा से घर में असमय मौत का भय नहीं रहता है।


सधन्यवाद,

                आपका

         आचार्य राजेश कुमार


मंगल पहुचा कन्या राशि मे,क्या होगा आप पर असर

 13 अक्‍टूबर-2017 को मंगल पहुंचा कन्‍या राशि में ----आइए जानते हैं कि आपकी राशि पर इसका क्या क्‍या प्रभाव पड़ने वाला है:--

सौरमंडल का सबसे क्रूर ग्रह माने जाने वाला मंगल 13 अक्‍टूबर को कन्‍या राशि में पहुच गया है । इस राशि में मंगल 30 नवंबर तक रहने वाला है। मंगल के कन्‍या राशि में इस गोचर का प्रभाव विभिन्‍न बारह राशियों पर अलग-अलग पड़ता है।

मेष राशि : रखे अपने स्वास्थ्य का ध्यान

कार्यक्षेत्र, निजी जीवन और लव लाइफ में आपसे बहुत ज्‍यादा उम्‍मीदें लगाई जा सकती हैं जिसके कारण आप तनाव में रहेंगें। कोई सेहत संबंधी समस्‍या हो सकती है। किसी के साथ बहस होने की भी संभावना है। शत्रु परास्‍त होंगें। इस दौरान लाल रंग से दूरी बनाए रखें। धन की हानि हो सकती है।

वृषभ राशि : रहें शेयर मार्केट से दूर

आपकी लव लाइफ में परेशानियां आ सकती हैं। चीज़ों को नियंत्रण में लाने के लिए आपको धन खर्च करना पड़ सकता है। शेयर मार्केट से दूर रहें। सफलता पाने के रास्‍ते में थोड़ी-बहुत दिक्‍कतें आ सकती हैं। अगर आप किसी को प्रपोज करने के बारे में या अपने रिश्‍ते को आगे बढ़ाने के बारे में सोच रहें हैं तो अभी रूक जाएं।



मिथुन राशि : सम्हाल कर चलाएं गाड़ी

वृद्ध लोगों को अपनी सेहत का खास ख्‍याल रखना है। इनहें कार्डिएक या सांस संबंधित रोग हो सकता है। मिथुन राशि के लोग संभकलर गाड़ी चलाएं वरना कोई दुर्घटना हो सकती है। इस समय मिथुन राशि के लोगों को थोड़े तनाव से गुज़रना पड़ सकता है इसलिए आप मेडिटेशन या योग करें।



कर्क राशि : पड़ोसियों से बहस से बचें

व्‍यापार और कार्य में प्रगति मिलेगी। किसी रिश्‍तेदार के घर यात्रा पर जाना पड़ सकता है। पड़ोसियों के साथ कर्क राशि के लोगों की तीखी बहस हो सकती है। कर्क राशि के जातक इस समय घर बदलने की सोच सकते हैं।

सिंह राशि : अभद्र भाषा पर नियंत्रण रखें

सिंह राशि के लोगों को आंखों से संबंधित कोई परेशानी हो सकती है। कोई चोट या घाव होने की भी संभावना है। अपने से बड़ों से आप अभद्र भाषा में बात कर सकते हैं। सिंह राशि के लोगों को इस गोचर के दौरान मसालेदार खाना खाने से बचना चाहिए। धन लाभ की संभावना है। रियल एस्‍टेट से जुड़े लोगों को फायदा होगा।

कन्‍या राशि :- यात्रा के योग बन सकते हैं

कन्‍या राशि के लोगों के सिर या चेहरे पर कोई चोट लग सकती है। जो भी बोलें सोच-समझकर बोलें। खर्चों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। फिजूलखर्ची से बचें। कन्‍या राशि के लोगों इस गोचर के दौरान मानहानि झेलनी पड़ सकती है। यात्रा के योग बन रहे हैं।

तुला राशि : गलतफहमी से बचें

इस समय तुला राशि के लोगों के खर्चों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। पैसों की बर्बादी भी होगी। सेहत को लेकर भी चिंता बनी रहेगी। जीवनसाथी के साथ कोई गलतफहमी हो सकती है। पेट दर्द से परेशान रह सकते हैं। तुला राशि के लोगों को कोई चोट लगने की संभावना है।

वृश्चिक राशि : तरक्की और प्रसिद्धि मिल सकती है।

विपरीत लिंग के व्‍यक्‍ति से आपको फायदा मिल सकता है। प्रेम संबंधों के लिए अच्‍छा समय है। करियर में वृश्चिक राशि के लोगों को तरक्‍की मिलेगी। आपके लिए परिस्थिति असान हो जाएगी। इस समय लोग आपकी बात सुनेंगें। वृश्चिक राशि वाले दोस्‍तों के बीच पॉपुलर हो सकते हैं। शेयर मार्केट से दूर रहें।

धनु राशि : किसी रिश्ते में खटास आएगी

पिता के साथ आपका रिश्‍ता बिगड़ सकता है। अपने शिक्षक के साथ किसी बात पर असहमति हो सकती है। करियर में धनु राशि के लोगों को धीरे-धीरे प्रगति हासिल होगी। कार्यक्षेत्र में आपको मानहानि झेलनी पड़ सकती है। इस समय अपनी आवाज़ को धीमा ही रखेंगें तो बेहतर होगा।

मकर राशि : धार्मिक यात्रा हो सकती है

ये गोचर आपके लिए शुभ योग का निर्माण कर रहा है। किसी धार्मिक स्‍थल की यात्रा पर मकर राशि के लोग जा सकते हैं। कुलदेवता या कुलदेवी के पूजन में हिस्‍सा ले सकते हैं। लंबी यात्रा के योग हैं। पिता या शिक्षक के साथ यात्रा करनी पड़ सकती है। मकर राशि के लोगों का करियर सामान्‍य रहेग

कुंभ राशि : कैरियर के लिए प्रतिकूल समय

कार्यक्षेत्र में कुंभ राशि के लोग ज़रा संभलकर रहें। कुछ लोग ईर्ष्‍या के कारण आपके खिलाफ षड्यंत्र रच सकते हैं। आपकी इच्‍छा के अनुसार करियर में तरक्‍की नहीं मिल पाएगी। इस समय नौकरी बदलने के बारे में कुंभ राशि के जातक बिलकुल ना सोचें।

मीन राशि : दाम्पत्य जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है।

मीन राशि के सातवें भाव में दो अशुभ ग्रह बैठे हैं जिस कारण आपकी पर्सनल लाइफ खराब रहेगी। गुस्‍से पर नियंत्रण रखें। ज्‍यादा नखरें ना दिखाएं वरना आपको कुछ खोना पड़ सकता है। व्‍यापारियों को धन लाभ होगा। काम से या व्‍यापार से संबंधित यात्रा करनी पड़ सकती है।

 आचार्य राजेश कुमार



Tuesday 10 October 2017

सभी सुखों को प्रदान करने वाली महालक्ष्मी जी की अत्यंत प्राचीन और दुर्लभ सिद्ध मंत्र :- -------

"दिव्यांश ज्योतिष् केंद्र"
सभी सुखों को प्रदान करने वाली महालक्ष्मी जी की अत्यंत प्राचीन और दुर्लभ सिद्ध मंत्र :-
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प्रिय मित्रों,
    प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के द्वारा राजाओं-महाराजाओं के यहाँ स्थाई सुख शांति हेतु समय-समय पर पूजा-पाठ अनुष्ठान किये जाते थे जिस कारण उनके यहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी "समृद्धता " बनी रहती थी
                   इन्हीं अनुष्ठानों में से "महालक्ष्मी" जी की एक अति दुर्लभ और अचूक अनुष्ठान जो अमावस्या में मुख्यतः मकर संक्रांति और दीपावली में किये जाते हैं। जिसे "सहस्त्ररूपा सर्व्यापी लक्ष्मी " कहा जाता है।
             
   "सहस्त्ररूपा सर्व्यापी लक्ष्मी साधना विधि "
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प्रिय मित्रों,
                प्रत्येक वर्ष  दीपावली या मकर संक्रांति के दिन सर्वत्र विद्यमान, सर्व सुख प्रदान करने वाली माता "महाँ लक्ष्मी जी" की पूजन करने की विधि बताई जाती है।
                हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी हम चाहते हैं की आप सभी मित्र अपने-अपने घरों या दुकानों  में सपरिवार इस पूजा को करके माँ को अपने घर में पुनः सविराजमान करें।
                यह पूजन समस्त ग्रहों की महादशा या अन्तर्दशा के लिए लाभप्रद होता है। वैसे जिनकी शुक्र की दशा चल रही हो वो तो ज़रूर करें।
                इस विधि से माता लक्ष्मी की  पूजा करने से "सहस्त्ररुपा सर्व व्यापी लक्ष्मी" जी सिद्ध होती हैं। इस पूजा को सिद्ध करने का समय इस वर्ष दीपावली को अपरान्ह 2.00 pm से 4.00 pm के मध्य या रात्रि   11.30 pm से 02.57am के मध्य किया जायेगा।
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                प्रिय मित्रों जो भक्तजन "सहस्त्र रुपा सर्वव्यापी लक्ष्मी "पूजन करते हैं उनके आमदनी के नये-नये लक्षण बनने लगते हैं।आर्थिक उन्नति,पारिवारिक समृद्धता ,व्यापार में बृद्धि,यश, प्रसिद्धि बढ़ने लगती है। दरिद्रता और क़र्ज़ समाप्त होने लगता है। पति-पत्नी के बीच कलह समाप्त होने लगता है। सभी प्रकार के मानोवांछित फल प्राप्त होने लगते हैं।
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                लक्ष्मी का तात्पर्य केवल धन ही नही होता बल्कि जीवन की समस्त परिस्थितियों की अनुकूलता ही लक्ष्मी कही जाती हैं।
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                सहस्त्र रुपा सर्व व्यापी लक्ष्मी का अर्थ 1-धन लक्ष्मी,2-स्वास्थ्य लक्ष्मी 3-पराक्रम लक्ष्मी 4-सुख लक्ष्मी 5-संतान लक्ष्मी 6-शत्रु निवारण लक्ष्मी 7-आनंद लक्ष्मी 8- दीर्घायु लक्ष्मी 9-भाग्य लक्ष्मी 10-पत्नी लक्ष्मी 11-राज्य सम्मान लक्ष्मी 12 वाहन लक्ष्मी 13-सौभाग्य लक्ष्मी 14-पौत्र लक्ष्मी         15-राधेय लक्ष्मी इत्यादि-इत्यादि  होता है।
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                इस पूजन को विशेष रूप से अमावस्या को अर्ध रात्रि में किया जाना अत्यंत शुभ फलदायी होता है। प्रत्येक दीपावली एवं  मकर संक्रांति के दिन अमावस्या होती है अतः इसी दिन यह पूजा करना लाभ प्रद होता है।
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                 सामग्री
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1.श्री यंत्र ( ताम्बा,चांदी या सोने का) एक
2.तिल का तेल 500 ग्राम
3.मिट्टी की 11 दियाली
4. रुइ बत्ती लंबी वाली 22
5.केशर
6.गुलाब या चमेली या कमल के 108 फूल
7.दूध ,दही,घी,शहद और गंगा जल
8.सफेद रुमाल
9.साबुत कमल गट्टा दाना 108 को किसी ताम्बे के कटोरे में  पिघला घी मे डाल कर रखें।
10.कमल गट्टे की माला एक
11.आम की लकड़ी 1.5kg
12.पिलि धोती,पिला तौलिया या गमछा
13.ताम्बा या पीतल या चांदी की बड़ी परात( जिसमे उपरोक्त समान आ सके)
14.फूल या पीतल का भगौना या अन्य पात्र
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 नोट- इस पूजा में किसी भी प्रकार का स्टील या लोहे का बर्तन का प्रयोग वर्जित है।।
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पूजन विधि:-
     सर्व प्रथम स्नान करके पिला वस्त्र पहन कर उपरोक्त समस्त सामान पूजा स्थल पर अपने पास रख लें और पूरब या उत्तर की ओर मुह करके बैठ जाएं।
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     अब अपने सामने परात रखें। उस परात के ठीक बीच में श्री यंत्र को रख दें अब श्री यंत्र के चारो तरफ 11 तिल के तेल का दीपक ऐसे रखें की दीपक की लौ साधक की ओर होनी चाहिए।
     यदि पत्नी बैठें थो अपने दाहिनी तरफ बैठाएं।
     अब दीपक को थाली के बाहर कर लें। परात के केंद्र में स्वस्तिक का निशान बनावें। श्री यंत्र पर 11 बिंदी लगावें । ग्यारहवी बिंदी यंत्र के केंद्र में  थोड़ा बड़ी बिंदी लगा कर परात के केंद्र पर रख दें। अब गणपति एवं विष्णु जी का बारी-बारी ध्यान करके हाथ में जल अक्षत पुष्प लेकर "ऊँ श्रीं श्रीं सहस्त्र रुपा सर्व व्यापी लक्ष्मी"जी का पूजन करने हेतु संकल्प ले एवं   हाथ की सामग्री पृथ्वी पर गिरा दें। अब परात में रखे  11 दीपक परात से बाहर निकालें।
     अब श्री यंत्र को किसी  पीतल या फूल के  पात्र में  क्रमशः दूध, दही, घी, शहद, शक्कर से स्नान कर कर अब  गंगा जल से स्नान कराकर यंत्र को सफेद कपड़े से अच्छी तरह पोछ लें। स्नान कराने पर जो सामग्री फूल य पीतल के पात्र मे इकट्ठा हुई वही सामग्री पूजन के पश्चात प्रसाद रूप में ग्रहण की जायेगी। प्रसाद हेतु मिश्री डालकर खीर बनाकर अर्पित कर सकते हैं।
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     अब परात के बीच में पुनः स्वस्तिक का निशान बना कर श्री यंत्र को स्थापित करके पहले की तरह उस पर 11 बिंदी केशर की लगाएं। तत्पश्चात धूप बत्ती या अगर बत्ती प्रज्वलित करें एवं यंत्र के चारो तरफ पहले की तरह उन दीपक को लगा कर कमल गट्टे की माला से निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए एक -एक फूल बारी बारी से प्रत्येक मंत्र के पश्चात स्वाहा बोलते हुए श्री यंत्र पर 108 पुष्पों को (आप या आपकी पत्नी या कोई अन्य) रखते जाय।
मंत्र है --||"ऊँ श्रीं -श्रीं सहस्त्र-रुपा सर्व- व्यापी लक्ष्मी सिद्धये श्रीं-श्रीं ऊँ नमः"||
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अब  हवन पात्र में आम की लकड़ी रख कर अग्नि प्रज्ज्वलित कर के कमल गट्टे की माला से पुनः उपरोक्त मंत्र एवं स्वाहा के उच्चारण के साथ एक एक कमल गट्टे के दाने को घी सहित  किसी आम्र- पल्लव  या ताम्बे के चम्मच से थोड़ा थोड़ा घी सहित हवन कुण्ड में डालते जाएं। अंतिम मंत्र के साथ कटोरे का समस्त घी अग्नि मे डाल दें। अब आपकी पूजा सम्पन्न हुई । अब मुख्यतःलक्ष्मी गणेश जी की आरती घी के दीपक से  करके  प्रसाद को माँ लक्ष्मी एवं अग्नि देव को ग्रहण करावें। तत्पश्चात अब घर के सदस्य आरती लेकर उस प्रसाद को ग्रहण करें।इस पूजा मे आप सफेद मिष्ठान भी चढा सकते है।
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अब आपकी पूजा पूर्णरूप से सम्पन्न हुई। पूजा के पश्चात रात्रि 4.30 बजे तक सोना नहीं चाहिए आप पूजा के पश्चात भजन कीर्तन  कर या सुन सकते हैं।
सुबह आप श्री यंत्र को पूजा में या आलमारी के लोकर में या दुकान में या कहीं भी पवित्र स्थान पर लाल कपड़े में लपेट कर रख सकते हैं।
सधन्यवाद,
  आचार्य राजेश कुमार
🙏🙏🌹🙏🙏

Sunday 8 October 2017

करवाचौथ का महत्व-इस बार विशेष फलदाई होगा करवाचौथ.....!



करवाचौथ' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, 'करवा' यानी 'मिट्टी का बरतन' और 'चौथ' यानि 'चतुर्थी'। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।


करवाचौथ का ईतिहास

बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया. ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।

मेहंदी का क्रेज

मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। भारत में ऐसी मान्यता है कि जिस लड़की के हाथों की मेहंदी ज्यादा गहरी रचती है, उसे अपने पति तथा ससुराल से अधिक प्रेम मिलता है। लोग ऐसा भी मानते हैं कि गहरी रची मेहंदी आपके पति की लंबी उम्र तथा अच्छा स्वास्थ्य भी दर्शाती है। मेहंदी का ये व्यवसाय त्योहारों के मौसम में सबसे ज्यादा फलता-फूलता है, खासतौर पर करवा चौथ के दौरान। इस समय लगभग सभी बाजारों में आपको भीड़-भाड़ का माहौल मिलेगा। हर गली-नुक्कड़ पर आपको मेहंदी आर्टिस्ट महिलाओं के हाथ-पांव पर तरह-तरह के डिजाइन बनाते मिल जाएंगे।
करवाचौथ पूजन


इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। महाभारत में भी करवाचौथ के महात्म पर एक कथा का उल्लेख मिलता है।

भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की।


करवा का पूजन

करवा चौथ के पूजन में धातु के करवे का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। यथास्थिति अनुपलब्धता में मिट्टी के करवे से भी पूजन का विधान है। ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ के पूजन के दौरान ही सजे-धजे करवे की टोंटी से ही जाड़ा निकलता है। करवा चौथ के बाद पहले तो रातों में धीरे-धीरे वातावरण में ठंड बढ़ जाती है और दीपावली आते-आते दिन में भी ठंड बढ़नी शुरू हो जाती है।

करवा चौथ व्रत की पूजन विधि

व्रत रखने वाली स्त्री सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान एवं संध्या आदि करके, आचमन के बाद संकल्प लेकर यह कहे कि मैं अपने सौभाग्य एवं पुत्र-पौत्रादि तथा निश्चल संपत्ति की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत करूंगी। यह व्रत निराहार ही नहीं, अपितु निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है। इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय और गौरा का पूजन करने का विधान है।
करवा चौथ व्रत की पूजन विधि

चंद्रमा, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडिय़ां, शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर किसी बड़ी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए।
करवा चौथ व्रत की पूजन विधि

सायं बेला पर पुरोहित से कथा सुनें, दान-दक्षिणा दें। तत्पश्चात रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाए तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अध्र्य दें, आरती उतारें और अपने पति का दर्शन करते हुए पूजा करें। इससे पति की उम्र लंबी होती है। तत्पश्चात पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ें।



पूजन हेतु मंत्र

'ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें। करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें। करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।

चांद को अर्क

जब चांद निकलता है तो सभी विवाहित स्त्रियां चांद को देखती हैं और सारी रस्में पूरी करती हैं। पूजा करने बाद वे अपना व्रत खोलती हैं और जीवन के हर मोड़ पर अपने पति का साथ देने वादा करती हैं। चंद्रदेव के साथ-साथ भगवान शिव, देवी पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि अगर इन सभी की पूजा की जाए तो माता पार्वती के आशीर्वाद से जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं

इस बार विशेष फलदायी होगा करवाचौथ

इस बार करवाचौथ का व्रत और पूजन बहुत विशेष है। ज्योतिषों के मुताबिक इस बार 70 साल बाद करवाचौथ पर ऐसा योग बन रहा है। रोहिणी नक्षत्र और मंगल एक साथ: इस बार रोहिणी नक्षत्र और मंगल का योग एक साथ पड़ रहा है। ज्योतिष के मुताबिक यह योग करवाचौथ को और अधिक मंगलकारी बना रहा है। इससे पूजन का फल हजारों गुना अधिक होगा।

इस बार विशेष फलदायी होगा करवाचौथ

करवाचौथ पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग होना अपने आप में एक अद्भुत योग है। मंगलवार होने से इसका महत्व और बढ़ गया है। चंद्रमा में रोहिणी का योग होने से मार्कण्डेय और सत्यभामा योग बन रहा है। यह योग चंदमा की 27 पत्नियों में सबसे प्रिय पत्नी रोहिणी के साथ होने से बन रहा है। पति के लिए व्रत रखने वाली सुहागिनों के लिए यह बेहद फलदायी होगा। ऐसा योग भगवान श्रीकृष्ण और सत्यभामा के मिलन के समय भी बना था।

करवा चौथ का सामाजिक पक्ष भी बेहद सशक्त है लेकिन इसके साथ ही इसमें कुछ विरोधाभास भी है। भारतीय समाज में अकसर ज्यादातर व्रत महिलाएं ही रखती हैं। पति की लंबी उम्र के लिए तो पत्नियां व्रत रखती हैं लेकिन पत्नी की लंबी उम्र के लिए पति कभी व्रत नहीं रखते। ना ही समाज और ना ही वेद पुराणों में कहीं भी पतियों को व्रत रखने के लिए कहा गया है।

समाज में महिला समर्थकों की आवाज हमेशा इस तरफ उठी है कि अगर पत्नियां पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रख सकती हैं तो पति क्यूं नहीं व्रत रखते? लेकिन वहीं कुछ लोग महिलाओं के द्वारा किए जाने वाले इस व्रत को सही ठहराते हैं। उनके अनुसार महिलाओं का यह व्रत रखना यह दर्शाता है कि महिलाएं पुरुषों का कितना ख्याल रखती हैं। यह महिलाओं के ममतामयी पक्ष को दर्शाता है जो अपने परिवार और पति का हमेशा भला चाहती हैं।
आखिर पति क्यूं ना रखें व्रत

माना कि परंपरा के अनुसार पतियों का व्रत रखना जरूरी नहीं है लेकिन अगर पति भी पत्नियों के लिए करें तो इससे उनके आपसी संबंधों में मधुरता आ सकती है. मान्यताओं के अनुसार पति के लिए ऐसा कोई व्रत और उपवास तो नहीं बताया गया है फिर भी करवाचौथ के दिन वे पत्नी का करवाचौथ का व्रत रखने वाली महिलाओं द्वारा मिलकर व्रत की कथा सुनते समय चीनी अथवा मिट्टी के करवे का आदान-प्रदान किया जाता है तथा घर की बुजुर्ग महिला जैसे ददिया सास, सास, ननद या अन्य सदस्य को बायना, सुहाग सामग्री, फल, मिठाई, मेवा, अन्न, दाल आदि एवं धनराशि देकर और उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया जाता है। देने के लिए कम से कम फलाहार पर तो निर्भर रह ही सकते हैं।


रात 8.14 बजे के बाद दिखेगा चांद

अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु के लिए सुहागिनें मंगलवार को करवा चौथ का व्रत रखेगी, लेकिन व्रत का पारण करने के लिए उन्हें चंद्रोदय का लंबा इंतजार करना पड़ेगा। स्थानीय समय अनुसार मंगलवार रात 8:14 बजे के बाद ही महिलाएं उगते चांद को अर्घ्य देकर सुहाग की दीर्घायु की मंगलकामना कर सकेगी।
आचार्य  राजेश कुमार

Friday 6 October 2017

पति की लंबी उम्र और सदा सुहागिन रहने का व्रत- करवा चौथ 2017

      पति की लंबी उम्र और सदा सुहागिन रहने का व्रत- करवा चौथ 2017
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        कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ के व्रत का पूर्ण विवरण वामन पुराण में किया गया है।
         वर्ष 2017 में करवा चौथ का व्रत 08 अक्टूबर को किया जाएगा । पूजा का समय शाम 5 बजकर 58 मिनट से रात्रि 8 बजकर 9 मिनट होगा ।

करवा चौथ पूजा का तरीका:-
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नारद पुराण के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। करवा चौथ की पूजा करने के लिए बालू या सफेद मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय , चंद्रमा एवं गणेश जी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।

पूजा के बाद करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर छलनी से अपने पति को देखना चाहिए। पति के हाथों से ही पानी पीकर व्रत खोलना चाहिए। इस प्रकार व्रत को सोलह या बारह वर्षों तक करके उद्यापन कर देना चाहिए।

           पूजा की कुछ अन्य रस्मों में सास को बायना देना, मां गौरी को श्रृंगार का सामान अर्पित करना, मेंहदी लगाना आदि शामिल है।

चन्द्रोदय समय:-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। इस दिन बिना चन्द्रमा को अर्घ्य दिए व्रत तोड़ना अशुभ माना जाता है।
      यद्यपि हर शहर का चंद्रोदय का समय अलग-अलग होगा  किन्तु शाम 08:11 pm से 8.14 pm  तक लगभग सभी जगह चंद्रोदय होने का संकेत है ।
                               आचार्य राजेश कुमार