Saturday 26 August 2017

गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन से लगेगा कलंक

गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन करने पर लगेगा कलंक:-
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गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करना निषेध माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्र दर्शन करने से व्यक्ति को एक साल तक मिथ्या कलंक लगता है। भगवान श्री कृष्णजी को भी चंद्र दर्शन का मिथ्या कलंक लगने के प्रमाण हमारे शास्त्रों में वर्णित हैं। यदि भूल से चन्द्र दर्शन हो जाए तो शास्त्रों में इसके लिए चंद्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र का विवरण है। ऐसा होने पर इस मंत्र का 28, 54 या 108 बार जाप करना चाहिए। इसके साथ ही श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करने से भी चन्द्र दर्शन दोष समाप्त हो जाता है।


चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र


सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।

सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।


चंद्र दर्शन निषेध का समय
दिनांक समय
25 अगस्त 2017
09ः11ः00 से 21ः18ः59 तक
आचार्य राजेश कुमार

             




Thursday 24 August 2017

हरितालिका तीज शुभ मुहूर्त,पूजन विधि

      हरतालिका तीज कब ,क्यों और ,इसकी पूजा विधि:-
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हरतालिका व्रत को हरतालिका तीज या तीजा भी कहते हैं। इस बार यह व्रत दिनांक 24 अगस्त-2017 को शुभ मुहूर्त सुबह 05.58 से 8.32 तथा शाम 18.47 से 20.27 तक है।
यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा करती हैं।

   लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।

इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।

मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की प्रथा है।

 विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।

सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।

इस व्रत के व्रती को शयन का निषेध है इसके लिए उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करना पड़ता है प्रातः काल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवम भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री ,वस्त्र ,खाद्य सामग्री ,फल ,मिष्ठान्न एवम यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए।
आचार्य राजेश कुमार


Wednesday 23 August 2017

गणेश महोत्सव का इतिहास

गणेशमहोत्सव की उत्पत्ति और इतिहास:-
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        गणेश चतुर्थी के त्यौहार पर पूजा प्रारंभ होने की सही तारीख किसी को ज्ञात नहीं है, हालांकि इतिहास के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि गणेश चतुर्थी 1630-1680 के दौरान शिवाजी (मराठा साम्राज्य के संस्थापक) के समय में एक सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया जाता था। शिवाजी के समय, यह गणेशोत्सव उनके साम्राज्य के कुलदेवता के रूप में नियमित रूप से मनाना शुरू किया गया था। पेशवाओं के अंत के बाद, यह एक पारिवारिक उत्सव बना रहा, यह 1893 में लोकमान्य तिलक (एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक) द्वारा पुनर्जीवित किया गया।

गणेश चतुर्थी एक बड़ी तैयारी के साथ एक वार्षिक घरेलू त्यौहार के रूप में हिंदू लोगों द्वारा मनाना शुरू किया गया था। सामान्यतः यह ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच संघर्ष को हटाने के साथ ही लोगों के बीच एकता लाने के लिए एक राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाना शुरू किया गया था। महाराष्ट्र में लोगों ने ब्रिटिश शासन के दौरान बहुत साहस और राष्ट्रवादी उत्साह के साथ अंग्रेजों के क्रूर व्यवहार से मुक्त होने के लिये मनाना शुरु किया था। गणेश विसर्जन की रस्म लोकमान्य तिलक द्वारा स्थापित की गयी थी।

धीरे - धीरे लोगों द्वारा यह त्यौहार परिवार के समारोह के बजाय समुदाय की भागीदारी के माध्यम से मनाना शुरू किया गया। समाज और समुदाय के लोग इस त्यौहार को एक साथ सामुदायिक त्यौहार के रुप में मनाने के लिये और बौद्धिक भाषण, कविता, नृत्य, भक्ति गीत, नाटक, संगीत समारोहों, लोक नृत्य करना, आदि क्रियाओं को सामूहिक रुप से करते है। लोग तारीख से पहले एक साथ मिलते हैं और उत्सव मनाने के साथ ही साथ यह भी तय करते है कि इतनी बडी भीड को कैसे नियंत्रित करना है।

गणेश चतुर्थी, एक पवित्र हिन्दू त्यौहार है, लोगों द्वारा भगवान गणेश (भगवानों के भगवान, अर्थात् बुद्धि और समृद्धि के सर्वोच्च भगवान) के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। पूरा हिंदू समुदाय एक साथ पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ प्रतिवर्ष मनाते है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि गणेश जी का जन्म माघ माह में चतुर्थी (उज्ज्वल पखवाड़े के चौथे दिन) हुआ था। तब से, भगवान गणेश के जन्म की तारीख गणेश चतुर्थी के रूप में मनानी शुरू की गयी। आजकल, यह त्योहार हिंदू एवं बहुत से मुश्लिम समुदाय के लोगों द्वारा पूरी दुनिया में मनाया जाता है।
आचार्य राजेश कुमार

सर्वप्रथम गणेशचतुर्थी पूजन किसने किया

सर्वप्रथम गणेश चतुर्थी का उपवास किसने और क्यों रखा:-
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     एकबार, गणेश स्वर्ग की यात्रा कर रहे थे तभी वो चन्द्रमा से मिले। उसे अपनी सुन्दरता पर बहुत घमण्ड था और वो गणेश जी की भिन्न आकृति देख कर हँस पड़ा। तब गणेश जी ने उसे श्राप दे दिया। चन्द्रमा बहुत उदास हो गया और गणेश से उसे माफ करने की प्रार्थना की। अन्त में भगवान गणेश ने उसे श्राप से मुक्त होने के लिये पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ गणेश चतुर्थी का व्रत रखने की सलाह दी। इस प्रकार पहले व्यक्ति जिसने गणेश चतुर्थी का उपवास रखा था वे "चन्द्रमा" थे।

वायु पुराण के अनुसार, यदि कोई भी भगवान कृष्ण की कथा को सुनकर व्रत रखता है तो वह (स्त्री/पुरुष) गलत आरोप से मुक्त हो सकता है। कुछ लोग इस पानी को शुद्ध करने की धारणा से हर्बल और औषधीय पौधों की पत्तियाँ मूर्ति विसर्जन करते समय पानी में मिलाते है। कुछ लोग इस दिन विशेष रूप से अपने आप को बीमारियों से दूर रखने के लिये झील का पानी का पानी पाते है। लोग शरीर और परिवेश से सभी नकारात्मक ऊर्जा और बुराई की सत्ता हटाने के उद्देश्य से विशेष रूप से गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश के आठ अवतार (अर्थात् अष्टविनायक) की पूजा करते हैं। यह माना जाता है कि गणेश चतुर्थी पर पृथ्वी पर नारियल तोड़ने की क्रिया वातावरण से सभी नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने में सफलता को सुनिश्चित करता है।
 आचार्य राजेश कुमार


Saturday 19 August 2017

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