Friday 5 April 2019


   काशी पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल प्रतिपदा 6 अप्रैल -2019 को नया साल शुरू हो रहा है  है/ अर्थात  6 अप्रैल -2019 दिन शनिवार शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन  नवरात्र प्रारम्भ भी प्रारम्भ

नवरात्र भारतवर्ष में हिंदूओं द्वारा मनाया जाने प्रमुख पर्व है। इस दौरान मां के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं लेकिन चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं। बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वासंती नवरात्र तो शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। चैत्र और आश्विन नवरात्र में आश्विन नवरात्र को महानवरात्र कहा जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि ये नवरात्र दशहरे से ठीक पहले पड़ते हैं दशहरे के दिन ही नवरात्र को खोला जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में मां के अलग-अलग रुपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रुप में भी देखा जाता है।

मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रुप हैं। नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसके बाद लगातार नौ दिनों तक मां की पूजा
 इस साल चैत्र नवरात्र 6 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं। नवमी तिथि 14 अप्रैल की है।   काशी पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल प्रतिपदा को नया साल शुरू होता है इन नौ दिनों मे मां के नौ रुपों की पूजा की जाती है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना अच्छा रहता है।   इस साल 6 अप्रैल शनिवार से नवरात्र शुरू हो रहे हैं। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन अभिजीत मुहूर्त में 6 बजकर 9 मिनट से लेकर 10 बजकर 19 मिनट के बीच घट स्थापना करना बेहद शुभ होगा। 
 किस दिन होगी किस देवी की पूजा
नवरात्र प्रथम -   6 अप्रैल को घट स्थापन व शैलपुत्री की पुजा
नवरात्र द्वितीय - 7 अप्रैल को ब्रह्मचारिणी की पुजा
नवरात्र तृतीय –   8 अप्रैलको  चंद्रघंटा की पुजा
नवरात्र चतुर्थी -   9 अप्रैल को कुष्मांडा की पुजा
नवरात्र पंचमी –   10 अप्रैल को स्कंदमाता की पुजा
नवरात्र षष्ठी –    11 अप्रैल को कात्यायनी की पुजा
नवरात्र सप्तमी –  12 अप्रैल को कालरात्रि की पुजा
नवरात्रि अष्टमी–13 अप्रैल को महागौरी की पुजा
नवरात्र नवमी – 14 अप्रैल को सिद्धिदात्री की पुजा


घट स्थापना मुहूर्त

इस साल 6 अप्रैल शनिवार से नवरात्र शुरू हो रहे हैं। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन अभिजीत मुहूर्त में 6 बजकर 9 मिनट से लेकर 10 बजकर 19 मिनट के बीच घट स्थापना करना बेहद शुभ होगा। 


नवरात्रि में नौ दिन कैसे करें नवदुर्गा साधना

माता दुर्गा के 9 रूपों का उल्लेख श्री दुर्गा-सप्तशती के कवच में है जिनकी साधना करने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते हैं। कई साधक अलग-अलग तिथियों को जिस देवी की हैं, उनकी साधना करते हैं, जैसे प्रतिपदा से नवमी तक क्रमश:-

(1) माता शैलपुत्री : प्रतिपदा के दिन इनका पूजन-जप किया जाता है। मूलाधार में ध्यान कर इनके मंत्र को जपते हैं। धन-धान्य-ऐश्वर्य, सौभाग्य-आरोग्य तथा मोक्ष के देने वाली माता मानी गई हैं। 

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।'

 (2) माता ब्रह्मचारिणी : स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। संयम, तप, वैराग्य तथा विजय प्राप्ति की दायिका हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।'

 
(3) माता चन्द्रघंटा : मणिपुर चक्र में इनका ध्यान किया जाता है। कष्टों से मुक्ति तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए इन्हें भजा जाता है।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:।'


(4) माता कूष्मांडा : अनाहत चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। रोग, दोष, शोक की निवृत्ति तथा यश, बल व आयु की दात्री मानी गई हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:।'


(5) माता स्कंदमाता : इनकी आराधना विशुद्ध चक्र में ध्यान कर की जाती है। सुख-शांति व मोक्ष की दायिनी हैं। 

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:।'


(6) माता कात्यायनी : आज्ञा चक्र में ध्यान कर इनकी आराधना की जाती है। भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष की दात्री हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:।'

 
(7) माता कालरात्रि : ललाट में ध्यान किया जाता है। शत्रुओं का नाश, कृत्या बाधा दूर कर साधक को सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देती हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:।'


(8) माता महागौरी : मस्तिष्क में ध्यान कर इनको जपा जाता है। इनकी साधना से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। असंभव से असंभव कार्य पूर्ण होते हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:।'


(9) माता सिद्धिदात्री : मध्य कपाल में इनका ध्यान किया जाता है। सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं।

 

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:।'

 विधि-विधान से पूजन-अर्चन व जप करने पर साधक के लिए कुछ भी अगम्य नहीं रहता। 

 विधान- कलश स्‍थापना, देवी का कोई भी चित्र संभव हो तो यंत्र प्राण-प्रतिष्ठायुक्त तथा यथाशक्ति पूजन-आरती इत्यादि तथा रुद्राक्ष की माला से जप संकल्प आवश्यक है।  जप के पश्चात अपराध क्षमा स्तोत्र यदि संभव हो तो अथर्वशीर्ष, देवी सूक्त, रात्र‍ि सूक्त, कवच तथा कुंजिका स्तोत्र का पाठ पहले करें। गणेश पूजन आवश्यक है। ब्रह्मचर्य, सात्विक भोजन करने से सिद्धि सुगम हो जाती है।
आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। हालांकि गुप्त नवरात्र को आमतौर पर नहीं मनाया जाता लेकिन तंत्र साधना करने वालों के लिये गुप्त नवरात्र बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। तांत्रिकों द्वारा इस दौरान देवी मां की साधना की जाती है।
आचार्य राजेश कुमार

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